Friday, April 6, 2012

टिकट की रिश्तेदारियाँ

ticket

गर पूछा जाए कि फ़िरंगी ज़बान के वे कौन से शब्द हैं जिनका इस्तेमाल भारतीय भाषाओं के लोक साहित्य में खूब हुआ है । फिरंगी शब्द का मतलब यूँ तो विदेशी होता है मगर हिन्दी में फ़िरंगी से अभिप्राय अंग्रेजों से है इसलिए फ़िरंगी भाषा यानी अंग्रेजी भाषा से ही आशय है । हिन्दी और उसकी आंचलिक बोलियों में जैसे राजस्थानी, मालवी, ब्रज, बुंदेली, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, छत्तीसगढ़ी आदि भाषाओं के लोकगीतों के संदर्भ में ऐसे शब्द गिने-चुने ही हैं मगर इनमें भी फ़िरंगी के साथ रेल और टिकट ऐसे हैं जिनका उल्लेख कई लोकगीतों में हुआ है । गौरतलब है कि भारत में रेल और टिकट शब्द का इस्तेमाल एक साथ ही शुरू हुआ । 1853 में भारत में रेल चलने के बाद ही लोग टिकट से परिचित हुए । ज़ाहिर है कि रेल से ज्यादा तेज यातायात सेवा इससे पहले तक नहीं थी । यह भी दिलचस्प है कि हिन्दी के तेज और अंग्रेजी के टिकट में रिश्तेदारी है क्योंकि टिकट शब्द भी भारोपीय मूल का ही है । टिकट शब्द अंग्रेजी के सबसे ज्यादा बोले जान वाले शब्दों में एक है । टिकस, टिकिट, टिकट, टिकटवा, टिकस बाबू जैसे अनेक शब्द हैं जो इससे बने हैं और लोकांचल में खूब बोले जाते हैं । टिकट जैसी व्यवस्था विभिन्न सेवाओं के लिए प्रचलित हुई और बाद में देशसेवा के लिए भी राजनीतिक पार्टियों में टिकट खरीदे बेचे जाने लगे ।
चिपकाना, सटाना, छेदना
टिकट शब्द का रिश्ता कि फ्रैंकिश भाषा में एस्टिकर से है जिसका अर्थ होता है चिपकाना, नत्थी करना आदि होता है । एटिमआनलाइन के मुताबिक इस एस्टिकर का रिश्ता पुरानी अंग्रेजी के stician से जुड़ता है जिसमें भेदना, चस्पा करना जैसे भाव हैं । एस्टिकर से पुरानी फ्रैंच का एस्टिकट शब्द बना जिसमें चिप्पी, रुक्का या पर्चा है । मध्यकालीन फ्रैंच में इससे एटिकट शब्द बना जिससे अंग्रेजी का टिकट शब्द सामने आया । एटिमआनलाइन के मुताबिक 1520 के दौर में यह शब्द मौजूदा रूप में प्रकट हुआ जिसमें शार्ट नोट, रुक्का या किसी दस्तावेज का भाव था । 1670 तक इसमें टिकट, लाइसेंस या परमिट जैसे भाव जुड़ गए । इनके मूल में भारोपीय धातु *steig- है जिसमें खोसना, खुबना, चुभोना जैसे भाव हैं । प्रकारान्तर से इसमें तीक्ष्णता का आशय उभरता है । याद रहे महत्वपूर्ण दस्तावेज के साथ टिकट या रसीद नत्थी करने के लिए पिन का उपयोग किया जाता है । नत्थी करने या सटाने के आशय का अर्थ विस्तार चिपकाना हुआ । अंग्रेजी का स्टिकर भी इसी मूल का है जिसमें चिपचिपी सतह वाले लेबल का आशय है । कुल मिला कर टिकट एक ऐसी रसीद है जिसे किसी सेवा के उपयोग हेतु अधिकार पत्र, लाइसेंस या परमिट का दर्जा प्राप्त है । निर्धारित प्रारूप में आवेदन करने या सेवा का मूल्य चुकाने के बाद आधिकारिक सील ठप्पे वाला यह रुक्का टिकट कहलाया । रसीदी टिकट भी प्रचलित है । 
तीक्ष्ण, तीखा और मार्गदर्शक
भारोपीय धातु *steig- से रिश्तेदारी वाली संस्कृत धातु तिज् है जिसमें तीक्ष्णता का भाव है । मोनियर विलियम्स के कोश में तिज्, तिक् और तिग् समानधर्मी धातुओं का उल्लेख है जिनकी अर्थवत्ता में यही सब बातें हैं । तिज् का अवेस्ता में तिघ्री, तिग्रा जैसे रूपान्तर सामने आए । सिविलाइजेशन ऑफ़ द ईस्टर्न ईरानियंस इन एन्शिएंट टाइम्स पुस्तक में विल्हेम जैगर तिघ्री और तिग्मा की तुलना करते हुए प्राचीन ईरानी के स्तिज का उल्लेख करते हुए उसमें निहित तीखी नोक वाले हथियार का आशय बताते हैं । अंग्रेजी के स्टिक stick शब्द से छड़ी का अर्थ सबसे पहले उभरता है । नोकदार छड़ी आदिमानव का पसंदीदा हथियार था । मोनियर विलियम्स और आप्टे कोश में तिग्म का अर्थ तीखा, नोकदार, ज्वलनशील, प्रखर आदि बताते हैं । निश्चित ही भाला, तीर जैसे हथियारों का आशय निकलता है । इन तमाम शब्दों का रिश्ता स्टिक से है जिसके क्रिया रूप में सटाना, जोड़ना, चस्पा करना, चिपकाना जैसे भाव हैं और संज्ञा रूप में इसमें छड़ी, सलाख, दण्ड, डण्डी, संटी जैसे आशय हैं । मूल रूप से छड़ी या दण्ड भी प्राचीन काल में धकेलने, चुभोने, हाँकने, निर्देशित करने के काम आते थे । अंकुश की तीक्षणता और उसका शलाका-रूप याद करें । 
तेग़ यानी तलवार, कृपाण
त्तरी ईरान की जज़ाकी भाषा में चुभन और दंश के अर्थ में तिग शब्द है जिसे तलवार के अर्थ वाले तेग शब्द से जोड़ कर देखें । पहलवी में तिग्रा शब्द है जिसका अर्थ तलवार होता है । इसी तरह जॉन प्लैट्स के कोश में तेग़, तेग़ा जैसे फ़ारसी शब्दों का उल्लेख है जिनका अर्थ तलवार या कृपाण होता है । इन शब्दों का विकास ज़ेंद के तिघा से हुआ जिनका सम्बन्ध संस्कृत के तिज्, तिग्, तिग्म से ही है । तिग्म में प्रखरता, चमक , किरण का भाव है । तिग्मांशु का अर्थ सूर्य है । तलवार या कृपाण को हिन्दी में भी तेग ही कहते हैं । सिखों के दशम गुरू का नाम तेग बहादुर है । भारोपीय स्तिग, ईरानी स्तिज, संस्कृत की तिज, तिग और जेंदावेस्ता की तिघ् धातुओं में धार, तीक्ष्णता वाले अर्थों का विकास तिग्म, तेग, स्टिक जैसे शब्दों मे हथियार के रूप में हुआ । तीर का निशान राह बताता है । दिशासूचक के रूप में भी तीर लगाया जाता रहा है । पहलवी में तिग्रा तीक्ष्ण, धारदार है तो अवेस्ता का तिघ्री तीर का पर्याय है । स्टिक पहले हथियार थी, बाद में सहारा बनी । अशक्त, दृष्टिहीन व्यक्ति छड़ी से टटोलकर राह तलाशता है ।
तेज, तेजस, तेजोमय
तिज् से ही बना है हिन्दी का तेज शब्द । उर्दू-फारसी में एक मुहावरा है तेज़ी दिखाना। इसका मतलब है होशियारी और शीघ्रता से काम निपटाना। तेज शब्द हिन्दी में भी चलता है और फारसी में भी । फर्क ये है कि जहां हिन्दी के तेज में नुक़ता नहीं लगता वहीं फारसी के तेज़ में लगता है । फारसी-हिन्दी में समान रूप से लोकप्रिय यह शब्द मूलतः इंडो़-इरानी भाषा परिवार का शब्द है। संस्कृत और अवेस्ता में यह समान रूप से तेजस् के रूप में मौजूद है । दरअसल हिन्दी , उर्दू और फारसी में जो तेज, तेज़ है उसके मूल में है तिज् धातु जिसका मतलब है पैना करना, बनाना । उत्तेजित करना वगैरह। तिज् से बने तेजस का अर्थ विस्तार ग़ज़ब का रहा। इसमें चमक, प्रखरता, तीव्रता, शीघ्रता जैसे भाव तो हैं ही साथ ही होशियारी, दिव्यता, बल, पराक्रम, चतुराई जैसे अर्थ भी इसमें निहित है । इसके अलावा चंचल, चपल, शरारती, दुष्ट, चालाक शख्सियत के लिए भी तेज़ विशेषण का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी में तेजवंत, तेजवान , तेजस्वी, तेजोमय, तेजी जैसे शब्द इससे ही बने हैं । इसी तरह उर्दू – फारसी में इससे तेज़ निग़ाह, तेज़ तर्रार, तेज़ दिमाग़, तेज़तर, जैसे शब्द बने हैं जो व्यक्ति की कुशलता, होशियारी, दूरदर्शिता आदि ज़ाहिर करते हैं । दिलचस्प बात ये कि तीव्रगामी, शीघ्रगामी की तर्ज पर हिन्दी में तेजगामी शब्द भी है। सिर्फ नुक़ते के फर्क़ के साथ यह लफ्ज़ फारसी में भी तेज़गामी है ।
तीता और तीखा स्वाद
स्वाद के सन्दर्भ में जो तिक्त, तीखा जैसे शब्द भी इसी तिज् में निहित तीक्ष्णता से जुड़ते हैं । तेजी़ में तीखेपन का भाव भी है। तेज धार या तेज़ नोक से यह साफ है । दरअसल संस्कृत शब्द तीक्ष्ण के मूल में भी तिज् धातु है । तिज् से बना तीक्ष्ण जिसका मतलब होता है नुकीला, पैना, कठोर, कटु, कड़ा वगैरह। उग्रता , उष्णता, गर्मी आदि अर्थों में भी यह इस्तेमाल होता है । तीक्ष्ण का ही देसी रूप है तीखा जो हिन्दी के साथ साथ उर्दू में भी चलता है । इस तीखेपन में मसालों की तेजी भी है । तेज़ मिर्च-मसाले वाले भोजन को तीखा कहा जाता है । तिक्त भी इसी मूल का है जिससे मालवी, राजस्थानी में तीखे के अर्थ वाला तीता शब्द बना । भारतीय मसालों की एक अहम कड़ी के रूप में तेजपान, तेजपात, तेजपत्ता या तेजपत्री के रूप में समझा जा सकता है । अपनी तेज गंध और स्वाद के चलते तेजपत्र को भारतीय मसालों में खास शोहरत मिली हुई ।

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4 कमेंट्स:

Sanjay Karere said...

रेलवे टिकट 25 साल पुराना है... :)

batrohi said...

सचमुच शब्दों पर इतनी अंतरंगता के साथ बातचीत करने वाला ब्लॉग मैंने नहीं देखा. आयोजकों को बधाई.

ANULATA RAJ NAIR said...

ज्ञान वर्धन का रोचक तरीका.............

आभार.

प्रवीण पाण्डेय said...

हमें नहीं मालूम था कि रेल टिकट इतना व्यापक अर्थ है।

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