Thursday, June 12, 2008

चारों खाने चित्त

पूरी तरह परास्त करने या होने के अर्थ में हिन्दी में एक कहावत बड़ी मशहूर है – चारों खाने चित्त। यहां जो चित्त शब्द आ रहा है उसका संबंध चित भी मेरी पट भी मेरी के चित या चित्त से कतई नहीं है। हालांकि चित-पट में भी सिक्के के गिरने का ही भाव है और चारों खाने चित्त में भी यही भाव है। चारों खाने चित्त मूलतः अखाड़ेबाजी का शब्द है जिसमें एक पहलवान दूसरे को परास्त करने के लिए ऐसा दांव लगाता है कि दूसरा ज़मीन पर पेट या पीठ के बल बिछ जाता है। लगभग साष्टांग मुद्रा में या उसके उलट । बस, यही है चित्त होना। अब जो चित्त हो गया सो उसकी तो हेठी हो ही जाती है सो, जो चित्त हुआ वह छोटा यानी कमज़ोर और जिसने चित्त किया वो बडा यानी ताक़तवर।

चित्त बना है संस्कृत के क्षिप्त से जिसका मतलब होता है फेंका हुआ , बिखेरा हुआ , उछाला हुआ या लेटा हुआ । क्षिप्त से चित्त की यात्रा कुछ यूं रही है > क्षिप्त > खिप्त > छिप्त > छित्त > चित्त। यहक्षिप्त बना है संस्कृत धातु क्षिप् से जिसमें फेंकना, डालना, अपमान करना , प्रहार करना, दूर करना आदि। गौर करें इसके फेंकने के अर्थ पर । किसी वस्तु या जीव को उठाकर फेंकने पर उसकी अवस्था क्या होगी ? उसे धराशायी ही कहेंगे न ! अब गौर करें कि कई वस्तुओं या अधिक मात्रा में कुछ फेंका जाने पर क्या होता है ? जाहिर है वह वस्तु फैल जाती है , बिखर जाती है। इसके लिए हिन्दी मे एक आमफ़हम शब्द है छितरना या छितराना यानी स्कैटर्ड। यह शब्द भी इसी धातु मूल यानी क्षिप् से उपजा है । अब छितरायी हुई, फैली हुई चीज़ो को समेटने की क्रिया के लिए हिन्दी में एक शब्द है संक्षिप्त । यह इसी मूल से बना शब्द है। सम + क्षिप्त = संक्षिप्त , अर्थात जिसे समेटा गया हो। एक अन्य शब्द है संक्षेप । यानी छोटा। यह भी इसका ही संबंधी है। संक्षिप्तिकरण, संक्षेपीकरण और संक्षेपण भी इससे ही बने अन्य शब्द हैं जिनमें छोटा करने का भाव है। अब साफ़ है कि क्षिप् में निहित फेंकने के भाव का अर्थविस्तार पटखनी खाकर चित्त होते हुए छोटा होने तक जा पहुंचा है।
इससे मिलते-जुलते संदर्भों पर अगली कड़ी में चर्चा और आपकी चिट्ठियां

11 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

आपका ज्ञान देख कर न हम सिर्फ चित्त हो गये बल्कि छितरा भी गये. (जो सीखें हैं, उसका वाक्य में प्रयोग करके बता रहे हैं) बहुत आभार इस ज्ञान के लिए.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आने वाले शब्दों की कल्पना ने सिहरा दिया है। प्रक्षिप्त,विक्षिप्त और.....?

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मुहावरोँ से और कहावतोँ से भाषा मेँ जान पडती है ..
ये भी अच्छी जानकारी रही अजित भाई ..

Unknown said...

उम्दा जानकारी मिली ...।

बालकिशन said...

आभार और धन्यवाद के अलावा कोई और शब्द नहीं हैं अपने पास.

PD said...

बहुत ही बढिया पोस्ट है और कमेंट्स भी.. भई मजा आ गया..

Dr. Chandra Kumar Jain said...

वाह ! क्षिप्त...चित्त...संक्षिप्त.
बड़ी अच्छी जानकारी दी आपने.
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अजित जी ! आपने अल्प शब्दों में
बहुत सार्थक बातें की हैं यहाँ.
पोस्ट स्वयं संक्षेपीकरण का उदाहरण है.
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....और हाँ जो चित्त देकर मुक़ाबला करे वह
संकटों को चारों खाने चित्त कर सकता है.
धन्यवाद
डा.चंद्रकुमार जैन

मीनाक्षी said...

बड़े रोचक तरीके से आपके ज्ञान ने हमे
चारों खाने चित्त कर दिया..

mamta said...

फोटो और लेख दोनों बढ़िया।

Abhishek Ojha said...

आपने तो सबको चित्त कर रखा है फिर मैं क्या बला हूँ.

Anita kumar said...

आप के ब्लोग ने तो हमें चारो खाने चित्त कर रखा है अब और क्या कहें आप लिखते जाइए और हम सीखते जा रहे हैं

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