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Tuesday, January 25, 2011
तारीखों का चक्कर-मिती, बदी, सुदी
अ क्सर शादी-ब्याह की पत्रियों और ज्योतिषीय पत्रकों-पंचांगों में तिथियों का उल्लेख जहाँ भी होता है वहाँ मिति-सुदी-बदी जैसे शब्द ज़रूर आते हैं मसलन मिति फागुन बदी पांच या मिति कातिक सुदी चौथ वगैरह वगैरह। सबसे पहले बात मिति की। हिन्दी में इसे मिती लिखने का चलन है। मिति में मूलभाव तिथि या या तारीख़ का है। जिस तरह से आजकल तिथि का उल्लेख करते वक्त दिनांक का उल्लेख सबसे पहले होता है उसी तरह पुरानी पद्धति में अथवा यूँ कहें कि महाजनी पद्धति में देशी महिनों के नामों के साथ तारीख का उल्लेख करते हुए दिनांक की जगह मिति का प्रयोग होता था जैसे मिति कातिक चौथ सुदी अर्थात कार्तिक मास का चौथा दिन।
आप्टेकोश के मुताबिक मिति का मूलरूप संस्कृत का मितिः है जो मि से बना है जिसमें मापना, प्रत्यक्ष ज्ञान करना या स्थापित करना जैसे भाव हैं। इससे मित या मिति जैसे शब्द बने हैं जिनमें मापा हुआ, नपा-तुला, सीमाबद्ध, मर्यादित, जाँचा-भाला जैसे भाव हैं। तिथि में ये सभी भाव स्पष्ट हैं। तिथि वह गणना है जो काल विशेष को निर्दिष्ट करती है। इसकी सीमा तय है। यह एक मर्यादा में बंधी है अर्थात निश्चित पहरों के बाद तिथि बदलती है। इसीलिए मिति का एक अन्य भाव है साक्षात प्रमाण या साक्ष्य। ज्योतिषीय निष्कर्षों के सत्यापन का काम बिना तिथि गणना के असंभव है। हिन्दी शब्दसागर के अनुसार मिती में परिमाण, सीमा, कालावधि का भाव है। दिया हुआ वक्त या मोहलत भी मिति है। मिति पूजना मुहावरे का एक अर्थ है आयु के दिन पूरे होना।
महाजनी पद्धति में मिति का खास महत्व है क्योंकि ब्याज की गणना मे मितियों का बड़ा महत्व है। मितिकाटा एक प्रणाली है जिसके तहत अगर समयपूर्व हुंडी की रकम चुकता कर दी जाए तो शेष दिनों का ब्याज काटने की क्रिया को मितिकाटा कहते हैं। मूलतः मितिकाटा शब्द मिति काटना से बना है जिसका अर्थ है ब्याज काटना। मिती चढ़ाना यानी तारीख़ लिखना या ब्याज की गणना करना, मिती पूजना या मिती उगना का अर्थ है हुंडी की अवधि पूरी होना, भुगतान का दिन आना। अब आते हैं बदी और सुदी पर।
बदी और सुदी मूलतः बदि और सुदि हैं। आमतौर पर माना जाता है कि बड़े शब्दों या पदों के संक्षिप्तिकरण की परिपाटी हिन्दी में अंग्रेजी से आई है जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम के लिए भाजीबीनि, भारतीय जनता पार्टी के लिए भाजपा आदि। गौरतलब है कि बदि और सुदि दोनों शब्द हिन्दी के प्राचीनतम संक्षिप्तरूप हैं जो मूल पदों के लगातार प्रयुक्त होने से पंडितों ने खुद ही बनाए। यह अंग्रेजों के आने से सैकड़ों वर्ष पहले ही हो चुका था।
दुनियाभर की काल गणना प्रणालियाँ चान्द्रमास पर आधारित हैं जिसमें चन्द्रकलाओं अर्थात उसके घटने और बढ़ने की गतियों को ध्यान में रखा जाता है। भारत में इसे शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष कहते हैं। शुक्ल पक्ष वह अवधि है जब चांद बढ़ता है और पूर्णता प्राप्त करता है। घटते हुए दिन अर्थात अमावस्या की ओर बढ़ते दिन कृष्णपक्ष कहलाते हैं। भारतीय समाज शुरु से ही तिथि-वार और शकुनविचार का महत्व रहा है। ऐसे में बारह महिनों के दौरान तिथियों का लेखा जोखा रखनेवाले पंडितों ज्योतिषियों के लिए हर बार माह के उजियारे दिनों (पक्ष, पाख) अथवा अंधियारे पाख का उल्लेख करना आवश्यक होता था। इस तरह उजियारे पाख को हर बार शुक्ल दिवस लिखना ज़हमत का काम लगा सो उन्होंने उसे शुदि लिखना शुरू कर दिया। हिन्दी की पूर्वी शैलियों में अक्सर श के स में बदलने की प्रवृत्ति रही है सो शुदि पहले सुदि हुआ फिर भाषा में स्वर के दीर्घीकरण की वृत्ति के चलते यह सुदी बन गया। यही बात कृष्णपक्ष के संदर्भ में हुई। संस्कृत में बहुल का एक अर्थ होता है काला। कृष्ण पक्ष के लिए ज्योतिषीय भाषा में बहुल दिवस या बहुल कृष्णदिवस पद प्रसिद्ध रहा है जिसका संक्षेप हुआ बदि जो बाद में दीर्घीकरण के चलते बदी हो गया। सुदी बदी के प्रयोग सैकड़ों वर्ष पूर्व लिखित ज्योतिषीय ग्रन्थों में भी मिलते हैं।
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9 कमेंट्स:
समय की सूक्ष्म गणना और मानकों का संक्षिप्तीकरम।
*मापकों
बरसों से सुनते आये थे समझ आज आया ! शुभकामनायें अजित भाई !!
आज असली बात समझ में आई - आभार आपका !
बढिया लगी यह समय सम्बंधी जानकारी।
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क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
पक्ष काला 'बदी' का होता है,
और 'नेकी' का पक्ष 'उजला' है,
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'मिति कटती' है माल घटता है,
'मति' आये तो माल बढ़ता है,
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'सुदी' में, विस्तृत अगर ये तो,
'बदी' के चन्द्र में 'संक्षिप्तता' है.
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-mansoorali हाश्मी
http://aatm-manthan.com
सुदी बदी तो आज ही समझ आए।
बहुत ही सारगर्भित जानकारी।
अजित जी आपको धन्यवाद । बहुत स्पष्ट व्याख्या की आपने।
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