दिशा बोध कराने के लिए हिन्दी में अक्सर दायाँ-बायाँ शब्दों का प्रयोग होता है जिसका अर्थ है लैफ्ट या राईट। यानी सीधे हाथ की ओर या उलटे हाथ की ओर। चलने की क्रिया के लिए संस्कृत में प्रयुक्त चर् धातु से कई शब्दों का जन्म हुआ। चलने की क्रिया पैरों से सम्पन्न होती है और करने की क्रिया हाथों से। हाथ और पैरों की गतियों ने भाषा को कई शब्दों से समृद्ध किया है। चर् धातु का अर्थ है इधर-उधर घूमना। गौर करें कि मनुष्य ने जो कुछ भी जाना समझा है वह घूम-फिर कर ही जाना है। चर् यानी चलना। विचरण करना। विचरण से ही आचरण बनता है। आचरण ही संस्कार का आधार है। आचरण से चरित्र स्पष्ट होता है सो चरित्र का मूल भी यही चर् धातु हुई। मुद्दे की बात यह कि चर् धातु में निहित घूमने फिरने, भ्रमण करने का जो भाव है उसमें परीक्षण अर्थात घूम फिर कर ज्ञान हासिल करने, भली भांति किसी वस्तु, तथ्य को देखने समझने की बात आती है। घूम फिर कर जब पर्याप्त तथ्य मिल जाएं तो क्या करना चाहिए ? उन तथ्यों पर विमर्श होना चाहिये। यही विचार है। चरना भी चलते चलते होता है, सो तो पशु करते हैं, पर इस तरह उनकी भूख का उपाय हो जाता है। फ़ारसी में यही उपाय चारा है। दवा भी उपाय है सो चारागर हुआ डॉक्टर यानी जो उपचार करे। जिसके पास कोई उपाय न हो, वही है बेचारा और लाचार। जाहिर है चर् की महिमा निराली है।
संस्कृत में हाथ के लिए हस्त शब्द है। बरास्ता अवेस्ता, इसका फ़ारसी रूप होता है दस्त। डॉ रामविलास शर्मा के अनुसार पूर्ववैदिक युग में इन दोनों का रूप था धस्त। अवेस्ता में धस्त से ह का लोप होकर दस्त शेष रहा और संस्कृत में द का लोप होकर हस्तः बचा। हस्तः से ही बना है हस्तिन् जिसका मतलब हुआ हाथ जैसी सूंडवाला। गौरतलब है कि वो तमाम कार्य, जो मनुष्य अपने हाथों से करता है, हाथी अपनी सूंड से कर लेता है इसीलिए पृथ्वी के इस सबसे विशाल थलचर का नाम हस्तिन से हत्थिन > हत्थी > हाथी हुआ । हस्तिन् का एक अर्थ गणेश भी होता है जो उनके गजानन की वजह से बाद में प्रचलित हुआ। हस्तिनी से बना हथिनी शब्द। श्रंगाररस के तहत साहित्य में जो नायिका भेद बताए गए हैं उनमें से एक नायिका को हस्तिनी भी कहते हैं। उधर फ़ारसी के दस्त से भी कई शब्द बने और हिन्दी में प्रचलित हुए जैसे दस्ताना यानी हाथों पर पहना जानेवाला ऊनी आवरण। दस्तक यानी दरवाजे पर हाथ से दी जाने वाली थपकी। दस्तकार यानी कुशल शिल्पी, जाहिर है यहाँ हाथों की कारीगरी पर ही ज़ोर है। अपने नाम के चिह्नांकन के लिए हिन्दी में अगर हस्ताक्षर शब्द प्रचलित है तो उर्दू फ़ारसी में यह दस्तख़त है। यहाँ ख़त में लिखने का भाव है अर्थात तहरीरी सनद का निशान। दस्तबस्ता यानी हाथ बांधकर खड़े रहना। दस्तयाब यानी प्राप्त होना, हस्तगत होना, हासिल होना।यूँ देखें तो दस्तयाब और हस्तगत में एक ही भाव है।
धस् में शामिल दस् से संस्कृत की दक्ष् धातु सामने आई। इससे बने दक्ष का अर्थ है कुशल, चतुर, सक्षम या योग्य। इसमें उपयुक्तता या खबरदारी और चुस्ती का भाव भी है। इससे जो बात उभरती है वह है जो हाथों से काम करने में कुशल हो, वह दक्ष। ज़ाहिर है यह पूर्ववैदिक युग में इस शब्द की अर्थवत्ता थी। जो हाथ सर्वाधिक कुशल हो वह हुआ दक्षिण। स्पष्ट है कि दक्षिण > दक्खिन > दहिन > दाहिना जैसे रूप सामने आए। बाद में दाहिना > दाह्याँ > दायाँ जैसे रूप भी बने। इस तरह दक्ष से हिन्दी को दक्षिण, दाहिना या दायाँ जैसे शब्द मिले। जाहिर है अग्निपूजक आर्यों ने सूर्याभिमुख होकर सर्वाधिक सक्रिय हाथ के नाम पर ही चार दिशाओं में से एक का नाम दक्षिण रखा। आप्टेकोश में भी दक्षिण का अर्थ योग्य, कुशल, निपुण बताया गया है।
... दक्ष से हिन्दी को दक्षिण, दाहिना या दायाँ जैसे शब्द मिले। जाहिर है अग्निपूजक आर्यों ने सूर्याभिमुख होकर सर्वाधिक सक्रिय हाथ के नाम पर ही चार दिशाओं में से एक का नाम दक्षिण रखा। ...
दक्ष की व्याप्ति भारोपीय भाषा परिवार में भी है।भाषा विज्ञानियों नेंइंडो-यूरोपीय परिवार में दक्ष् से संबंधित dek धातु तलाश की है जिसका अर्थ भी शिक्षा, ज्ञान से जुड़ता है। हिन्दी में बहुप्रचलित डॉक्टर शब्द की इससे रिश्तेदारी है। यूँ डॉक्टर बना है लैटिन के docere से जिसमें धार्मिक शिक्षक, सलाहकार या अध्येता का भाव है। जिसने अंग्रेजी में डाक्टर यानी चिकित्सक के अर्थ में अपनी जगह बना ली। भारोपीय धातु डेक् की रिश्तेदारी संस्कृत की धातु दीक्ष् और दक्ष् से है जिनसे बने दीक्षा और दक्ष शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित हैं। पहले बात दक्ष की। दक्ष का मतलब होता है एक्सपर्ट, कुशल, विशषज्ञ, योग्य, चतुर आदि। पौराणिक चरित्र को तौर पर दक्ष प्रजापति का नाम भी इसी धातु से जुड़ा है। आप्टे कोश के मुताबिक दक्ष शिव का एक विशेषण भी है। अग्नि, नंदी को भी दक्ष कहा गया है। इसी तरह बहुत सी प्रेमिकाओं पर आसक्त प्रेमी को भी दक्ष कहा गया है। इसी तरह दीक्षा शब्द का मतलब है यज्ञ करना, धार्मिक क्रिया के लिए तैयार करना, खुद को किसी शिक्षा, ज्ञान के संस्कार के लिए तैयार करना आदि। इससे बने दीक्षक: का अर्थ है शिक्षक या शिक्षा देनेवाला। दीक्षणम् का अर्थ है ज्ञान प्रदान करना, शिक्षा देना। इसी तरह दीक्षित का अर्थ है शिक्षित, प्रशिक्षित, शिष्य, पुरोहित, उपाधि प्राप्त आदि।
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-जारी
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13 कमेंट्स:
बड़ा समय लेती है पोस्ट . अखबार में ज़ल्द पढ़ लेता हूं. पर जब लिखते वक़्त कोई ज़रूरत होती है तो लगता है वाह अजित भैया तो है झट लिंक क्लिक कर झांख लेता हूं
अदभुत वाह
बहुत खूब! चरने से विचारने तक और दीक्षांत से दक्षिणा तक का रोचक सफ़र!
चरने से विचरने तक का रोचक ज्ञान !
ये जिस दस्त की वजह से वैद्य डाक्टर की शरण जाना पड़ता है उस का उद्गम क्या है?
रोचक शब्द मंथन!! हस्त से दस्त होकर दक्ष तक
अजित जी,
दक्ष, कुशल,प्रवीण,चतुर, सक्षम व योग्य। कितना पर्याय भेद है? अर्थार्त कौन सा शब्द किस योग्यता के लिये प्रयुक्त होना उचित है?
रोचक जानकारी। धन्यवाद।
........यानी दरवाजे पर हाथ से दी जाने वाली थपकी......वाक्य में शायद "दस्तक" शब्द छपने से रह गया है.
"चारागर" से शकील बदायूनी की ये इल्तिजा याद आ गयी:-
"मुझे छोड़ दे मिरे हाल पर;तेरा क्या भरोसा ए चारागर
तेरी यह नवाज़िशे मुख़्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे."
" चर् यानी चलना। विचरण करना। विचरण से ही आचरण बनता है। आचरण ही संस्कार का आधार है। आचरण से चरित्र स्पष्ट होता है सो चरित्र का मूल भी यही चर् धातु हुई।"
'चर' को 'विचरण' कराते हुए , आचरण में ढाल के 'संस्कार' और 'चरित्र' तक ले जाने की महारथ - भाषा विज्ञान में दक्षता की ही निशानी है. बहुत खूब अजित साहब.
आपका लेख पढ़कर मेरे दिमाग में डिस्कवरी चैनल वाले आते हैं| आपको कोई शब्द दो, आप एक छड़ी, एक कैमरा, बैग में कुछ किताबें लेकर अपने अभियान पे निकल जाते हैं| आपके पास एक ट्रैंक्विलाइज़र बन्दूक होती है, जिससे आप दूर दूर भाग रही पुस्तकों को निशाना बनाकर उन्हें बेहोश करते हैं| फिर एक एक चीज़ का बारीकी से निरीक्षण करके, उन्हें होश में लाकर यथास्थान छोड़ आते हैं| इससे प्राप्त निष्कर्षों को आप हमसे साझा करते हैं, बिना ये बताये कि आपने कितनी मेहनत इन्हें ढूँढने में की है|
प्रणाम स्वीकारें|
दक्षिण का रूप अपने से उत्तर वालों के लिये।
अंग्रेज़ी dextrous/dexetrous भी dek मूल से उत्पन्न हुआ जिसके दो मतलब दक्ष, और जिसका दायाँ हाथ चले, होता है.इसी से आगे dextrose भी बना. अंग्रेज़ी decent भी इसी से बना.
वाह....अति रोमांचक यात्रा !!!
कहाँ से आरम्भ कर कहाँ पहुंचेंगे,पढने के पूर्व किंचित भी आभाषित नहीं किया जा सकता...
एक जिज्ञासा है...
दक्ष प्रजापति यदि इतने ही दक्ष (विद्वान्) थे तो फिर उनकी यह दशा क्यों हुई..क्या उन्हें ज्ञान नहीं रहा की वे क्या कर रहे हैं ????
दक्ष से दक्षिण डेक से डेक्स्टर दस्त कितने शब्दों की गुथ्ती आप हातों हाथ सुलझा देते हैं । आपको पढते लगता है अरे ये ऐसा है हमने पहले क्यूं नही सोचा । बहुत रोचक और माहितीपूर्ण आलेख ।
रन्जना जी, दक्ष सर्वप्रथम प्रजापति थे इसीलिये सर्वप्रथम दक्ष कहलाये व दक्षता, दक्षता-.....
----ग्यान अहं, कुशलता अहं, किसे नहीं हो जाता.....क्या वैग्यानिक नहीं जानते थे कि एटोम बम तबाही भी मचा सकता है; और आज के वैग्यानिक /नेता/विद्वान नहीं जानते कि अति-सुविधा भोग पर्यवरण को ले डूबेगी---पर कोई नहीं मानता/ मान रहा......वही पुराना किस्सा यारो....
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