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Wednesday, September 5, 2012
मतलबी तालिबान
कु छ शब्द ऐसे होते हैं जो सामान्य बातचीत का अभिन्न हिस्सा होते हैं । ऐसे शब्दों के बिना कोई संवाद हो ही नहीं सकता । ऐसा ही एक शब्द है मतलब । “ क्या मतलब ?” “ मतलब ये कि...” गौर करें कि सुबह से शाम तक इन दो छोटे वाक्यों का साबका हमसे कितनी बार पड़ता है और क्या इनके बिना हमारा अभिप्राय और उद्धेश्य सिद्ध हो सकता है ? कई लोगों को 'मतलब' की 'तलब' इतनी ज्यादा होती है कि उनका तकियाकलाम ही “मतलब कि…” बन जाता है । “मतलब कि…” वाली बैसाखी का इस्तेमाल किए बिना उनकी बात पूरी हो ही नहीं सकती । मतलब के ज़रिए हमारी कितनी तरह की बातों को अभिव्यक्त करते हैं जैसे- इरादा, उद्धेश्य, प्रयोजन, इष्ट, मनोरथ, अभिप्राय, अर्थ, मुराद, हेतु, इरादा, विचार, लक्ष्य, बात, विषय आदि । सामान्य तौर पर मतलब का प्रयोग अर्थ जानने के संदर्भ में होता है ।
मतलब की व्याप्ति मराठी, गुजराती से लेकर उत्तर भारत की लगभग सभी भाषाओं मे है और उद्धेश्य, अर्थ, अभिप्राय अथवा प्रयोजन जानने के संदर्भ में इसका प्रयोग होता है । सेमिटिक मूल का मतलब अरबी से बरास्ता फ़ारसी, भारतीय भाषाओं में दाखिल हुआ । सेमिटिक धातु त-ल-ब / ṭā lām bā यानी ( ب ل ط ) से जन्मा है । अल सईद एम बदावी की कुरानिक डिक्शनरी के मुताबिक इसमें तलाश, खोज, चाह, मांग, परीक्षा, अभ्यर्थना, विनय और प्रार्थना जैसे भाव हैं । इससे ही जन्मा है 'तलब' शब्द जो हिन्दी का खूब जाना पहचाना है । तलब यानी खोज या तलाश । तलब के मूल मे 'तलाबा' है जिसमें रेगिस्तान के साथ जुड़ी सनातन प्यास का अभिप्राय है । आदिम मानव का जीवन ही न खत्म होने वाली तलाश रहा है । दुनिया के सबसे विशाल मरुक्षेत्र में जहाँ निशानदेही की कोई गुंजाइश नहीं थी । चारों और सिर्फ़ रेत ही रेत और सिर पर तपता सूरज । ऐसे में सबसे पहले पानी की तलाश, आसरे की तलाश, भटके हुए पशुओं की तलाश...अंतहीन तलाशों का सिलसिला थी प्राचीन काल में बेदुइनों की ज़िंदगी । तलब शब्द का रिश्ता आज भी प्यास से जुड़ता है । ये अलग बात है कि अब पीने-पिलाने या नशे की चाह के संदर्भ में तलब शब्द का ज्यादा प्रयोग होता है ।
तलब समेत इससे बने कुछ और शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे तलबगार यानी इच्छुक, चाहनेवाला, मांगनेवाला आदि । आरामतलब यानी सुविधाभोगी । इसका प्रयोग आलसी के अर्थ में भी होता है । तलब में मुहावरेदार अर्थवत्ता है जैसे तलब करना । इसका अर्थ है किसी को बुलाना । अक्सर इसमें आदेशात्मक भाव ही होता है । यह भाव और स्पष्ट होता है तलबनामा से । अदालती शब्दावली में इसका इस्तेमाल होता है जिसका अर्थ है न्यायालय में हाज़िर होने का आज्ञापत्र । इसे समन भी कह सकते हैं । पूर्वी उत्तरप्रदेश में तलबाना वह रकम है जो गवाहों को अदालत में बुलवाने के खर्च के तौर पर (रसीदी टिकट या स्टाम्प पेपर ) वसूला जाता है । कुल मिलाकर चाह, इच्छा के अलाव इसमें बुलाहट, बुलावा का भाव भी है । तलब में ही अरबी का ‘म’ उपसर्ग लगने से मतलब बना है । इसमें भी चाह, इच्छा, तलाश, प्रार्थना, कामना, लालसा, मांग जैसे भाव हैं जो सीधे सीधे तलब से जुड़ते हैं ।
मतलब की विशिष्ट अर्थवत्ता दरअसल चाह, कामना, मांग से आगे जा कर अर्थ, अभिप्राय, आशय, उद्धेश्य, मंशा या वजह से जुड़ती है और ज्यादातर भारतीय भाषाओं में इन्हीं अर्थों में मतलब का प्रयोग होता है । “मेरा मतलब ये है” और “मैं यह कहना चाहता हूँ” दोनों का अभिप्राय एक ही है । मतलब और चाह एक दूसरे के आसान पर्याय हैं । मतलब का कई तरह से प्रयोग होता है । खुदगर्ज़, स्वार्थी इन्सान को मतलबी कहा जाता है । अर्थात वह सिर्फ़ अपनी मंशा साधने या इच्छापूर्ति के प्रयास में लगा रहता है । यही आशय मतलबपरस्त का भी है । मतलब की दोस्ती, मतलब की यारी जैसे मुहावरेदार प्रयोग भी आम हैं । मराठी में स्वार्थी का पर्याय आपमतलबी भी होता है । मतलबदार और मतलबीयार जैसे प्रयोग भी मराठी में हैं ।
तलब से ही 'तालिब' बनता है जिसका अर्थ है ढूंढनेवाला, खोजी, अन्वेषक, जिज्ञासु । तालिब-इल्म का अर्थ हुआ ज्ञान की चाह रखनेवाला अर्थात शिष्य, चेला, विद्यार्थी, छात्र आदि । इस तालिब का पश्तो में बहुवचन है तालिबान । तालिब यानी जिज्ञासु का बहुवचन पश्तो में आन प्रत्यय लगा कर बहुवचन तालिबान बना । उर्दू में अंग्रेजी के मेंबर में आन लगाकर बहुवचन मेंबरान बना लिया गया है । आज तालिबान दुनियाभर में दहशतगर्दी का पर्याय है । तालिबान का मूल अर्थ है अध्यात्मविद्या सीखनेवाला । हम इस विवरण में नहीं जाएंगे कि किस तरह अफ़गानिस्तान की उथल-पुथल भरी सियासत में कट्टरपंथियों का एक अतिवादी विचारधारा वाला संगठन करीब ढाई दशक पहले उठ खड़ा हुआ । खास बात यह कि उथल-पुथल के दौर में नियम-कायदों की स्थापना के नाम पर मुल्ला उमर ने अपने शागिर्दों की जो फौज तालिबान के नाम से खड़ी की, उसने तालिब नाम की पवित्रता पर इतना गहरा दाग़ लगाया है कि तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया ।
इन्हें भी देखें-1.औलिया की सीख, मुल्ला की दहशत .2.मुफ्ती के फ़तवे.3.ये मतवाला, वो मस्ताना.4.दरवेश चलेंगे अपनी राह.5.इश्क पक्का, मंजिल पक्की6.दमादम मस्त कलंदर7.करामातियों की करामातें.8.बेपरवाह मस्त मलंग.9.ऋषि कहो, मुर्शिद कहो, या कहो राशिद.10.मदरसे में बैठा मदारी.11.ख्वाजा मेरे ख्वाजा.12.सब मवाली… गज़नवी से मिर्ची तक.13.बावला मन… करे पिया मिलन.14.पीर-पादरी से परम-पिता तक
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 11:42 PM लेबल: god and saints, government, नामपुराण, पद उपाधि, योग्यता, राजनीति, शिक्षा, सम्बोधन
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8 कमेंट्स:
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गजब! एक अच्छा शब्द "तालिबान" किस तरह से एक बुरे अर्थ में हो गया है.
बहुत बढ़िया जानकारीपूर्ण अभिव्यक्ति ... आभार
अद्भूत,वाह
♥ "तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया"
जबकि उन्होंने इतने लोग नहीं मारे जितने कि उन्होंने मारे जोकि तालिबान नहीं हैं बल्कि विश्व शांति का झंडा भी उनके ही हाथ में है. तालिबान को हथियार और ट्रेनिंग देने वाले भी यही हैं.
ऐसा क्यों हुआ .
ऐसा केवल इसलिए हुआ कि "मीडिया" भी उनके ही हाथ में है.
जैसे मिथ्या जगत का व्यापार सत्य ब्रह्म के अधीन है, ऐसे ही हरेक मिथ्या आज उसके अधीन है जिसके पास "शब्द" है. शब्द को भारतीय दर्शन में ब्रह्म भी कहा गया है .
आध्यात्मिक सत्य को भौतिक धरातल पर भी घटित होते हुए देखा जा सकता है.
मन में जमे दुराग्रह और प्रचार के तिलिस्म को तोडा जाए तभी जाना जा सकता है कि आज ज़ालिम कौन है ?
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हमने यह कमेन्ट आपकी पोस्ट के साथ यहाँ सहेज दिया है. देखिये-
http://commentsgarden.blogspot.in/2012/09/who-was-godfather-of-taliban.html
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मुल्ला उमर ने अपने शागिर्दों की जो फौज तालिबान के नाम से खड़ी की, उसने तालिब नाम की पवित्रता पर इतना गहरा दाग़ लगाया है कि तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया ।
मतलबियों ने खडी की तालीबानी फौज
जब कि तालिब को करना थी अल्लाह की खोज ।
एक सफर यह भी ।
जिज्ञासा के मूल का कितना अर्थोपकर्ष कर दिया है।
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