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Monday, November 1, 2010
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी
हि न्दी के सर्वाधिक प्रयुक्त शब्दों में सावधान का भी शुमार है जिसका अर्थ है किसी कार्य को पूरी तल्लीनता और ध्यान से करनेवाला व्यक्ति। सचेत, सतर्क, जागरुक व्यक्ति का भाव भी इसमे है। वाशि आप्टे के संस्कृत कोश में इसकी व्युत्पत्ति सावधानेन सह बताई गई है। इसका अर्थ है ध्यान देनेवाला, दत्तचित्त, सचेत और खबरदार। चौकस और परिश्रमी। इसमें लग कर, जुट कर, परिश्रम पूर्वक काम करने का अभिप्राय भी है। सावधान की यह व्युत्पत्ति कृ.पा. कुलकर्णी के कोश में स+अवधान जैसी ही है। यहाँ इसके मायने वही हैं किन्तु मैं मराठी के सावधान शब्द में शुभेच्छा का भाव भी शामिल हो जाता है। शादी-ब्याह आदि शुभ अवसरों पर मगलाचरण के वक्त शुभमंगल सावधान यह शब्द बोला जाता है। हिन्दी मे इसका क्रियारूप सावधानी भी प्रचलित है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी मुहावरे को इसं शब्द से जन्मे मुहावरे के बतौर याद रखा जा सकता है।
सावधान के मूल में अवधान शब्द है जिसका अर्थ है लक्ष्य, चित्त अथवा उद्धेश्य को एकाग्र करनेवाला। अवधान शब्द बना है अव+धा+ल्युट् अर्थात धा धातुमूल में अव उपसर्ग और ल्युट प्रत्यय लगने से। प्रत्यय और उपसर्गों के सहयोग से नए शब्द बनते हैं, नए रूपान्तर सामने आते हैं और धातुमूल की अर्थवत्ता में भी विस्मयकारी बदलाव आते हैं। संस्कृत की धा धातु में रखना, धारण करना, जमाना, जड़ना, देना, प्रदान करना, पकड़ना, लगाना जैसे भाव हैं। अव उपसर्ग में यूँ तो दूरी, फ़ासला, नीचाई के भावों के साथ ही आश्रय लेना, पवित्र करना, व्याप्त होना जैसे भाव भी हैं। इस तरह अवधान या अवधानी जैसे शब्द का अर्थ होता है एकाग्रता रखनेवाला। संस्कृत हिन्दी में धा शब्द से बने दर्जनों शब्द प्रचलित हैं। समाधान शब्द भी किसी कार्य-कारण अथवा समस्या के निदान के लिए बहु प्रचलित शब्द है, जो इसी मूल से उपजा है। यह बना है आधानम् में सम् उपसर्ग लगने से जिसमें प्रस्तुत करना, रखना, कार्यरूप में परिणत करना आदि भाव हैं। जाहिर है जब किसी बात के हर आयाम पर विचार कर चुकने के बाद उसे प्रस्तुत किया जाएगा, तब उससे संबंधित कोई शंका रहेगी ही नहीं, सो सुस्पष्ट, सुचिंतित बात ही समाधान है क्योंकि उसमें किसी निराकरण की ज़रूरत नहीं पड़ती। इसी अवधान में जब वि उपसर्ग लगाया जाता है तब बनता है व्यवधान। वि उपसर्ग में रहित, वियोग या विलोम का भाव है। अवधान में जो एकाग्रता है वही उसमें वि उपसर्ग लगने से बाधा के अर्थ में सामने आ रही है। मूलतः व्यवधान का अर्थ है हस्तक्षेप, अवरोध या नज़र से छुपा रहना। किसी बात को ढकना, परदे में रखना या छुपाना जैसा भाव व्यवधान में है। परदा दरअसल नज़र में बाधा ही डालता है। अवधान यानी किसी बात पर ध्यान केंद्रित करना, उस पर मन टिकाना और व्यवधान है किन्हीं दो बिंदुओं के बीच बाधा उत्पन्न करना, आवरण या ओट डालना।
अवधान शब्द का सम्बंध काव्य परम्परा से भी है। द्रविड़ भाषा पर आर्य भाषा का गहरा प्रभाव रहा है। अवधानी शब्द संस्कृत से तेलुगू में भी दाखिल हुआ। तेलुगू में अवधानी शब्द का अर्थ है आशु कविता कहनेवाला। रामगोपाल सोनी ने शब्द संस्कृति पुस्तक में अवधानी शब्द की विस्तृत चर्चा की है। वे कहते हैं कि अवधान में असाधारण स्मरण शक्तिवाला तथा परमज्ञानी का भाव है। आंध्रप्रदेश में आशुकविता की परिपाटी बहुत प्राचीन है जिसे अवधानम् कहते हैं। तुरन्त किसी काव्योक्ति को आगे बढ़ाते हुए उसका समाधान प्रस्तुत करना ही अवधानम् है। संदर्भों के अनुसार चित्रभारत के रचयिता रचिगोंडा धर्मना अवधानियों व आशुकवियों के सम्राट माने जाते थे। प्राचीनकाल में वेदों के ज्ञाता को अवधानी कहा जाता था। वेदों को समझने के लिए अपने चित्त को एकाग्र करना ज़रूरी है। यूँ समझे कि पुराने ज़माने में वेद ही ज्ञान का भंडार थे, इसलिए अवधानी की व्याख्या वेदों के संदर्भ में भी होती है अन्यथा इसका अभिप्राय ज्ञानार्जन के लिए चित्त को एकाग्र करने से ही है। जो इस लक्ष्य को पा जाता है, वही अवधान है, अवधानी है।
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6 कमेंट्स:
ज्ञानवर्धक आलेख.
अवधानी भव।
सावधान ,व्यवधान ,अवधान ...दिलचस्प आलेख
ाच्छी जानकारी। धन्यवाद।
जो व्यक्ति सौ व्यक्तियों के नाम एक साथ पूछकर फिर उनको अलग अलग आगे पीछे करके दोहराने की योग्यता अथवा स्मृति क्षमता रखते हो उनको शतावधानी कहा जाता है. इसी प्रकार हजार नाम याद रखने वाले को सहस्रावधानी कहा जाता है. अतः अवधान का अर्थ स्मृति या धारण करना आपने सही बताया है. इसी आधार पर कई जैन मुनियों को शतावधानी सहस्रावधानी का विशेषण दिया गया है.
'अवधानी'* बन भी जाते गर होते न 'व्यवधान'
परंपरा से करते आये लेकिन हम बलिदान,
"घोटाले" होते ! बिसराते !! क़ायम है सम्मान,
क्षमा ही है "आदर्श" हमारा, अपना देश महान.
*सावधानी रखने वाले
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