हि न्दी में सैकड़ों बरसों से अरबी-फ़ारसी मूल के हजारों शब्दों की आमदरफ़्त होती रही है। रोजमर्रा की बोलचाल में इनमें से कितने ही लफ़्ज़ विविध भावों की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक हो चुके हैं। अरबी भाषा भारोपीय भाषा परिवार से जुदा है और सेमिटिक भाषा परिवार की है जबकि फ़ारसी इंडो-ईरानी परिवार की भाषा है जिसमें द्रविड़ भाषाओं को छोड़कर अधिकांश भारतीय भाषाएं शामिल हैं। सामान्यतौर पर किसी से कुछ कहने का आग्रह करने के लिए फ़रमाना शब्द की मुहावरेदार और आदरयुक्त अभिव्यक्ति लोगों को पसंद आती है। कहिए के बजाय फ़रमाइये का शिष्टाचार सभी को अच्छा लगता है। फ़रमाना शब्द हिन्दी में फ़ारसी से आए उन सैकड़ों शब्दों में शुमार है जो हिन्दी की ज़रूरत बन चुके हैं। फ़रमाना का एक रूप फ़र्माना भी है। मराठी में यही रूप चलता है। फ़रमाना बना है फ़ारसी के फ़र्माँ (फ़रमान) से जिसका अर्थ है राजाज्ञा, हुक़ुम, आज्ञापत्र, शासक का आदेश आदि। फ़रमान में निहित भावों पर गौर करें तो पता चलता है कि फ़रमाना शब्द में महज़ कहिए की अर्थवत्ता नहीं है बल्कि इसका मूल अर्थ भी ‘आदेश करिए’ ही है। बाद में शिष्टाचार की शब्दावली के तहत इसमें ‘कहिए’ की अर्थवत्ता भी समा गई। इसमें मूल भाव ‘जो हुक़्म मेरे आक़ा’ वाला ही है।
फ़रमान शब्द बहुत पुराना है और इसकी रिश्तेदारी संस्कृत के प्रमाणम् से है। संस्कृत में एक धातु है मा जिसमें सीमांकन, नापतौल, तुलना करना आदि भाव हैं। इससे ही बना है माप शब्द। किसी वस्तु के समतुल्य या उसका मान बढ़ाने के लिए प्रायः उपमा शब्द का प्रयोग किया जाता हैं। यह इसी कड़ी का शब्द है। इसी तरह प्रति उपसर्ग लगने से मूर्ति के अर्थ वाला प्रतिमा शब्द बना। प्रतिमा का मतलब ही सादृश्य, तुलनीय, समरूप होता है। दिलचस्प बात यह कि फारसी का पैमाँ, पैमाना या पैमाइश शब्द भी इसी मूल से जन्मा है। गौरतलब है कि संस्कृत 'प्रति' उपसर्ग के मुकाबले में ज़ेन्द उपसर्ग है 'पैति' । पैति+मा = पैमाँ और यह बराबर है हमारे प्रतिमान के । इस तरह प्रतिमान के समतुल्य है फ़ारसी का पैमाँ या पैमान । मा में प्र उपसर्ग लगने से बनता है प्रमा, आप्टे कोश में जिसका अर्थ है दिया है प्रतिबोध, प्रत्यक्षज्ञान, यथार्थ जानकारी आदि। किसी वस्तु का आकार, लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई आदि की जानकारी ही प्रत्यक्षज्ञान कहलाती है। प्रत्यक्षं किं प्रमाणम् । प्र+मा के साथ जब ल्युट् प्रत्यय लगता है तो बनता है प्रमाणम् जिसमें लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, आकार, विस्तार जैसे भाव शामिल हैं। इसका अगला भाव विस्तार है साक्ष्य, सबूत, शहादत आदि। प्रमाण शब्द इसी कड़ी का है। प्रमाणम् का एक अन्य है अधिकारी, आदेशकर्ता, निर्णयकर्ता आदि। सभी आयामों के साथ प्रत्यक्ष ज्ञान में सत्य और यथार्थ का भाव है। अपने मूल रूप में आदेश या आज्ञा यथार्थ की स्वीकारोक्ति या हकीक़त को मंजूर करना है सो प्रमाण का एक अन्य अर्थ आज्ञा भी हुआ, मगर प्रमाणपत्र का प्रचलित अर्थ सर्टिफ़िकेट अर्थात वह दस्तावेज़ जिससे कोई बात सिद्ध होती हो, कोई तथ्य सत्यापित होता हो।
भाषा विज्ञानियों ने इसी प्रमाण से फ़रमान का विकास माना है। इंडो-ईरानी परिवार की एक अन्य सदस्य भाषा है जेंद-अवेस्ता जिससे संस्कृत का बहनापा है। संस्कृत का प्रमाणम् जेंद में फ्रमान के रूप में उभरा जिसमें आदेश, विधान,
"फ़ारसी के फ़रमान की रिश्तेदारी चिट्ठी, आज्ञापत्र की अर्थवत्ता रखनेवाले परवाना शब्द से भी है जो हिन्दी-मराठी में खूब प्रचलित है" |
नियम या अनुज्ञा जैसे भाव हैं। इसका पह्लवी और पारसी रूप हुआ फ़्रमाना जो फ़ारसी में आकर फ़र्माँ (फ़रमान) हो गया। गौर करें है जेंद का फ्रा = प्र और संस्कृत के मा = मान पर। ये एक ही हैं। पह्लवी में प्रधानमंत्री के लिए वूजुर्ग फ्रामादार (wuzurg framādār) शब्द मिलता है। संस्कृत में भी प्रमाणपुरुष उस व्यक्ति को कहते हैं जो सर्वमान्य हो, जिसे पंच मानने को सब तैयार हों, जो सत्यवादी हो और विश्वसनीय हो। ज़ाहिर है ऐसा व्यक्ति ही न्याय कर सकता है। फ़ारसी के फ़रमान की रिश्तेदारी चिट्ठी, आज्ञापत्र की अर्थवत्ता रखनेवाले परवाना शब्द से भी है जो हिन्दी-मराठी में खूब प्रचलित है। इजाज़त के अर्थ में परवानगी शब्द भी जाना-पहचाना है। फ़ारसी में फ़रमान-बर-दार शब्द भी चलता है मगर प्रचलित है फ़र्माँबरदार अर्थात आज्ञाकारी, ताबेदार, चाकर आदि। फ़र्मांबरदारी यानी आज्ञापालन करना, स्वामीभक्ति आदि। फ़र्माँगुजार या फ़र्मांरवाँ का अर्थ है शासक, हाकिम या बादशाह। फ़र्मांगुज़ारी में रहना यानी किसी की चाकरी या शासन में रहना। किसी किस्म की माँग या तलबी के संदर्भ में भी फ़र्माईश या फ़रमाईश शब्द हिन्दीवालों की ज़बान पर चढ़ा रहता है। यह भी इसी मूल से निकला है। फरमाईशी यानी जिसकी फ़रमाईश की गई हो। जॉर्जियाई में भी इस मूल से बना है पारमानी जिसका अर्थ है आज्ञापत्र, परमिट या लाईसेंस। आर्मीनियाई में फ्र से प का लोप हो गया और बचा रह गया ह्र, इससे बना ह्रामन जिसमें आदेश का भाव है।
मा में निहित पैमाईश के भावों पर कुछ और गौर करें। अंग्रेजी में मेट्रिक्स का अर्थ होता है मापना। यह बना है भारोपीय धातु मे me से जिसके लिए संस्कृत मे मा धातु है। इन दोनों मूल धातुओं में नाप, माप, गणना आदि भाव हैं। अंग्रेजी के मेट्रिक्स का रिश्ता अंतरिक्ष की परिमाप और उसके विस्तार से भी जुड़ता है। यानी बात खगोलपिंडों तक पहुंचती है। भारतीय परम्परा में मा धातु की अर्थवत्ता भी व्यापक है। मा धातु में चमक, प्रकाश का भाव है जो स्पष्ट होता है चन्द्रमा से। प्राचीन मानव चांद की घटती-बढ़ती कलाओं में आकर्षित हुआ तो उसने इनमें दिलचस्पी लेनी शुरू की। स्पष्ट तो नहीं, मगर अनुमान लगाया जा सकता है कि पूर्ववैदिक काल में कभी चन्द्रमा के लिए मा शब्द रहा होगा। मा के अंदर चन्द्रमा की कलाओं के लिए घटने-बढ़ने का भाव भी अर्थात उसकी परिमाप भी शामिल है। यूं चंद् धातु में भी चमक का भाव है और इससे ही चन्द्रमा शब्द बना है किन्तु चन्द् शब्द को विद्वानों ने बाद का विकास माना है। गौर करे कि फारसी का माह, माहताब, मेहताब, महिना शब्दों में मा ही झांक रहा है जो चमक और माप दोनों से संबंधित है क्योंकि उसका रिश्ता मूलतः चान्द से जुड़ रहा है जो घटता बढ़ता रहता है। और इसकी गतियों से ही काल यानी माह का निर्धारण होता है। अंग्रेजी के मंथ के पीछे भी यही मा है और इस मंथ के पीछे अंग्रेजी का मून moon है। रिश्तेदारी साफ है। माप-जोख सबसे पहले अगर हमने सीखी तो धरती और चांद से ही।
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9 कमेंट्स:
हमेशा की तरह शानदार, लेकिन प्रस्तुति और भी रोचक.
प्रमाण से फॉर्म तक और माप से मीट्रिक्स तक - गज़ब की जानकारी!
फ़रमान की व्युप्ति का आपने यथार्थ प्रमाण दे दिया, आभार
चाँद और सूरज से दूरी नाप ली हमने मगर,
आओ देखे , फासला कितना है अपने दरमियाँ
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'म' से, 'मे' से, 'माँ' से सीखी दूरियाँ, नज़दीकियाँ,
'मैं' जो आया बीच तो बाकी बची तन्हाईया.
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'नापा' है चाँद जबसे, मअयारे हुस्न बदला,
पैमाना-ए-नज़र अब माशूक की कमर है.
..........आगे और भी है..'आत्ममंथन' पर......
http://aatm-manthan.com
क्या अन्तर पड़ता है, स्रोत तो बहुधा एक ही होती है।
*होता है।
रोचक प्रस्तुति गज़ब की जानकारी|
आप ने लिखा है, ' दिलचस्प बात यह कि फारसी का पैमाँ, पैमाना या पैमाइश शब्द भी इसी मूल से जन्मा है। बस, वर्ण विपर्यय के चलते माप का पैमाँ हो गया। मा में प्र उपसर्ग लगने से बनता है ' संस्कृत 'प्रति' उपसर्ग के मुकाबले में ज़न्द उपसर्ग है 'पैति'. मेरे ज्ञान अनुसार पैमाना वर्ण विपर्यय से नहीं बना बल्कि मा में ज़न्द उपसर्ग 'पैति' लगने से बना है, अर्थात पैति+मा, और यह बराबर है हमारे प्रतिमान के .'पैति' उपसर्ग से बने कुछ और शब्द हैं: पैदा, पैवासता, पैवंद ,पदयाब.
@बलजीत बासी
शुक्रिया बहुत बहुत । आप सही हैं । मैने आवश्यक संशोधन कर दिया है ।
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