Wednesday, November 9, 2011

समझ से परे यानी दुरूह

way

हि न्दी शब्दों के बरताव में होने वाली सामान्य गलतियाँ वर्तनी की भी होती हैं और अर्थ सम्बन्धी भी। ऐसे कई शब्द बोलचाल में प्रचलित हैं जिनका आशय कुछ और है मगर जिन्हें किसी अन्य अर्थ में प्रयोग किया जाता है। वजह वही है, शब्दयात्रा से, शब्द की व्युत्पत्ति से अपरिचित रहना। शब्द की आत्मा को समझने के लिए शब्दों की परतें खोलना ज़रूरी होता है। ऐसा ही एक शब्द है ‘दुरूह’ । लम्बे समय से इसे मुश्किल, कठिन, विकट के अर्थ में भी प्रयोग किया जाता है। शब्दकोशों ने भी इस गलती को बढ़ाने में योगदान दिया है क्योंकि इस शब्द का सही अर्थ बताते हुए उन्होंने वहाँ कठिन जैसा पर्याय भी दे दिया। लोगों ने कठिन को आसान मान कर ‘दुरूह’ को भी कठिन मान कर खुद एक आसान विकल्प चुन लिया। जबकि ‘दुरूह’ के माएने इससे कहीं अलग हैं। ‘दुरूह’ का सही अर्थ है दुर्बोध, समझ से परे, जो समझ न आ सके, कठिनाई से समझा या समझाया जा सकने वाला।
किसी रास्ते का मुश्किल होना उसे ‘दुर्गम’ बनाता है। दार्शनिक अर्थों में राह को लें तो राह भी ‘दुरूह’ हो सकती है, मगर चलने जैसी भौतिक क्रिया के अर्थ में राह कठिन, मुश्किल, दुर्गम हो सकती है, मगर दुरूह नहीं। हिन्दी के नामवर लोग भी ‘दुरूह’ का कठिन के अर्थ में ही इस्तेमाल करते हैं। ठाठ से लिखते हैं- “यह रास्ता दुरूह है।” जबकि लिखना चाहिए, “यह रास्ता दुर्गम है।” दुरूह बना है दुर् + ऊह से। संस्कृत के ‘दुर्’ उपसर्ग नकारात्मक भाव प्रकट करता है। कठिन, कष्टसाध्य जैसे भाव प्रकट करने के लिए मुख्य सर्ग से पहले इसे लगाया जाता है। संस्कृत की ऊह् धातु में चर्चा, तर्क वितर्क, अटकलबाजी जैसे भाव शामिल हैं। हिन्दी का एक और आम शब्द है ‘ऊहापोह’ जो ऊह+ अपोहः से बना है। ‘अपोह’ का अर्थ होता है तार्किक आधार पर समस्या का निराकरण। ‘ऊहापोह’ का हिन्दीवाले अक्सर गलत प्रयोग करते हैं। आमतौर पर इसका प्रयोग असमंजस, अधरझूल या निष्कर्ष तक न पहुँचने की स्थिति से लगाया जाता है जबकि इसका आशय किसी विषय पर सम्यक तार्किक चर्चा करने से है। ऊहापोह का मुहावरे की तरह जब प्रयोग होता है तो उसका अभिप्राय यही होता है सोच-विचार में पड़ना। दुर् +ऊह का अर्थ हुआ समझ से परे, न समझा जा सकने वाला।
तो स्पष्ट है दुरूह में सिर्फ़ कठिनाई नहीं है बल्कि यह कठिनाई विचार-विमर्श के सन्दर्भ में है। ‘दुरूह’ का अर्थ हुआ जिस पर विचार करने में कठिनाई हो, ऐसी बात जो समझ में न आ सके। कोई विषय दुरूह हो सकता है, व्यक्ति ‘दुरूह’ हो सकता, समस्या दुरूह हो सकती है, वार्तालाप ‘दुरूह’ हो सकता है, चिन्तन के स्तर पर राह या रास्ता ‘दुरूह’ हो सकता है क्योंकि इन तमाम सन्दर्भों में ‘दुरूह’ का प्रयोग दुर्बोध होने या न समझ सकने सम्बन्धी है। किसी रास्ते का खराब होना उसे दुरूह नहीं, दुर्गम बनाता है। जैसे- “शहर की सड़कें दुर्गम हैं।” यहाँ ‘दुर्गम’ की जगह ‘दुरूह’ का प्रयोग सही नहीं होगा। तरीका, प्रणाली, तरकीब या युक्ति के अर्थ में जब राह या रास्ते का मुहावरेदार प्रयोग होता है, तब ‘दुरूह’ का इस्तेमाल सही कहा जाएगा जैसे- “कर्ज़ से बचने की यह राह दुरूह थी।”
हाँ तक ‘दुर्गम’ का प्रश्न है यह बना है दुर+गः या दुर+गम् से। ‘दुर्’ एक प्रसिद्ध उपसर्ग है जिससे संस्कृत-हिन्दी के दर्जनों शब्द बने हैं। इसमें मुख्यतः कठिनाई, कष्ट और अलभ्य या अप्राप्ति का भाव है। ‘गम्’ का अर्थ होता है जाना या पाना। अर्थात जिसे आसानी से न पाया जा सके। या जहाँ जाने में कठिनाई हो। गौर करें कि समतल सतह की तुलना में पहाड़ों पर चलना हमेशा कठिन होता है। इसी लिए उन्हें दुर्ग या दुर्गम कहा जाता है। इसीलिए किलों को ‘दुर्ग’ कहा जाता है अर्थात जहाँ जाना अथवा जिन्हें पाना कठिन हो। स्पष्ट है कि सिर्फ़ मुश्किल, दुष्कर या कठिन के अर्थ में ‘दुर्गम’ या ‘दुरूह’ का प्रयोग ग़लत है।

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6 कमेंट्स:

चंदन कुमार मिश्र said...

ऊहापोह संस्कृत से आया, पता नहीं था…दुरूह का इस्तेमाल कभी इस अर्थ में किया तो नहीं…अब करूंगा भी नहीं…बढ़िया…

अशोक सलूजा said...

"दुरूह" और दुर्गम में भेद समझने में आसान कर दिया ......
आभार!

Mansoor ali Hashmi said...

# 'दुरूह' को कठिन समझ के दूर ही रहा सदा,
'सफर' में अब जो मिल गया तो आज use कर लिया.
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# समझने और समझाने के मामले 'दुरूह' है,
विचार धाराएं अलग, अलग-अलग समूह है.
भ्रष्ट है सभी अगर, बनेगा लोकपाल कौन ?
फंसे है अपने आप ही ये ऐसा चक्रव्यूह है.

http://aatm-manthan.com

प्रवीण पाण्डेय said...

जो तर्क से भी परे हो जाये..

Asha Joglekar said...

दुरूह को समझना आप की वजह से सुलभ हो गया ।

विष्णु बैरागी said...

'दुरूह' का यह अर्थ पहली ही बार जाना। मैं भी कभी-कभीर वह गलती करता आ रहा हूँ जो आपने बताई है। आपकी बात आसानी से समण्‍ में आ गई - दुरूह जो नहीं थी।

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