Saturday, November 5, 2011

बेहिचक शराबी की हिचकियाँ

drunk

बोलचाल की हिन्दी का एक क्रियारूप हिचकिचाना या हिचकिचाहट खूब इस्तेमाल होता है। ‘हिचकिचाना‘ यानी संकोच करना, खुद में सिमट जाना, किसी काम में जुटने से कतराना, दुविधा में पड़ना वगैरह वगैरह। ‘हिचकिचाना‘ के मूल में ‘हिचकिच’ है जो ‘हिचक’ से बना है। ‘हिचक’ भी हिन्दी में खूब प्रचलित है। संकोच, दुविधा, असमंजस जैसे भाव ही हिचक में भी हैं। रोज़मर्रा इस्तेमाल होने वाले शब्दों में कई शब्द ऐसे होते हैं जो ध्वनिअनुकरण के आधार पर प्रचलित होते हैं। ‘हिचक’ शब्द की रिश्तेदारी भी ऐसे ही एक शब्द से है। हिचक शब्द में निहित हिचकिचाने के भाव पर गौर करें। इसमें करने या न करने का भाव है।
हिचकिचाना क्रिया का रिश्ता एक महत्वपूर्ण शारीरिक क्रिया, ‘हिचकी’ से है जिसका रिश्ता शारीरिक क्रिया से है। मसालेदार भोजन, तेज़ हँसने जैसे कारणों से हुई उत्तेजना के चलते भोजन नली में हवा फँस जाती है। यह अस्वाभाविक स्थिति होती है। सामान्य श्वासप्रक्रिया को जारी रखने के लिए फेंफड़ों की पेशियाँ उत्तेजित होकर ज्यादा हवा खींचती है, जिसकी वजह से झटके का आभास होता है। यही हिचकी है। शरीर तंत्र इसे सामान्य बनाने के लिए जब नाडियों को सक्रिय करता है तो यह हवा गले के रास्ते झटके के साथ बाहर आती है। इसे ‘डकार’ कहा जाता है। झटके के साथ जारी श्वास प्रक्रिया के दौरान ‘हिक्क’ जैसी ध्वनि निकलती है।
राब भी स्नायुतंत्र को उत्तेजित करती है जिसके चलते हिचकियों की स्थिति बनती है। शराबी के अभिनय में हिचकी होना उसे प्रामाणिक बनाता है। शराब की शुरूआत भी हिचक के साथ ही होती है, हिचक जब खत्म हो जाती है तो हिचकियाँ शुरू हो जाती हैं। सामाजिक जीवन में हिचकिचाने वाले, कतराने वाले लोग शराब पीकर बेहिचक हो जाते हैं। हिचक में जहाँ संकोज का भाव है वहीं एक मर्यादा भी है। हिचक के आगे जब फारसी का ‘बे’ उपसर्ग  लगता है तब बेहिचक बनता है। अक्सर ‘आप-आप’ वाली बेहद मर्यादित और संस्कारी भाषा बोलने वाले लोग शराब के असर में ‘अबे-तुबे’ की ज़बान बोलते हुए बेहिचक के साथ बेपरवाह, बेशऊर और बेशर्म भी हो जाते है। यहाँ ‘बे’ की महिमा दिखती है।
हरहाल, ‘हिचकी’ में शरीर ऊर्ध्व दिशा में झटके से उठता है, इसे हल्का झटका भी कह सकते हैं। यह क्रिया कुल मिलाकर व्यवधान या रुकावट ही पैदा करती है। इस अवस्था में इनसान कुछ और करने की स्थिति में नहीं रहता। बोलते-बोलते आने वाली इस रुकावट को इस ध्वनि की वजह से ‘हिचकी’ नाम मिला। कोई काम हाथ में लेने से पहले की अनिच्छा के पीछे भी कोई मानसिक व्यवधान होता है। इसलिए कुछ करने या कहने का संकोच, कतराना जैसे भावों के लिए ‘हिचकिचाना‘  जैसी क्रिया बनी। इसका एक रूप हिचमिचाना भी है। संशय या झिझक की स्थिति के लिए ‘हिचर-मिचर’ भी कहा जाता है। ‘हिचकी’ में व्यवधान का जो भाव है, गति के सम्बन्ध में ‘हिचकोला’ या हिचकोला खाना जैसी क्रियाएँ उससे ही बनी हैं। फैलन के कोश में इसका उर्दू रूप ‘हचकोला’ बताया गया है।
सामाजिक जीवन में हिचकिचाने वाले, कतराने वाले लोग शराब पीकर बेहिचक हो जाते हैं item_3765
मोनियर विलियम्स और आप्टे कोश में ‘हिचकी’ की मूल धातु हिक्क् बताई गई है। इसका निर्धारण ध्वनि-अनुकरण के आधार पर ही हुआ है। इसे कण्ठ से आती अनियमित ध्वनि कहा गया है। संस्कृत में ‘हिक्किका’ जैसा शब्द है और’ हिचकी’ इससे ही निकला है। जिसे अक्सर हिचकी आती हो, उसे ‘हिक्काश्वासिन’ , यानी हिचकियों के साथ साँस लेने वाला कहते हैं। किसी की याद आने के सम्बन्ध में हिचकी आना एक मुहावरा भी है। रोने की एक अवस्था ऐसी भी होती है जब भावावेश में आवाज़ रुँध जाती है, इसे हिचकियाँ ले लेकर रोना कहते हैं। अंग्रेजी में भी इसे हिकप hiccup कहते हैं भाव किसी रुकावट या हिचकी का ही है। वहाँ भी ध्वनि अनुकरण प्रभाव के चलते ही इसे यह नाम मिला है।
हिचकी का रिश्ता आदि काल से ही कवियों ने दूरदराज बसे किन्हीं अपनों की स्मृति से जोड़ा है। यादों की घाटी से आती एक सुहानी सदा का नाम है हिचकी। मुझे लगता है कि हिचकी  जैसी किसी हद तक कष्टदायी प्रक्रिया की असहज अनुभूति को भुलाने के लिए मानवीय संवेदना ने इसे अपनों की याद से जोड़ा। आमतौर पर बच्चों को हिचकी मिटाने का तरीका बताने के बावजूद वे उन्हें नहीं आज़माते, वरन कल्पना करते हैं कि कौन उन्हें याद कर रहा होगा। संचार के आधुनिक साधनों के जाल में अब हिचकी आना अपनों को याद करने का शग़ल नहीं रहा। कोई अपना अब हिचकी के जरिए नहीं बल्कि मोबाइल फोन के जरिये याद करता है। हिचकी अब एक शारीरिक क्रिया भर रह गई है, वर्ना पहले के ज़माने में आँख फड़कना अगर असगुन था तो ‘हिचकी’ शगुन थी। कवियों की कल्पनाशीलता ने हिचकी को शृंगाररस का विषय बना दिया था।
-जारी

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6 कमेंट्स:

Smart Indian said...

कैसे रहूँ चुप के मैंने पी ली क्या है ... हिच ... बहुत खूब!

प्रवीण पाण्डेय said...

किसी को आपकी याद आने से हिचकी आती है।

RDS said...

कहा तो यही जाता है कि भले काम में कैसी हिचक । लेकिन अफ्सोस यही कि भले लोग हिचकिचाते रहते हैं और दीगर लोग बेहिचक अपनी मंशा को अंजाम दे देते हैं । हिचक, एक द्वार है जिसके उस पार जो जाये वो मनचाहा पाए ! क़ायदा सिर्फ यह कि जैसा सोच वैसा अंजाम । कुछ लोग पूरी ज़िन्दगी हिचकिचाहट में और अफ्सोस ज़ाहिर करने में ही गुज़ार देते हैं । बाँयोलाँजी और लिंग्विस्टिक्स के सम्बन्ध को दर्शाती यह मनोरम और रोचक व्याख्या, एक मधुर काव्य की तरह विभोर कर गई । वडनेरकर् जी..साधुवाद !

चंदन कुमार मिश्र said...

गाना है न एक…हिच हिच हिचकी…

Mansoor ali Hashmi said...

याद इतना कर रहा है कौन आज !
'हिचकियाँ ही हिचकियाँ' आती रही.

और अजित जी आज की आप की पोस्ट के नतीजे में........

# 'हिचकिचाते' ,'सिमट' वो जाते थे,
फिर भी हम को बहुत वो भाते थे,
अब जो आकर पसर गए है वो,
देखिये हम 'सिमटते' जाते है.
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# ले के 'हिचकी' वो सब 'डकार' गया
गीला-सूखा सभी उतार गया,
'हाथ धोकर' ही जैसे आया था !
हाथ फिर धोये और पधार गया !!
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# 'बेहिचक' होके वो लताड़ गया,
उसका खाया-पिया बिगाड़ गया,
सर पे टोपी लगी थी अन्ना की,
'लोक्पाली' से डर 'लबाड़' गया.

# उसने पूछी है बात दिल की मेरी,
मैं 'हिचकते' रहा; कहूँ, न कहूँ ?
एक 'हिचकोला' खाके बस जो रुकी,
वो उतरली; मैं, अब रुकू के चलू ?

# बिसरो की जो याद दिलादे 'हिचकी' है,
'श्वास'का जो व्यवधान बतादे हिचकी है,
बातो से तो दावा होश का करता है,
चढ़ी है कितनी इसका पता दे ,हिचकी है.

विष्णु बैरागी said...

मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि आपकी इस पोस्‍ट ने मेरी अनेक हिचकें खत्‍म कर दी हैं।

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