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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:34 AM
16.चंद्रभूषण-
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15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
13 कमेंट्स:
बिल्कुल सही लिखा है अरुण जी ने। इस सफर को धीरे धीरे ही सही जारी रखें...
बड़ा ही आत्मीय लगता है शब्दों के साथ सफर, हमारे जीवन के अंग जो हैं, ये शब्द।
बेशक शब्दों का सफ़र संस्कृतियों का सफ़र है...पुस्तक 'शब्दों के सफ़र' की एक झलक दिखाने के लिए आदित्यजी आपका आभार
यदि समझाने का तरीका रोचक हो तो नीरस से नीरस विषय भी अच्छा लगने लगता है। अजित जी की यही खासियत है कि वह तथ्यात्मक ज्ञान भी रोचकता के साथ बांटते हैं।
विषयों के विस्तार और विविधता से युक्त पुस्तक की इतनी संक्षिप्त समीक्षा नाकाफ़ी तो लगती है फ़िरभी महत्वपूर्ण है ।
पुस्तक निश्चित रूप से ज्ञानवर्द्धक है और अत्यन्त रोचक ढंग से लिखी गयी है।
अजित जी को बारंबार बधाई।
संक्षिप्त और परिचयात्मक समीक्षा सम्यक बन पड़ी है | मूल पुस्तक को पढ़ने की उत्कंठा जगाए तो बस सार्थक है वह समीक्षा |
अजित जी ! अनेकशः बधाई |
उत्पत्ति की तलाश में निकलें तो शब्दों का बहुत दिलचस्प सफर सामने आता है। nice line..
आदित्य जी की लिखी आपकी पुस्तक की समीक्षा पढी । भाषा और संस्कृति के विकास के सम्बंध मे आपका यह शोधग्रंथ लगन और अत्यधिक परिश्रम का ़द्योतक है बधाई
मैने पुस्तक तो अभी तक नही पढी पर यदि लेखों से जाना जाय तब भी यह समीक्षा एकदम सही बैठती है । आपके सफर में आप शब्दों के साथ साथ संस्कृति दर्शन भी होते ही हैं । और आखिर दुनिया गोल हे का ज्ञान भी ।
उपयोगी और dilchasp lekh. बधाई.
उपयोगी और dilchasp lekh. बधाई.
वाह…बढ़िया…
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