Friday, August 7, 2009

सुरंग में सुर और धमाका…

 संबंधित कड़ियां-1.नहर नेहरू और फास्ट चैनल 2.कनस्तर और पीपे में समाती थी गृहस्थी stepping_on_landmine__291w
प्रा चीन जलप्रबंध की व्यवस्थाओं में नहर या कैनाल जैसे शब्दों के साथ सुरंग का शुमार भी है। हिन्दी में सुरंग शब्द का अर्थ भूमिगत मार्ग, खोखला स्थान, नाली, होता है। सुरंग (land mine) एक विस्फोटक उपकरण भी होता है। इसका यह नाम इसीलिए पड़ा क्योंकि इसे ज़मीन के भीतर गड्ढ़ा खोदकर स्थापित किया जाता है। कुल मिलाकर भारत में केरल, कर्नाटक को छोड़ कर ज्यादातर जगहों पर सुरंग का अर्थ भूमिगत मार्ग या मानव निर्मित गुफा-कंदरा से ही लगाया जाता है जबकि पश्चिमी एशिया में सुरंग एक सुव्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप से विकसित जलप्रबंध व्यवस्था का नाम है। भूमध्यसागरीय देशों में अमूमन सभी स्थानों पर यह व्वस्था कायम है। इसकी शुरुआत सीरिया से मानी जाती है। भारत के कर्नाटक में ही सुरंगम् नाम की जलप्रबंध व्यवस्था उसी तरह कायम है जैसी पश्चिम एशिया में है। वैसे राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी कुछ स्थानों पर यह व्यवस्था है।

सुरंग शब्द भारोपीय भाषा परिवार में भी है और सेमिटिक भाषा परिवार में भी है। विभिन्न भाषा परिवारों में बोली जाने वाली भाषाओं की प्रकृति में चाहे भिन्नता होती हो मगर उनमें शब्द निर्माण की प्रकृति और स्थितियां एक सी होती हैं। नहर, कैनाल जैसे शब्दों में यह साफ हो चुका है। यही बात इस कड़ी से जुड़े सुरंग शब्द में भी नज़र आ रही है। सुरंग का रिश्ता अंग्रेजी के सिरिंज शब्द से जुड़ता है। संस्कृत के सुरंग शब्द के मूल में है प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की swer धातु जिसका संस्कृत रूप है स्वृ जिससे स्वर शब्द बना है।
...यह पोस्ट लंदन में रहकर पारम्परिक जलप्रबंधन पर शोध कर रहे नैनीतालवासी सुधीर त्रिपाठी ने आग्रह कर हमसे लिखवाई है। सुरंग शब्द हमारी सूची में था, किन्तु शायद इसका क्रम आगे कभी आता। मगर हाल ही में प्रकाशित पीपा, कनिस्तर और कैनाल वाले आलेखों के संदर्भ में इसका महत्व है। प्रस्तुत चित्र उन्होंने ही उपलब्ध कराए हैं...  २१ (2) १
स्वर का अर्थ होता है आवाज़, ध्वनि, फुसफुसाहट आदि। गौर करें ध्वनि का निर्माण तभी होता है जब ध्वनि तरंगे किसी संकरे स्थान से होकर परावर्तित हों। आमतौर पर नालीनुमा संरचनाओं में ही ध्वनि उत्पन्न होती है क्योंकि वहीं पर तरंगों का परावर्तन होता है। गौर करें हमारा गला भी ऐसी ही एक संरचना है। जीभ की विभिन्न क्रियाओं के बीच से होते वायु-प्रवाह की वजह से विभिन्न ध्वनियों का निर्माण होता है। संस्कृत के सुरंग शब्द का विकास इसी स्वृ धातु से हुआ है। बाद में इसमें नाली, पोला स्थान, भूमिगत मार्ग, खदान या गुहा जैसे भाव उद्भूत हुए। गुफा, सुरंग आदि में संकरी और समानान्तर दीवारों के कारण ध्वनि गूंजती है।

भाषाविज्ञानी संस्कृत के सुरंग शब्द का विकास ग्रीक भाषा के सिरिंक्स syrinx से भी मानते हैं। प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की धातु swer बने सिरिंक्स का अर्थ होता है ट्यूब, नलिका या पाईप जैसी रचना। ग्रीक में ही सिरिंक्स का रूपांतर सिरिंग syringe में हुआ। लैटिन में भी इसका यही रूप रहा जिसने अंग्रेजी में सिरिंज Syringe का रूप लिया जिसका मतलब भी पाईप या नलिका होता है। आधुनिक चिकित्वा में इंजेक्शन लगाने के उपकरण को सिरिंज कहा जाता है जो एक खोखली, पतली ट्यूब जैसी रचना होती है। ग्रीक भाषा के सिरिंक्स में मूलतः बांस के पोले पाईप का भाव था जिसे फूंक मारकर बजाया जाता है। किसी नलिका को फूंकने पर वायु तरंगे उसकी दीवारों से टकराती हैं जिससे ध्वनि पैदा होती है।
भाषा विज्ञानियों का मानना है ग्रीक का सिरिंक्स शब्द मूल रूप से हिब्रू से आया है। हिब्रू में एक धातु है s-r-k या s-r-q जिसमें फुसफुसाने, फूंकने का भाव है जो सीधे सीधे पाईप जैसी संरचना से जुड़ता है। हिब्रू में मेस्रोकिता और स्रीका जैसे वाद्य हैं जो सुषिर वाद्यों की श्रेणी में आते हैं और फूंक से बजते हैं। जाहिर है सिरिंक्स में जो पाईप या नलिका का भाव है वह हिब्रू मूल से आ रहा है। जल प्रबंध प्रणाली के रूप में सिरिंक्स ने ही सेमिटिक परिवार की भाषाओं जैसे सीरियक, अरबी आदि में स्थान बनाया। गौरतलब है कि हिब्रू की क़न्नाह धातु मे भी पोलापन, नली जैसे भाव है जिससे केन शब्द बना जिसका अर्थ पाईप, बांस आदि होता है। इसका ही अर्थ विस्तार कैनाल में नज़र आता है जिसका अर्थ नहर होता है और यह भी जलप्रबंध व्यवस्था से जुड़ा शब्द है। दिलचस्प बात यह कि फारसी में सुरंग के लिए क़नात शब्द है। यह क़नात दरअसल सेमिटिक भाषा परिवार का ही शब्द है और अरबी से फारसी में दाखिल हुआ है। इसका मूल भी हिब्रू के क़न्नाह से ही हुआ है। क़नात का रिश्ता भी जलप्रबंध प्रणाली से है और भाव वही है जो कैनाल में है अर्थात एक प्रवाही मार्ग। जलसों-आयोजनों में शामियानों के साथ सजावटी परदों की दीवारें खड़ी की जाती हैं इन्हें भी क़नात ही कहा जाता है। दो परदों की दीवार दरअसल एक गलियारे का निर्माण कर रही होती है। इसे सुरंग, मार्ग या राहदरी के तौर पर समझा जा सकता है। पोली या नालीनुमा संरचना से हवा, ध्वनि या वायु के प्रवाह को मनुष्य ने प्राचीनकाल से ही जान लिया था। इसके विविध प्रयोग और उपयोग उसने निर्धारित किए। हिब्रू कन्नाह से ही केन यानी बांस पैदा हुआ। केन से कैनाल बना तो फूंक मारकर बजाने वाला वाद्य पाईप भी बना। बैगपाईप इसका ही रूप है। इधर बांस से ही बांसुरी बनी। जल प्रबंध के लिए कैनाल भी उपयोगी है और पाईप भी। सुरंग शब्द में निहित भावों और  सिरिंज शब्द से रिश्तेदारी को इन्हीं संदर्भों में समझना चाहिए। छिद्र के लिए हिन्दी में सूराख शब्द भी प्रचलित है। इसकी रिश्तेदारी इंडो-ईरानी भाषा परिवार से है और फारसी भाषा का शब्द है। इस तरह देखें तो सूराख शब्द भी स्वृ धातु से ही जन्मा है लगता है, पर ऐसा है नहीं। सुराख़  अवेस्ता का शब्द है। अवेस्ता में छिद्र के लिए सुरा sura शब्द है। पहलवी में इसका रूप surak होता है और फ़ारसी में आते आते सुराख़ साफ नज़र आने लगता है।  
क्षिण पश्चिम एशिया अल्पवर्षा का क्षेत्र है। यहां पहाड़ियों की बहुतायत है मगर ज़मीन सूखी है। बहुत छोटे इलाकों में बारिश होती है अतः यहां की बंजर पहाड़ी ढालों पर मनुष्य ने जल संग्रह के लिए विशेष तकनीकें ईजा़द की जिनमें सुरंग प्रमुख है। सीरिया में पहाड़ों पर बड़े-बड़े छिद्र बनाए जाते हैं। ये छिद्र पहाड़ों के भीतर मानवनिर्मित खदानों में खुलते हैं। ये पहाड़ आमतौर पर चूना पत्थर के होते हैं जिनसे लगातार पानी का रिसाव होता रहता है। कई छिद्रों से होकर पानी का एकसार प्रवाह सुरंग में होने लगता है और यह बारहों महिने जारी रहता है। गौरतलब है कि पश्चिमी एशिया से भारत के दक्षिणी राज्यों से हजारों साल पुराने समुद्रपारीय रिश्ते रहे हैं। ईसा के सिर्फ 76 साल के बाद ही सीरियाई ईसाइयों का केरल पहुंचना भी इसे साबित करता है कि मिस्र्, सीरिया, अरब और यूनान से  भारत आने-जाने का सिलसिला ईसा से भी एक हजार साल पहले से जारी है। कारोबार के साथ-साथ यह रिश्ता सांस्कृतिक व तकनीकी ज्ञान के आदान-प्रदान का भी था। कर्नाटक के कासरगोड़ जिले में आज भी करीब चार हजार ऐसी सुरंगें हैं। यहां करीब 15 हजार रूपए की लागत में एक सुरंग तैयार हो जाती है जबकि कुआं खोदने में इससे ज्यादा धन लगता है। 
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16 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज तो सब कुछ अपने लिए बिलकुल नया है।

RDS said...

आपके इस आलेख में अभिज्ञान वृद्धि के साथ ही सामाजिक सरोकार और जागरूकता भी परिलक्षित हो रही है | सुरंग की प्रोजेक्ट कास्ट यदि कूप निर्माण से भी कम बैठती है तो इसे निस्संदेह प्राथमिकता दी जानी चाहिए | जैसा कि आपके आलेख से स्पष्ट होता है सुरंग वाष्पीकरण के कुप्रभाव से जल की बचत में सहायक है इस नज़रिए से इसे पहाडी इलाकों में झरनों के जल संरक्षण हेतु हमारे यहाँ भी प्रयुक्त किया जा सकता है | पर्यावरणविद इस पर विचार करेंगे | देवकीनंदन खत्री के ऐयारी वाले उपन्यासों में पानी वाली सुरंगों का ज़िक्र पढा था | शायद उ. प्र. के बनारस क्षेत्र में भी कभी ऐसी सुरंगें रही हों |

RDS said...

सुधीर त्रिपाठी जी के विशिष्ट कमेन्ट को पढ़ने की उत्सुकता रहेगी |

Himanshu Pandey said...

सारगार्भित और महत्वपूर्ण जानकारी का आभार ।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

भाऊ, Syringe के साथ सूई भूल गए ! ये शाम को क्यों लिखने लगे? मलेच्छ संसार, मेरा मतलब यूरोप तो नहीं पहुँच गए?

चन्दन कुमार said...

important information really, bahut hi achchha laga

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

पहली बार सुरंग में घुसे और ज्ञान प्राप्त कर निकले , धन्यवाद

अजित वडनेरकर said...

@ गिरिजेशराव
भाई, शाम को नहीं लिख रहा हूं, बल्कि कई दिनों की यात्रा के बाद एक पोस्ट तत्काल पब्लिश करने से खुद को नहीं रोक पाया हूं। बाकी तो सुबह की हवा के साथ ही जारी रहेगा यह सफर। हां, सूई पर मैं लिख चुका हूं। आपने शायद ध्यान नहीं दिया था यहाँदेखें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की धातु swer बने सिरिंक्स का अर्थ होता है ट्यूब, नलिका या पाईप जैसी रचना। ग्रीक में ही सिरिंक्स का रूपांतर सिरिंग syringe में हुआ। लैटिन में भी इसका यही रूप रहा जिसने अंग्रेजी में सिरिंज Syringe का रूप लिया जिसका मतलब भी पाईप या नलिका होता है। आधुनिक चिकित्वा में इंजेक्शन लगाने के उपकरण को सिरिंज कहा जाता है जो एक खोखली, पतली ट्यूब जैसी रचना होती है।"

वडनेकर जी!
बहुत अच्छी व्याख्या प्रस्तुत की है।
बधाई।

Arvind Mishra said...

कैनाल शब्द की गलत व्यत्पत्ति से लोगों को मंगल पर नहरों का भ्रम हो गया था !

Abhishek Ojha said...

वाकई सबकुछ नया है इस पोस्ट में.

कथाकार said...

सर्वप्रथम, श्री अजित जी को हार्दिक धन्यवाद कि आपने अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच से समय निकाल कर मेरे ‘सुरंग’ शब्द पर एक लेख लिखने के आग्रह को पूर्ण किया। यद्यपि, यह लेख भी अजित जी द्वारा लिखित पूर्व, ज्ञान आप्लावित, लेखों के क्रम को ही उत्तरोत्तर आगे बढाता है, परन्तु इस लेख का मेरे लिये बहुत विशेष महत्व है।

मैं, वर्तमान में केरल और कर्नाटक के कुछ जनपदों में पायी जाने वाली विशेष ‘सुरंगों’ के बारे में शोध कर रहा हुं जिनका प्रयोग जल प्राप्ति के लिये किया जाता है। इसी क्रम में मुझे गत वर्ष केरल के कासरगौड और कर्नाटक के दक्षिण कन्नड जिले कि यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ। मेरे शोध का मुख्या उद्देश्य सुरंगों की उत्पत्ति, भारत में इनका आगमन, निर्माण कला और समाजिक प्रभाव का अध्ययन करना है। इसी दौरान मुझे सुरंग शब्द की उत्पत्ति जानने कि जिज्ञासा हुई क्योंकि बहुधा शब्द का उदगम या नामकरण भी कई अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर दे देता है। परन्तु, लंदन में बैठकर हिन्दी या संस्क्रत के शब्दकोश या इंटरनेट पर हिन्दी व्याकरण पर विश्वसीय साम्रगी प्राप्त कर पाना एक टेढी खीर था। अंतत: याद आया कि कुछ दिन पहले एक ब्लाग पढा था जिसमे शब्दों की उत्पत्ति, नामकरण और उनके प्रयोगों के बारे में बडी रोचक जानकारी थी। अत: पुन: श्री अजित जी के ब्लाग को ढूंढकर उनसे निवेदन किया, और यह अजित जी की उदारता थी कि उन्होने मेरे आग्रह को सहर्ष स्वीकार किया और यह शोध पूर्ण लेख लिखा। बचपन में पिताजी एक श्लोक हमें पढाया करते थे कि,

न चौरहार्यम, न च भ्रात भाज्यम, न भारकारी,

व्यये क्रते वर्धते व नित्यम, विद्या धनं सर्व धनं प्रधानम ।

यह श्लोक श्री अजित जी और उनके ब्लाग पर सटीक बैठता है। प्रतिदिन उनके लेख हम सभी पाठकों का निरंतर जान वर्धन कर रहे हैं और आशा करते हैं कि यह ज्ञान धारा अविरल प्रवाहित होती रहेगी और ज्ञान पिपासु पाठकों के ज्ञान को उत्तरोत्तर बढाती रहेगी.

अजित जी को एक बार पुन: धन्यवाद । समयाभाव के कारण में इस ब्लाग पर लिखे गये अन्य लेखों पर अपने विचार नहीं प्रकट कर पाया परन्तु भविष्य में प्रयास करुंगा कि नियमित रूप से इन लेखों को पढुं और अपने विचार भी लिखुं।
सधन्यवाद
सुधीर त्रिपाठी

शरद कोकास said...

अब प्रबुद्ध लोगों ने इतना कुछ तो कह दिया है इस कवि ने सुरंग पर एक कविता लिखी है सो वह भी सहन कर लीजिये

सुरंग से गुजरती रेल

सुरंग से गुजरती रेल पर
अन्धेरे का हमला पहली बार नहीं था
यह पलक झपकने के पल का
एक निश्चित विस्तार था

खिड़कियों के शीशों पर नज़र आ रहे थे
अपने ही अक्स
दुखों में साझा कर रही थी कोई कराह
खीझ का सहारा लेती एक आह
सिसकियों के साथ क़ैद हवा फेफड़ों में भर रही थी

हज़ारों–हज़ार विचारों की गति लेकर
सब को मंज़िलों का भरोसा देती
किसी को किसी के पास
किसी से दूर करती
सुरंग से गुज़र रही थी रेल

यह आवश्यकता की
असुविधा से लड़ाई थी
अन्धेरे के खिलाफ़ जहाँ
भीतर जल रही थीं बत्तियाँ ।

शरद कोकास

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सुरंग -- के कई रंग आज देखने को मिले -- बहुत अनोखी खोज रही आजकी
सुधीर जी का आग्रह एक उम्दा आध्याय जोड़ता गया है
" शब्दों का सफ़र " जारी रहे ....
Very good, indeed !!
- लावण्या

Mansoor ali Hashmi said...

शब्दों को सुशोभित कर रंगों से सजा देना,
चट्टानों को पोला कर निर्मल सी हवा देना,
प्रवाह बढा कर के नहरों का बहा देना,
syringe लगा करके भंडार* बढा देना, [*ज्ञान का]
कन्नात लगे है तो जलसे में भी आयेंगे,
नाके से सुई के अब ऊंटों* को ले जायेंगे.

*असंभव को संभव बनाना
-मंसूर अली हाशमी

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