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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 8:43 PM लेबल: business money, पद उपाधि, सम्बोधन, संस्कृति
16.चंद्रभूषण-
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15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
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11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
11 कमेंट्स:
शब्दों का अर्थपतन होता है।
अजित जी,
उम्मीद है की शब्दों का सफ़र को पुष्तक रूप में देखना ज़ल्दी होगा. इंडो यूरोपियन भाषा परिवार जिसकी संस्कृत और हिंदी, फारसी, अरबी, उर्दू, एइरेमक, हिब्रू , भी मेंबर है उसको जोड़ने का आपका प्रयास निसंदेह हिन्दी में बहुत अच्छा है. अचानक एक मित्र से बातचीत के बीच ख्याल आया की हिंदी का द्रविण भाषाओँ, और आदिवासी बोलियों से किस तरह का सम्बन्ध है. उन सब बोलियों से जो हिंदी और संस्कृत से ज्यादा पुरानी है. और जिनकी उत्पत्ति भारत की है, उन्होंने स्वतंत्र रूप से हिंदी (संस्कृत) में क्या जोड़ा है?
निश्चित रूप से संस्कृत के बहुत से शब्द तमिल, तेलगू, मलयाली, कन्नड़ में बहुतायत में है. अगर संस्कृत द्रविण भाषा में समाहित हुयी तो ये यात्रा कुछ उल्टी दिशा में भी हुयी होगी. कुछ नए शब्द भी बने होंगे.
आपसे गुजारिश है अपनी इस यात्रा की समान्तर पर दूसरी दिशा से आने वाली सड़क पर भी नज़र रखे, जहां तक संभव हो. दुसरे मित्र जिनकी कुछ गति द्रविण भाषाओँ में है, अजित जी की मदद करे. एक बहुत समृद्ध रिसोर्स की ज़मीन बन सकती है.
हज़ार और सपने क्यूँ न देखे जाय?
शब्दों के रचयिता हमीं हैं और उनके अर्थ-अनर्थ की जिम्मेदारी भी हमारी है !
*केवल आपके लिए- बहुत दिन से आपकी तलाश में था ,आखिर पा ही लिया !
अपने चारो तरफ ही 'भाड़ू' है,
कोई साली न कोई साढ़ू है,
फुल है पॉकेट 'सफ़ेद पोशो'* के, *[Agents]
और 'भड़ुए' के हाथ झाड़ू है
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[दिन हुए है करीब होली के,
आलू आते नज़र गड़ाढ़ू* है!!!] * {भंगेरियो को }
-मंसूर ali हाश्मी
http://aatm-manthan.com
स्वप्नदर्शीजी,
आपका सुझाव बहुत अच्छा है। गौर करें कि मैं अक्सर शब्द व्युत्पत्ति के संदर्भ में सफ़र को विभिन्न भाषा परिवारों के नज़दीक ले जाता हूँ। द्रविड़ परिवार से भी अगर किसी शब्द के संदर्भसूत्र जुड़ते हैं तो उसका हवाला यहाँ होता है। अपने काम का दायरा अब मैं मराठी के जरिये बढ़ा रहा हूँ। मराठी ही वह कड़ी है जिसके जरिये दक्षिणी भाषाओं के शब्दो का आगमन उत्तर की ज़बानों में हुआ।
सब नेता भाडू नही होते . .......
आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला है....
घोटाला शब्द के विषय में जानने की तीब्र इच्छा है. आप से बड़ी उम्मीद है
शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड देखे.......http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html क्यों मैं "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा! देखे.......... http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
आप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-अगर आपको समय मिले तो कृपया करके मेरे (http://sirfiraa.blogspot.com , http://rksirfiraa.blogspot.com , http://shakuntalapress.blogspot.com , http://mubarakbad.blogspot.com , http://aapkomubarakho.blogspot.com , http://aap-ki-shayari.blogspot.com , http://sachchadost.blogspot.com, http://sach-ka-saamana.blogspot.com , http://corruption-fighters.blogspot.com ) ब्लोगों का भी अवलोकन करें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं # निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:9868262751, 9910350461
दोस्तों! अच्छा मत मानो कल होली है.आप सभी पाठकों/ब्लागरों को रंगों की फुहार, रंगों का त्यौहार ! भाईचारे का प्रतीक होली की शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन परिवार की ओर से हार्दिक शुभमानाओं के साथ ही बहुत-बहुत बधाई!
अजित वडनेरकर में प्रतिभा के स्फुलिंग मुझे वर्षों पूर्व तब दिखे थे जब उन्हें गीत-ग़ज़ल गाते हुए सुना. कुछ गज़लें तो मैं उनसे जब भी मिलते, फरमाइश करके सुनता था. उनकी अपनी कविताओं में भी होनहार होने के ढेर सारे सबूत मैंने देखे थे. इधर वर्षों से उनसे संपर्क कम हो गया है. 'शब्दों का सफ़र' देखकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ. उनके मामा जी (डाक्टर कमलकांत बुधकर) से मैंने अपनी भावना साझा की. विद्यार्थी जीवन में डॉ. विद्या निवास मिश्र का 'दिनमान' में एक स्तम्भ हम पढ़ा करते थे. उसमें वे विभिन्न अवसरों पर या क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाले भोजपुरी के शब्दों की जड़ें संस्कृत से ढूंढ कर लाते थे. अजित वडनेरकर कुछ और, कुछ अधिक कर रहे हैं. हमारे जैसे उनके शुभेच्छुओं के गदगद होने की बारी है. बधाई, शुभकामनाएं और ढेर सारा आशीष. उनके ब्लाग्स, उनकी पुस्तक को थोड़ा और पढ़ने के बाद कुछ विशेष रूप से और शायद ज़्यादा अच्छा कहना हो पायेगा.
शिव शंकर जायसवाल
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