Monday, September 17, 2012

भरोसे की साँस यानी ‘विश्वास’

[पिछली कड़ी- भरोसे की भैंस पाड़ो ब्यावे से आगे ]trust

हि न्दी में यक़ीन ( yaqin ) शब्द का भी खूब प्रयोग होता है । हालाँकि भरोसा, विश्वास, ऐतबार जैसे इसके पर्याय भी खूब प्रचलित हैं और ये सभी शब्द बोलचाल की सहज अभिव्यक्ति का माध्यम हैं । इसके बावजूद यक़ीन शब्द का प्रयोग ज्यादा सुविधाजनक इसलिए है क्योंकि इसमें निहित निश्चयात्मकता की अभिव्यक्ति ज्यादा सुविधाजनक ढंग से होती है । यक़ीन से यक़ीनन जैसा कर्मकारक बन जाने से निश्चित ही, निश्चयपूर्वक या निश्चित तौर पर जैसी अभिव्यक्तियाँ आसान हो जाती हैं । इसी तरह यक़ीन से यक़ीनी रूप भी बनता है । यक़ीन मानिए, यक़ीन जानिए, यक़ीन कीजिए जैसे वाक्यों से भाषा में मुहावरे का असर आ जाता है । फ़ारसी का बे उपसर्ग लगने से बेयक़ीन शब्द भी बनता है । रिश्ते-नाते और समूची दुनियादारी अगर कायमहै तो सिर्फ़ यक़ीन पर ।
क़ीन शब्द सेमिटिक मूल का है और यह अरबी भाषा से फ़ारसी में गया और फिर हिन्दी में आया । अलसईद एम बदावी / मोहम्मद अब्देल हलीम की कुरानिक यूसेज़ डिक्शनरी के मुताबिक यक़ीन के मूल में अरेबिक धातु या-क़ाफ़-नून (y-q-n) है जिसमें निश्चित, पक्का, निस्संदेह, सत्यापन, दृढ़ निश्चय, खास जैसे भाव हैं । इससे बने यक़ीन में निश्चित धारणा, आस्था या विश्वास ( जैसे, मेरा यक़ीन है कि मज़हब से इन्सानियत बड़ी चीज़ है ), आश्वासन( जैसे, उन्होंने यक़ीन दिलाया कि जल्दी ही काम हो जाएगा ), भरोसा ( आपकी बात पर यक़ीन नहीं होता ) आदि के अलावा मत, विचार, मान्यता, सच्चाई जैसे अनेक भावों का इसमें समावेश है ।
हिन्दी की तत्सम शब्दावली का विश्वास शब्द संज्ञा भी है । विश्वास जीवन-क्रिया से जुड़ा शब्द है । इसके मूल में श्वस् धातु है । श्वस् यानी हाँफना, फूँकना, धकेलना, धौंकना, फुफकारना, उड़ाना आदि । इसके अलावा इसमें साँस ( खींचना-छोड़ना ) ब्रीद, कराह, आह, आराम जैसे भाव भी हैं । इससे ही बना है श्वास जिसका अर्थ है छाती में हवा खींचना-छोड़ना, ब्रीदिंग । हिन्दी का साँस शब्द श्वास से ही बना है । श्वसन का अर्थ भी साँस लेना होता है । गौर करें कि मूलतः श्वास लेना जीवन के लिए ज़रूरी क्रिया है । श्वास जीवन का सम्बल है । श्वास के जरिये रक्त में वायुसंचार होता है और यही रक्त हमारे शरीर को पोषण देता है । विश्वास जिसमें यकीन, ऐतबार का भाव है और आश्वासन जिसका अर्थ तसल्ली अथवा सांत्वना होता है, इसी सिलसिले की कड़ियाँ हैं ।
श्वसन में साँस लेना और छोड़ना दोनो शामिल है । दोनों में एक बारीक फ़र्क है । श्वास लेना जहाँ चुस्त होने का लक्षण है वहीं श्वास छोड़ना निढाल होने, क्षीण होने का लक्षण है । इन दोनो ही क्रियाओं में उपसर्गों के ज़रिये फ़र्क़ किया गया है । साँस लेना जहाँ आश्वास है वही साँस छोड़ना निश्वास है । हिन्दी का उपसर्ग में सकारात्मक अर्थवत्ता है । इसमें सब ओर, सब कुछ वाला भाव भी है । श्वास से पहले लगने से आश्वास बनता है जिसका अर्थ होता है खुली साँस लेना, मुक्त साँस लेना, तसल्ली के साथ जीना । आश्वास से ही आश्वासन बना है जिसमें निहित तसल्ली, सांत्वना, दिलासा, प्रोत्साहन जैसे भाव स्पष्ट हैं । वामन शिवराम आप्टे के कोश में आश्वास् का अर्थ साँस देना, जीवन देना, जीवित रखना जैसे अर्थ भी दिए हैं । आपात् स्थिति में मुँह से मुँह मिला कर कृत्रिम साँस देकर किसी को जीवित रखने का प्रयत्न भी इसी आश्वास से अभिव्यक्त होता है ।
य-अशान्ति में निश्वास क्रिया प्रभावी होने लगती है । लम्बी साँस छोड़ना दरअसल दुख, शोक प्रकट करने का लक्षण भी है और आन्तरिक वेदना की अभिव्यक्ति भी । गहरी साँस छोड़ी जाएगी तो लम्बी साँस ली भी जाएगी । आश्वास-निश्वास के इस क्रम को देशी हिन्दी में उसाँस कहते हैं । उसाँस का एक रूप उसास भी है । यह उच्छ्वास से बना है जो मूल संस्कृत का शब्द है और हिन्दी की तत्सम शब्दावली में आता है । उच्छ्वास बना है उच्छ्वस uchvas से । उद् उपसर्ग में छ्वस chvas लगने से बनता है उच्छ्वस । दिलचस्प यह कि संस्कृत के श, क्ष, श जैसे रूप प्राकृत अपभ्रंश में में बदलते हैं जैसे क्षण से छिन । क्षमा का छिमा । यहाँ छ्वस दरअसल श्वस का ही रूप है । वैदिक संस्कृत में अनेक शब्दों के बहुरूप मिलते हैं जो प्राकृत के समरूप लगते हैं । बहरहाल, उद् और छ्वस का अर्थ गहरी या लम्बी साँस होता है । उच्छ्वस > उच्छ्वास > उस्सास और फिर इससे बना उसाँस शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित है और दुख-शोक की सामान्य अभिव्यक्ति का ज़रिया है ।
श्वस में वि उपसर्ग लगने से बनता है विश्वस् । गौर करें संस्कृत के वि उपसर्ग की कई अर्थ छटाएँ हैं जिनमें से एक है महत्व प्रदान करना । स्पष्ट करना । अन्तर करना आदि । विश्वस का अर्थ हुआ मुक्त साँस लेना, चैन से साँस लेना । ध्यान रहे कि श्वसन प्रणाली के ज़रिए ही सबसे पहले यह पता चलता है कि रोगी की दशा सही है या नहीं । श्वास प्रणाली पर ही नाड़ी तन्त्र काम करता है । पुराने ज़माने से नब्ज़ देख कर मरीज़ के हाल का अंदाज़ा लगाया जाता रहा है । श्वसन प्रणाली ही वह आधार है जिसके ज़रिये ही शरीर के अवयव सही ढंग से काम करते हैं । इस आधारतन्त्र का मज़बूत होना, कुशल होना, निर्दोष होना ही उसे विश्वसनीय बनाता है । सो, श्वस में वि उपसर्ग लगाकर बनाए गए विश्वस् से जो अर्थवत्ता हासिल हुई वह भरोसा, निष्ठा, ऐतबार जैसे आशयों को प्रकट करती है । विश्वस से ही विश्वास बना है ।

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3 कमेंट्स:

Baljit Basi said...

पंजाबी में विश्वास तो चलता ही है लेकिन इसका और संकुचित रूप वसाह/ बसाह भी हो गए हैं.

Mansoor ali Hashmi said...

'बेयकीनी' देखकर 'ममता' की अब,
है 'यकीं' सरकार बच ही जाएगी,
'विश्व' ही पूरा टिका है 'आस' पर,
'मन'[मोहन] की नय्या पार लग ही जाएगी.
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'श्वास' ही लेना हुआ दुष्कर है अब,
क्या करू 'निश्वास'? असमंजस में हूँ,
गठरी बोझिल 'आश्वासन' की हुई,
'योग' अपनाया है ! अब 'उच्छ्वस' में हूँ.
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'श्वास-प्रणाली' है और 'नाड़ी का तंत्र',
और 'प्रशासन' में 'नारी' तंत्र है !
घर का कारोबार भी होता सफल,
मूल ही 'विशवास' जिसका मन्त्र है.
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http://aatm-manthan.com

प्रवीण पाण्डेय said...

श्वास है तो विश्वास है..

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