Friday, May 2, 2014

झाँकना 'दरअसल' के दर में


रअसल में जो फ़ारसी का प्रसिद्ध उपसर्ग ‘दर’ है वो दरवाज़ा है या कुछ और? गौरतलब है इसका इस्तेमाल हिन्दी में ठाठ से होता है| इस 'दर' का सर्वाधिक प्रचलित उदाहरण भी ‘दरअसल’ है जिसके बिना कई लोगों का वाक्य ही पूरा नहीं होता| इसके अलावा दरहकीक़त, दरपेश जैसे कुछ और शब्द भी हैं| ये जो 'दर' है उसका रिश्ता दरबार, दरबान, दर-ब-दर, सफ़दर वाले 'दर' से नहीं है| डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक दरअसल वाला 'दर', मूलतः फ़ारसी का 'दर' है जिसका अर्थ दरवाज़ा है| भारत-ईरानी परिवार के इस शब्द का हिन्दी-संस्कृत रूप द्वार है| मगर द्वार का अर्थ या तो दरवाज़ा है या रास्ता| इससे ये वाला 'दर' समझ नहीं आता| कई बार अशुद्ध प्रयोग में भी व्युत्पत्ति के संकेत मिलते हैं| दरअसल का प्रयोग कुछ लोग “दरअसल में” की तरह भी करते हैं| इसी 'में' के भीतर छुपा है 'दर' का राज़| संस्कृत में जो 'अन्तर' है जिसमें भीतर का भाव है, वही बरास्ता अवेस्ता, फ़ारसी में 'अन्दर' हो जाता है। पहलवी में सिर्फ़ 'दर' है| यही फ़ारसी में कायम है| इस 'दर' में भीतर का भाव है|दरअसल के ज़रिये हम जो कहना चाहते हैं उसका आशय होता है- "असल में"| इसी तरह दरहकीक़त का भाव हुआ "हकीक़त में"| भारत-ईरानी परिवार में 'त' का का रूपान्तर 'द' में होता है| 'शत' यानी सौ फ़ारसी में 'सद' हो जाता है| तो अन्तर का 'तर' ही यहाँ 'दर' हो रहा है| अन्दर के अर्थ में जो भीतर शब्द है वह भी अभि+अन्तर से बने अभ्यन्तर > अभंतर > भीतर से आ रहा है| जॉन प्लैट्स भी इसी अन्तर से 'दर' की व्युत्पत्ति बताते हैं|
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3 कमेंट्स:

Asha Joglekar said...

दरवाज़ा भी तो हमें अंदर ही ले जाता है। हमेशा की तरह जानकारी देता आलेख।

Mansoor ali Hashmi said...

(दरअस्ल = वास्तव में)
पहचान 'वास्तव में' हुई जबकि दर खुला
'शब्दों' की गाड़ी आगे बढ़ी, लो 'सफर' खुला
अंतर में था निहित, वही उपलब्ध 'दर' पे आज
शब्दों का फिर ख़ज़ाना - ए- वडनेरकर खुला.
http://mansooralihashmi.blogspot.in

राजेन्द्र मालवीय said...

वह आदमी बहुत घाघ है। उससे सोच समझ कर बात करना।

घाघ — इस शब्द का मूल अर्थ तलाशते हुए आप तक पंहुचा। इस शब्द के संबंध में मेरा विचार यह है कि यह शब्द घाघ और भड्डरी की कहावतों के आधार पर निकला है। घाघ ने अपने समय में प्रकृति के संबंध में कई कहावतें रचीं और अपने अवलोकन और निष्कर्षों के आधार पर जन सामान्य के लिए परिवेश और प्रकृति के संबंध में कुछ सामान्य निमय स्थापित किए। उसके द्वारा प्र​चलित कहावतें लोक में आज भी चर्चित और उपयोग में लाई जाती हैं।

आज के दौर में यह शब्द एक विशेषण बन गया है। जिसका अर्थ यह लगाया जाता है कि ऐसा व्यक्ति जिसने घाट घाट का पानी पिया है और जिसे मूर्ख बनाया जाना बहुत कठिन है। आपकी ओर से इस शब्द के बारे में और अधिक जानने को मिलेगा। इसी उम्मीद के साथ...!

राजेन्द्र मालवीय, भोपाल

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