कि सी चीज़ के अत्यंत छोटे आकार की तुलना अक्सर चींटी से की जाती है। यही नहीं, कम हैसियत को भी चींटी की लघुता से आंकने का प्रचलन रहा है। कमरफ्तारी को भी चींटी की गति से आंका जाता है। जीव जगत में रोज़ नज़र आने वाले लघुतम प्राणियों में चींटी प्रमुख है क्योंकि इसका इन्सान के साथ साहचर्य है और इसीलिए इन्सान का मिथ्या गर्वबोध हमेशा चींटी की तरह मसलने वाले मुहावरे में झलकता है। यह इन्सान की फितरह है कि वह हमेशा सहचरों का ही विनाश करता है, अनिष्ट सोचता है। क्या इसीलिए तो सृष्टि में अकेला नहीं है?
चींटी की व्युत्पत्ति संस्कृत की
चुण्ट् धातु से हुई है इसी धातु से हिन्दी के कई अन्य शब्द भी जन्मे हैं। दिलचस्प यह कि इसमें कहीं भी सूक्ष्मता या लघुता का भाव नहीं है। चुण्ट् धातु का अर्थ होता है खींचना, सताना, कष्ट देना, दबाना, नोचना, खरोचना आदि।
चुण्टिका से ही बना है
... प्रेमचंद की ईदगाह कहानी में चिमटे की महिमा का खूब बखान हुआ है...
चींटी शब्द। चींटी के अग्र भाग में सूई की नोक की तरह तीक्ष्ण स्पर्शक होते हैं जिन्हें चुभाकर यह पौधों और जीवों से आहार ग्रहण करती है। इसके स्पर्शकों की तेज चुभन को ही हम चींटी का काटना कहते हैं। शरीर की
एक ही मुद्रा लगातार बनी रहने पर अक्सर उस हिस्से में रक्त प्रवाह रुक जाता है और इसका बोध होने पर उस हिस्से में संवेदना शून्य हो जाती है। जब रक्त प्रवाह फिर शुरू होता है तो रक्त प्रवाह की तेजी से उस हिस्से में चींटी के हजारों हल्के दंश जैसी पीड़ा महसूस होती है। आमतौर पर इस अनुभूति को
चींटी चढ़ना या
चींटी आना भी कहा जाता है। बड़े आकार की चींटी को
चींटा कहा जाता है।
चींटी के काटने के अंदाज़ को ही
चिमटी, चिकोटी लेना या
चिमटी भरना कहा जाता है। पश्चिमी संभ्यता में
न्यू पिंच का शिष्टाचार भी होता है, जिसका चलन हिन्दुस्तान में भी है। यह शब्द भी चुण्ट् से ही बना है। लोहे की दो समानान्तर भुजाओं वाला एक उपकरण जो ज्यादातर रसोईघर में चूल्हे से रोटी उतारने के काम आता है, चिमटा कहलाता है। चिमटी की क्रिया पर गौर करें। दो अंगुलियों से त्वचा पकड़ कर खीचने को चिमटी भरना या चिमटी लेना कहते हैं।
चिमटा भी यही काम करता है। विरक्त या वीतरागी भाव के लिए भी
चिमटा बजाना एक मुहावरा है। कभी कभी निठल्लो के लिए भी यह इस्तेमाल होता है। चिमटा यूं घोषित वाद्ययंत्र नहीं है पर लोकसंगीत में चिमटे का प्रयोग होता है। बजानेवाला
चिमटा आकार में काफी बड़ा और भारी होता है। इसके सिरे पर एक कुंदा लगा होता है। दोनो भुजाओं को खड़ताल की तरह से एक दूसरे से टकराकर ध्वनि पैदा की जाती है। यह काम एक हाथ करता है और दूसरा हाथ कुंदे को बजाता है। मूलतः यह तालवाद्य की तरह काम करता है। इसे साधु-फकीर-कलंदर भी अपने साथ रखते हैं और गाते हुए इसे बजाते हैं। रुढ़ी और अंधविश्वास के दाग भी चिमटेने ही लगाए हैं। देहात में रोगग्रस्त को अक्सर प्रेतबाधा ग्रस्त बता कर
दागने की परम्परा है। यह दाग आग में तपाए हुए चिमटे से ही लगाया जाता है।
प्रेमचंद ने अपनी प्रसिद्ध कहानी
ईदगाह के प्रमुख पात्र नन्हे हमीद के बहाने से चिमटे की महिमा का बखूबी बयान किया है।
आए दिन के क्रियाकलापों में शरीर जख़्मी होता रहता है। छोटे मोटे जख्म को
संस्कृत में हाथी और चींटी की न सिर्फ राशि एक है बल्कि उनके नाम भी एक ही मूल से उपजे हैं।
चोट कहा जाता है जो इसी शब्द श्रंखला का शब्द है। चुण्ट् में नोचने खरोचने का भाव स्पष्ट है जो शरीर के लिए कष्टकारी है। चोट भी एक ऐसा ही आघात है। चोट से ही बना है
चोटिल शब्द अर्थात जख्मी होना। मराठी में चींटा-चींटी को
मुंगा-मुंगी कहते हैं। शुद्ध रूप में यह
मुंगळा मुंगळी है। “तू मुंगळा मैं गुड़ की डली” वाले उषा मंगेशकर के लोकप्रिय हिन्दी गीत के जरिये कई लोग इस मराठी शब्द से परिचित हो चुके हैं। मुंगा या मुंगी शब्द द्रविड़ मूल का है। दक्षिणी यूरोप के मेडिटरेनियन क्षेत्र की ज्यादातर भाषाओं में चींटी के लिए
फार्मिका formica या इससे मिलते जुलते शब्द हैं जैसे फ्रैंच में फोर्मी, स्पेनिश में फोर्मिगा, कोर्सिकन में फुर्मिकुला आदि। यह लैटिन के फोर्मिका से बना है जिसका मतलब होता है लाल कीट। जाहिर है लाल रंग की चींटियों के लिए ही किसी ज़माने में यह प्रचलित रहा होगा।
छोटी सी चींटी हाथी को पछाड़ सकती है, जैसी कहावतें खूब प्रचलित हैं। मगर दिलचस्प तथ्य यह है कि संस्कृत में हाथी और चींटी की न सिर्फ राशि एक है बल्कि उनके नाम भी एक ही मूल से उपजे हैं। संस्कृत में चींटी को कहते हैं
पिपीलः, पिपीली। यह बना है संस्कृत की
पील् धातु से जिसमें एक साथ सूक्ष्मता और समष्टि दोनो का भाव है। इसका अर्थ होता है अणु या समूह। सृष्टि अणुओं का ही समूह है। चींटी सूक्ष्मतम थलचर जीव है। चींटे के लिए संस्कृत में
पिपिलकः, पिलुकः जैसे शब्द हैं। बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में भी चींटी को
पिपिलिका ही कहा जाता है। जो लोग पुराने अंदाज़ वाले शतरंज के शौकीन हैं वे इसके मोहरों का नाम भी जानते होंगे। इसमें हाथी को
फीलः या
फीला कहा जाता है। यह फारसी का शब्द है और अवेस्ता के पिलुः से बना है। संस्कृत में भी यह इसी रूप में है। इसमें अणु, कीट, हाथी, ताड़ का तना, फूल, ताड़ के वृक्षों का झुण्ड आदि अर्थ भी समाये हैं। गौर करें इन सभी अर्थों में सूक्ष्मता और समूहवाची भाव हैं।
फाईलेरिया एक भीषण रोग होता है जिसमें पांव बहुत सूज कर खम्भे जैसे कठोर हो जाते हैं। इस रोग का प्रचलित नाम है
फीलपांव जिसे हाथीपांव या शिलापद भी कहते हैं। यह फीलपांव शब्द इसी मूल से आ रहा है। महावत को फारसी, उर्दू या हिन्दी में
फीलवान भी कहते हैं।
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9 कमेंट्स:
सुहाना लग रहा है, ये सफ़र....
चींटी हाथी से बड़ी नुक्ता * ये समझाए,[*''न'' की बिंदी/point]
भार करो जो शब्दों का, चींटी ही बढ़ जाए.
चींटी जो कर जाए,उसको फील*न करने पाए [*हाथी/feel[अहसास
हाथी चिमटी भी भरे, चिमटा शौर मचाए .
-मंसूर अली हाश्मी
हाथी और चींटी की रिश्तेदारी तो बखूबी स्पष्ट हो गयी यहाँ । धन्यवाद ।
वाह! शून्य और अनन्त (zero and infinity) में एक ही प्रकार के गुण हैं। वही हाल चींटी और हाथी का है।
bahut umda or rochak jankari .hathi or cheeti ke chutkule bhi bahut mashoor hai.bachcho ko ye dono prani bahut aakarshit karte hai.inme itna meljol hai aaj pata chala.
Rajasthani kahawat bhi hai ki
cheeti ko kan dena
hathi ko man dena
jageerdari me maap ka purana maapdand hota tha. kahi aaj bhi hai jisme badhte hue kram me
paayli,mona ot man hota hai.hathi ki khurak ke hisab se iswar se man anaj manga jata hai.
बहुत सुंदर जानकारी.
रामराम.
चींटी से हाथी तक का सफ़र .........लाजबाब . शुरू से पढ़ा बहुत खुश हो रहा था कि फीलवान का जिक्र नहीं वही लिखूंगा लेकिन आखिर मे उस का जिक्र था . आप से शायद ही कुछ छूटता हो
चींटी से हाथी तक सब प्रचलित शब्दों की जानकारी
ज्ञानवर्धक रही।
ये रिश्तेदारी तो गजब की रही.
हाथी और चींटी के मूल को
समझना...बड़ी समझदारी की बात
हो सकती है !.............आभार.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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