शब्द_कौतुक
दण्ड भी सन्तोष देता है
रोज़मर्रा की बातचीत में हम अनगिनत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ शब्द अपनी ध्वनि और अर्थ से हमारा ध्यान खींच लेते हैं। 'तावान' और 'तवान' ऐसे ही दो शब्द हैं। एक का अर्थ है जुर्माना या हर्जाना, तो दूसरे का मतलब है शक्ति या बल। इन शब्दों की कहानी किसी पड़ोसी के बारे में जानने जैसी है, जहाँ हम उसके स्वभाव के साथ-साथ उसके पूरे परिवार और पुरखों से भी परिचित होते हैं। आइए, पहले उस शब्द से बात शुरू करते हैं जिससे हम ज़्यादा परिचित हैं वह है- तावान। इस का अर्थ फ़ारसी प्रशासनिक और कानूनी संदर्भों में ‘जुर्माना’ या ‘हर्जाना’ था। यह दंड किसी उल्लंघन या क्षति की भरपाई करके समाज या राज्य को ‘संतुष्ट’ करने का साधन था।मुआवज़ा और हर्जाना 'तावान' शब्द का अर्थ है किसी गलती, अपराध या नुकसान की भरपाई के लिए चुकाई जाने वाली रक़म, यानी हर्जाना या जुर्माना। सोचिए, किसी गाँव में किसी ने नहर से पानी चोरी कर अपने खेत सींच लिए, जिससे दूसरे किसान की फ़सल सूख गई। अब पंचायत के फ़ैसले के अनुसार, दोषी व्यक्ति को पीड़ित पक्ष को हुए नुकसान की भरपाई करनी होगी। यह भरपाई ही 'तावान' है। इसी तरह, किसी दुर्घटना या अनैतिक कृत्य के बदले में जब पीड़ित पक्ष को क्षतिपूर्ति दी जाती है, तो उसे तावान भरना कहते हैं । यह शब्द हमें फ़ारसी भाषा से मिला है, लेकिन इसकी कहानी सिर्फ़ जुर्माने तक सीमित नहीं है। इसका रिश्ता एक बहुत ही गहरी और ताक़तवर अवधारणा से जुड़ा है, जो हमें इसके एक भूला-बिसरा भाई 'तवान' तक ले जाती है।
शक्ति से जन्मा दायित्व यह जानना काफ़ी रोचक है कि 'तावान' (हर्जाना) शब्द जिस प्राचीन जड़ से पैदा हुआ है, उसका असल मतलब 'शक्तिशाली होना' या 'समर्थ होना' था । तो फिर सवाल उठता है कि शक्ति और सामर्थ्य का रिश्ता हर्जाने से कैसे जुड़ गया? इसका विकासक्रम बड़ा स्वाभाविक है। प्राचीन ईरानी समाज में 'क्षतिपूर्ति करने की क्षमता' या 'बदला चुकाने की सामर्थ्य' को भी एक प्रकार की शक्ति ही माना जाता था । धीरे-धीरे, यह विशिष्ट सामर्थ्य यानी 'हर्जाना चुकाने की ताक़त' ही ख़ुद 'हर्जाना' कहलाने लगी । इस तरह, वह शब्द जो कभी 'क्षमता' का प्रतीक था, एक विशेष सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी ('क्षतिपूर्ति') का नाम बन गया। यह ऐसा ही है जैसे 'शक्ति' की अवधारणा ने एक ख़ास काम के लिए एक नया रूप ले लिया हो।
साहित्य में तावान ‘तावान’ के बहुआयामी अर्थ दिखते हैं। प्रेमचंद के ‘गोदान’ में होरी पर पंचायत द्वारा तावान लगाया जाता है, क्योंकि उसने सामाजिक नियमों का उल्लंघन किया। इसी तरह प्रेमचंद की कहानी ‘तावान’ में जुर्माना लगाए जाने पर छकौड़ी का यह कहना – “तावान तो मैं न दे सकता हूँ, न दूँगा” – व्यक्ति और सामूहिक कर्तव्य के बीच टकराव को रेखांकित करता है। यशपाल के उपन्यास देशद्रोही में तावान का एक और रूप सामने आता है। वहाँ पठानों द्वारा अपहरण कर ‘तावान’ (फिरौती) लेने की घटना का ज़िक्र है – “वज़ीरिस्तान और मसूद इलाकों के पठान पिशावर, कोहाट और बन्नू से इस प्रकार लोगों को बाँध ले जाते हैं। उनकी रिहाई के लिए तावान पाकर वे उन्हें छोड़ देते हैं।” यहाँ फ़िरौती भी तावान है। ।
एक जड़, दो शाखाएँ अब हम 'तावान' के उस भाई से मिलते हैं जिसका ज़िक्र हमने पहले किया था - 'तवान'। 'तवान' (توان) का सीधा-सादा अर्थ है - शक्ति, बल, सामर्थ्य और ऊर्जा । सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि 'तावान' (हर्जाना) और 'तवान' (शक्ति), दोनों एक ही प्राचीनतम भाषाई जड़ से जन्मे सगे भाई हैं । 'तवान' विशुद्ध रूप से फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ शक्ति, सामर्थ्य, क्षमता और बल है । फ़ारसी में 'सकना' या 'समर्थ होना' के लिए क्रिया 'توانستن' (tavānestan) है । रोचक तथ्य यह है कि यह क्रिया संज्ञा 'तवान' (शक्ति) से बनी है, न कि संज्ञा क्रिया से । आज की फ़ारसी का 'तवान' मध्यकालीन फ़ारसी (पहलवी) के 'तुवान' से विकसित हुआ है । भाषा वैज्ञानिकों ने इसे प्रोटो-इंडो-यूरोपियन (PIE) धातु *tewh₂- से व्युत्पन्न माना है, जिसका अर्थ था- "फूलना, सूजना, बढ़ना, शक्तिशाली होना"।
एक पुरखा, दो वारिस यह शक्ति की उस जैविक अवधारणा से जुड़ा है जहाँ किसी मांसपेशी का फूलना या किसी जीव का बढ़ना ही शक्ति का प्रतीक था। हज़ारों साल पहले, जब ईरानी और भारतीय भाषाएँ एक थीं, तब इस एक ही जड़ ने दो अलग-अलग रास्तों पर चलना शुरू किया। एक रास्ता शक्ति के विशिष्ट अर्थ 'हर्जाना चुकाने की क्षमता' की ओर मुड़ गया और 'तावान' बन गया, जबकि दूसरा रास्ता शक्ति के मूल और सीधे अर्थ पर चलता रहा और 'तवान' कहलाया। ये एक ही पुरखे के दो वंशज हैं, जिनके अर्थ समय के साथ अलग-अलग हो गए।
'तवान' शक्ति का वारिस 'तवान' ने शक्ति के मूल अर्थ को पूरी तरह सहेज कर रखा । फ़ारसी भाषा में यह शब्द इतना मौलिक है कि वहाँ 'समर्थ होना' क्रिया ('तवानीस्तन') इसी 'तवान' (शक्ति) संज्ञा से बनी है । यह विचार बड़ा गहरा है कि 'शक्ति' एक स्थायी अवस्था है और कुछ कर 'सकना' उसी शक्ति का प्रदर्शन मात्र है। फ़ारसी की प्रसिद्ध कहावत - ख़ास्तन तवानीस्तन अस्त, यानी "चाहना ही कर सकना है" अर्थात "जहाँ चाह, वहाँ राह"। यहाँ ‘कर सकता’ या सक्षम होने की भावना का महत्व है ।
भारत की प्राचीन प्रतिध्वनि 'तवस्' 'तवान' की कहानी और भी रोमांचक हो जाती है जब हम जानते हैं कि इसका एक सगा भाई संस्कृत में भी मौजूद है। जिस प्राचीन सिलसिले से फ़ारसी 'तवान' निकला, उसी से संस्कृत का 'तवस्' भी जन्मा है, जिसका अर्थ भी बल, शक्ति और साहस है । यह खोज बताती है कि 'तवान' हमारी भाषा के लिए कोई विदेशी शब्द नहीं, बल्कि एक तरह से अपने घर लौटा एक पुराना रिश्तेदार है। यह ईरान और भारत की उस साझी प्रागैतिहासिक विरासत का प्रतीक है, जो भाषाओं के अलग होने से भी पहले मौजूद थी । वेदों में 'तवस्' और इससे बने कई शब्दों का प्रयोग देवताओं और राजाओं के साहस और शक्ति का वर्णन करने के लिए किया गया है जैसे तवागा, तवागो, तविष्यस, तविष्य, तवस्वत, तवस्व, तविषी आदि
सशक्त और अशक्त जब कोई शब्द किसी भाषा में बस जाता है, तो वह अपना परिवार भी बढ़ाता है। 'तवान' के साथ भी ऐसा ही हुआ। 'तवान' से विशेषण बना 'तवाना', जिसका अर्थ है - शक्तिशाली, बलवान या स्वस्थ । वहीं, जब इसमें फ़ारसी का नकारात्मक उपसर्ग 'ना-' लगा, तो शब्द बना 'नातवाँ', यानी कमज़ोर, निर्बल या शक्तिहीन । हम 'ना-' उपसर्ग से अच्छी तरह परिचित हैं, जैसे 'नासमझ', 'नापसंद' या 'नामुमकिन' जैसे शब्दों में। 'नातवाँ' शब्द का प्रयोग अक्सर शायरी और साहित्य में किसी की बेबसी या कमज़ोरी को दर्शाने के लिए बड़े ही कलात्मक ढंग से किया जाता है। ये दोनों शब्द दिखाते हैं कि 'तवान' की अवधारणा भाषा में किस हद तक पैबस्त है।
शब्दों का पारिवारिक मिलन कथा का सार यह कि 'तावान' (हर्जाना) और 'तवान' (शक्ति) अजनबी नहीं, बल्कि सहस्राब्दियों पुराने एक ही पुरखे के वंशज हैं । इनकी इससे साबित होता है कि मानव जत्थों का एक जगह से दूसरी जगह तक आप्रवासन ही भाषाओं के बदलाव और विभिन्न शब्दों के बोली-बरताव और उनके भीतर नए नए अर्थों को को अलग-अलग दिशाओं में विकसित करता है। 'तवान' ने जहाँ शक्ति के सीधे-सरल और शक्तिशाली रूप को बनाए रखा, वहीं 'तावान' ने उसी शक्ति को एक सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी का रूप दे दिया। एक तरफ़ बल और सामर्थ्य है, तो दूसरी तरफ़ उस बल से जन्मा दायित्व। इन शब्दों को जानना ईरान से लेकर भारत तक हमारी साझी सांस्कृतिक जड़ों को मज़बूत करता है।
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