... राजनीति जोड़-तोड़ और सत्ता हासिल करने का माध्यम नहीं बल्कि राज्य के संचालन का शिष्ट तरीका है। लोग अब कूटनीति को राजनीति कहने लगे हैं और राजनीति आदर्शों में कैद हो गई है...
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... राजनीति जोड़-तोड़ और सत्ता हासिल करने का माध्यम नहीं बल्कि राज्य के संचालन का शिष्ट तरीका है। लोग अब कूटनीति को राजनीति कहने लगे हैं और राजनीति आदर्शों में कैद हो गई है...
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:22 AM लेबल: government
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
19 कमेंट्स:
क्या खूब बात है, साईस से सियासत का संबंध। आज तक ध्यान ही नहीं गया। अब तो लगता है कि पार्लियामेंट भी एक घुड़साल की तरह है। जिसे संभालने का काम कोई बेहतर साईस ही कर सकता है।
सियासत का सफर बहुत ज्ञानवर्धक रहा!! आभार. दिनेश जी ख्याल मस्त सवारी पर निकला है. :)
सईस सिर्फ घोड़े सँभालता है. गधों और अन्य पशुओं के बारे उसकी कोई expertise नहीं होती.
प्रणाम |
मध्यपूर्वी फरास (घोडे) की सियासत तक बहुत दुरूह यात्रा रही | सर्वथा अकल्पनीय सी |
धातु से उपजा 'राज्य' का मूल शब्द 'ऋज' उत्कृष्टता की दृष्टि से अनुकरणीय तथा प्रचारयोग्य लगा | राजा / राजनीति की चर्चा करते समय 'ऋज' का मूल भाव सदा विचार का केंद्र बिंदु होना चाहिए ताकि उत्कृष्टता पुनः लौटे |
इसी प्रकार यह निष्पत्ति कि 'नेता वह जो सबकुछ सम्यक देखे और समाज को आगे ले जाए, उसका संचालन करे' बड़ी महत्वपूर्ण है | नेता शब्द का श्रापमुक्त होना अनिवार्य होना अनिवार्य हो गया है और इसे नेता ही कर सकते है |
- RDS
प्रणाम |
मध्यपूर्वी फरास (घोडे) की सियासत तक बहुत दुरूह यात्रा रही | सर्वथा अकल्पनीय सी |
धातु से उपजा 'राज्य' का मूल शब्द 'ऋज' उत्कृष्टता की दृष्टि से अनुकरणीय तथा प्रचारयोग्य लगा | राजा / राजनीति की चर्चा करते समय 'ऋज' का मूल भाव सदा विचार का केंद्र बिंदु होना चाहिए ताकि उत्कृष्टता पुनः लौटे |
इसी प्रकार यह निष्पत्ति कि 'नेता वह जो सबकुछ सम्यक देखे और समाज को आगे ले जाए, उसका संचालन करे' बड़ी महत्वपूर्ण है | नेता शब्द का श्रापमुक्त होना अनिवार्य हो गया है और इसे नेता ही कर सकते है |
- RDS
सच है, कितना अद्भुत है यह शब्दों का सफर !
अब तो अपने यहां साईस शब्द भी यदा-कदा ही सुनने को मिलता है... :)
वैज्ञानिक और सभी ज्योतिषी,
घोड़ों से मजबूर हो गये।
गधों और ऊँटों के सारे सपने,
चकनाचूर हो गये।।
माया का लालच भी जन, गण, मन को,
कोई रास न आया।
लालू-पासवान के जादू ने,
कुछ भी नही असर दिखाया।।
जिसने जूता खाया, उसको,
हार,-हार का हार मिला है।
पाँच साल तक घर रहने का,
बदले में उपहार मिला है।।
लोकतन्त्र के महासमर में,
असरदार सरदार हुआ है।
ई.वी.एम. के भवसागर में,
फिर से बेड़ा पार हुआ है।।
सियासत शब्द का यह विवेचन ज्ञानवर्धक रहा..
आभार.
सर जी ,
नमस्कार, ये सभी जानकारी बहुत अच्छी लगी.
धन्यवाद,
मयूर
एक और प्रश्न पूछना चाहता हूँ , सियासत करने वाले को क्या सियास कहते हैं , मैंने सियासतदान शब्द भी सुना है ,
बहुत धन्यवाद,
मयूर
सियासत के घोडे पर सवारी करना चाहता हूँ साईस की जरूरत है
अजित जी,
सही समय पर सही पोस्ट !
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अब सियासत और तिज़ारत के
प्रगाढ़ संबंधों पर कोई संदेह नहीं रहा.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
अस्तबल तो बन गया। साईस कौन है?
सियासत का सफर भाया
अपने यहाँ जो फर्रास शब्द है वह कैसे आया है?
अपने यहाँ जो फर्रास शब्द है वो कहाँ से आया है?
@शरद कोकास
शरद भाई,
सही शब्द फ़र्राश है जिसके जिम्मे बिछायतदारी का काम है। किसी ज़माने में यह सरकारी कर्मचारी होता था जिसके जिम्मे महफिलों के मौकों पर फ़र्श बिछाने का काम होता था। यह फर्श से बना है।
विस्तार से फिर कभी।
साईस लगाम कस के रखे ..
तभी सवारी डगमगायेगी नहीँ
' शब्दोँ का सफर'
आज फिर
एक नये सफर पर ले चला है
स स्नेह,
- लावण्या
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