चां प्राचीनकाल युक्तियों के लिए कूटनीति जैसा शब्द चला जिसका प्रयोग आमतौर पर राजनीतिक दाव पेच के संदर्भ में होता था जिसने बाद में मुहावरे की शक्ल ले ली। जिसका अर्थ होता है टेढ़ी चाल चलना, छल-प्रपंच रचना, धोखा या झांसा देना, परास्त करने की कोशिश करना आदि। राजनीतिक पपंच को अभिव्यक्त करने के लिए शतरंज की चाल जैसे मुहावरे का इस्तेमाल होता है। शतरंज का खेल सिर्फ हार-जीत का खेल नहीं है। इसके मोहरों की खूबियों में राजनीति के सभी आयाम, समूचा चरित्र उजागर होता है। टेढ़ी चाल भी कूटनीति का ही पर्याय है और यह मुहावरा शतरंज से ही आया है जिसमें ऊंट तिरछा चलता है और घोड़ा ढाई घर चलता है। ये दोनों टेढ़ी चालें मानी जाती है क्योंकि ये शत्रु को धोखो मे रखकर अविश्वसनीय रूप से नुकसान पहुंचाती हैं।
कूटनीति शब्द का जन्म हुआ है संस्कृत की कुट धातु से जिसमें टेढ़ा अब आते हैं कुट् धातु में निहित वक्रता वाले भाव पर। वक्र यानी टेढ़ा। बोलचाल में हम छल प्रपंच करने वाले, बेईमान, चालबाज व्यक्ति को ‘टेढ़ा’ भी कहते हैं। कुट् से बने कुटिल का अर्थ भी यही है –टेढ़ा, चालबाज , छली , प्रपंची, बेईमान आदि। कुट् का ही एक अन्य रूप नज़र आता है कूट में जिसमें भी जटिल, टेढ़ापन , तीक्ष्ण, धारदार आदि भाव छुपे हैं। इसमें यही कुट् या कूट धातुएं झांक रही हैं। कूट में भी वक्रता है। इसका अर्थ है जालसाजी, दांवपेंच, चालाकी, भ्रम , धोखा , छद्म आदि। कूटनीति में यही सब कुछ होता है। राजकाज के संदर्भ में चाणक्य इन बातों में विशारद थे इसीलिए उन्हें कौटिल्य भी कहा गया।
राजनीति के अर्थ में हिन्दी में
पॉलिटिक्स शब्द भी अब ठाठ से इस्तेमाल होता है और इसका इस्तेमाल भी मुहावरे की तरह होता है अर्थात फलां व्यक्ति बहुत पॉलिटिक्स करता है
"मूलतः कुछ प्रभावी व्यक्तियों के समूह द्वारा जनता के बारे में नीतियां बनाने की प्रक्रिया ही पॉलिटिक्स कहलाई और नीतियां बनानेवाले गणमान्य लोग पॉलिटिशियन कहलाए। शब्दों की अवनति का यह उदाहरण है कि नेता, लीडर, पॉलिटिशियन जैसे शब्द गाली से कम नहीं लगते।." |
या संस्थानों संगठनों के संदर्भ में कहा जाता है कि वहां पॉलिटिक्स होती है। साहित्य और शिक्षा संस्थानों के प्रपंच भी पॉलिटिक्स ही कहलाते हैं। ठेठ हिन्दी वाले इसे पाल्टिक्स की तरह उच्चारते हैं। पालिटिक्स बहुत प्राचीन शब्द है और भारोपीय भाषा परिवार का ही है। लैटिन के पॉलिशिया politia शब्द से यह बना है जिसका अर्थ होता है राज्य। प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार में इसके लिए
pel धातु खोजी गई है जिसमें घिरे हुए स्थान का भाव है या परकोटे का भाव है। लैटिन का पॉलिशिया ग्रीक मूल के इसी उच्चारण वाले शब्द की देन है जिसमें राज्य, नागरिक, प्रशासन और नागरिकता जैसे अर्थ भी समाहित थे। मूलतः कुछ प्रभावी व्यक्तियों के समूह द्वारा जनता के बारे में नीतियां बनाने की प्रक्रिया ही पॉलिटिक्स कहलाई और नीतियां बनानेवाले गणमान्य लोग पॉलिटिशियन कहलाए। शब्दों की अवनति का यह उदाहरण है कि नेता, लीडर, पॉलिटिशियन जैसे शब्द गाली से कम नहीं लगते।
ग्रीक में
पॉलिस polis शब्द है जिसका अर्थ होता है शहर या राज्य। प्राचीन ग्रीस में इसी नाम का एक शहर भी था। गौरतलब है कि संस्कृत के पुर, पुरम् जैसे शब्द भी इसी मूल से उपजे हैं जिनमें नगर, आवास, बस्ती, आगार जैसे भाव हैं। प्राचीन ग्रीस के कई शहरों के नामों के साथ पॉलिस लगा होता था। बाद में जहां जहां ग्रीको-रोमन सभ्यता ने पैर जमाए वहां वहां इस नाम के शहर बनते चले गए। मेट्रोपॉलिटन, कास्मोपालिटन, मेगापॉलिस या नेक्रोपॉलिस जैसे सभी शब्द बसाहट से ही सम्बद्ध है और इन्हें हम रोज़ पढ़ते हैं। ईरान, इराक, मिस्र से लेकर सुदूर अमेरिका तक कई शहरों के नामों के साथ
पॉलिस लगा मिलता है जैसे ईरान के शीराज़ शहर के पास बसा
पर्सीपॉलिस जैसा पुरातत्व महत्व का प्राचीन शहर हो या मिस्र का
हेलियोलिस। लीबिया के प्रसिद्ध
त्रिपोली बंदरगाह के नाम के साथ भी यही पॉलिस झांक रहा है। इसी कड़ी में तुर्की का
एड्रियानोपॉलिस भी आता है। ऐसे कई शहर हैं। पुर-पुरम् वाली भारतीय बस्तियों के नाम तो दर्जनो में हैं। इनमें
जयपुर जैसा जगप्रसिद्ध शहर है तो
खिलचीपुर जैसी लगभग अज्ञात बस्ती भी। नाम पर गौर करें तो इतना भर पता चलता है कि संभवतः यह पुरी मुस्लिम खिलजियों के नाम पर बसी होगी।
जाहिर है
पॉलिस शब्द में निहित नगर और नागरिकों की व्यवस्था का
विस्तार प्रशासन शब्द में हुआ। इसमें नीति और न्याय जैसे भाव आए जो
पॉलिसी में झलकते हैं जिसे हिन्दी में नीति कहते हैं। आए दिन सरकारे न जाने कितनी पालिसियां बनाती है। हिन्दी वालों की भी पॉलिसी है कि अंग्रेजी के शब्दों को खूब इस्तेमाल करो और उसे देशी जामा पहना दो लिहाजा पॉलिसी का चालू रूप अब
पाल्सी है। इस मूल से जुड़े सभी शब्दों में समूह, नियम, विधान या क्षेत्र का भाव है। प्राचीनकाल ग्रीको-रोमनकाल में जब प्रशासन तंत्र को सुदृढ़ता प्रदान करनेवाली ऐसी व्यवस्था बनाने की आवश्यकता हुई जो कानूनों पर अमल कराए, तो उसे
पोलिस polic नाम दिया गया। स्थापित राजतंत्र की ओर से स्थापित पॉलिस नाम के समूह या समिति में कई गणमान्य लोग होते थे जो तयशुदा कानूनों के तहत लोगों के आचरण पर ध्यान देते थे, नियमों का पालन करवाते थे। किसी भी किस्म के अवैध कर्म या अन्य अपराधों की निगरानी करते थे। समय के साथ इस समिति ने सरकारी विभाग का रूप लिया और इसका ढांचा फौजी कायदो के अनुरूप बनाया गया। गणमान्य लोगों की समिति
पुलिस फोर्स बन गई जिसे भारत में
पुलिस कहते हैं।
पूर्वी भारत में अवधी, भोजपुरी भाषा-भाषी क्षेत्रों में पाखानों के लिए बम्पुलिस ( बम पुलिस )शब्द खूब प्रचलित है। इसके साथ पुलिस शब्द इतनी स्पष्टता से जुड़ा है कि यह भी इसी मूल का जान पड़ता है। डॉ भोलानाथ तिवारी ने इसकी दिलचस्प व्युत्पत्ति बताई है। यह ईस्ट इंडिया कंपनी के ज़माने का भाषाई विकास है। तब अपने कब्जेवाले इलाकों पर नियंत्रण के लिए कंपनी बहादुर ने एक चलताऊ फौजी ढांचा बनाया था जिसमें विलायत से निपट गंवार, असभ्य और सज़ायाफ्ता अंग्रेज ही रंगरूट के स्तर पर भर्ती हुए। ये अपने स्तर के मुताबिक फौजी कायदों वाले सामूहिक पाखानों को बम-प्लेस (bomb place) यानी बम फूटने जैसे आवाज वाली जगह, कहा करते थे। जाहिर है यह उनकी हंसी-ठिठोली का स्तर था। समाज में अश्लील मजा़क जल्दी प्रसारित होते हैं। सिपाहियों के बीच से यह शब्द जन साधारण में भी पहुंचा। मगर अंग्रेजी न जाननेवाले समाज ने इसे ध्वनिसाम्य के आधार पर बम-पुलिस कहा। हकीकत चाहे जो हो, मगर देशी लोगों नें भी एक नया शब्द बनाकर अंग्रेजों की ठिठोली और भारतीय मानस में पुलिस की एक खास पहचान बना दी।
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14 कमेंट्स:
पुनश्च जानकारी में श्री वृद्धि के लिए सादर आभार व धन्यवाद!!
हमारे ’मुक्तिबोध” भी पॉलिटिक्स शब्द का यूँ ही ठाठ से इस्तेमाल करते थे ।
सुन्दर प्रविष्टि । आभार ।
सामान्य लोग कूटनीति को ही पोलिटिक्स कहते हैं।
शब्द निर्माण का काम जनता सतत करती रहती है। गाँव में क्रेन को सहज ही कर्ण कह दिया जाता है और वह प्रचलित हो जाता है।
हमारे यहाँ एक शब्द है बगाग्यो। प्रयोग- बैल बगाग्यो!
यानी बैल की गुदा मे बग्गी नाम का कीड़ा घुस जाने से उत्पन्न रोग हो गया है। सारे शब्दों का निर्माण परिस्थतियों के अनुकूल जनता ही करती है।
हमारे पुश्तैनी घर के पास भी बम-पुलिस था. दादाजी कहते थे तो हम बच्चे हंसा करते थे कि ही ही!! बम-पुलिस !!!
सही विश्लेषण .
अब पोलटिक्स का मतलब है - अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता
शोध अत्यंत गहन एवं वंदनीय है | खजाने में वृद्धि करते रहने के लिए कैसे शुक्रिया कहें ? उदारता के लिए साधुवाद |
इस आलेख से ज्ञान में अभिवृद्धि के साथ साथ दो प्रश्न पैदा हुए :
(१) आलेख वक्रता को कूट का पर्याय बताता है | अधिकतर 'कूट' शब्द गुप्त एवं छद्म शब्दावली के लिए (code words के रूप में ) प्रयोग किया जाता रहा है | तो कूट का मूल आखिर है क्या ? वक्रता या छद्मता ? और फिर कूट परीक्षण में प्रयुक्त 'कूट' क्या है ?
(२) आलेख के अनुसार पुर / पुरी मुस्लिम खिलजियों के नाम से शुरू हुई संभावित है | परन्तु भारतीय पौराणिक ग्रंथों में पुरम / पुर / पुरी शब्द का उल्लेख बहुतायत में मिलता है और ये ग्रन्थ मुस्लिम पंथ के उदय व आगमन के पूर्व से ही प्रादुर्भाव में हैं |सच क्या है ?
या मेरी उक्त शंकाएं निर्मूल हैं ?
ईश्वर करे वह दिन जल्दी आये जब राजनीति श्रापमुक्त और स्वच्छ ओढ़ना ओढे !! नेता त्यागी हों | पसीने और मिट्टी की गंध जानते हों | पसीने और मिट्टी को हक और महत्व दिलाना जानते हों |
ईश्वर करे वह दिन जल्दी आये जब राजनेता के आने पर हमारे दिल में झरने बह पड़ें ; प्रेम के, आदर के, सत्कार के, सदभाव के ... बिना किसी प्रपंच के, नैसर्गिक ...
ईश्वर करे वह दिन जल्दी आये |
शतरंज की सब चाल, वक्रता जिनमें रमी हुई हैं।
राजनीति जंजाल, कुटिलता जिनमें जमी हुई हैं।।
@RD1)रमेंश भाई, खिलचीपुर का खिलजियों से संबंध मेरा अनुमान है। यह तथ्य नहीं है। पुर की प्राचीनता खिलजी शब्द के साथ जुड़ने में कहां बाधक है? सभी वे नाम जिनके साथ पुर जुड़ा है, अत्यधिक प्राचीन हैं ऐसा कतई नहीं हैं। उदाहरण के लिए जयपुर को ही लीजिए। महज़ कुछ सदी पुराना शहर है। अलबत्ता मुस्लिम नामों के साथ 'आबाद'लगाने की परंपरा रही है।
2)कोड वर्ड के अर्थ में कूट भी इसी मूल का है। मूलतः कुट् में वक्रता का ही भाव है जो आश्रय से जुड़ता है। आश्रय यानी आवरण। कुट् का अगला विकास है कूट जिसमें स्थायित्व, छल, छद्म, जालसाजी जैसे भाव जुड़ते हैं। ये सभी टेढ़ी राहे हैं। बिना टेढ़ा वक्री हुए ये प्रयोजन सिद्ध नहीं होते। कूटनीति में कूट की वक्रता प्रभावी है। कूट परीक्षणवाला कूट भी इसी मूल का है। झूठ की पड़ताल, जालसाजी का परीक्षण, बारीकी से जांच जैसे अर्थ स्पष्ट हैं। कुट् की वक्रता मूलतः शहतीरों, मेहराबों से संबंधित है जो भवन निर्माण के मुख्य आधार होते हैं। 160 डिग्री पर मुड़ी दो भुजाएं, जिनपर छत डाली जाती है। आश्रय का प्राचीनतम रूप है छप्पर जो टहनियों को मोड़कर, उसपर पत्ते बिछाकर बनाया जाता है।
रोचक शब्द यात्रा को पर्याप्त मनोरंजक भी बना दिया आपने......इतने प्रचलित शब्द पुलिस के व्युत्पत्ति के बारे में जानना बड़ा ही अच्छा लगा....
आभार आपका.
आख़िर जुड़ ही गए पुलिस और बमपुलिस आपस में! :)
सच कहा आपने
अवमूल्यन तो हुआ ही है.
लेकिन पॉलिटिक्स अहम हिस्सा है जिंदगी का,
इससे इनकार संभव नहीं....और हिमांशु जी,
अपने मुक्तिबोध जो कहा करते थे न
पार्टनर अपनी पोलिटिक्स तय करो
वह लेखन की रीत-नीत और
विचारधारा से जुडी बात है.
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बढ़िया पोस्ट....आभार.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
वैसे खिलचीपुर इतना अनजान भी नहीं।
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