Friday, May 15, 2009

पीर-पादरी से परम-पिता तक [संत-14]

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फारसी में पीर शब्द का बहुत महत्व है। इसके कई मायने हैं जो इसे महत्वपूर्ण बनाते हैं जैसे बुजुर्ग व्यक्ति, संत-महात्मा, धर्मोपदेशक, पंथ-प्रमुख, धार्मिक नेता, किसी पंथ का संस्थापक-पुरोधा, आध्यात्मिक शक्ति रखनेवाला व्यक्ति वगैरह।
दे वनागरी के वर्ण में देखभाल, पालन-पोषण संबंधी भाव हैं। ये भाव वरिष्ठता, जिम्मेदारी और मार्गदर्शन से संबंधित हैं। फारसी का पीर शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित है। आमतौर पर पीर का मतलब होता है महात्मा, धर्मात्मा, वरिष्ठ, प्रमुख आदि। हिन्दी के गुरू शब्द में भी यही सारे भाव समाए हैं। जिस तरह से गुरु शब्द की अवनति हुई और ज्यादा होशियारी दिखानेवाले व्यक्ति को भी चालाक और धूर्त के अर्थ में गुरू की संज्ञा दी जाने लगी है वही हाल पीर का भी हुआ है।
पीर शब्द की व्युत्पत्ति संदिग्ध है। पीर में निहित भावों के आधार पर मेरा अनुमान संस्कृत के परम और पितृ शब्द से इसकी रिश्तेदारी पर आकार टिकता था क्योंकि सर्वोच्च और सम्मान जैसे भाव इन शब्दों से जुड़े है जो पीर से जुड़ते हैं। जॉन प्लैट्स की डिक्शनरी में इस अनुमान की पुष्टि होती है जिसमें फारसी मूल के इस शब्द के पितृ से पैदा होने की संभावना बताई गई है। यह प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है- pa-t-er जिससे यूरोपीय भाषाओं में भी पितृवाची शब्द बने हैं। अंग्रेजी मे इसका रूप फादर father होता है। प्राचीन ग्रीक मे यह पेटर या पेत्रोस patros के रूप में मौजूद है। पुर्तगाली और स्पेनिश में इसका रूप पेड्रे padre होता है। इन सभी शब्दों का अर्थ पिता, बुजुर्ग या संत होता है। ईसाई चर्च के प्रमुख धर्मोपदेशक या पुजारी को सामान्यतः पादरी कहा जाता है। यह फारसी उर्दू हिन्दी में प्रचलित है और padre का ही रूपांतर है। पेट्रन शब्द भी इसी मूल का है। मध्यकाल में इसका अर्थ था प्रभु, मालिक। इसमें संरक्षक या पालनहार का ही भाव प्रमुख है और अब इसी रूप में प्रयोग होता है। यूरोपीय सेनाओं में मिलिटरी चैप्लिन का पद होता है। इस पद पर पादरी की नियुक्ति होती है जो सैनिकों का मनोबल बनाए रखने के लिए उन्हें प्रवचन देता है ताकि जीवन के प्रति उनकी आस्था प्रबल रहे। स्पेनी और पुर्तगाली नौसेनाओं में इसे पेड्रो कहा जाता था। अंग्रेजी के पीटर और पैट्रिक जैसे नाम भी इसी मूल के हैं। पोप का मतलब भी पिता होता है और पापा तो सर्वव्यापी शब्द है पिता के लिए।
संस्कृत पितृ का फारसी पिसर भी है और पिदर भी। पुरानी फारसी में इसका पियर piyar रूप भी है जिसमें वर्ण का लोप होकर ध्वनि शेष रही। इसका रूपांतर पीर के रूप में हुआ। फारसी में पीर शब्द का बहुत महत्व है। इसके कई मायने हैं जो इसे महत्वपूर्ण बनाते हैं जैसे बुजुर्ग व्यक्ति, संत-महात्मा, धर्मोपदेशक, पंथ-प्रमुख, धार्मिक नेता, किसी पंथ का संस्थापक-पुरोधा, आध्यात्मिक शक्ति रखनेवाला व्यक्ति वगैरह। जाहिर है पीर का दर्जा इस्लाम धर्म के माननेवालों में बहुत ऊंचा होता है। फारसी से यह शब्द अरबी में भी गया। पंथ

... बरमक भारत के पश्चिमोत्तर खुरासान प्रांत के मूल निवासी थे और इस्लाम के जन्म से पहले वे लोग सदियों से इसकी क्षेत्र में रहकर बौद्ध संघों की देख रेख करते थे और मठो-विहारों के अधिष्ठाता भी थे। ... 252-10492~Buddhist-Monk-Kneeling-in-Prayer-at-the-Feet-of-a-Statue-of-the-Standing-Buddha-Thailand-Posters

प्रमुख के पुत्र को पीरजादा कहा जाता है।
की महिमा परम शब्द में भी झलकती है जिसका अर्थ होता है सर्वोच्च, सम्मानित, पालनहार, प्रभु, ईश्वर, महान, बड़ा आदि। प्रमुख भी इसी कड़ी का शब्द है। बौद्ध धर्म के जरिये यह शब्द हिन्दुकुश को लांघ कर खुरासान तक पहुंचा। अरब में बरमक तबका होता है जिन्हें बरमकी कहा जाता है। इन बरमकों की अब्बासियों के शासनकाल में काफी उन्नति हुई और प्रशासन के सर्वोच्च पद वज़ीरेआला तक ये पहुंचे। बरमक कुल के लोग मूल रूप से ईरान के सम्मानित और शासक वर्ग से सम्बद्ध रहे थे। इस क्षेत्र में ये काफी प्रभावशाली थे इसीलिए बरमकियों की पहचान संभ्रान्त-कुलीन के तौर पर है। गौरतलब है कि बरमक भारत के पश्चिमोत्तर खुरासान प्रांत के मूल निवासी थे और इस्लाम के जन्म से पहले वे लोग सदियों से इसकी क्षेत्र में रहकर बौद्ध संघों की देख रेख करते थे और मठो-विहारों के अधिष्ठाता भी थे। बुखारा किसी ज़माने में सिल्क मार्ग का प्रसिद्ध नगर था और विहार के नाम से जाना जाता था। यही बिगड़ कर बहार हुआ और फिर बुखारा बना। इसके बाद भी इस क्षेत्र में कई बौद्ध संघाराम बने और यह स्थान नवविहार कहलाया जो आज उज्बेकिस्तान का प्रसिद्ध पुरातत्वस्थल है जिसे नौबहार कहा जाता है। इसी तरह बल्ख जिसे प्राचीन काल में वाह्लीक कहा जाता था, किसी ज़माने में बौद्धधर्म का बड़ा केंद्र था। इन्हीं बरमकों की देखरेख में यहां बौद्धधर्म पनपा। यह शब्द संस्कृत के प्रमुख शब्द से बना है जिसका स्थानीय रूप परमुखिया हुआ फिर यह बरमख होते हुए बरमक बना।
प्रमुख से बरमक की व्युत्पत्ति मोटे तौर पर सही हो सकती है पर यह तार्किक नहीं है। प्रमुख शब्द बना है प्र+मुख से। इसमें मुखिया या सर्वोच्च का भाव तो है किंतु परम की महिमा से यह दूर है। बरमक शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द पारमिक से ज्यादा तार्किक लगती है जिसमें सर्वोपरि, प्रधान, परम या सर्वोत्तम का भाव है। अरबों पर ईरानी संस्कृति की गहरी छाप रही। किसी ज़माने के विशाल पार्थियन साम्राज्य में अरब का बड़ा हिस्सा शामिल था। अब्बासियों के शासनकाल में सातवीं सदी में बग़दाद राजधानी बनी। वहां ईरानी विद्वानों की भरमार थी। प्राच्य भारतीय संस्कृति के विद्वान श्रीकृष्ण वेंकटेश पुणताम्बेकर के मुताबिक अरबों का दर्शन वस्तुतः ईरान की ही देन है जिसकी जड़ें भारतीय ज्ञान की उर्वर धरा में थीं। बरमकों के ज्ञान और समृद्धि से अरब के ख़लीफा प्रभावित थे। खुरासान के गवर्नर खुतेबा के शासनकाल में 704 से 715 के दर्म्यान बल्ख-बुखारा के बौद्धविहारों को ढहाया गया जिनका प्रधानभिक्षु बरमक ही होता था। पारमिकों ने भी संभवतः अपने प्रभाव को सुरक्षित रखने के लिए संभवतः इस्लाम के शुरुआती दौर में ही उसे अपना लिया होगा। बरमक आज भी अफ़गानिस्तान, ईरान और अरब में कई लोगों की कौटुम्बिक पहचान है। ये लोग कई देशों में व्यापार, इतिहास-संस्कृति, मीडिया तथा अन्य व्यवसायों से जुड़े हुए हैं। अफ़गानिस्तान के मशहूर सिनेमेटोग्राफर है सिद्दीक बरमक जिन्हें ओसामा फिल्म पर 2004 का गोल्डन ग्लोब अवार्ड भी मिला था। 

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17 कमेंट्स:

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ said...

प्राचीन ग्रन्थों को यदि साक्ष्य मानें तो प्राचीन भारत की सीमाएँ चीन सागर से लेकर भूमध्य सागर तक विस्तृत थीं। वैदिक परंपरा के प्रथम विद्रोही जरुथुस्त्र थे। यही कारण है कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में आज भी प्रचुर प्रमाण उपलब्ध होते रहते हैं। संस्कृत पारसियों से होते हुए आज भी उस क्षेत्र में किसी न किसी रुप में विद्यमान है। बाल्टिक देशों में हाल में हुए शोधों से यह बात पुष्ट होती है। पारसियों के बहराम जी (पुरोहित) बरमक या बरमख में झलक रहे हैं। पिसर-पिदर-पियर सभी में जो गुरुता/ बड़ापन दिख रहा है सम्भवतः तमिल का पेरियार( बड़ा) भी उसी परंपरा का है।

संस्कृत के सैकड़ों शब्द लाटिवियन भाषा में लगभग ज्यों के त्यों सहेजे हुए हैः-
abhi-abi-both
agra-agra-early,first
asru-asaru-tears of the eye
bharata-barota-feed,fed,take care of
cathurth-ceturta-fourth.
lexilne.com पर यह जानकारी उपलब्ध है। अजित जी, कृपया अन्यथा न लीजिएगा। ‘शब्दों का सफर’ के माध्यम से ज्ञात सूचनाऎ अधिक लोगों तक पहुँचे यही ध्येय है। कभी-कभी आप के लिखे से प्रॆरणा लेकर ही यह हो जाता है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

पीर , बरमक ..सभी का संबंध स्पष्ट हुआ

Himanshu Pandey said...

’प’ की महिमा जान ली । धन्यवाद ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

प वर्ग पुरुष वाचक और म वर्ग महिला वाचक है। पिता और उस से संबंधित सारी दुनिया के अधिकांश शब्द प वर्ग के और माता से संबंधित अधिकांश शब्द म वर्ग से ही आ रहे हैं। म और प ये दोनों रोटी और पानी के भी प्रतीक हैं और सब से पहले शिशु इन्हें ही बोलना सीखता है।
बहुत सुंदर आलेख।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

अजित जी, आप अपने ब्लॉग की प्रविष्टियों को संकलित कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की सोच रहे हैं कि नहीं?

Udan Tashtari said...

बहुत ज्ञानवर्धन हुआ...बहुत सुंदर आलेख.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख .

अजित वडनेरकर said...

@सुमंत मिश्र
बृहत्तर भारत की भौगोलिक सीमाओं के बारे में आपके बताए स्थानों को पैमाना मानकर चाहे साधिकार कुछ न भी कहा जाए तो भी ठीक इसी आकार में भारत का सांस्कृतिक प्रभाव तो निर्विवाद था। इसके काफी प्रमाण विद्वानों के श्रम से आज उपस्थित हैं। रोमानी,लिथुआनी, लात्वियाई,आर्मीनियाई, ईरानी की कई उप बोलियों की संस्कृत-हिन्दी से सादृश्यता झलकती है क्योंकि ये सभी आर्य भाषा परिवार से निकली भाषाएं हैं और अब प्रचलित वर्गीकरण के अनुसार भारतीय-यूरोपीय भाषा परिवार का हिस्सा हैं।

कात्यायन जी, आपको ऐसा क्यों लगा कि आपके लिखे को मैं अन्यथा लूंगा? मैं भाषा, इतिहास और संस्कृति का जिज्ञासु हूं। जो कुछ जान पा रहा हूं उसे सबसे साझा करने के लिए ही तो शब्दों का सफर है:) ऐसे में आप जैसे विद्वान और सतर्क पाठक का मिलना तो इस सफर का सौभाग्य है।

Science Bloggers Association said...

सटीक विवेचन।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत अच्छा.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

एक प मे देखभाल ,पालन पोषण का भाव है और पापा मे तो दो प है

Abhishek Ojha said...

ये पोस्ट बहुत अच्छी लगी. पितृ और मातृ का सफ़र तो बहुत सी भाषाओँ तक है...

रंजना said...

बहुत बहुत सुन्दर रोचक कड़ी लगी यह....बड़ा ही आनंद आया पढ़कर....
ज्ञान वर्धन हेतु कोटिशः आभार...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अजित जी,
शब्दों के इस सफ़र के साथी
अपने विचारों से इसे अधिक
समृद्ध बना रहे हैं...सबकी जानकारी
तथा अनुभव का लाभ मिल रहा है.
============================
आपका और सबका आभार
डॉ. चन्द्रकुमार जैन

RDS said...

पादरी शब्द के उद्भव और चलन पर कई बार माथापच्ची की थी जिसका समाधान इस आलेख से अनायास ही मिला गया | धन्यवाद् |

आपने लिखा कि रोमानी,लिथुआनी, लात्वियाई,आर्मीनियाई, ईरानी की कई उप बोलियों की संस्कृत-हिन्दी से सादृश्यता झलकती है ; ठीक है | परन्तु एक सहज जिज्ञासा है कि द्रविड़ भाषाओं की उत्तर भारतीय ( आर्य ) भाषाओं से विषमता या दूरी भी प्रतीत होती है | शैली और शब्दविन्यास की द्रष्टि से अगम्यता का बोध होता है | ऐसा क्यों है ?

मेरी अज्ञानता दूर कीजियेगा |

Smart Indian said...

१. पीर के सन्दर्भ में याद आया कि बृहस्पतिवार को कई हिन्दी क्षेत्रों में गुरूवार, पंजाबी में वीरवार और उर्दू में पीरवार भी कहते हैं, क्या बृहस्पति, वीर और पीर में भी कोई सम्बन्ध हो सकता है?

२. दक्षिण की भाषाओं के (कुछ) भेदों का कारण यह भी हो सकता है कि भारतीय भाषायें यूरोपीय भाषाओं के जन्मने से बहुत पहले ही दोफाड़ हो गयी हों.

Suresh Kumar said...

मारवाड़ी में प्रचलित नरहड़ के पीर की भी व्याख्या कीजिए कौन है कब से. मारवाड़ी मेवाड़ या माखर गाँव कहां से आया?

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