मैं जिसे ओढ़ता, बिछाता हूं
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूं
इस मशहूर शेर में दुश्यंत कुमार अपने शायराना मिज़ाज की बात कह रहे हैं। मगर बात अगर पहेली में बदली जाए कि ऐसी कौनसी चीज़ है जो ओढ़ी भी जाती है और बिछाई भी जाती है तो सभी की ज़बान पर चादर लफ्ज़ ही आएगा। चादर हिन्दी का एक आमफ़हम शब्द है जिसका मतलब होता है कंधे या सिर के ऊपर से ओढ़ा जा सकने वाला कपड़ा, बिस्तर पर बिछाया जाने वाला पटका, धातु के चौड़े पत्तर या पानी की मोटी धार आदि। राजस्थानी में किसी बांध या टंकी के ओवरफ्लो होने की स्थिति को चादर चलना कहा जाता है । हिन्दी के अलावा चादर शब्द उर्दू, फारसी और अरबी में समान रूप से मौजूद है फर्क सिर्फ इतना है कि वहां इसका अर्थ बुर्का या नक़ाब होता है । जो भी हो, काम तो जिस्म को ढकने का ही हो रहा है।
चादर संस्कृत मूल से निकला शब्द है। संस्कृत की एक धातु है छद् जिसका मतलब होता है ढकना , छिपाना , पर्दा करना आदि। छद् से ही बना है छत्रः , छत्रकः या छत्रकम् । इन्ही शब्दों से बने हैं छाता , छत्री छतरी जैसे शब्द जो जिसका मतलब होता है ऐसा आवरण जिससे सिर ढका रहे, छाया बनी रहे। राजाओं के सिंहासन के पीछे लगे छत्र से भी यह साफ है । छत्रपति, छत्रधारी जैसे शब्द इससे ही निकले हैं। मंडपनुमा इमारत भी छतरी ही कहलाती है। राजाओं की याद में भी पुराने ज़माने में जहां उन्हें दफनाया जाता था , छतरियां बनाईं जाती थीं। कहावत है कि चाहरदीवारी को ही घर नहीं कहते । सही है क्यों कि अगर चाहरदीवारी पर छत नहीं होगी तो आश्रय अधूरा माना जाएगा और घर यानी सम्पूर्ण आश्रय । छद् के चादर में तब्दील होने का क्रम कुछ यूं रहा होगा - छत्रकः> छत्तरअ > छद्दर > चद्दर > चादर ।
चादर में समाए ओढ़ने, बिछाने, ढकने, छुपाने के भावों ने कविता और मुहावरों में दार्शनिक-लाक्षणिक अर्थ ग्रहण किये हैं मसलन –
ते ते पांव पसारिये, जेती चादर होय ।
कबीर की झीनी झीनी बीनी चदरिया तो सब दुखों से मुक्ति का रास्ता बताती है और चिन्तामुक्ति के बाद मनई को चादर तान कर ही सोना चाहिये । फारसी होते हुए जब यह चादर अरबी में पहुंची तो वहां के सामाजिक संस्कार इसमें समा गए और खासतौर पर इसका मतलब हो गया शरीर को ढकने का वस्त्र, नकाब या बुर्का । इसका प्रयोग भी विशेष रूप से महिलाओं के संदर्भ में होने लगा। भारत में मुस्लिम शासन के दौरान इस किस्म के प्रयोग यहां भी होने लगे जो मुहावरों में नज़र आते हैं जैसे चादर डालना या चादर ओढ़ाना जिसका मतलब होता है किसी विधवा को घर में डाल लेना या उससे विवाह कर लेना। भाव आश्रय देने का ही है मगर लाक्षणिकता साबित करती है कि इसमें पुरुषवादी सोच पैठी है। यूं देवताओं को छत्र छढ़ता है तो मज़ारों पर चादर चढ़ती है। दोनों मूलतः एक ही हैं और श्रद्धास्वरूप किए जाने वाले अनुष्ठान हैं।
आपकी चिट्ठियां
सफर के पिछले पांच पड़ावों- छिनाल का जन्म , छप्पन छुरी और असली छुरी, ऊंची अटरिया में ठहाके, कैसे कैसे अड्डे और अड्डेबाज , हाथी ने दिखाई हाथ की सफाई पर सर्वश्री समीरलाल, ज्ञानदत्त पांडेय, लावण्या शाह , डॉ चंद्रकुमार जैन, कुश ,संजय पटेल , घोस्ट बस्टर, डॉ अनुराग आर्य, अभिषेक ओझा, ममता, शिवनागले, दिनेशराय द्विवेदी, ई गुरूमाया, बोधिसत्व, संतराम यादव, अरुण , तरुण, प्रभाकर पांडे, आलोक पुराणिक, नीलिमा, पल्लवी त्रिवेदी, अभिजित, रंजना , अभय तिवारी, पल्लव बुधकर , संजय शर्मा, प्रशांत प्रियदर्शी, आभा, शिवकुमार मिश्र, डॉ अमरकुमार, अनामदास, राजेश रोशन , सजीव सारथी, अशोक पांडेय , अफ़लातून, मीनाक्षी , आशीष कुमार अंशु, स्मार्ट इंडियन और अशोक पांडे की टिप्पणियां मिलीं । आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
@अनामदास-आपने अट्ट से अट्टालिका वाली पोस्ट में आए लाफ्टर के हवाले से लॉफ्टी, लॉफ्टर, लॉफ्ट जैसी ऊंचाई को इंगित करती जो जानकारियां दी उनसे सचमुच अट्टहास और अट्टालिका की ही रिश्तेदारी सामने आती दिखी। बाद में सोचा तो लगा कि लिफ्ट भी इसी मूल का शब्द है। शुक्रिया ।
@संजय शर्मा, पल्लव बुधकर, अरुण
आप सभी का शुक्रिया कि अट्टापीर वाली शब्द चर्चा में हिस्सा लिया।
@अभय तिवारी
भाई, लगता तो है कि खुखरी शब्द भी क्षुर् या खुर की देन है। अलबत्ता ईंट शब्द इष्टिका से बना है । अट्ट से इसकी रिश्तेदारी नहीं है।
खास बात-
साथियों ,
इस ब्लाग पर आपका आना बहुत अच्छा लगता है । अनुरोध ये है कि अगर कोई शब्द जो आपके भाषायी क्षेत्र से ताल्लुक रखता है, आपको कुछ संदर्भ याद दिलाता है तो कुछ समय निकालकर उसके बारे में मुझे ज़रूर लिखें।
एक निवेदन यह भी कि कृपया अपनी टिप्पणियों में ऐसे विशेषण न दें जिन्हें स्वीकारने में मुझे संकोच हो। ये मेरा शौक है और आप सबसे साझा कर रहा हूं। ज्ञानी-ध्यानी नहीं हूं, बस जो हूं आपके बीच से हूं। पढ़ रहा हूं और तलाश रहा हूं। जो मिल रहा है उसे सबसे बांट रहा हूं । अरुण जी ने ठीक कहा, इसे तो अड्डा ही समझिये।
अन्यथा न लें। बस, निवेदन ही मानें।
आपका ,
अजित
Friday, June 27, 2008
झीनी झीनी बीनी चदरिया ....
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15 कमेंट्स:
I could give my own opinion with your topic that is not boring for me.
चादर गरीब का छत्र है! उसमें छेद भी हो सकते हैं। पता नहीं छेद छत्र से बना या नहीं। :)
चादर और छतरी में इतना जजदीकी याराना है ये पता ही न था।
कहीं चादर, कहीं चदरिया और कहीं चद्दर! दीवारें खड़ी कर उन पर टीन या अब एसबेस्टॉस की छत के लिए जो टुकड़े काम लिए जाते हैं उन्हें भी चादर ही कहते हैं।
हिन्दी में चीर शब्द कपड़े के लिए प्रयोग होता है. चादर का कुछ सम्बन्ध इससे भी हो सकता है क्या?
कहावत है कि चाहरदीवारी को ही घर नहीं कहते । सही है क्यों कि अगर चाहरदीवारी पर छत नहीं होगी तो आश्रय अधूरा माना जाएगा और घर यानी सम्पूर्ण आश्रय.
हमारा ख्याल था कि इसमें हाउस और होम जैसी कोई बात होगी. होम जो उसमें रहने वालों से बनता है.
इस पड़ाव पर
दुष्यंत कुमार का ही एक और शे'र
काबिले ज़िक्र लग रहा है.....
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए
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आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन
हमेशा की तरह लाजवाब पोस्ट.. आपका बहुत बहुत आभार
चादर तो मुझे कुछ यू लगता है "च:आदर= चादर" च यानी "और आदर" यानी सम्मान का द्योतक शब्द है ये किसी को चादर उढाना, चादर ढक देना ( जिंदे से लेकर मरे तक पर हम चादर उढाकर उसके प्रति अपना सम्मान ही प्रदर्शित करते है)किसी भी उस वस्तू को जो किसी को ढाकने का कार्य करती हो चादर ही कहते है वो चाहे लोहे की हो कपडे की या एस्बेस्टास की :)
मेरी "चाँदनी" को भी शामिल कीजिये .
चादर और छत्र या छतरी का करीबी रिश्ते को पुख्ता करती है "चाँदनी" .ये रंग बिरंगे कपडो से बना किनारे झालरनुमा या फ़िर किसी एक चटकीला रंग के कपडे पर कंट्रास्ट कशीदाकारी भी होता है , मख मल , सिल्क,या फ़िर सूती कपड़े से आकर्षक बना . शादी के मण्डप के छत के नीचे लगा होता है . यह मण्डप का सम्मान बढाता
है . कई बार घास -फूस ,बास-बल्ली के मण्डप के आभाव में शादी या यज्ञोपवित संस्कार में ये कपडे का मण्डप यानी "चाँदनी" टांगा जाता है . यह शामियाना का छोटा भाई होते हुए भी अपना विशिष्ट स्थान बनाए हुए है .आप इसे शामियाना के बाहर और अन्दर भी सजे हुए देख सकते है .
बहुत से मन्दिर में देवी-देवता के मूर्ति के ऊपर और छत से नीचे शोभायमान सुंदर सा कपडा को हम बिहारी "चाँदनी " ही कहते है .
अरुण जी से प्रचंड सहमति है , चादर का अर्थ सम्मान देना .
@अरुण-
बहुत सही मित्र। चादर में आदर छुपा है ।
@संजय शर्मा-
शुक्रिया संजय भाई। चादर के लिए चांदनी शब्द भी प्रयोग किया जाता है खासतौर पर बड़े आयोजनों या उत्सवों के दौरान। इसे चादरे-महताब भी कहा जाता है। मतलब वही हुआ चांदनी।
मैं जिसे ओढ़ता, बिछाता हूं
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूं
sach maniye is sher ko padhkar kheencha chala aaya ki ajit ji ke pale me ye sher......aaj ki class bhi khoob rahi....
सफर में चादर से लिहाफ लिहाफ तक सभी की जरुरत तो होती ही है... सफर चलता रहे. हम चादर बिछये साथ हैं.
शुक्रिया!
ये भी अच्छी रही !
छतरी से चादर की सगाई-
लावण्या
चादर से छतरी आलेख और उस पर आई टिप्पणियों को पढ़कर आनन्द आ गया.
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