ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
Monday, November 28, 2011
नीमहकीम और नीमपागल
इ स बार एक मराठी शब्द से सफ़र की शुरुआत। मराठी में आधा के अर्थ में निम्म, निम्मा, निम, निमा, निम्या जैसे शब्द बोलचाल की भाषा में सनाई पड़ते हैं। अक्सर कहा जाता है कि शिवाजी के काल में राजकाज की भाषा फ़ारसी थी और मराठी पर फ़ारसी का असर उसी दौर की देन है। मगर यह सरलीकरण है। राजकाज की भाषा होने से सिर्फ़ प्रशासनिक शब्दावली का लोक-व्यवहार बढ़ने की बात समझ में आती है। मुहम्मद तुग़लक से भी पहले से चौदहवीं सदी से पूर्व, तुर्क-मुसलमानों का दक्षिण भारत में मुकाम हो चुका था। समूचे देश में आज जो भाषाएँ बोली जा रही हैं उनके साथ फ़ारसी का सम्बन्ध निश्चित ही मुस्लिम शासन की देन है और यह रिश्ता सात-आठ सदी पुराना है। मगर देखा जाए तो भारत-फ़ारस सम्बन्ध तो ईसापूर्व से चले आ रहे हैं। ईरान में फ़ारसी से पहले पहलवी अस्तित्व में थी, उससे पहले अवेस्ता थी, तो इन भाषाओं का प्रभाव भी भारतीय भाषाओं पर रहा ही होगा। जब हम हिन्दी या मराठी पर फ़ारसी प्रभाव की बात करते हैं तो उस फ़ारसी से आशय होता है जो अरबी की छाप और इस्लामी संस्कार के साथ राजभाषा के रूप में भारत आई।
हिन्दी में नीम से जुड़े कुछ शब्द काफ़ी प्रचलित हैं जैसे- नीमहकीम यानी यानी अधकचरा ज्ञान रखने वाला। नीमपागल यानी आधा पागल, नीमबेहोश यानी अर्धतंद्रा में, नीमशब यानी आधी रात वगैरह वगैरह। कुछ दशक पहले तक नीम से बने सामासिक शब्दों का प्रयोग हिन्दी में खूब होता था मगर बाद में इनका इस्तेमाल घटता चला गया जैसे नीमरोज़ यानी आधा दिन, नीमआस्तीन यानी आधी बाँहों वाला वस्त्र, नीमख्वाब अर्थात निन्द्रालस नेत्र, सपनीली आँखें, नीमबिस्मिल यानी अधमरा, जिसका गला आधार रेता गया हो, नीमकश यानी जिसे आधा खींचा गया हो, जो आधा धँसा हो, जैसे तीरे-नीमकश, नीमनिगाह यानी कनखियों से देखना, नीमबाज यानी मादक नेत्र वगैरह वगैरह। इसके विपरीत मराठी में नीम अर्थात निम से बने कई शब्द आज भी प्रचलित हैं जैसे निमकंठीदार यानी अंगरखा। भाव है ऐसा वस्त्र जो आधे गले का हो। ज़ाहिर ऐसी पोशाक सामने से खुली होती है। उसे जैकेट की तरह ही पहना जाता है। निमपट, निमशाई यानी आधा। निमसार यानी आधा महसूल, निमा यानी जैकेट, निमताजीम यानी आधा सम्मान देना, निमखाई यानी व्यापारिक या कृषि उत्पाद का आधा, निमगुंडीचा यानी जैकेट या अंगरखा, निमगोणी या निमकगोणी यानी कर या राजस्व सम्बन्धी या फिर आधी बोरी अनाज, निमगोरा यानी साँवला या गेहूँआ, निमगोल यानी चपटा या अर्धवलयाकार, निमचा यानी बरछी या छोटी तलवार, निमजरी यानी सोने-चांदी की आधी बुनावट का वस्त्र वगैरह वगैरह।
बहरहाल बात मराठी के निम या निम्म शब्दों की हो रही थी। फ़ारसी के नीम मे ‘न’ के साथ दीर्घ स्वर लगता है जबकि मराठी में इसका रूप ह्रस्व हो जाता है। मद्दाह कोश के मुताबिक फ़ारसी में नीम के दो रूप हैं। पहला है नीमः जिसका अर्थ है आधा या एक प्रकार का ऊँचा पजामा। दूसरे रूप में विसर्ग नहीं लगता अर्थात नीम जिसमें अल्प, न्यून, थोड़ा या आधा जैसे भाव हैं। फ़ारसी में नेम की आमद पहलवी के निम्क से हुई है जिसका आशय अर्धांश ही है। उत्तर पूर्वी ईरान की सोग्दियन भाषा में भी निम्क का यही अर्थ है। निम्क का एक रूपान्तर पारसिग भाषा में नेम या नेमग भी होता है। यहाँ गौरतलब है कि मराठी में किन्ही शब्दो में ‘निमका’ का इस्तेमाल भी हुआ है जिससे ज़ाहिर होता है कि इसकी आमद महाराष्ट्र में इस्लाम के शुरुआती दौर में ही हो गई थी। नीम के निम्क रूप से स्पष्ट होता है कि पहलवी या पारसिग का शुद्ध रूप तब भी बाकी था। इस्लाम के आगमन के बाद ईरान की मूल पारसी संस्कृति को बहुत नुकसान पहुँचा। फ़ारसी में अरबी शब्दों का रेला घुस आया। मूल पहलवी धीरे धीरे गायब होने लगी। पहलवी का एक नाम पारसिग भी है। ईरान में बचे-खुचे अग्निपूजक पारसी पारसिग के संरक्षण और विकास के लिए काम कर रहे हैं।
ईरानी भाषाओं में नीम के जितने भी रूपान्तर हैं वे अवेस्ता के नएम naema से उत्पन्न माने जाने चाहिए। अवेस्ता के नएम का अर्थ है अर्धांश, हिस्सा, या हाशिया आदि। ये सभी अर्थ नएम के संस्कृत रूप नेम से मिलते हैं। या यूँ कहें कि फ़ारसी का जो नीम है वही संस्कृत का नेम है। यह ज़रूर है कि जहाँ अवेस्ता के नएम और संस्कृत के नेम की अर्थवत्ता व्यापक है वहीं फ़ारसी तक आते आते इसके नीम रूपान्तर में अर्थसंकोच की प्रवृत्ति दिखाई देती है और इसमें थोड़ा, न्यून, अल्प या आधा जैसे भाव रह जाते हैं। संस्कृत के नेम का एक अर्थ है अर्ध अर्थात आधा। यह नेम उपसर्ग की तरह जब चन्द्र के आगे लगता है तब बनता है नेमचन्द्र अर्थात नवचन्द्र, नया चाँद, न्यूमून आदि। हिन्दी में नेमचन्द्र व्यक्तिनाम होता है। इसके अलावा नेम में परिधि, घेरा, अंश, थोड़ा, पार्ष्व, बगल, बाजू, किनारा, दायरा, काल, अवधि, आधार, नींव, छिद्र, सन्ध्या, जड़ और चावल आदि। इतनी विस्तृत अर्थवत्ता के बावजूद नेम के अन्दर जो प्रमुख अर्थ है वह है अंश या भाग जिसका रूढ़ अर्थ है अर्ध या आधा। नेम के भीतर जो भाव है वह सम्पूर्णता का है। अंश कभी निरपेक्ष नहीं हो सकता। अंश निश्चित ही किसी सम्पूर्ण आकार की इकाई या हिस्सा है। मिसाल के तौर पर अर्धचन्द्र के आकार को देखें। आसमान में जब नया चान्द नज़र आता है तो हँसिये जैसी आकृति के बावजूद उसके चारों और वलयाकार दीप्ति स्पष्ट दिखती है यानी प्रकृति भी यह स्पष्ट करती है कि अर्धचन्द्र अपने आप में पूर्णचन्द्र का अंश है।
नेम की मूल धातु है नम्। ध्यान रहे यह वही नम् है जिससे नमस्कार, नमन, नमामि, नम्रता, नमिता जैसे शब्द बने हैं जिनमें विनय सम्मान में झुकने का भाव हैं। झुकने आदि के लिए हिन्दी में प्रचलित नमना या नवांना ( शीश नवांना ) जैसे शब्द भी नम् धातु से ही बने हैं । झुकने के अर्थ में ही नत् या नत शब्द भी है जो नम् से ही निकले हैं। विनत, विनती और बिनती जैसे देसी शब्द जो प्रार्थना के अर्थ में खूब प्रचलित हैं। प्रणत, प्रणति, प्रणिपात आदि शब्द भी इसी कड़ी में आते हैं। नमनि, नमनीय और यहां तक की नमस्कारना जैसे शब्द भी विभिन्न बोलियों में चलते है। नम् धातु में झुकने, घूमने, मुड़ने, मोड़ने जैसे अर्थों पर गौर करें। योग मुद्राओं में नमनीयता का महत्व है क्योंकि इसमें शरीर को विभिन्न तरह से मोड़ा जाता है। सामान्य नमस्कार में भी शरीर मुड़ता है, झुकता है। नमना इसे ही कहते हैं। इस अवस्था में शरीर के स्पष्ट रूप से दो भाग होते हैं। कमर से ऊपर का हिस्सा ज़मीन की ओर झुका होता है। ये दो भाग शरीर को आधे आधे या दो हिस्से में विभक्त करते हैं। यही भाव नम् से बने ‘नेम’ में और फिर फ़ारसी के ‘नीम’ में विस्तारित हुए हैं यानी आधा, हिस्सा, अंश आदि। वर्तुल, घेरा, दायरा जैसे अर्थं के मूल में मोड़ या घेरा ही है।
संस्कृत की कल् धातु में गणना का भाव निहित है। कल् का एक अर्थ काल की इकाई भी है। समूचा वक्त छोटे-छोटे अंशों में विभक्त है। ये अंश मिल कर ही काल बनते हैं। इसी तरह भाग्य का एक अर्थ काल भी है। भज् धातु से भाग्य बना है। बख्त, वक्त जैसे इसके रूपान्तर भी हैं जिनका अर्थ भी समय या काल ही है। भज् धातु का अर्थ भी मूलतः अंश ही है। यानी भज् से बना भाग्य। यहाँ भी अंश-अंश से सम्पूर्ण होने वाली बात स्पष्ट है। प्रसंगवश भज् से ही बना है भक्त जिसका अर्थ भी अंश ही है। इसका दूसरा अर्थ है आराधक। भक्त परमशक्ति यानी ईश्वर का अंश ही है। विभक्त यानी दूर होने की वजह से परमशक्ति में लीन होने की इच्छा, चाहना ही भक्ति है। चावल को भी भक्त कहते हैं। भात इससे ही बना है। नेम का एक अर्थ चावल भी है, मुझे लगता है यह बाद में भात के आधार पर ही नेम के लिए भी भात शब्द का प्रयोग विद्वानों ने कहीं किया होगा। बाद में किसी कोशकार ने इस अर्थ को भी चुन लिया होगा।
संबंधित आलेख- 1.हैलो! हाय!! प्रणाम!!! नमस्ते!!!!2.क़िस्मत क़िसिम-क़िसिम की3.सबका भाग्य विधाता कौन ?4.अपाहिज कुर्सी, विकलांग व्यवस्था, निकम्मे नेता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 कमेंट्स:
सात शताब्दियों में मूल भाषा से घुल मिल गयी है यह।
नीम का नीमन ज्ञान।
# झाड़ पर 'नीम' के वह चढ़ बैठा,
कह रहा कि 'हकीम' साहब हूँ.
'पगला' नीचे से एक चिल्लाया,
मेरी क्लिनिक पे तू क्यों चढ़ आया ?
# एक चिकित्सक हूँ आयुर्वेद का मैं *,
'नीम' खाता हूँ और खिलाता हूँ,
"नेम" मुझको मिला है 'नीम हकीम',
सबको 'इंजेक्शन भी लगाता हूँ !
*सर्टिफिकेटधारी !
http://aatm-manthan.com
पोस्ट का यह वाक्य - 'मगर देखा जाए तो भारत-फ़ारस सम्बन्ध तो ईसापूर्व से चले आ रहे हैं।' मेरे लिए तो जानकारियों के नए सोपान खोलनेवाला है।
गुलज़ार साहब के गाने की एक लाइन है 'निम्मी निम्मी ठंड और आग में'
क्या ये निम्मी इसी कड़ी का शब्द है?
और जो संस्कृत शब्द निमिष है वो भी क्या इसी नेम से संबंधित है?
My brother suggested I may like this website. He
used to be entirely right. This publish truly made my day.
You can not consider simply how much time I had spent
for this information! Thank you!
Here is my site - Bunion Pain causes
Post a Comment