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ढ पोरशंख हिन्दी का आम मुहावरा है और हिन्दीभाषी मध्यवर्गीय समाज में आज भी इसका प्रयोग होता है। ढपोरशंख की निगाहबीनी करने से पहले ढोल की पोल कहावत को भी याद कर लेना चाहिए। गौर करें कि ढोल एक ऐसा वाद्य होता है जिसके दोनों सिरों पर चमड़ा मढ़ा होता है और इसे दोनों हाथों से बजाए जाने पर यह बहुत तेज़ आवाज़ करता है। ढोल की आकृति पर ध्यान दें। मूलतः यह अंदर से खोखला होता है। ढोल की पोल कहावत का अर्थ यह हुआ कि दिखने में बहुत बड़ा और तेज़ आवाज़वाला होने के बावजूद ढोल में भीतर कुछ भी ठोस नहीं है अर्थात वह भीतर से खोखला और पोला होता है। भाव यही है कि बाहरी प्रदर्शन और दिखावा करने से भीतरी खामियाँ दूर नहीं हो जातीं। ढोल बना है संस्कृत के ढौलः से। एक ही बात को बार बार दोहराने को ढोल-पीटना भी कहते हैं और इसे ढिंढोरा-पीटना पके अर्थ में भी प्रयोग किया जाता है। ढोल बजानेवाले को ढोली कहा जाता है। हिन्दू समाज में ढोली एक जाति भी होती है। यह एक श्रमजीवी तबका है जो पुराने वक्त से ही श्रीमंतों के यहां मांगलिक अवसरों पर मंगलध्वनि का काम करता रहा है अर्थात द्वाराचार के दौरान ढोल बजाना। इसके अलावा ये लोग कृषि कर्म व दस्तकारी की कला में भी प्रवीण होते हैं।
ढपोरशंख अर्थात वह व्यक्ति जो ऊँची ऊँची हाँकने में माहिर है। क्षमता न होने के बावजूद बड़ी बड़ी बातें करना। बोलचाल में ये लोग “फैंकू” भी कहलाते हैं। मूर्खों की कई क़िस्में होती हैं, जिनमें से एक किस्म ढपोरशंख भी है। शब्दकोशों में इसका पर्याय गप्पी भी दिया है, पर गप्पी मूर्ख नहीं होता, हाँ कुछ गप्पी मूर्ख भी होते हैं। जानते हैं ढपोरशंख की व्युत्पत्ति क्या है, कौन हैं इसके कुनबे के जाने-अनजाने रिश्तेदार। दरअसल ढपोरशंख का शुद्ध रूप है ढपोलशङ्ख अर्थात ढपोलशंख। ढपोल शब्द का ही रूपान्तर ढपोर हो गया। वृहत् हिन्दी शब्दकोश के अनुसार ढपोल शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के दर्पवत् से हुई है। दर्पवत् में शंख जुड़ने से ढपोलशंख समास बनता है। दर्पवत् का प्राकृत रूप होता है दप्पुल्ल > दपुल्ल > दपोल > और फिर ढपोल यह रूपान्तर सामने आता है। इस तरह बनता है ढपोरशंख या ढपोलशंख। दर्पवत् शब्द के मायने हुए फूला हुआ। यूँ हिन्दी में संस्कृत के दर्प शब्द के मायने हैं घमण्ड, अभिमान, अहंकार। इससे पैदा होनेवाले अन्य दुर्गुणों का भाव भी इसमें समाहित है जैसे अक्खड़पन, उद्दण्डता आदि।
संस्कृत की दृप् धातु से बना है यह दर्प शब्द जिसमें एकतरफ़ जहाँ प्रकाशित करना, आलोकित करना जैसे भाव हैं तो साथ ही इनका विस्तार प्रज्वलित करना या सुलगाना भी है। दृप् का एक अन्य अर्थ है घमण्ड करना, अहंकार करना। संस्कृत के दर्प में इस तरह एक नया अर्थ भी जुड़ा अभिमान से फूलना, फैलना, चौड़ा होना। गौर करें इस चौडेपन के भाव पर। अभिमानी व्यक्ति खद को सिर्फ़ अपने ही आईने में देखता है, मन में निर्मित अपनी छवि पर वह मुग्ध होता है। जाहिर है, एक ही वक्त में वह दो छवियों को जीता है। इसी वजह से वह दर्पवत् अर्थात फूला रहता है। यहाँ फूलना में भौतिक आकार कम और हाव-भाव पर अधिक जोर है। काल्पनिक और प्रभावशाली छवि को वास्तविक जीवन में जीनेवाले व्यक्ति के हावभाव के लिए घमण्ड से फूलना जैसी उक्ति उभरती है। शीशा या आईना शब्द के लिए हिन्दी का दर्पण शब्द इसी दृप धातु से बने दर्प से बना है। वह वस्तु जिसमें छवि नज़र आती है अर्थात प्रकाशित होती है, आभासित होती है, दर्पण कहलाई। स्वयं की नज़रों में खुद को बड़ा समझने की बात यहाँ समझी जा सकती है।
शंख यूँ तो भारतीय संस्कृति में एक मांगलिक चिह्न है। यह एक प्राचीन वाद्य भी है जिसका प्रयोग विश्व की विभिन्न संस्कृतियों में होता रहा है। शंखनाद एक चिरपरिचित शब्द है जिसमें मुहावरे की अर्थवत्ता है। इसका अर्थ होता है किसी संकल्प की घोषणा, युद्ध की घोषणा आदि। शंख आकार में छोटा हो या बड़ा, उसकी मूल बनावट एक सी होती है अर्थात उसका मध्यांग बेहद फूला हुआ होता है जिसमें से होकर गूँजती हुई तेज़ आवाज निकलती है, मगर इस संरचना के भीतर सिर्फ खाली स्थान ही होता है। वही ढोल की पोल। मराठी में किसी शठ या मूर्ख व्यक्ति को भी शंख की उपमा दी जाती है अर्थात जो सिर्फ़ बातें करना जानता है, या जिसके भीतर दिमाग़ नहीं होता। स्पष्ट है कि ढपोरशंख ऐसा व्यक्ति है जो मूलतः अज्ञानी है, मगर ज्ञान बघारता नज़र आता है, जिसकी बातों में सार नहीं है, पर वह अंतहीन बोलता है। ऐसे व्यक्ति भी मूर्ख की श्रेणी में गिने जाते हैं।
अगली कड़ी में भी “ढ” महिमा
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8 कमेंट्स:
Hameshaa kee tarah gyaan wardhak aur suruchi poorn!
संस्कृत की दृप् धातु से बना है यह दर्प शब्द और उसकी व्याख्या तो चमत्कृत करती ही है लेकिन ..... ढोली जाति का उल्लेख... हतप्रभ कर देता है...कोई शक नहीं कि इस सफ़र में शब्दों का जादुई चिराग है आपके पास ...!
बहुत अच्छा ज्ञानवर्धक लेख |
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शिल्पा
ghajab ki jaankari di aapne. kripaya isi prakar 'ghongha basant' shabd ki vyutpatti bataani ki kripa karein.
'आईना' तो हकीक़त बताता रहा,
बंद आँखों से वो ख़ुद को देखा किया,
'ढोल की पोल' जाकर खुली देर से,
जो भी 'फेंका'था!ख़ुद ही लपेटा किया.
जब कर्म से अधिक ध्वनि हो तो ढपोर।
बढ़िया ढंग से पोल खोली है
ढपोरशंख शब्द की!
दिलचस्प बात है कि पंजाबी में ढपोरशंख की जगह गपौड़संख शब्द चलता है. स्पष्ट है कि इस का मतलब मूर्ख की जगह गप्पी है.
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