Wednesday, September 24, 2014

||दुर्गम है 'रण' युद्ध नहीं||



क्सर लोग ‘कच्छ के रण’ को ‘रणक्षेत्र’ वाले ‘रण’ से जोड़ कर देखते हैं। आजकल अंग्रेजी Rann की तर्ज पर रन भी कहा जाने लगा है। दो सवाल उठते हैं । क्या कच्छ का ‘रण’, मैदाने-जंग है ? क्या ‘रण’ के अंग्रेजी हिज्जे Rann लिखना वाजिब है ? रण को अगर रोमन में फोनेटिकली लिखा जाए तो Raṇa लिखा जाएगा न कि Rann. दरअसल रण की अंग्रेजी वर्तनी Rann तब से चलन में है जब अंग्रेज गुजराती के ‘रण्ण’ से परिचित हुए जिसका प्रचलित रूप ‘रण’ है और जिसका वैदिक समरूप अरण्य है| हिन्दी में तत्सम शब्दावली वाला ‘रण’ है जिसका अर्थ है युद्ध, लड़ाई, जंग। गुजराती के ‘रण’ में क्षेत्र या इलाके का भाव है और इस ‘रण’ का हिन्दी के ‘रण’ से कोई साम्य नहीं और हिन्दी में इसकी गुज़र-बसर भी नहीं। कच्छ के रण से आशय अगम, कठिन, बीहड़ क्षेत्र है जहाँ गुज़र मुश्किल हो।

कच्छ का रण दरअसल खारे पानी का दलदली बीहड़ इलाका है। साल का आधा वक्त यहाँ नमी रहती है। गर्मियों में दलदल सूखने पर नमक की सफेद परत ज़मीन को अलग रूप देती है। यही बात इस जगह को भौगोलिक तौर पर विशिष्ट बनाती है और इसी वजह से यहाँ सैलानियों की आवाजाही बढ़ गई है वरना यह इलाका वीरान है। गुजराती में ‘रण’ का विकास प्राकृत ‘रण्ण’ से हुआ है। रॉल्फ़ लिली टर्नर भारोपीय भाषाओँ के तुलनात्मक कोश में ‘रण्ण’ के ही समान ‘अरण्ण’ को भी प्राकृत रूप बताते हैं। पुरानी गुजराती में इसका ‘रण्ण’ रूप सुरक्षित रहा मगर बोलचाल में ‘रण’ उच्चार चलता रहा। यही ‘रण्ण’ अंग्रेजी में Rann हुआ। ‘रण्ण’ का संस्कृत या वैदिकी में समरूप ‘अरण्य’ है । ‘रण्ण’ का ही अगला रूप है ‘रान’ जिसका अर्थ आमतौर पर जंगल या वन होता है किन्तु इसमें निर्जन, सुनसान, विजन, एकाकी, निविड़, उजाड़, एकान्त, जनशून्य, दूरस्थ, बीहड़, मरुस्थल, बंजर, ऊसर, बाहरी, शान्त, तन्हा, अकेला जैसे अनेक आशय समाए हैं। पाली में यह ‘रन्न’ हो जाता है।

‘अरण्ण’ का अगला रूप ‘अरण’ भी होता है। ‘अरण’ यानी निबिड-निगम क्षेत्र। ‘अरण्ण’ से जैसे ‘रण्ण’ बनता है वैसे ही ‘अरण’ से ‘रण’ बनता है। अर्थ वही-निर्जन, बीहड़ क्षेत्र। गुजराती के भगवद्गोमंडल विश्वकोश में भी ‘रण’ (રણ) और ‘रण्ण’ (રણ્ણ) दोनों प्रविष्टियाँ दी हुई हैं। इसी तरह गुजराती, मराठी का ‘रान’ शब्द भी ‘अरण्य’ से ही बना है। मराठी-गुजराती पर एक दूसरे का असर है इसीलिए मराठी में भी ‘रण’ का वही अर्थ है जो गुजराती ‘रण’ का है। कृपा कुलकर्णी के मराठी व्युत्पत्ति कोश में इसका विकास आरण्यक > आरण्यम् > अरण्णम > अरण्ण > रण्ण > रान यानी जंगल, निर्जन, बीहड़ एकान्त आदि से बताया गया है। हिन्दी में ‘रण’ या ‘रान’ जैसे शब्द नहीं हैं। मालवी में जंगली विशेषण की तरह से ‘अरना’ या ‘अरण’ शब्द चलता है जैसे अरण ककड़ी’ या ‘अरना भैंसा’।

ऋग्वेद में ‘अरण्य’ का प्रयोग गाँव, कस्बे से इतर किसी भी दूरस्थ प्रान्त के अर्थ में भी हुआ है। रेगिस्तान या मरुस्थल के लिए भी ‘अरण्य’ का प्रयोग हुआ है। वैदिक संहिताओं में इसका ‘इरण्य’ या ‘इरण’ रूप भी दिखता है जिसमें लवणीय या बंजर भूमि का भाव है। टर्नर और मोनियर विलियम्स के कोश में इसके हवाले हैं। ‘इरण्य’, ‘अरण्य’, ‘अरण्ण’, ‘अरण’, ‘रण’, ‘रान’ जैसे तमाम शब्दरूपों के अर्थ जंगल, वन के साथ साथ निर्जन, बीहड़, एकान्त, मरुस्थल, दुर्गम स्थल आदि हैं। मूल मूल बात दुर्गमता में निहित है। जहाँ मनुष्य का जाना कठिन हो। यह कठिनाई भौगोलिक कारण से भी हो सकती है और भय से भी। जंगल में वनचर रहते हैं जिनसे भय होना स्वाभाविक है और इसीलिए वहाँ नहीं जाया जा सकता। ‘मरु’ का अर्थ भी रेतीला मैदान भी है और अगम बीहड़ भी है। जिस कच्छ के संदर्भ में ‘रण’ शब्द पर चर्चा चल रही है, गौर करें संस्कृत में उसी कच्छ के लिए ‘मरुकच्छ’ शब्द है जिसका आशय है कच्छ का मरुक्षेत्र अथवा दुर्गम कच्छ।

अरण्य का विकास देवनागरी के ‘ऋ’ वर्ण से हुआ है। जिसका अर्थ है जाना, पाना। जाहिर है किसी मार्ग पर चलकर कुछ पाने का भाव इसमें समाहित है। इसी तरह ‘र’ वर्ण के मायने गति या वेग से चलना है जाहिर है मार्ग या राह का अर्थ भी इसमें छुपा है। पाणिनि धातुपाठ के अनुसार ‘ऋण्’ धातु में गति, जाने का भाव है। ‘अ-रण्य’ से मूलतः अगम्य का बोध होता है। ‘अरण्य’ यानी वह स्थान जो दुर्गम हो। जहाँ जाया न जा सके।

हिन्दी-संस्कृत के जाने-पहचाने ‘ऋषि’ शब्द देखें तो भी इस ‘ऋ’ की महिमा साफ समझ में आती है। ‘ऋष्’ धातु में ‘ऋ’ की महिमा देखिए। इसका मतलब है जाना-पहुँचाना। इसी से बना है ऋषिः जिसका शाब्दिक अर्थ तो हुआ ज्ञानी, महात्मा, मुनि इत्यादि मगर मूलार्थ है सही राह पर ले जाने वाला। ऋषि वह है जिसने अपने भीतर ईश्वर प्राप्ति की राह खोज ली है। ‘राह’ या ‘रास्ता’ जैसे शब्द वैसे तो उर्दू-फारसी के जरिये हिन्दी में आए हैं मगर इनका रिश्ता भी ‘ऋ’ से ही है। फारसी में ‘रास’ के मायने होते हैं पथ, मार्ग। इसी तरह ‘रस्त:’ या राह का अर्थ भी पथ या रास्ता के साथ साथ ढंग, तरीका, युक्ति भी है। कुल मिलाकर गुजराती ‘रण’ का हिन्दी के ‘रण’ से कोई साम्य नहीं। कच्छ के रण से आशय अगम, कठिन, बीहड़ क्षेत्र है जहाँ गुज़र मुश्किल हो। रेगिस्तान में, दलदल में, जंगल में गुज़र-बसर मुश्किल ही होती है।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें


6 कमेंट्स:

प्रतिभा सक्सेना said...

इन समान लगते-से शब्दों के विषय में जो भ्रम लोगों को अक्सर हो जाते थे ,आपके विस्तृत विवेचन से स्पष्ट हो गए -आभार !

Mansoor ali Hashmi said...

'रण' छौड़ एक लाल जब दिल्ली में आ गया,
कुछ लोग तो दुखी हुए, पर कुछ (Kutch) को भा गया !
गर आधुनिक 'ऋषि' को ये 'राह' 'रास' आ गयी,
'मंगल' (?) की कसम, धरती पे, फिर वह तो छा गया !
http://mansooralihashmi.blogspot.in

Suresh said...

गुजराती में एक शब्द होता है "रणछोड़ " यह शब्द भगवान व् श्री कृष्णा के लिए भी उपयोग होता है .भगवान रण छोड़ कर भागने वाले तो नहीं हो सकते
इस शब्द पर आप कुछ रिसर्च करेंगे.धन्यवाद.

Mansoor ali Hashmi said...

रण' छौड़ एक लाल जब दिल्ली में आ गया,
कुछ लोग तो दुखी हुए, पर कुछ (Kutch) को भा गया !
गर आधुनिक 'ऋषि' को ये 'राह' 'रास' आ गयी,
'मंगल' (?) की कसम, धरती पे, फिर वह तो छा गया !
http://mansooralihashmi.blogspot.in

Baljit Basi said...

@सुरेश मंडन कृष्ण का जरासंध और कालयमन से भाग जाने के कारण भगवान रण छोड़ नाम पड़ा द्वारिका में "रणछोड़" का प्रसिॱध मंदिर है. बलजीत बासी

Anonymous said...

@सुरेश मंडन कृष्ण का जरासंध और कालयमन से भाग जाने के कारण भगवान रण छोड़ नाम पड़ा द्वारिका में "रणछोड़" का प्रसिॱध मंदिर है. बलजीत बासी

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin