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Thursday, May 30, 2013
ग़फ़लत में ग़ाफ़िल
क बीर जब कहते हैं कि “रे दिल गाफिल गफलत मत कर, एक दिना जम आवेगा” तब दरअसल वे लोगों से अपनी आत्मा को जगाने की बात कहते हैं । यमलोक से बुलावा किसी भी दिन आ सकता है । जीवन अनित्य है इसलिए अंतरात्मा में ज्ञानजोत जलाने की ज़रूरत है । इसमें ग़ाफ़िल और ग़फ़लत दो शब्दों का प्रयोग किया गया है जो अरबी मूल से आए हैं । कबीर की भाषा सधुक्कड़ी यानी आम आदमी की ज़बान है । कबीर जैसे जनकवि जब ‘गाफिल-गफलत’जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो सहज ही समझा जा सकता है कि राज-काज की फ़ारसी भाषा का असर लोकबोलियों पर किस क़दर चढ़ चुका था । देखने की बात यह भी है कि कबीरबानी में गाफिल से बना गफिलाई शब्द भी आता है-“ ऐसा लोग न देखा भाई, भूला फिरे लिए गफिलाई।” यह गफिलाई निश्चित ही उस दौर के समाज में गाफिल का प्रचलित रूप रहा होगा। गाफिल या गफलत के शुद्ध रूप नुक़्ता लगा कर ग़फ़लत और ग़ाफिल बनते हैं ।
ग़ाफ़िल उसे कहते हैं जो बेख़बर हो । हेंस वेर और मिल्टन कोवेन की ए डिक्शनरी ऑफ़ मॉडर्न रिटन अरेबिक के मुताबिक ग़ाफ़िल के मूल में अरबी का ग़फ़ाला ghafala है जिसमें असावधानी, उपेक्षा, लापरवाही, भूल जैसे भाव हैं । इसकी धातु है ग़ैन- फ़ा-लाम (غ-ف-ل) । इससे बने ग़ाफ़िल में आत्मविस्मृत, असावधान, बेख़बर, आत्मलीन, निश्चेत, बेहोश के साथ-साथ काहिल, आलसी जैसी अर्थवत्ता भी है । गौर करें ग़फ़ाला के मूल भाव उपेक्षा या लापरवाही जैसे भावों पर । जो खुद में गुम है, जिसे ज़माने की ख़बर नहीं वह दरअसल कारोबारे-दुनिया की उपेक्षा ही तो कर रहा है । जिसे संसार की परवाह नहीं ऐसा व्यक्ति आत्मलीन योगी भी हो सकता है और अकर्मण्य, आलसी या लापरवाह भी हो सकता है ।
ग़फ़लत का प्रयोग भी हिन्दी में उधेड़बून, उलझन या गड़बड़ी के अर्थ में ज्यादा होता है । “बड़ी ग़फ़लत हो गई”, “ग़फ़लत मत करो”, “वो ग़फ़लत में रहता है” जैसे वाक्यों से यह स्पष्ट हो रहा है । गफ़लत में मूलतः - असावधानी, असतर्कता, बेख़बरी, संज्ञाहीनता, निश्चिष्टता, बेहशी, त्रुटि, भूल, चूक, उपेक्षा, आलस्य, बेपरवाही, काहिली के भाव हैं । ग़फ़ाला में निहित उपेक्षा इस शृंखला के जिस शब्द में सर्वाधिक उभर रही है वह है तग़ाफ़ुल । बोलचाल या लिखत-पढ़त की हिन्दी में तग़ाफ़ुल का इस्तेमाल नहीं होता मगर शेरो-शायरी में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए यह अजनबी भी नहीं है मसलन- “अब उसका तग़ाफ़ुल गवारा करो, मसीहा मसीहा पुकारा करो।” मोहम्मद मुस्तफ़ा खाँ मद्दाह तग़ाफ़ुल के मायने उपेक्षा, बेतवज्जोई, असावधानी, ग़फ़लत, ढील, विलम्ब, देर आदि बताते हैं ।
गफ़लत से बने कुछ ख़ूबसूरत शब्द भी हैं जिनका प्रयोग किया जा सकता है जैसे ग़फ़लतक़दा जिसमें भवसंसार की व्यंजना उभरती है , मगर व्यंग्य के नज़रिए से । बुज़ुर्गों का कहना है कि ये दुनिया गड़बड़झाला ही है । यहाँ सब कुछ बेतरतीब है , सब कुछ उलझा हुआ है । इसे दुरुस्त करने का जिम्मा इन्सान का है, मगर वह खुद ही गफ़लतज़दा यानी असावधान रहता है । इसी तरह सुस्त, आलसी या आदतन असावधान व्यक्ति के लिए ग़फ़लतआश्ना जैसा शब्द भी है और ग़फ़लतपेशा भी। इन्हें हम एहदी, सुस्तशिरोमणी या आलसीराम की उपाधियों से नवाज़ते हैं ।
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14 कमेंट्स:
nice
बधाई हो भाई आपने अद्भुत काम किया है। जितनी भी तारीफ की जाये कम है, अब मै आपके ये ज्ञानवर्धक लेख ''सद्भावना दर्पण' में प्रकाशित करना चाहता हूँ
शानदार प्रस्तुति के लिए शब्दों के सम्राट को बधाई.
अखिलेश ठाकुर
गफलत मे रहने से बचा लिया,
गाफ़िल हमें रहने दिया नही ।
गाफ़िल शब्द तो बहुत बार सुना था लेकिन इसका अर्थ नहीं मालुम था । आज मालुम हुआ... आभार
बहुत सुन्दर वर्णन
सादर आभार!
wakiy ham sab gafalat me desh ko rasaatal ki aur dhakel rahe hain/sabhi rajnitik partiyon me desh hit kam ,kursi, pad ki lalsa adhik hai.....
जानकारी वर्धक पोस्ट ...आभार |
http://drakyadav.blogspot.in/
आपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" के विविध संकलन में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
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काफी दिनों से आप सफर में न्हीं हैं क्या?
अजिताराव, ढाक म्हणजे तेरडा का?
हार्दिक बधाईयां !
आपको जानकर प्रसन्न्ता होगी कि आपके ब्लॉग ने हिन्दी के सर्वाधिक गूगल पेज रैंक वाले ब्लॉगों में जगह बनाई है। निश्चय ही यह आपकी अटूट लगन और अनवरत हिंदी सेवा का परिणाम है।
एक बार पुन: बधाई।
धन्यवाद जी
अति सुंदर ..!!!
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