Friday, August 6, 2010

छिनाल का जन्म

...छिन्न का आमतौर पर इस्तेमाल छिन्न-भिन्न के अर्थ में होता है। ...
हि न्दी में कुलटा, दुश्चरित्रा, व्यभिचारिणी या वेश्या के लिए एक शब्द है छिनाल। आमतौर पर हिन्दी की सभी बोलियों में यह शब्द है और इसी अर्थ में इस्तेमाल होता है और इसे गाली समझा जाता है। अलबत्ता पूरबी की कुछ शैलियों में इसके लिए छिनार शब्द भी है। छिनाल शब्द बना है संस्कृत के छिन्न से जिसका मतलब विभक्त , कटा हुआ, फाड़ा हुआ, खंडित , टूटा हुआ , नष्ट किया हुआ आदि है। गौर करें चरित्र के संदर्भ में इस शब्द के अर्थ पर । जिसका चरित्र खंडित हो, नष्ट हो चुका हो अर्थात चरित्रहीन हो तो उसे क्या कहेंगे ? जाहिर है बात कुछ यूं पैदा हुई होगी- छिन्न + नार> छिन्नार> छिनार> छिनाल। जॉन प्लैट्स के हिन्दुस्तानी-इंग्लिश-उर्दू कोश में इसका विकासक्रम कुछ यूं बताया है-छिन्ना + नारी > छिन्नाली> छिनाल। इसी तरह हिन्दी शब्दसागर में -छिन्ना+नारी से उसकी व्युत्पत्ति बताते हुए इसके प्राकृत रूप छिणणालिआ> छिणणाली > छिनारि के क्रम में इसका विकासक्रम छिनाल बताया गया है। परस्त्रीगामी और लम्पट के लिए हिन्दी में छिनाल का पुरुषवाची शब्द भी पनपा है छिनरा
छिन्न शब्द ने गिरे हुए चरित्र के विपरीत पुराणों में वर्णित देवी-देवताओं के किन्ही रूपों के लिए भी कुछ खास शब्द गढ़े हैं जैसे छिन्नमस्ता या छिन्नमस्तक। इनका मतलब साफ है- खंडित सिर वाली(या वाला)। छिन्नमस्तक शब्द गणपति के उस रूप के लिए हैं जिसमें उनके मस्तक कटा हुआ दिखाया जाता है। पुराणों में वर्णित वह कथा सबने सुनी होगी कि एक बार स्नान करते वक्त पार्वती ने गणेशजी को पहरे पर बिठाया। इस बीच शिवजी आए और उन्होंने अंदर जाना चाहा। गणेशजी के रोकने पर क्रोधित होकर शिवजी ने उनका सिर काट दिया। बाद मे शिवजी ने गणेशजी के सिर पर हाथी का सिर लगा दिया इस तरह गणेश बने गजानन। इसी तरह छिन्नमस्ता देवी तांत्रिकों में पूजी जाती हैं Picasso और दस महाविद्याओं में उनका स्थान है। इनका रूप भयंकर है और ये अपना कटा सिर हाथ में लेकर रक्तपान करती चित्रित की जाती हैं। हिन्दी में सिर्फ छिन्न शब्द बहुत कम इस्तेमाल होता है। साहित्यिक भाषा में फाड़ा हुआ, विभक्त आदि के अर्थ में विच्छिन्न शब्द प्रयोग होता है जो इसी से जन्मा है। छिन्न का आमतौर पर इस्तेमाल छिन्न-भिन्न के अर्थ में होता है जिसमें किसी समूह को बांटने, विभक्त करने, खंडित करने या छितराने का भाव निहित है। छिन्न बना है छिद् धातु से जिसमें यही सारे अर्थ निहित है। इससे ही बना है छिद्र जिसका अर्थ दरार, सूराख़ होता है। छेदः भी इससे ही बना है जिससे बना छेद शब्द हिन्दी में प्रचलित है। संस्कृत में बढ़ई के लिए छेदिः शब्द है क्योंकि वह लकड़ी की काट-छांट करता है।सहज ही प्रश्न उठता है कि जिस समाज ने छिन्न शब्द से स्त्री के लिए छिनाल जैसा उपालम्भ-सम्बोधन बनाया वहीं छिनाल के लक्षणोंवाले पुरुष के लिए कौन सा शब्द है? हिन्दी की पूर्वी बोलियों में इसके लिए छिनरा, छिनारा है। हिन्दी के जानेमाने कवि बोधिसत्व ने छिनरा के बारे में जो लिखा है वह जस का तस यहां प्रस्तुत है-
जिन संदर्भों में छिनाल की चर्चा होती है उन्हीं संदर्भों में छिनरा व्यक्ति की भी चर्चा होती है। छिनाल के साथ जो छिनरई करते धरा जाता है सहज ही वह छिनरा होता है। वहाँ दोनों का कद बराबर है- छिनरा छिनरी से मिले हँस-हँस होय निहाल। किसी भी समाज में अकेली स्त्री छिनाल नहीं हो सकती। उसे सती से छिनाल बनाने में पहले एक अधम पुरुष की उसके ठीक बाद एक अधम समाज की आवश्यकता होती है। छिनाल शब्द की उत्पत्ति पहले हुई या छिनरा की यह एक अलग विवाद का विषय हो सकता है । साथ ही समाज में पहले छिनरा पैदा हुआ या छिनाल। क्योंकि बिना छिनरा के छिनाल का जन्म हो ही नहीं सकता। एक पक्का छिनरा ही किसी को छिनार बना सकता है। तत्सम छिनाल का पुलिंग शब्द भले ही न मिले लेकिन तद्भव छिनरी का पुलिंग शब्द छिनरा जरूर मिलता है...। छिनरा का शाब्दिक अर्थ है लंपट, चरित्रहीन और परस्त्रीगामी। वहीं छिनाल या छिनार का अर्थ है व्यभिचारिणी, कुलटा,पर पुरुषगामी। रोचक बात यह है कि लोक ने उस स्त्री में छिपे छिनाल को खोज लिया जिसके गालों में हँसने पर गड्ढे पड़ते हों- हँसत गाल गड़हा परै, कस न छिनरी होय।’
सम्पूर्ण संशोधित पुनर्प्रस्तुति

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24 कमेंट्स:

Mansoor ali Hashmi said...

'छिन्न' के 'भिन्न' रूपों से अवगत हुए,
'देवता' भी कभी 'छिन्नमस्तक' हुए,
रक्त पीती हुई 'छिन्नमस्ता' दिखी,
शब्द के 'छिद्र' से अर्थ टपके कईं,
पहले टपका था 'छिनरा' कि कोई 'छिनाल',
तय ये कैसे करे, है बहुत ही मुहाल,
उनको 'डिम्पल' में लो इक 'clue' मिल गया,
बिन सबूतों के 'छिनरा' बरी हो गया.

Baljit Basi said...

पंजाबी में टूटे फूटे पुराने जूते को छितर बोलते हैं. ऐसे जूतों से किसी की पिटाई को छित्रौल, छितरपौ अथवा छितर परेड बोला जाता है. एक दुसरे को छितर मारने को छित्रो छितरी होना कहते हैं.

Arvind Mishra said...

अजित जी ,इस लेख के सामयिक पुनर्प्रकाशन के लिए धन्यवाद -
लोक व्यवहार में छिनरा /छिनाल उतना हेय नहीं है जितनी वैश्या
दूसरी बात यह कि शादी व्याह के अवसरों पर प्रेम /आनंद के लिए गाई जाने वाली पुरबयी
गालियों में ये शब्द धड़ल्ले से व्यवहृत होते हैं -वर वधु उभय पक्ष इन गालियों से अभिसिंचित हो एक अनिर्वचनीय अहसास /
आनंदानुभूति से गुजरता है -संदर्भ से गलियाँ भी प्रिय हो जाती हैं ...छाई खूब बदरी.....की बहन /माँ छिनरी /दुल्हन का भाई छिनरा ......आदि अदि ..जो इतना वितंडावाद और जेहाद इस शब्द को लेकर छिड़ा वह अशोभनीय था और हिन्दी साहित्य की खेमेबंदी और पोंगापंथ को अनावृत करती है -

देवेन्द्र पाण्डेय said...

जिस शब्द को लेकर विवाद हो उसके अर्थ का सही ज्ञान कराकर आपने अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया है.
..आभार.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया!
इस माहौल में "छिनाल" का भेद खोलना बहुत जरूरी था!

naveen kumar naithani said...

किसी भी समाज में अकेली स्त्री छिनाल नहीं हो सकती। उसे सती से छिनाल बनाने में पहले एक अधम पुरुष की उसके ठीक बाद एक अधम समाज की आवश्यकता होती है।
सटीक समय पर सटीक टिप्पणी.धन्यवाद

उम्मतें said...

एक आशय छिन्न + नाल भी हो सकता है ,यानि कि समाज में स्त्री के लिए तयशुदा / कल्पित , मानक / मूल से हटकर !

राजेश उत्‍साही said...

सही समय पर इस शब्‍द का परिचय बहुत अच्‍छा लगा। उस पर बोधिसत्‍व की टिप्‍पणी भी उतनी ही महत्‍वपूर्ण है। मुझे लगता है जब हम वेश्‍या की बात करते हैं वहां भी यही बात लागू होती है। सबसे पहले तो किसी को भी वेश्‍या बनने के लिए एक नहीं कई पुरुषों की जरूरत होगी और फिर ऐसे समाज की भी जो उसे ऐसा करने के लिए विवश्‍ा करे।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

छिनाल ........... समसामयिक शब्द है इस समय

Anonymous said...

शब्द का शाब्दिक अर्थ जो शब्दकोश मे होता हैं लेकिन वाक्य मे प्रयोग से वो अर्थ बदल जाता हैं या सन्दर्भ से भी वो अर्थ बदलता हैं ।

छिनाल शब्द का प्रयोग "लेखिका" के लिये जिस प्रकार से किया गया हैं विभूति नारायण के साक्षात्कार मे उस के पीछे का सन्दर्भ भी जोड़ना होगा ।

ये कहना कि विवाह मे भी गाली दी जाती हैं इस प्रकरण से कहां जुड़ता हैं ??
हाँ इससे ये जरुर सिद्ध होता हैं कि छिनाल शब्द महज एक गाली हैं

जब कोई किसी पर निरतर आक्षेप करता हैं , यौनिक टिप्पणी देता हैं , आलेखों मे नारी कि भर्त्सना केवल इसलिये करता हैं क्युकी वो समाज के मानकीकरण को नहीं मानती हैं तो वो यौन शोषण का दोषी हैं और उसके लिये न्याय प्रणाली मे सजा हैं ।

आप ने ये आलेख दे कर इस समय गलत किया हैं क्युकी छिनाल शब्द को इस समय परिभाषित करने वाले केवल और केवल विभूति नारायण के साथ होने का दम भरते लग रहे हैं ।

सोचिये अगर हमारे याहाँ माफ़ी मांग कर बचने का उपाय ना हो तो विभूति नारायण जैसे लोग या तो "सोशल सरविस" कि सजा पा रहे हो या उन को आर्थिंक दंड दिया गया हो

कब तक हम गलत को उस समय जस्टिफाई करेगे जब हमे तन कर उसको गलत कहना चाहिये । मुझे ये पोस्ट पोस्ट इस समय देख कर अजीब सी वितिष्णा हुई सो कमेन्ट दिया

संतोष त्रिवेदी said...

भइया , राम-राम ! पूरा 'बोरिया-बिस्तर'लेके पिल पड़ते हो ! धन्यवाद !

डा० अमर कुमार said...


इसी सँदर्भ पर मैं भी कार्य कर रहा था, मेल-बॉक्स में आपकी पोस्ट दिखी, और मैंने राहत की साँस ली ।
" मटकत चलत, नैन नचावै
गालन गढ़हा, बगल खुजावै
अउर छिनार का डँका बजावै "

किन्हीं अँचलों में मटकत के लिये भचकत का उपयोग होता है ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यह शब्दों का सफर अच्छा लगा....कम से कम इस शब्द की विस्तृत व्याख्या हुई....पर फिर भी पढ़े लिखे सभ्य कहलाने वाले लोगों के मुँह से यह शब्द कहना अनुचित ही है....और सबसे बड़ी बात जिस तरह विभूति जी ने इस शब्द को प्रयोग किया ...

जानकारी के लिए आभार

अजित वडनेरकर said...

@रचनाजी
आप जिन संदर्भों की बात कर रही हैं, शब्दों का सफर उससे हटकर है। यहां शब्दों पर बात होती है। हर जिंदा समाज में किसी भी चर्चा में सामयिक घटनाक्रम का संदर्भ किसी न किसी रूप में होत ही है। समंदर कभी आसमान के प्रतिबिम्ब से दूर जा सकता है? यहां किसी चर्चा-सूत्र, संदर्भ या व्यक्ति से हमने इसे नहीं जोड़ा है। अगर ऐसा आप करती हैं तो भी मुझे एतराज नहीं। सार्थक संवाद ही इसका उद्धेश्य है। आपको क्या गलत लगा इस आलेख में? आप शायद टाईमिंग की बात कहेंगी। मैं उसकी परवाह नहीं करता। एक बार अरविंदजी को भी मेरे एक लेख की टाईमिंग पर एतराज था। आपकी इस आपत्ति को खारिज कर रहा हूं। मैं शांत भाव से अपना काम कर रहा हूं।

रंजन said...

इसका भी पूरा खाका है.. शुक्रिया..

Armughan said...

आप बहुत अच्छा लिखते हैं, क्यों ना ब्लॉग जगत में एक-दुसरे के धर्म को बुरा कहने के ऊपर कुछ लिखें. किसी को बुरा कहने का किसी को भी हक नहीं है. लोगो का दिल दुखाना सबसे पड़ा पाप है.

मुझे क्षमा करना, मैं अपनी और अपनी तमाम मुस्लिम बिरादरी की ओर से आप से क्षमा और माफ़ी माँगता हूँ जिसने मानव जगत के सब से बड़े शैतान (राक्षस) के बहकावे में आकर आपकी सबसे बड़ी दौलत आप तक नहीं पहुँचाई उस शैतान ने पाप की जगह पापी की घृणा दिल में बैठाकर इस पूरे संसार को युद्ध का मैदान बना दिया। इस ग़लती का विचार करके ही मैंने आज क़लम उठाया है...

आपकी अमानत

सुशीला पुरी said...

आभार ......सामयिक जानकारी का ।

रंजना said...

सही कहा आपने...अकेले कोई छिनार या छिनरा नहीं हो सकता...
हमारे देश में कई प्रदेशों में प्रचलित शब्द है यह...

प्रवीण पाण्डेय said...

छिन्न नार, खिन्न संसार।

दिनेशराय द्विवेदी said...

रोज ही कितने ही छिनरों और छिनालों से पाला पड़ता रहा है। जहाँ छिनरे अपने छिनरा होने पर गर्व करते हैं वहीं कोई भी स्त्री स्वयं को छिनाल कहना पसंद नहीं करती। यह समाज की पुरुष प्रधानता का परिणाम है। हाँ इतना जरूर जानता हूँ कि बहुत से छिनरे और छिनालें दूसरे सामान्य लोगों से बेहतर इंसान भी होते हैं।

Asha Joglekar said...

छिनाल....यह शब्द ब्लॉग जगत में आजकल चर्चा मे है । इसकी व्याख्या कर आपने सामयिक च्रर्चा की है । य़े बात बहुत ही खरी है कि किसी छिनरे के अस्तित्व के बिना कोई छिनाल नही हो सकता । जो दूसरों को छिनाल कह रहा हो उसे खुद ही सोचना होगा कि वह खुद क्या हुआ ?

said...

बहुत अच्छा. आपके लेख हिंदी ब्लोगों में अनूठे हैं.
मैं हमेशा उनकी प्रतीक्षा करता हूँ.

shyam gupta said...

बहुत अच्छा विश्लेषण व सामयिक , सही कहा नर व नारी दोनों ही, अकेले छिन्न आचरण नहीं होसकते , कोइ छिनाल जब होगी जब कोइ छिनाल भी होगा .

Kathmandu said...

good blog and good post.

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