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Friday, June 24, 2011
स्मरण, सुमिरन से मेमोरंडम तक
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे होय।। कबीरवाणी का यह दोहा जगप्रसिद्ध है। इसमें जो सुमिरन शब्द है वह महत्वपूर्ण है। सुमिरन शब्द में आई ध्वनियां बड़ी मधुर हैं और इसके मायने भी लुभावने हैं। सुमिरन में ईश्वर को याद करने का भाव है। अनंतशक्ति के प्रति अगाध शृद्धा रखते हुए ध्यान केन्द्रित करना ही सुमिरन है। सुमिरन शब्द बना है संस्कृत के स्मरण से। स्मरण > सुमिरण > सुमिरन के क्रम में इसका विकास हुआ। हिन्दी की विभिन्न बोलियों में यह सुमरन, सुमिरण के रूप में मौजूद है और पंजाबी में इसका रूप है सिमरन जहाँ प्रॉपर नाऊन की तरह भी इसका प्रयोग होता है। व्यक्तिनाम की तरह स्त्री या पुरुष के नाम की तरह सिमरन का प्रयोग होता है। बहुतांश हिन्दीवाले पंजाबी के सिमरन की संस्कृत के स्मरण से रिश्तेदारी से अनजान हैं क्योंकि सुमिरन की तरह से पंजाबी के सिमरन का प्रयोग हिन्दीवाले नहीं करते हैं बल्कि उसे सिर्फ व्यक्तिनाम के तौर पर ही जानते हैं।
स्मरण शब्द बना है संस्कृत की स्मर् धातु से। मोनियर विलियम्स के संस्कृत इंग्लिश कोश के मुताबिक स्मर् में याद करना, न भूलना, कंठस्थ करना, याददाश्त जैसे भाव हैं। संस्कृत हिन्दी का स्मृति शब्द भी इसी मूल से आ रहा है। भाषा की खासियत है लगातार विकसित होते जाना। मनुष्य ने भाषायी विकास के दौर में लगातार उपसर्ग और प्रत्यय जैसे उपकरण विकसित किए हैं जिनके ज़रिए नए नए शब्दों का सृजन होता गया है। स्मर् में निहित याद रखने का भाव ही इसके उलट भूलनेवाली क्रिया के लिए भी इसी स्मर् धातु से नया शब्द बना लिया गया। संस्कृत का प्रसिद्ध उपसर्ग है वि जिससे रहित, कमी या हीनता का बोध होता है। स्मरण में वि उपसर्ग लगने से बनता है विस्मरण जिसका अर्थ है भूल जाना, याद न रहना। आए दिन इस्तेमाल होने वाला हिन्दी का विस्मृत शब्द इसी मूल से आ रहा है। विस्मरण क्रिया का ही देशी रूप है बिसरना अर्थात भूलना। इसी तरह बना है बिसराना यानी भूलाना या भूल जाना। मराठी में इसी विस्मरण का रूप होता है विसरणें जिससे यहां और भी कई शब्द बने हैं।
स्मरण से ही बना है सुमिरनी शब्द। सुमिरनी यानी वह माला जिसमें मनका, मोती या रुद्राक्ष के दाने होते हैं। हिन्दू संस्कृति में 108 की संख्या का खास महत्व है। वैसे यह संख्या कुछ भी हो सकती है। सुमिरनी का उपयोग नाम स्मरण के लिए होता है। विश्व की कई प्राचीन संस्कृतियों में नाम स्मरण की परम्परा रही है। इस्लाम में भी नाम स्मरण का रिवाज़ है। सुमिरनी को अरबी में तस्बीह कहा जाता है। किसी शायर ने फ़रमाया है- मोहतसिब तस्बीह के दानों पे ये गिनता रहा/ किनने पी, किनने न पी, किन किन के आगे जाम था। परम्परा के अनुसार सुमिरनी को हाथ में पकड़ कर उस पर एक छोटी सफेद थैली डाल ली जाती है। तर्जनी उंगली और अंगूठे की मदद से नाम स्मरण करते हुए सुमिरनी के दानों को लगातार आगे बढ़ाया जाता है। सुमिरनी दरअसल एक उपकरण है जो नामस्मरण की आवृत्तियों का स्मरण भक्त को कराती है।
अंग्रेजी के मेमोरी शब्द का रिश्ता भी इस शब्द शृंखला से जुड़ता है। हालाँकि डगलस हार्पर की एटिमॉनलाईन के मुताबिक मेमोरी शब्द का रिश्ता प्रोटो भारोपीय धातु *men-/*mon से है जिसमें चिंतन या विचार का भाव निहित है। यह वही धातु है जिसकी रिश्तेदारी हिन्दी के मन और अंग्रेजी के mind से है। स्पष्ट है कि मन या माइंड में ही सोच, विचार या चिन्तन की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। रामविलासजी के अनुसार स्मर् और मेमोरी एक ही मूल के हैं। मेमोरी यानी याददाश्त। पश्चिम की ओर गतिशील गण समाजों में स्मर् की स ध्वनि का लोप हुआ और वर्ण विपर्यय के जरिए मेमोरी शब्द बना। संस्कृत में सोचने के लिए मन् धातु है और अन्तर्मन के रूम में मन के लिए मनस् है। दरअसल ध्यान, चिन्तन और मनन में प्रकाशवाची भाव है क्योंकि मनन चिन्तन दरअसल मन्थन की प्रक्रिया है और मन्थन के बाद प्रकटन, उद्घाटन होता है विचार का। इस प्रकटन में प्रकाशित होने का भाव प्रमुख है। इसीलिए चन्द्रमा के लिए संस्कृत में जो चन्द्रमस् शब्द है, इसका मस् में भी आधारभूत रूप में मन् ही है। प्रकाश, चमक या कान्ति का गुण ही चन्द्रमा में सौन्दर्य की स्थापना करता है।
डॉ रामविलास शर्मा के अनुसार यह मन्स है। इससे जब न का लोप हुआ तब जाकर मस् प्रचारित हुआ। ग्रीक मेनस् और मेने में न विद्यमान है। इन सभी धातुओं के मूल में म ध्वनि प्रमुख है जिसमें प्रकाशित होने के भाव का विस्तार चिन्तन से भी जुड़ता है और चमक से भी। मति, मत आदि भी इसी कड़ी में आते हैं। मन, मिन्, मेने, मेन्सिस जैसे अनेक रूप इन्हीं अर्थों में ग्रीक व लैटिन में हैं। यह तय है कि मन् का प्राचीन रूप मर् था। लैटिन के मैमॉर् अर्थात स्मृति में मर् के स्थान पर मॉर है। संस्कृत के स्मर, स्मरण, स्मृति में स-युक्त यही मर् है। अंग्रेजी के मेमोरंडम शब्द का रिश्ता भी इसी मेमॉर से है जिसके लिए हिन्दी में स्मरणपत्र बनाया गया है। बुध के लिए मरकरी नाम में मर् की यही आभासिता प्रकाशमान है। गौरतलब है मरकरी के संस्कृत नाम बुध की मूल धातु बुध् है जिससे प्रकाश, ज्ञान, बुद्धि संबंधी शब्दावली के अनेक शब्द बने हैं। इस पर शब्दों का सफर की पिछली कड़ियों में लिखा जा चुका है।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 11:31 PM
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11 कमेंट्स:
मन ही मन बिसराया सब कुछ।
स्मरण शब्द से बना मेमोरी। अच्छा है। आपने शायद एक किताब देखी हो तो उसमें दिया है कि डॉक्टर शब्द दु:खतार से, ब्रदर भ्रातर से, मदर मातर से या ऐसे बहुत सारे शब्द अंग्रेजी में हैं जो संस्कृत मूल के हैं। इस किताब का नाम है हास्यास्पद भाषा है अंग्रेजी।
अब आता रहूंगा आपके शब्दों के घर पर। पहली टिप्पणी में बना की जगह मना हो गया था, इसलिए हटा दिया।
यादों के झरोखे खोलती पोस्ट !
'शाहरुख' [मैं, और कौन!] को आज याद फिर 'सिमरन' करा गए, [DDLJ ]
माज़ी की माला* हाथ में फिर से थमा गए, [Rosary ]
बिसरा चुके थे ट्रेन जो छूटी थी तब कभी,
फिर रोके 'उसकी' याद में तसुवे बहा गए.
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उनके हाथो में तवक्को* के ख़िलाफ़ ! [Expectation
देख कर तस्बीह को ज़ंजीर का धोखा हुआ.
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और चचा ग़ालिब फरमा गए थे:-
" यादे माज़ी अज़ाब है यारब,
छीन ले मुझसे हाफेज़ा मैरा."
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http://aatm-manthan.com
यादों के झरोखे खोलती पोस्ट|
अच्छी जानकारी मिली।
स्मरण, सुमिरन, मेमोरी और फिर तस्बीह... हर बार शब्दों का सफर चमत्कृत कर जाता है...हर सफ़र यादग़ार भी...
यहा बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है!
बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद|
शब्दों का सफर ब्लॉग का भान इंडिया टूडे के ताजातरीन अंक से ज्ञात हुआ। शब्दों का ये सफर पढ़ते-पढ़ते पाठक को अपना हमसफर बना लेता है। शब्दान्वेषियों के नामों में मेरे शब्दकोष में एक नया नाम जुड़ गया वो है अजित वडनेरकर। श्रीअरविन्द कुमार के बाद आपका यह प्रयास शब्दों के अनोखे संसार में ले जाता है। यह प्रयास शब्द शोधाथियों के साथ-साथ आमजन को भी शब्द की व्युत्पत्ति के साथ-साथ उसके क्रमिक विकास को भी दिलो-दिमाग पर व्यक्त कर देता है।
स्मर,स्मरण, सुमिरन, सुमिरनी, (स्) मर, मेमोरी, मेमो, शब्दों का यह सफर हर सफर की तरह रोचक और जानकारी पूर्ण ।
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