सबसे पहले बात दिक़्कत की। यह सेमिटिक मूल का शब्द है जिसमें क के साथ नुक़ता लगता है और इसे दिक्क़त लिखा जाता है। दिक्क़त बना है अरबी की d-q-q धातु से जिसका अर्थ है सूक्ष्म, क्षीण, पतला, दुबला, महीन, संकरा, कमी, तंग और छरहरा। अरबी की दिक् धातु में अत प्रत्यय लगने से बनता है दिक्क़त जिसमें कठिनाई या परेशानी का भाव है। मूलतः दिक्क़त में परेशानी का जो भाव है वह किसी और कठिनाई की तुलना में तंगहाली से उत्पन्न परेशानी का ज्यादा है। गौरतलब है कि दिक् धातु में अपने आप में गरीबी या निर्धनता का अर्थ द्योतन भी होता है। ज़ाहिर है दिक्क़त का मतलब हुआ ग़रीबी या ग़ुरबत के हालात। हालाँकि हिन्दी-उर्दू में सिर्फ़ इसी अर्थ में अब दिक्क़त का प्रयोग नहीं होता बल्कि किसी भी किस्म के मुश्किल हालात का रिश्ता दिक्क़त से जोड़ा जा सकता है।
दिक्क़त के साथ जुड़े महीन, क्षीण या सूक्ष्मता के भावों पर गौर करें। किसी चीज़ का लगातार क्षीण होते जाना, घटते जाना सचमुच परेशानी की बात हो सकती है। गृहस्थी में अड़चन आना, रूपए पैसे की कमी होना ही तंगी है और इसका लगातार बने रहना गुरबत का कारण बन सकता है। इसी तरह किसी वज़ह से शरीर का दुबला होना, कमज़ोर होना भी किसी ख़ास बीमारी का लक्षण हो सकता है। खान-पान और प्रदूषित परिवेश के चलते पुराने ज़माने में लोगों को अक़्सर टीबी की बीमारी होती थी और इसे असाध्य रोग समझा जाता था। हलके बुखार से शुरू होकर लगातार हरारत रहने और खांसी इसके प्रमुख लक्षण थे जिसकी वजह से शरीर क्षीण होता चला जाता था इसी लिए प्राचीनकाल में क्षय अर्थात हानि, ह्रास, घटाव, छीजना आदि। संस्कृत की क्षि धातु से बना है क्षय जिसमें नाश, अन्तर्धान या हानि होने का भाव है। यक्ष्मा का अर्थ होता है फेंफड़ों का रोग। आधुनिक चिकित्सा की भाषा में इसे टीबी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे फैलानेवाले रोगाणु की पहचान ट्यूबरकुलोसिस बैसिलस के रूप में हुई और इसके संक्षेपीकरण से ही बीमारी को भी टीबी नाम मिला। क्षय की चपेट में अमीर से ग़रीब तक आते थे मगर इसे राजरोग का दर्ज़ा सिर्फ़ इस वजह से मिला क्योंकि अमीर लोग इसका चंगुल में फंसने पर इलाज के लिए पानी की तरह पैसा बहाते थे और ग़रीब पर इसका साया पड़ते ही चटपट ज़िंदगी से निज़ात मिल जाती थी। टीबी की बीमारी में शरीर क्षीण होता चला जाता है इसीलिए दिक् शब्द का एक अर्थ टीबी या क्षय रोग भी हुआ। ज्यादातर कोशों में दिक् का अर्थ क्षय रोग भी दिया हुआ है।
टीबी के लिए हिन्दी में प्रचलित ... दिक् में एक अन्य भाव भी निहित है। गौर करना चाहिए इसके सूक्ष्म और महीन जैसे अर्थों पर। सूक्ष्मता और महीनता में नकारात्मक भाव नहीं हैं बल्कि इसका अर्थ एक किस्म का परिष्कार भी है।...
तपेदिक दरअसल फ़ारसी के तप और अरबी के दिक् से मिल कर बना है। तप ऐ दिक् > तपे दिक > तपेदिक। गौरतलब है कि संस्कृत मे जो तप का अर्थ ज्वाला, चमक, रश्मि, गरमी होता है। मूल आशय सूर्य की रोशनी और उसकी ऊर्जा से है। तप से ही बना ताप जिसका अर्थ है तपना, जलना। बरास्ता अवेस्ता, तप फ़ारसी में भी इसी रूप और अर्थ में दाखिल हुआ। तप का एक अर्थ बुखार भी हुआ क्योंकि बुखार में भी शरीर तपता है। मराठी, हिन्दी सहित ज्यादातर बोलियों में बुखार आने के लिए तपना, ताप आना भी कहा जाता है। चमक के अर्थ में फ़ारसी का ताब, तैश में आने के लिए ताव और रोटी सेंकने के लिए मोटे पेंदे वाली तश्तरी के लिए तवा जैसा शब्द इसी तप् से आ रहा है। किसी मनोरथ की पूर्ती के लिए की जानेवाली साधना को तप कहते हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में शरीर कृशकाय हो जाता है। यही साधना तपस्या है और इसे करनेवाला तपस्वी। ऐसे बुखार के लिए, जिसकी वजह से मनुष्य कृशकाय हो जाता हो, तपेदिक शब्द एकदम तार्किक है। पूर्वी बोलियों में परेशान करने के लिए दिक करना मुहावरा भी प्रचलित है। यह दिक् इसी मूल से आ रहा है। तंग करना मुहावरा पर गौर करें जिसकी भावभूमि भी दिक करना जैसी ही है। दिक् में एक अन्य भाव भी निहित है। गौर करना चाहिए इसके सूक्ष्म और महीन जैसे अर्थों पर। सूक्ष्मता और महीनता में नकारात्मक भाव नहीं हैं बल्कि इसका अर्थ एक किस्म का परिष्कार भी है। फ्रांसिस जोसेफ़ स्टेंगस की अरबी-फ़ारसी-इंग्लिश डिक्शनरी में इसकी पुष्टि होती है जिसमें इसका अर्थ निर्मल, परिष्कृत, उत्तम, शुद्ध, उम्दा और बारीक बतलाया गया है। जाहिर सी बात है कि परिष्करण की प्रक्रिया में अशुद्धियों की छंटनी होती जाती है और मूल के आकार में कमी भी आती है। यह कमी नकारात्मक नहीं बल्कि उसका मूल्य बढ़ानेवाली होती है। अनगढ़ हीरे की कटाई से उसका परिष्करण हो जाता है और वह बेशकीमती हो जाता है। स्पष्ट है कि दिक् में निहित सूक्ष्मता, क्षीणता या महीनता के भावों से इसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की अर्थवत्ताएं समा गई हैं। दिक्क़त का प्रयोग भाषा को मुहावरेदार बनाने में भी होता है। दिक्क़त में आना हिन्दी का एक मुहावरा है। इसके अलावा इससे जुड़े कुछ और शब्द भी हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे दिक्क़ततलब यानी ऐसा काम जिसमें कठिनाई सम्भावित हो, कष्टसाध्य या दुष्कर कार्य। दिक्क़तपसंद यानी जिसे कठिनाई का सामना करने में मज़ा आता हो, डूब कर काम करनेवाला आदि। दिक्क़त शब्द का इस्तेमाल अरबी, फ़ारसी, तुर्की, हिन्दी, मराठी, गुजराती समेत कई एशियाई भाषाओं में होता है।
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16 कमेंट्स:
तपेदिक और दिक्क़त के बारे में इस जानकारी के लिए धन्यवाद।
आपने जो लाल फीते का चिन्ह लगाया है वह एच आई वी एड्स के प्रयुक्त होता है उसका इस लेख से प्रत्यक्ष संबंध स्पष्ट नहीं हो रहा है।
शब्दों की गहन जानकारी के लिए आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हो जाता है ...बहुत सही प्रयास है आपका ..जानकारी ज्ञानवर्धक है..शुभकामनायें
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
कई भाषाओं से बना और पीड़ा भी सबको पहुँचाता।
शब्दों की व्युत्पत्ति और विश्लेषण का आपका ढंग आनन्ददायक भी होता है.धन्यवाद आपको !
झारखण्ड बनने के बाद एक नारा चला था 'दिकू राज नहीं चलेगा'. जिसका मतलब था कि बाहरी लोगों को भगा दिया जाय. दिकू का मतलब हमें पता नहीं था. हमने मतलब निकला था 'दिक्कत करने वाला' या फिर 'दूसरा कोई'. आपकी पोस्ट से याद आया और थोडा क्लियर भी हुआ.
'दिक्क़त ये है कि 'सोच' को 'शब्दों' की ज़रूरत,
और शब्दों को 'संस्कार' की 'मूल्यों' की ज़रूरत.
'ख़ूबी' भी 'ख़राबी भी छुपी एक ही 'दिक्' में
'तप' मौत का कारण भी है, जीने की ज़रूरत.
'शब्दों' की गिज़ा मिलती है 'शब्दों के सफ़र' में,
'Dic* चाहिए हमको न है 'कोषों' की ज़रूरत.
पंजाबी में भी दिक करना का मतलब परेशान करना होता है. पहले लोग इस बीमारी से इतना घबराते थे कि इसका कोई नाम नहीं लेते थे. इस लिए पंजाबी लोग इसको 'दूआ बखार'( दूसरा बखार) कहते थे अर्थात ऐसा बुखार जिस का नाम नहीं लेना. नफरत से पंजाबी लोग बनस्पति घी को भी पहले पहले 'दूआ घी' कहते थे.
दिक् का एक अर्थ दिशा से भी है। दिक्सूची, चतुर्दिक्, दिक्-काल इत्यादि। कभी इसका विश्लेषण भी करें।
निस्संदेह आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं।
बहुत शुक्रिया सिद्धार्थ भाई,
दिक् के दिशासूचक अर्थों पर शब्दों का सफर की किसी पोस्ट में लिखा है। विविध आयामों पर आगे भी लिखूंगा। यहां जिस दिक् का उल्लेख है वह भारोपीय भाषा परिवार का दिक् न होकर सेमिटिक भाषा परिवार का है।
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शुभकामनाओं सहित
अजित
@सोमेश
ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया सोमेश भाई।
कोइ दिक्कत नही आयी समझने मे। अच्छे आलेख के लिये बधाई।
सिद्धार्थ ने सही कहा --भाषा चाहे भारोपीय हो या सेमेटिक ---शब्द का प्रत्येक अर्थ विष्लेशित किया जाना चाहिये तभी सफ़र पूरा होता है...
---इसे राज यक्ष्मा इसलिये कहा जाता था कि--यह मूलतः बादे अमीर, राज परिवारों में होती थी जहा स्त्रियां पर्दे में रहने के कारण (व बच्चे भी--तथा पुरुष सम्पर्क के कारण) खुली वायु व सूर्य की कमी से यक्ष्मा से ग्रसित हो जाती थीं---वेदिक साहित्य में सिर्फ़ यक्ष्मा नाम है.
श्यामजी,
दिक् स्वतंत्र रूप में हिन्दी में प्रचलित नहीं है। सिर्फ ध्वनिसाम्य की वजह से सेमिटिक दिक् पर चर्चा करते हुए संस्कृत के दिक् को बीच में ले आना मैने उचित नहीं समझा मैं पोस्ट में भी स्पष्ट कर चुका हूं कि यह सेमिटिक भाषा परिवार का शब्द है। किसी शब्द की चर्चा के सिलसिले में हर मुमकिन संदर्भों का उल्लेख भी करता ही हूं, इससे आप भी परिचित होंगे-पुराने साथी होने के नाते। दिक् पर चर्चा करते हुए एक भी संदर्भ ऐसा नहीं आया है जिससे संस्कृत दिक् की रिश्तेदारी मन में कौंधे। अलबत्ता पहले सिद्धार्थ भाई और अब आपको भी अगर ऐसा महसूस हुआ तो एक पंक्ति ज़रूर लिखी जा सकती है कि -संस्कृत के दिक् से सेमिटिक दिक् का दूर-पास का कोई संबंध नहीं है।
दिशा सूचक दिक् पर पहले एक पोस्ट -कै घर , कै परदेस ! लिखी थी। इसके कुछ अन्य आयामों पर आगे कभी प्रयास करूंगा।
मेरे विचार से शायद दिशा के लिये दिक...व दिशा व समय के लिये सम्मिलित शब्द ’दिक्काल” हिन्दी व कई अन्य प्रादेशिक भाषाओं में प्रयुक्त होता है...
-ऎक विचार यह भी--दिक ( दिशा) + कत(संस्क्रत.. कहां, किधर, कौन सी), प्रचीन काल में दिशानिर्धारण में कठिनाई होती थी, जो अने जाने के लिये अत्यन्त आवश्यक था अतः शब्द..दिक्कत का प्रचलन हिन्दी में हुआ होगा...
मेरे विचार से सेमेटिक व इन्डो-योरोपीय दोनों भाषाएं एक मूल शाखा--इन्फ़्लेक्टेड-भाषाएं की शाखाएं हैं....अतः दोनों में सम्बन्ध तो है ही...
डॉक्टरसा,
दोनों के अन्तर्संबंधों के बारे में तो कोई दो राय ही नहीं है। वह तो है, पर हर शब्द और हर धातु का रिश्ता निकलेगा, यह ज़रूरी नहीं है। दिक् के सेमिटिक अर्थ और दिक् के संस्कृत अर्थों में कोई मेल नहीं है, ना ही भाषाई संदर्भों में किन्ही विद्वानों ने इसका हवाला दिया है। इतना ही कहना चाहता हूं...
सादर
अजित
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