Monday, August 24, 2009

दियासलाई और शल्य चिकित्सा

संबंधित कड़ी-1.कश्मीरी शाल और पश्मीना 2.डॉक्टर दीक्षित और चिकित्सक
about-weight-loss- 3654869935_b187a3c4d0_o

लाई शब्द हिन्दी का बहुत प्रचलित  है मगर अब इसका प्रयोग कुछ कम होता जा रहा है। पहले घर-घर में धातु की सलाइयों के जरिये स्वेटर बुने जाते थे, अब यह रिवाज़ कम हो गया है। तब मनोरंजन के नाम पर हस्तकलाओं का अभ्यास किया जाता था और बात की बात में घर के उपयोग की वस्तुएं तैयार हो जाती थीं। अब उत्पादन बढ़ने से वो तमाम चीज़े बहुत सस्ती हो गई हैं जो पहले हाथ से बनाई जाती थीं। दूसरी ओर मनोरंजन का बडा साधन टीवी चौबीस घंटें गृहिणियों को बुलाता रहता है। बहरहाल सलाई नाम के वस्तु और इस शब्द का प्रयोग कम ज़रूर हो गया है मगर इनसे लोग खूब परिचित हैं। यह शब्द रोजमर्रा की एक और वस्तु के साथ जुड़ा हुआ है जिसे माचिस कहते हैं। माचिस का हिन्दी नाम है दियासलाई अर्थात दिया जलाने की छड़। इसे  अग्निदण्डिका और अग्निशलाका के तौर पर प्रचारित करने के प्रयास भी हुए मगर इन शब्दों को परिहास के तौर पर ही प्रयोग किया जाता है।

लाई बना है संस्कृत के शलाका से जिसका मतलब होता है छोटी छड़ी, दण्ड, खूंटी, बाण, तीली, पतला तीर आदि। शलाका बना है संस्कृत की शल् धातु से जिसमें तीक्ष्णता, तेजी, हिलाना, हरकत करना, कांपना, बर्छी, कांटा आदि भाव हैं। स्पष्ट है कि छड़ी या दण्ड का भाव शलाका ने बाद में ग्रहण किया, पुरातन काल में यह मानव का शस्त्र रहा होगा जिसे फेंक कर शत्रु पर प्रहार किया जाता होगा। फेंकने की क्रिया में गति भी है और शस्त्र के तौर पर शलाका में तीक्ष्णता का गुण भी है। यह बना है संस्कृत के शलाकिका > सलाईआ > सलाई से।  चिकित्सा से जुड़े हुए ऑपरेशन और सर्जरी जैसे शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित हैं मगर इनके लिए प्राचीनकाल में शल्य-चिकित्सा शब्द प्रचलित था औरstick आज भी यह सरकारी हिन्दी में इस्तेमाल होता है। सर्जरी के अर्थ में शल्य शब्द का मतलब है शरीर में कांटा चुभना या चुभोना। ऑपरेशन में शरीर के भीतरी हिस्से की चिकित्सा की जाती है जिसके लिए शरीर को चीरा लगाया जाता है। शल्य में निहित चुभोने के भाव से शल्य चिकित्सा शब्द का अर्थ स्पष्ट है। माना जाता है कि शल्य-चिकित्सा दरअसल प्राचीन भारतीय विद्या ही है। आज दियासलाई और शल्य चिकित्सा की रिश्तेदारी खोजें तो यही तथ्य सामने आएगा कि प्रगति के आत्ममुग्ध दौर में भी हमारे देश में दियासलाई की रोशनी में ऑपरेशन का कौशल दिखाने वाले अध्याय लिखे जाते हैं।
चुभोने के गुण की वजह से ही संस्कृत में में शलभ शब्द का प्रयोग कीट-पतंगों, टिड्डों के लिए किया जाता है। वृक्ष  की छाल कोमल नर्म आंतरिक भाग की रक्षा करती है और काफी कठोर होती है। अधिकांश वृक्षों का आवरण खुरदुरा, चुभनेवाला भी होता है। हिन्दी का छाल शब्द संस्कृत के शल्क शब्द का देशज रूप है। शल्क इसी शल् धातु से बना है जिसका क्रम कुछ यूं रहा-शल्क > शल्ल > छल्ल > छाल। गौर करें, आवरण या परत के अर्थ में छिलका शब्द भी इसी मूल से उत्पन्न हुआ है। मोटे तौर पर शल् धातु में वनस्पति का संकेत भी है।
शाल्मलि वृक्ष को हिन्दी में हम सेमल के पेड़ के तौर पर पहचानते हैं। सेमल एक बहुउपयोगी वृक्ष है। इसके फूल, फल, पत्ती और लकड़ी का ओषधीय उपयोग होता है। सेमल का फल गूदेदार होता है जो पकने पर रेशेदार रूई में बदल जाता है। सूखने पर यह फटता है और इसके बीजों के साथ ये रेशे दूर-दूर तक बिखर जाते हैं। इस प्रजाति में वंशवृद्धि की यही शैली है। दूर-दूर तक फैलने की विशेषता के चलते ही इस वृक्ष को शाल्मलि नाम मिला जो शल् धातु से ही उपजा है। ऐसा माना जाता रहा है कि प्राचीनकाल में इस रूई से नर्म कपड़े बुने जाते थे। ओढ़ने के वस्त्र अथवा उत्तरीय के तौर पर दुशाला और शाल शब्द इसी मूल से उपजे हैं। हालाँकि यह भी तथ्य है कि सेमल की रुई कताई करने योग्य नहीं मानी जाती । गौर करें कि संस्कत में जुलाहे या बुनकर के लिए शालिकः शब्द है । शल् धातु की महिमा न्यारी है जिसमें तीक्ष्णता, गति के साथ कोमलता के गुणधर्म रखनेवाली वस्तुओं का बोध एक साथ हो रहा है। शाल की कोमलता के साथ शल्क अथवा छाल की तीक्ष्णता और शस्त्र के तौर पर शलाका की तीव्रता सचमुच इसे विलक्षण बनाते हैं।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

11 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया जानकारी!!

हेमन्त कुमार said...

बहुत ही रोचक रहा यह सफर...।आभार।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

शल्य, छाल, सलाई - आज का लेख बहुत रुचिकर लगा।

दियासलाई के प्रकाश में शल्यक्रिया - क्या कह दिया आप ने!

siddheshwar singh said...

सुरमा लगाने वाली सलाई भी तो हुआ करे थी (है) अजित ददा.
बहुत बढ़िया साहब . हिन्दी आकादेमी नामी गिरामी साहित्यकारों को 'शलाका सम्मान ' देती है. क्या देती होगी भला !

Unknown said...

वाह !
बहुत उम्दा आलेख
उपयोगी जानकारी के लिए धन्यवाद.........

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

सुरमा के लिए सलाई का प्रयोग अब भी होता है . पहले सोने चाँदी की हुआ करती थी . अब शीशे की या अल्मोनिय्म की

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

शल्य, छाल, सलाई की तह में जाकर
उपयोगी जानकारी प्रदान की है।
आभार!

Ashok Pande said...

आत्तो छा गए अजित भाई!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अच्छा विश्लेषण। लाभान्वित हुआ। आभार।

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर! मुझे तो सुरमे वाली सलाई याद आ रही है।

Mansoor ali Hashmi said...

दिया जलाकर मिटाए खुद को भलाई कैसी सलाई मे है ,
दिखे है कोमल जो शल तो उसमे छुपी हुई एक कटारी भी है.

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin