Tuesday, August 24, 2010

वीणा से प्रवीण और कुश से कुशल

Radhika

प्रा यः सभी भाषाओं में शब्दसम्पदा के बढ़ने के कई कारण होते हैं जिनमें एक प्रमुख कारण अर्थविस्तार की प्रवृत्ति भी है। यह अर्थविस्तार इतना व्यापक होता है कि उस शब्द के मूलार्थ से नए अर्थ का दूर-पास का भी कोई रिश्ता नहीं जुड़ता है। प्रवीण भी ऐसा ही एक शब्द है। किसी कार्य को बहुत ही चतुराई और उत्तम प्रणाली से करने के लिए हिन्दी में आम प्रचलित शब्द है प्रवीण। किसी कार्य में दक्ष या निष्णात या सिद्धहस्त होने के लिए इस शब्द का प्रयोग होता है। किसी वक्त प्रवीण का अर्थ होता था वह व्यक्ति जो वीणा बजाने में कुशल हो। वीणा प्राचीनतम् भारतीय वाद्य है। भारतीय देवी-देवताओं के हाथों में वीणा ही नजर आती है। वीणा बजाने में सिद्धहस्त कलाकार को प्रवीण कहा जाने लगा। स्पष्ट है कि वीणावादन का उस काल में कितना महत्वरहा होगा। कालान्तर में हर तरह के कार्य को कुशलता से करनेवाले के लिए प्रवीण शब्द प्रचलित हो गया और इसका मूलार्थ लोप हो गया। विडम्बना यह भी रही कि उत्तर भारतीय संगीत से भी वीणा की परम्परा धीरे धीरे कम होती चली गई, अलबत्ता दक्षिण भारत में उत्तर की बनिस्बत वीणा का चलन कहीं ज्यादा है।
पटे कोश में के अनुसार वीणा (वेति वृद्धिमात्रमपगच्छति- वी+न, नि. णत्वम्) का अर्थ सारंगी जैसा वाद्य, बीना, बताया गया है। इसके अलावा इसका एक अन्य अर्थ विद्युत भी है। संस्कृत की वी धातु में जाना, हिलना-डुलना, व्याप्त होना, पहुंचना जैसे भाव हैं। बिजली की तेज गति, चारों और व्याप्ति से भी वी में निहित अर्थ स्पष्ट है। विद्युत की व्युत्पत्ति भी वी+द्युति से बताई जाती है। वी अर्थात व्याप्ति और द्युति यानी चमक, कांति, प्रकाश आदि। प्रकाश की तीव्र कौंध ही विद्युत है। वी से बने हैं वेति, वेत या वीत जैसे शब्द जिनसे बने कुछ शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे चरैवेति यानी बढ़ते चलो। वीत भी गतिवाचक है जिसमें जाने का भाव है। चले जाना। इससे बना एक शब्द है वीतराग अर्थात सौम्य, शान्त, सादा, निरावेश। राग का अर्थ कामना, इच्छा, रंग, भावना होता है। वीतराग वह है जिसने सब कुछ त्याग दिया हो। एक पौराणिक ऋषि का नाम भी वीतराग था। वीतरागी वह है जो संसार से निर्लिप्त रहता है। जाहिर है एक तन्त्रवाद्य होने के नाते वीणा की वी से व्युत्पत्ति में तीव्रता के साथ इसकी मधुर स्वर लहरियों की सब दूर व्याप्ति का भाव भी है। इन्हीं शब्दों के पूर्ववैदिक रूप वेण, वीण या वेणि रहे होंगे।
यूं वीणा में अंतर्निहित ध्वनि पर गौर करें तो वीणा का रिश्ता वाणी से भी हो सकता है। आपटे कोश के अनुसार वाणी शब्द बना है संस्कृत की वण् धातु से जिसका अर्थ है शब्द करना। वण् से बने वाणी में वचन, भाषण, वाक् शक्ति, बोलना, magadi2 ध्वनि आदि होता है। संस्कृत में वेण् या वेन् शब्द भी मिलते हैं जिनका अर्थ है जाना, हिलना-डुलना या बाजा बजाना। इसी क्रम में वेण् से बने वेणः का अर्थ होता है गायक जाति का एक पुरुष। बांसुरी को वेणु भी कहते हैं जो इसी मूल का है। वेणु मूलतः बांस को ही कहते हैं। बांसुरी शब्द को एक वाद्य की अर्थवत्ता इसीलिए मिली क्योंकि यह बांस से उत्पन्न है। वण् धातु से व्युत्पन्न बांस के अर्थ वाले वेणु शब्द की तार्किक विवेचना क्या हो सकती है? यही कि प्राचीनकाल से ही बांसों के जंगल से गुजरती हवा की तेज़ ध्वनि से मनुष्य परिचित था। यही बात उसने बांस के पोले तने से हवा गुज़ारने पर भी महसूस की। तात्पर्य यही है कि वेत, वेण जैसे शब्दों का मूल रिश्ता गति और प्रकारान्तर से ध्वनि से था।
खैरियत, मंगल और प्रसन्नता के अर्थ में भी कुशल शब्द का प्रयोग होता है। कुशल-क्षेम, कुशल-मंगल से यह साफ जाहिर है। यह बना है संस्कृत के कुशः से। हिन्दी में यह भी काफी आम है और इससे बने शब्द खूब प्रचलित हैं। संस्कृत के कुशः का मतलब होता है एक प्रकार की वनस्पति, तृण, पत्ती, घास जो पवित्र-मांगलिक कर्मों की आवश्यक सामग्री मानी जाती है। प्रायः सभी हिन्दू मांगलिक संस्कारों में इस दूब या कुशा का प्रयोग पुरोहितों द्वारा किया ही जाता है। प्राचीनकाल में गुरुकुलवासी बटुकों से मुनिजन कुश घास को एकत्र कराते थे जो विभिन्न कामों प्रयोग की जाती थी। छप्पर यज्ञ कर्म में इसका विशेष महत्व था। जो शिष्य सही तरीके से कुश को बीनता था वह कुशल कहलाता था। कालान्तर में किसी कार्य को दक्षतार्वक करने वाले के लिए यही कुशल शब्द रूढ हो गया।  इसी क्रम में आता है कुशाग्र।  हिन्दी के इस शब्द का मतलब होता है अत्यधिक बुद्धिमान, अक्लमंद। चतुर आदि। गौर करें कुशः के घास या दूब वाले अर्थ पर। यह घास अत्यंत पतली होती है जो अपने किनारों पर बेहद पैनी हो जाती है।  पचूंकि इसका आगे का हिस्सा नोकीला होता है इसलिए इस हिस्से को कुशाग्र कहा गया अर्थात कुश का अगला हिस्सा ( जो नोकीला है )। जाहिर सी बात है कि कालांतर में बुद्धिमान व्यक्ति की तीक्ष्णता आंकने के लिए कुशाग्र बुद्धि शब्द चल पड़ा। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में जो लिखा वो एक प्रसिद्ध उक्ति बन गई- पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जे अचरहिं ते नर न घनेरे।। 

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11 कमेंट्स:

Mansoor ali Hashmi said...

"वर दे!
वीणा वादिनि, वर दे."
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अजित जी आपकी वीणा ने आज 'मन' के तारो को इस तरह छेड़ा है:-

तार से वो रस झड़े ,
सब तर-ब-तर कर दे.

'शब्द' के हर एक 'सफ़र' को,
सुमधुर कर दे.

ज्ञान के भंडार को भी,
विस्तृत करदे.

शब्द को वाणी मिले तो,
अर्थ को स्वर दे.

ताल-सुर से हो निपुण रचना,
वो अक्षर दे.

वाक् में चातुर्य हो,
बुद्धि कुशाग्र दे.

मन-वचन में निष्कपटता,
सादगी भर दे.

-मन सुर

संगीता पुरी said...

ज्ञानवर्द्धन हुआ.. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

प्रवीण पाण्डेय said...

पर मुझे तो वीणा बजाना आता ही नहीं।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

रक्षा बंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ

Satish Saxena said...

भाई जी निम्न कमेन्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की पोस्ट पर दिया है, आपकी निगाह चाहिए ! सादर
"बाई गोड प्रवीण भाई मज़ा आ गया ...अजीत वडनेरकर को इस मूर्खता पूर्ण पोस्ट पर विद्वता पूर्वक गौर करना चाहिए :-))
मगर यह तो अनूप शुक्ल जी के पैदायशी विषय में, बड़ी शक्तिशाली घुसपैठ कर दी आपने......यह तो गलत बात है !
हा..हा...हा....हा...."
शुभकामनायें भैया ..

रंजना said...

प्रवीण और कुश की रिश्तेदारी, राधिका का मनमोहक चित्र...कितना कुछ दे दिया आपने इस पोस्ट में...
बहुत बहुत आनंद आया...

यह राधिका(ब्लॉग आरोही) की ही तस्वीर है न ???

Baljit Basi said...

पंजाबी की एक उपभाषा में *वैणा* का मतलब जाना होता है और आप *वी* धातु का अर्थ जाना बता रहे हैं. हो सकता है यह संबंधत हों. पंजाबी *वैण* गुरबानी में *शब्द* का भाव देता है जब कि आज कल इसका मतलब शोक-गीत है. अमृता प्रीतम के प्रसिद्ध लाइन है:
इक रोई सी धी पंजाब दी, तूं लिख लिख मरे वैण,
अज्ज लखां धीआं रोंदीआं, तैनूं वारिस शाह नूं कहिण
*बैण* और *बेण* का मतलब वीणा है. बीन का आप ने ज़िकर नहीं कीया.

nidhi jain said...

आपकी किताब जब भी प्रकाशित हो अवश्य बताएं हर ब्लॉग में उत्कृष्ट जानकारी मिलती है

SATYA said...

ज्ञानवर्द्धन के लिए बहुत आभार...

Baljit Basi said...

मुझे गुरु ग्रन्थ में बीन, बीना, परबीन, परबीना आदि देख कर कुछ संदेह हुए हैं. पूरी तरह से समझ नहीं आ रही कि यह शब्द फ़ारसी 'बीन'( देखना) से बने हुए हैं या 'वीणा' से. यहाँ बीन या बीना का अर्थ देखने वाला, जानने वाला, गुणों वाला बनता है. यह आम तर पर दाना के साथ जुड़ कर आता है:
दाना बीना साई मैडा नानक सार न जाणा तेरी-गुरू अर्जन
आपे बीना आपे दाना -गुरू अर्जन
और परबीन देखिये:
सरब कला प्रभ तुम्ह प्रबीन -गुरू अर्जन
नानक जिस नो हरि मिलाए सो सरब गुण परबीना-गुरू अर्जन
नच दुरलभं बिदिआ प्रबीणं नच दुरलभं चतुर चंचलह -गुरू अर्जन
हाँ, यह बात जरूर है कि सबी 'ब' के साथ ही हैं 'व के साथ नहीं.
कुछ कहना चाहेंगे?

RADHIKA said...

आपकी पोस्ट पढ़कर पहली बार पता चला की प्रवीण शब्द वीणा में प्रवीणता के लिए उपयोग होता था .हाँ यह भी सच हैं पहले के काल में वीणा वादन को बहुत महत्व था .जब जातीगायन प्रणाली प्रचलित थी तब भी बहुत बहुत सारी पद्धति की वीणाये प्रचलित थी .क्योकि उस समय कोई भी गायन बिना वीणा वादन की संगत के नही होता था .
थैंक्स इस पोस्ट के लिए .
वीणा साधिका
डॉ . राधिका

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