Wednesday, April 25, 2012

मुलम्मे की चमक

mulamma

कि सी हलकी धातु पर कीमती धातु की परत चढ़ाने की परम्परा दुनियाभर में प्राचीनकाल से प्रचलित है जिसे मुलम्मा कहा जाता है । मुलम्मा शब्द भारत की क़रीब क़रीब सभी प्रमुख भाषाओं में प्रचलित है । हिन्दी की तो ख़ैर सभी बोलियों में इसे खूब लिखा-पढ़ा-समझा जाता है । मूलतः यह सेमिटिक भाषा परिवार का शब्द है और बरास्ता फ़ारसी, अरबी भाषा का यह शब्द भारतीय भाषाओं में दाखिल हुआ । यह दिलचस्प है कि अपने ख़ास ठिकाने पर कोई शब्द किसी अन्य रूप में होता है और फिर बदली हुई अर्थवत्ता के साथ उसका कुछ और रूपान्तर किसी अन्य भाषा में होता है । वर्तमान में मुलम्मा का जो अर्थ प्रचलित है उसमें कलई करने या पॉलिश करने का आशय है । गिलट की हुई धातु यानी सोने-चांदी का पानी चढ़ी धातु को भी मुलम्मा कहते हैं । मुलम्मा में नकली पॉलिश का भाव अब प्रमुख हो गया है । तात्पर्य यह है कि ऐसा पदार्थ जो कभी जगमग था पर अब उसकी चमक फीकी पड़ गई है । अगर उसे घिस-माँज दिया जाए तो भी वह चमक उठता है । यानी किसी पदार्थ की चमक ही उसका मुलम्मा है । मगर अब मुलम्मा के साथ चमकीली परत, सतह, पॉलिश या आवरण का आशय जुड़ गया है ।
मूल अरबी में मुलम्मा से अभिप्राय चमक से है । आवरण, लेपन, कलई जैसे आशय इसमें बाद में जुड़े । मुलम्मा mukkama के मूल में है अरबी का लम्अ lam‘ जिसमें द्युति, दीप्ति, कांति, झलक, चमक जैसे भाव हैं । बनावटी, दिखावटी और आडम्बरपूर्ण व्यवहार के सम्बन्ध में भी मुलम्मा शब्द का मुहावरेदार प्रयोग होता है जैसे – “कई बार लगता है मानो धर्मनिरपेक्षता हमारी सांविधानिक पहचान न होकर मुलम्मा है ।” सस्ती धातु से बने बरतनों और गहनों पर सोने चांदी का पानी चढ़ाने वाले कारीगर को मुलम्मासाज कहते हैं । यह प्रक्रिया मुलम्मासाज़ी या मुलम्माकारी कही जाती है । मुलम्मा के तद्भव रूप मुलमा में तुर्की का ची प्रत्यय लगाकर मुलमची जैसा शब्द भी बनाया गया जिसका अर्थ भी मुलम्मासाज़ ही होता है । मराठी में मुलम्मा को मुलामा कहते हैं । हैंस व्हेर और मिल्टन कोवेन के अरबी-इंग्लिश कोश के मुताबिक लम्अ का अर्थ ज्योति, झिलमिल, जगमग, दिपदिप, द्युति, चमक आदि का भाव है । यह चमक प्रतिभा की भी हो सकती है, किसी वस्तु की भी । इसमें परिमार्जन से पैदा कांति का भाव भी है और शुद्धिकरण से पैदा दीप्ति भी ।
फ्रांसिस जोसेफ़ स्टेंगास के फ़ारसी अंग्रेजी कोश के में मुलम्मा के जो अर्थ प्राथमिक क्रम में दिए हैं उनके अनुसार अलग अलग रंगों के घोड़ों को भी मुलम्मा कहते हैं । एक विशिष्ट काव्य विधा जिसमें किसी छंद का आधा हिस्सा एक भाषा में और आधा किसी दूसरी भाषा में होता है । ऐसा प्रयोग दोहा या शेर जैसे छंद में किया जाता है जिसमें दो पंक्तियाँ होती हैं । आमतौर पर मुलम्मा विधा का ज़िक्र तुर्की फ़ारसी के संदर्भ में हुआ है जिसमे अरबी का मिश्रण होता है । गौरतलब है कि इस्लामी प्रभाव बढ़ने के बाद राजनीतिक संदर्भों में फ़ारसी और तुर्की पर अरबी प्रभाव बढ़ने लगा था । अरबी प्रभाव वाली फ़ारसी और अरबी प्रभाव वाली तुर्की का वहाँ के विद्वानों ने समय समय पर विरोध किया मगर फिर भी अरबी का असर बना रहा । अरबी की यही चमक या झलक जिस विधा में सर्वाधिक रही उसे ही मुलम्मा कहा गया । तीसरे क्रम पर स्टेंगास मुलम्मा का अर्थ किसी धातु पर दूसरी धातु के विद्युत-लेपन, आवरण अथवा परत चढ़ाना बताते हैं । स्पष्ट है कि मुलम्मा का मुख्य अर्थ चमक या झलक ही है ।
जो भी हो, यह चमक ही उस वस्तु की नई पहचान है । इसीलिए समझा जा सकता है कि एक काव्यविधा के तौर पर मुलम्मा से आशय उस विशिष्ट छंद से है जिसमें एक भाषा पर दूसरी भाषा की छाप नज़र आती है । इसे हिन्दी और हिन्दुस्तानी से समझ सकते हैं । आज़ादी से पहले की हमारी ज़बान हिन्दुस्तानी थी जिसमें अरबी, फ़ारसी शब्दों का सुविधानुसार प्रयोग होता था । आज़ादी के बाद परिनिष्ठित हिन्दी ने ज़ोर पकड़ा और फ़ारसी-अरबी शब्दों का प्रयोग काफ़ी कम हुआ । तो पहले की जो हिन्दुस्तानी थी वो मुलम्मा थी, क्योंकि उस में अरबी-फ़ारसी की झलक थी । ध्यान रहे मुलम्मा यानी झलक । चाँदी पर सोने का मुलम्मा यानी सोने की झलक । पीतल पर चांदी का पॉलिश यानी सोने की झलक ।

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4 कमेंट्स:

rdsaxena said...

वडनेरकर जी , मुलम्मे की ज़रूरत दिनोंदिन बढती जा रही है साथ ही उसकी अहमियत भी । आज हाल यह है कि मुलम्मा न हो तो कोई असल को ही ना पूछे । मुलम्मा चढाना और उसे चढाए रखना भी एक बडा हूनर है !

यह बात पहली दफ़ा पता चली कि शेर अगर दो ज़ुबान मे कहे गये हों तो मुलम्मे हो जाते हैं । शुक्रिया ।

Mansoor ali Hashmi said...

फीकी हुई 'चमक' तो 'मुलम्मा' चढ़ा लिया,
झुर्रिया आई चेहरे पे 'Botox' लगा लिया,
'हिंदुस्तानियत' की 'चमक' मेल-जोल में,
'हिंदी' में 'मतला', 'उर्दू' का 'मक़ता' लगा दिया.

http://aatm-manthan.com

दिनेशराय द्विवेदी said...

अंग्रेजी के पॉलिश शब्द के आयात से मुलम्मा शब्द का व्यवहार कम हो चला है।

प्रवीण पाण्डेय said...

आपने शब्दों में ज्ञान का मुलम्मा चढ़ा दिया।

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