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Sunday, November 27, 2011
खेती भी वर्ज़िश है
प्रा चीन समाज में कृषि-कर्म ही मूलतः श्रम का पर्याय था। यूँ काम के दायरे में बहुत सी क्रियाएँ आती हैं, मगर वह श्रम जो मूलतः रोज़ी रोटी से जुड़ा है, कर्म-संस्कृति में उसका महत्व सनातन काल से सर्वाधिक है। उदर-पोषण के लिए किए गए श्रम को अनादिकाल से ईश्वर आराधना से जोड़ा जाता रहा है। विभिन्न भाषा परिवारों में अनेक शब्दों का एक सा विकास, उनके अर्थान्तर की प्रक्रिया को देखते हुए इसे समझा जा सकता है। हिन्दी में व्यायाम के लिए फ़ारसी से आए हुए वर्ज़िश शब्द का प्रयोग भी होता है। वर्ज़िश मे शारीरिक श्रम ही खास है। वर्ज़िश को कसरत भी कहते हैं। आमतौर पर वर्ज़िश में उस श्रम को रखा जाता है जिसके ज़रिए शरीर को स्वस्थ बनाया जाता है। वर्ज़िशी-बदन या वर्ज़िशी-जिस्म में व्यायाम से प्राप्त शारीरिक सौष्ठव का आशय ही उभरता है। कुल मिला कर ऐसा शारीरिक कर्म जिसके ज़रिए शरीर को स्वस्थ और बलवान बनाया जाए, वर्जिश कहलाता है। मगर पूर्व वैदिक काल में वर्जिश में मेहनत का भाव तो था, मगर इसमें अखाड़े में की गई क़सरत की बजाय खेत में पसीना बहाने का भाव अधिक था।
वर्ज़िश भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है जो मूलतः भारत-ईरानी परिवार से ताल्लुक रखता है। दरअसल प्राचीन भारतीय संस्कृति में कर्म को ही पूजा कहा गया है। वर्ज़िश शब्द बना है अवेस्ता के वरेज़ा से जिसका अर्थ है कार्य, क्रिया, कर्म आदि। जूलियस पकोर्नी ने वरेजा को उसी वर्ग werg धातुमूल से व्युत्पन्न माना है जिससे अंग्रेजी का वर्क work निकला है जो पोस्ट जर्मनिक के werkan से सम्बद्ध है। इसकी तुलना स्लोवानी, फ्रैंच,डच के आदि रूपों और आज की जर्मन के werk से की जा सकती है। गौरतलब है कि इन सभी शब्दों में कर्म या क्रिया का ही भाव है। वर्ग/werg का रिश्ता अंग्रेजी के अर्ज urge से भी है जिसकी आमद लैटिन के urgere मानी जाती है जिसमें दबाने, ज़ोर लगाने या मेहनत करने का भाव है। ग्रीक का ergon भी इसी मूल का है जिससे अंग्रेजी का ऑरगन शब्द बना है जिसका अर्थ है शरीर के अवयव या अंग।
मूल बात यह कि भारोपीय धातु वर्ग/werg का सुदूर ईरान में एक अन्य रूप बन रहा था और जिसमें ग के स्थान पर ज ध्वनि थी। भारोपीय भाषाओं में ग और ज का रूपान्तर सामान्य बात है। अवेस्ता के वरेज़ा का एक रूप फ़ारसी में वर्ज़ होता है जिसका अर्थ भी कर्म, कसरत और मेहनत है। वर्ज़ में यूँ तो निर्माण और कर्म का भाव है मगर इसका मूलार्थ है खेत। कर्म के सन्दर्भ में रोटी बनाने के लिए आटा गूँधने की क्रिया को वर्ज़-दादन कहते हैं। वैसे फ़ारसी में खेत को वर्ज़ कहते हैं। अमरकोश के रचयिता अमरसिंह (पाँचवी सदी) अपने इस प्रसिद्ध ग्रन्थ के द्वितीय काण्ड के भूमिवर्ग में वरिवस्या शब्द का उल्लेख करते हैं जिसका अर्थ है परिचर्या, सेवा, सुश्रुषा और उपासना। इस शब्द का रिश्ता आराधना से जोड़ा गया है-वरिवस शब्दः पूजार्थ। उन्नीसवीं सदी के महान भाषाविद् अल्बर्ट पाइक (1809–1891) ने अवेस्ता के वरेज़ा का रिश्ता वैदिक शब्द वरिवस्या से रिश्ता जोड़ा है जो कम व्याख्या के बावजूद तार्किक लगता है। पाइक लिखते हैं कि यह मूलतः कर्म है। आराधना करना भी कर्म है। गौर करें कि प्राचीन समय में कृषि कर्म के सभी आयाम अर्थात बुवाई, सिंचाई, बिनाई, कटाई आदि के वक्त याज्ञिक-अनुष्ठान होते थे। हमारा ऋतुचक्र इसी कृषि-संस्कृति से संचालित था। कृषि संस्कृति से जुड़े ये कार्य ही मूलतः श्रम की प्राचीन परिभाषा मे आते थे और इस तरह वरिवस्या शब्द का रूपान्तर या सहयोगी विकास अवेस्ता में वरेज़ा होना तार्किक लगता है। वरिवस्या को क्षेत्रपूजा के रूप में देखा जा सकता है। वरिवस्या से अवेस्ता में वरिवज्जा > वरेजा > वर्ज जैसे रूपान्तर मुमकिन हैं जिनमें खेत और खेती जैसे भाव हैं। सस्कृत की कृष् धातु में निहित खींचने का भाव ही कृषि शब्द के क्रिया रूप में अभिव्यक्त होता है। क्षेत्र से खेत बनता है और फिर उसके क्रिया रूप खेती का विकास होता है।
प्राचीन समय में कृषि कर्म के सभी आयाम अर्थात बुवाई, सिंचाई, बिनाई, कटाई आदि के वक्त याज्ञिक-अनुष्ठान होते थे। हमारा ऋतुचक्र इसी कृषि-संस्कृति से संचालित था। कृषि संस्कृति से जुड़े ये कार्य ही मूलतः श्रम की प्राचीन परिभाषा मे आते थे…
अवेस्ता के वरेज़ा से फ़ारसी में कुछ नए शब्द बने मसलन वर्ज़ीदन यानी काम करना, वर्ज़ यानी खेत, कर्म, वर्ज़ाव यानी ताक़तवर गाय, वर्ज़िश यानी क्रियाशीलता, खेती-बाड़ी, कृषि-कर्म, व्यायाम, खेल-कूद आदि। गौरतलब है कि भारोपीय भाषाओं में ब और व में अदला-बदली होती है। फ़ारसी में वर्ज़ का रूपान्तर बर्ज़ भी हुआ। विशाल खेतों को भी वर्ज़ कहते हैं और यह शब्द श्रम के अर्थ में भी है। वर्ज़ीदन है तो बर्ज़ीदन भी है। प्रो. दाऊद एन. राहनी का एक आलेख कहता है कि बर्ज़िग-गार का अर्थ है बुवाई का मौसम, जो अक्सर बारिश में ही होती है। वर्ज़ या बर्ज़ का अर्थ है विशाल कृषि भूमि। भावुक अन्दाज़ में कह जा सकता है- सुजलाम सुफलाम् शस्य श्यामलाम् मातरम्। कुल मिला कर धरती माता हमें धारण करती है, पालन करती है, पोषण देती है इसीलिए वर्ज़ शब्द में ये सब है। फ़ारसी में वर्ज़नामा, बर्ज़नामा खेती सम्बन्धी ग्रन्थों के लिए प्रयुक्त होते हैं।
खेती का वर्ज़िश से रिश्ता तो बहुत कुछ साफ़ हो चुका है, मगर लगता है कि हिन्दी और बुन्देली में भी वरेज़ा का रूपान्तर मौजूद है। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश में पान की खेती वाले इलाकों में पान की बाड़ियों को भी बरेजा कहते हैं। सम्भावना के तौर पर इसकी साम्यता फ़ारसी के वर्ज़, बर्ज़ या अवेस्ता के वरेज़ा से कर के देखिए...पान की बेलें जिन लम्बे चौड़े बाड़ों में ज़मीन से सात-आठ फुट ऊपर बाँस से बने ढाँचों पर लगाई जाती है, उसे कहते हैं, बरेजा। यानी कहने को यह भी खेत ही है, मगर कुछ ऊँचा खेत। अवेस्ता डिक्शनरी के मुताबिक बरेजा शब्द का एक अर्थ ऊँचा भी होता है। क्यों न हो, वर्ज़, बर्ज़, वरेज़ा, या वरिवस्या के ज़रिए हम ज़िस उपासना की बात कर रहे हैं, उसका उपास्य तो सबसे ऊपर ही है !!! जॉन प्लैट्स पान-बरेजा की व्युत्पत्ति संस्कृत के वृति [वृ+ज?] से होने की सम्भावना जताते हैं। गौर करें कि संस्कृत के वृत्ति में वृत् धातु है जिससे वृत्त बना। इसका रिश्ता ‘ऋ’ से है जिसमें मुड़ने, घूमने, घुमाने, चक्रगति का भाव है। बात यह है कि दुनिया की हर संस्कृति में ईश्वर आराधना के तौर पर, उपासना के तौर पर सर्वशक्तिमान प्रतीक के इर्द-गिर्द घूमने की प्रथा है। भारतीय-ईरानी परिवेश में अग्निपूजा के यज्ञ अनुष्ठान में भी अग्नि-पीठ के इर्द-गिर्द प्रदक्षिणा दरअसल आराध्य की उपासना का ही प्रावधान है। यही नहीं, सामान्य तौर पर रोज़ाना घरों में हम जो आरती करते हैं उसमें ईश्वर के चारो और अग्नि घुमाई जाती है। यह जो वर्तन का भाव है वही वरिवस्या के वर् में भी है और बरेजे में भी है। यानी घिरा हुआ, सुरक्षित, संरक्षित क्षेत्र। पान बरेजा तो सचमुच बाड़ा और कई बरेजों का संकुल होता है। बरेजा और वरेजा में बस ऊपर, नीचे का ही अन्तर है!
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6 कमेंट्स:
अपने हाथों से खेती करना तो वर्ज़िश ही कहलायेगा!
क्या वर्जित, वर्ष, वारिज शब्द भी परस्पर सम्बंधित हैं ?
वर्जिश - बरेजा, अप्रत्याशित.
पोस्ट पढ़कर ही पसीना आ गया, वर्जिश हो गया।
अंग्रेज़ी के और भी बहुत सारे जाने पहचाने शब्द इस मूल से बने हैं जैसे erg, energy, George, boulevard, bulwark, allergy, liturgy, surgery. आपका इस और ध्यान नहीं गया, संस्कृत धातु वृज् इससे जुड़ा हुआ है जिससे ऊर्जा वगैरा शब्द बने.
खेती ही तो 'वर्ज़िश' है,
इस कर्म से जुड़ कर ही,
धरती पल्लवित है.
इस पर ही तो मेहनत से ,
मानव सब पोषित है.
मेहनत का है खाती जो,
क़ौमे सुसंस्कृत है.
आराधना जो करते,
मन उनके हर्षित है.
और ...........
उत्पाद ये मानव का,
कुदरत ही की खेती है,
कुछ शक नहीं इसमें कि,
इसमें भी तो वर्ज़िश है,
'फ़ल' नर है तो नारी 'पुष्प'
होती वही गर्भित है,
धरती ही की मानिंद वो,
फिर भी क्यूँ तिरस्कृत है ?
http://aatm-manthan.com
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