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सवाल उठता है कि अरब लोगों के लिए क्यों ऊँट खूबसूरत है और ऊंट जैसे प्राणी के लिए
जमल/जमाल जैसे शब्द के क्या मायने हैं?...
वि भिन्न परिवेशो में भाषा का विकास भी अलग तरह से होता है। कई बार अलग अलग भाषाओं में एक सी अर्थवत्ता वाले शब्दों का मूल भी एक ही होता है इसलिए अर्थविस्तार और विकास प्रक्रिया भी एक सी होती है। एक विशाल रेगिस्तानी पक्षी को शुतुरमुर्ग कहा जाता है। यह इतना बड़ा होता है कि इसकी कूबड़नुमा पीठ पर लोग सवारी भी करते हैं। दुनिया के प्रायः सभी सामान्य गर्म इलाकों में पाया जाता है। यह बना है शुतुर+मुर्ग के मेल से। यह इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है। फारसी में शुतुर का अर्थ होता है ऊंट जो अवेस्ता के उश्तुर से बना है। अवेस्ता के उश्तुर की संस्कृत के उष्ट्रः से समानता गौरतलब है। वैसे संस्कृत में भैंसे को भी उष्ट्र कहा जाता है।
उष्ट्रः से ही बना है हिन्दी, उर्दू का ऊंट शब्द। शुतुरमुर्ग को यह नाम यूं ही नहीं मिल गया। उसके गर्म प्रदेशवासी होने की वजह से ही यह ऊंचा, कूबड़वाला पक्षी शुतुरमुर्ग कहलाता है। संस्कृत के उष्ट्रः के पीछे जो धातु है वह है उष् जिसका अर्थ है तपाना। ताप के लिए उष्णता भी इसी कड़ी का शब्द है और ऊर्जा का एक प्रकार ऊष्मा भी इसी धातु से निकला है। इससे ही बना है उषा (ऊषा) शब्द जो पौ फटने के लिए परिनिष्ठित हिन्दी में बोला जाता है। पौ फटने के बाद ही तपन शुरू होती है। इसीलिए ऊंट के लिए संस्कृत में उष्ट्रः शब्द है अर्थात गर्मी में रहनेवाला। भैंसा हालांकि रेगिस्तान में नहीं रहता पर उसके उग्र, गर्म स्वभाव को देखते हुए उसे भी उष्ट्र कहा गया होगा। संस्कृत में भी मुर्गे का संबंध सुबह से है और इसे उषकालः यानी सुबह सुबह बोलनेवाला कहा गया है। अंग्रेजी के कैलेंडर के मूल में यही शब्द है। अब मुर्गे को तो हर सुबह बांग देना तय है पर ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कभी तय नहीं होता इसीलिए उसकी स्वभागत इस खूबी को भी कहावत के तौर पर हिन्दी भाषा में जगह मिल गई। शुतुरमुर्ग के लिए अंग्रेजी में ओस्ट्रिच ostrich शब्द है जो करीब करीब उश्तुर से मिलता-जुलता है। पाकिस्तान में भी बोलचाल में ऊंट शब्द ही प्रचलित है और जाहिरा तौर पर यह भी उर्दू के खाते मे ही दर्ज है। लटके हुए भद्दे होंठ (ओष्ठ) की वजह से इसका नाम ऊंट पड़ा, ऐसा कुछ संदर्भों में लिखा गया है जो सही नहीं है। लंबी गर्दन की वजह से ऊंट को महाग्रीव, ग्रीवी भी कहा जाता है।
ऊंट को अंग्रेजी में कैमल कहा जाता है। यह शब्द मूल रूप से सेमेटिक भाषा परिवार का है और बरास्ता हिब्रू, यूरोपीय भाषाओं में दाखिल हुआ। अंग्रेजी का कैमल लैटिन के कैमुलुस camelus से बना है जो ग्रीक के kamelos कैमेलोस का परिवर्तित रूप है। भाषाविज्ञानी इस शब्द को मूल रूप से सेमेटिक परिवार का मानते हैं। ग्रीक में यह शब्द हिब्रू के
गमल gamal से आया। गमल हिब्रू की प्राचीनतम धातु है जिसकी अर्थवत्ता बड़ी व्यापक है और इसमें समुच्चय का भाव है। स्ट्रांग के प्रसिद्ध
हिब्रू-ग्रीक कोश के मुताबिक इसका मतलब होता है सुदृढ़ करना, परिपुष्ट करना, तगड़ा करना, मज़बूत करना, पक्का करना आदि। इसमें खाना खिलाना, पालना जैसे भाव भी हैं
... शुतुर्मुर्ग की कूबड़नुमा पीठ पर न सिर्फ सवारी की जाती है बल्कि उसे गाडी में भी जोता जाता है...
तो सेवा करना, भला करना भी इसमें शामिल हैं। हिब्रू में भी
गमल का मतलब होता है ऊंट। उपरोक्त भावार्थों के मद्देनजर देखें तो ऊंट अरब क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण पालतू प्राणी है जिसके बिना वहां के सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सेवा और भलाई
ऊंट की जन्मपत्री में लिखी है। गौरतलब है कि आरमेइक, हिब्रू, फोनेशियन भाषाओं में हिब्रू में
ग वर्ण ग्रीक के
क मे तब्दील हो जाता है क्योंकि इसका उच्चारण इस अंदाज में किया जाता है कि वह क़ ध्वनि के काफी नज़दीक होता है। इसीलिए हिब्रू गमाल ही ग्रीक, लैटिन से सफर करते हुए अंग्रेजी में कैमल बन गया। गमाल का नज़दीकी संबंधी
जमल अरबी में भी है क्योंकि ऊंट को अरबी में
जमल ही कहा जाता है। गौरतलब है कि उर्दू, फारसी, अरबी में एक शब्द है जमाल जिसका मतलब होता है खूबसूरती, सौन्दर्य। इससे ही
जमील jameel,
जमाल jamaal,
अजमल ajmal,
जमीला jameela जैसे शब्द बने हैं जो उर्दू, फारसी, अरबी के साथ-साथ समूचे भारत में खूब प्रचलित हैं और हिन्दी में भी इस्तेमाल होते हैं।
हुस्नो-जमाल जैसा शब्द फिल्मी नग्मों, शायरी में खूब इस्तेमाल होता है।
सवाल उठता है कि अरब लोगों के लिए क्यों ऊंट खूबसूरत है और ऊंट जैसे प्राणी के लिए
जमल/जमाल जैसे शब्द के क्या मायने हैं? इसकी व्याख्या विभिन्न संदर्भों को टटोलने के बावजूद कहीं नहीं मिलती। अरबी का
जमाल भी उसी धातु
ज-म-ल से बना है जिससे ऊंट के अभिप्राय वाला
जमल और सौन्दर्य के अभिप्राय वाला
जमाल बना है। हिब्रू का
ग वर्ण अरबी के
ज मे तब्दील होता है। अरबी के जमल का एक अन्य अर्थ है मोटी रस्सी, बटी हुई रस्सी जिसमें ऊंट की खूबसूरती का राज़ छिपा है। गौर करें गमाल के परिपुष्ट, पक्का जैसे भावों पर। गौर करें कि रस्सी कई डोरियों को एक साथ बट कर बनाई जाती है यानी यह एक समष्टिवाची रचना है जो इसे मजबूती देती है।
ज-म-ल का अभिप्राय यही है कि सुंदरता भौतिक रूप-रेखा में नहीं बल्कि औचित्य, युक्तियुक्तता और परिपूर्णता में है। जाहिर है जो सर्वाधिक उपयुक्त है वही सुंदर है। जिस मनुष्य में सभी अंग-उपांग सही अनुपात में हों उसे सौन्दर्यशाली कहा जाता है। जिसके नैन-नक्श सही अनुपात में हों, उस मुखड़े को ही खूबसूरत कहा जाता है। ऊंट के अर्थ में
जमल का अर्थ यही है कि उसमें रेगिस्तानी इलाके में गुज़र-बसर करने लायक सभी गुणों का समुचित समावेश है। कद, काठी, स्वभाव, शारीरिक बनावट और क्षमता हर मायने में ऊंट रेगिस्तान के लिए बेहतर है। यही बात हिब्रू के गमाल में भी है। प्राचीनकाल से अब तक ऊंट ही अरब जाति के सामाजिक जीवन का प्रमुख आधार बना हुआ है। और ऊंट इन मापदंडों पर खरा सोना है। अरबवासी हर साल कैमल ब्यूटी कांटेस्ट का आयोजन भी करते हैं। हिन्दी में
जुमला शब्द भी प्रचलित है जिसका मतलब होता है वाक्यांश या कुछ कहना। गौर करें कि जुमला या वाक्य भी कुछ शब्दों का समुच्चय ही होता है जिनसे किसी अभिप्राय का बोध होता है। वाक्य की सीधी सादी परिभाषा भी यही है। इससे ही
जुमलेबाजी जैसा शब्द भी बना है। हिन्दी में यह उर्दू के जरिये आया है और इसका रिश्ता इसी जमल या जमाल से है।
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17 कमेंट्स:
बहुत दिनो बाद आपके ब्लाग पर आया, मजा आ गया आपको पढ़कर, व्यस्तताओं में दूरी बन गई थी, अब आता रहूँगा।
अच्छी जानकारी... पहले ही कह चुका हूँ, आपका ब्लॉग मेरे जैसे मूढ़ मस्तिस्क वालों के लिए गीता कुरान से कम नहीं है. धन्यवाद.
ओह ये तो बड़ा जबरदस्त सफ़र रहा !
"ज-म-ल का अभिप्राय यही है कि सुंदरता भौतिक रूप-रेखा नहीं बल्कि औचित्य, युक्तियुक्तता और परिपूर्णता में है ।"
तृप्त हुआ । धन्यवाद ।
बहुत अच्छी जानकारी|
आप का ब्लाग तो एकदम हटकर है और कितना जानकारी भरा...वाह....
रुचिकर और सूचना देने वाला. यूं ही चलता रहे सफर.
बहुत बढ़िया सफर रहा।
घुघूती बासूती
ऊंट का सफर भी मजबूत व्यक्ति ही कर सकता है। पेट मिक्सी हो जाता है। बहुत ही मजबूत सफर था, कर आए।
इस हुस्न की क्या और कैसे तारीफ़ करें ?
सच बेमिसाल है भाई.
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चन्द्रकुमार
अहो रूपम!
इतनी अच्छी जानकारी देने के लिये धन्यवाद.
बहुत ज्ञानवर्धक..आनन्द आ गया.
ऐसी जानकारी तो शतुरमुर्ग को भी नहीं पता होगी . ज्ञान की गंगा ,बोलगा न जाने क्या क्या बहने को तैयार है और हम साथ मे तैरने को
शब्दों का सफ़र मैं लुधियाना पंजाब में भी पढ़ना नहीं भूला..पोस्ट से जानकारी भरपूर मिली
धन्यवाद.
kya hi khuub hai shabdo ka jamal jo badhta hi ja raha hai .is jamal ko salam.
ऊंट के बारे में तो अपनी जानकारी ऊंट के मुंह में जीरा जैसी थी. इस भंडार से तो ऊंट भी तृप्त हो जायेंगे. अति सुन्दर और रोचक
nice
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