Tuesday, October 30, 2012

बच के रहना उस्ताद से !!

सम्बन्धित शब्द-1.गुरुघंटाल. 2.इच्छा. 3.ईंट. 4.ठग. 5.पाखंडी. 6.पालक.7.मदारी. 8.जादूगर. 9.पंडित

क्सर शब्द अपना चोला बदल लेते हैं । “हरि रूठे गुरु ठौर है । गुरु रूठे नहीं ठौर।।” जैसी उक्ति पर भरोसा करने वाले समाज ने जब गुरु की होशियारी, सूझबूझ तथा दूसरों पर भारी पड़ने जैसे गुणों का प्रयोग अभिव्यक्ति को बढ़ाने के लिए किया तो गुरु की अर्थवत्ता तो बढ़ गई मगर इसकी अवनति भी हो गई । अब चोर, ठग, जालसाज़, धंधेबाज, चालबाज सब गुरु की श्रेणी में आ गए । ‘गुरुघंटाल’ जैसा मुहावरा और “गुरु, हो जा शुरु” जैसी कहावत चल पड़ी । ‘उस्ताद’ का भी यही हाल है और गुरुपद पर पहुँचे हुए तमाम लोग उस्ताद का दर्ज़ा भी पा गए । अरबी, फ़ारसी और हिन्दुस्तानी में तो उस्ताद की महिमा कायम रही मगर हिन्दी में बहुत पहले से इस शब्द ने अपना रुतबा छोड़ दिया था, मगर इसकी रच-बस बनी रही । यूँ उस्ताद का अर्थ गुरू, शिक्षक, प्रशिक्षक, हुनरमंद, कलाकार, हरफ़नमौला होता है । उस्ताद के स्त्रीवाची ‘उस्तानी’ का जन्म हिन्दुस्तानी की कोख से हुआ है जिसमें गुरुपत्नी या गुरुआनी का भाव है ।
स्ताद’ शब्द को अरबी का समझा जाता है मगर मूलतः यह सामी परिवार का न होकर भारत-ईरानी परिवार का शब्द है । अरबी में इसका रूप ‘उस्ताध’ है और फ़ारसी में ‘ओस्ताद’। हिन्दी और भारत की अन्य बोलियों में भी उस्ताद के कई रूप प्रचलित हैं जैसे उस्ताद, उत्ताद, उस्ताज, वस्ताद ( मराठी, दक्कनी ) आदि । यूँ देखा जाए तो उस्ताद के उस्ताज रूप को गँवारू समझा जाता है और माना जाता है कि उस्ताद में यह प्रदूषण भारत आने के बाद आया होगा मगर ऐसा नहीं है । अरबी में उस्ताद का बहुवचन असातिजा(ह) होता है । उर्दू में इसे असातिजा लिखा जाता है जैसे “मदरसों में असातिजा ( शिक्षकों) की भरती।“ मज़े की बात यह कि एकवचन रूप में अरबी में उस्ताद के लिए अरबी के ‘दाल’ वर्ण का प्रयोग होता है मगर बहुवचन में इसी ‘द’ मे तब्दीली होती है और वह ‘ज़’ अर्थात ‘ज़ाल’ में बदल जाता है । इसी वजह से उस्ताद के स्थान पर उस्ताज़ कहने का चलन भी अरबी में ही शुरू हो गया था । अरबी प्रभाव में ही हिन्दुस्तानी में भी उस्ताज रूप प्रचलित हुआ । यह हमारा गँवारूपन नहीं है, ‘असातिजा’ की गवाही सामने है ।
फिक आगस्ट की (कम्पैरिटिव डिक्शनरी ऑफ इंडो-यूरोपियन लैंग्वेजेज़) में ज़ेंदावेस्ता के अइविस्ती शब्द को उस्ताद का मूल माना गया है । जिसमें शिक्षक, गुरु, संरक्षक जैसे भाव हैं । यह कोश ‘अईविस्ती’ को संस्कृत के अभिष्टि के समरूप बताता है । विल्हैम गिगर भी हैंडबुक ऑफ़ अवेस्ताप्राशे में यही बात कहते हैं । डीएन मैकेन्जी के पहलवी कोश में अइविस्ती का पहलवी रूप आस्ताद है । मैकेन्जी के मुताबिक मनिशियन पर्शियन में इसका रूप अविस्तद था । आज की फ़ारसी में इसका रूप ओस्ताद हुआ । जॉन प्लैट्स के कोश में पहलवी रूप ओस्तात और पुरानी फ़ारसी में वश्तात रूप बताया गया है । फिक आगस्ट की (कम्पैरिटिव डिक्शनरी ऑफ इंडो-यूरोपियन लैंग्वेजेज़) में अईविस्ती को संस्कृत के अभिष्टि के समरूप बताता है ।
मोनियर विलियम्स की संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी में अभिष्टि का अर्थ पालक, संरक्षक, श्रेष्ठ, विजेता आदि बताया गया है साथ ही सहायक या मददगार जैसी अर्थवत्ता भी इसमें है । अभिष्टि बना है इष्ट में अभि उपसर्ग लगने से । हिन्दी-संस्कृत में ईश्वर के अर्थ में इष्ट या इष्टदेव शब्द भी प्रचलित है । यूँ इष्ट का अर्थ होता है इच्छित, प्रिय, अभिलषित, पूज्य, आदरणीय आदि । इच्छा, इषणा यानी अभिलाषा , कामना जैसे शब्द भी इष् से ही बने हैं । वैदिक अभि उपसर्ग में मूलतः निकट, सामने, पहले, ऊपर जैसे भाव हैं । गौरतलब है कि संस्कृत के अभि उपसर्ग का ज़ेंद रूप अइवी या अइबी (aiwi, aibi ) होता है । अभिष्टि का अर्थ हुआ जो इच्छापूर्ति करे, जो कामनाओं को पूरा करे अर्थात स्वामी, पालक, गुरु, गाईड आदि । अभिष्टि का बरास्ता जेंदावेस्ता आज की फ़ारसी में रूपान्तर कुछ यूँ हुआ अभिष्टि = अइविस्ती > अविस्तद (वश्तात) > ओस्तात > ओस्ताद ( फ़ारसी) / उस्ताद (हिन्दी-उर्दू)
यूँ उस्ताद में शिक्षक, स्वामी के साथ-साथ निपुण, प्रवीण, पण्डित, गुणी, सिद्धहस्त, सुविज्ञ, होशियार, कुशल, दक्ष, विशेषज्ञ जैसे भाव भी हैं । उस्ताद की व्याप्ति दुनिया की कई भाषाओं में है जैसे अज़रबेजानी और उज्बेकी में यह उस्ता है तो स्वाहिली में स्तादी । तुर्किश में यह उस्तात है । स्पेनिश में इसका रूप उस्तेद होता है । उर्दू में सामान्य शिक्षक उस्ताद कहलाता है मगर हिन्दी में उस्ताद का दर्ज़ा वही है जो पण्डित का है अर्थात निष्णात या प्रवीण । सामान्य शिक्षक की तुलना में पण्डित का प्रयोग उपाधि और सम्मान की तरह होता है । आमतौर पर कलागुरुओं को उस्ताद कहा जाता है । संगीत के क्षेत्र में स्पष्टतः आला दर्ज़े के मुस्लिम फ़नकारों के नाम के आगे उस्ताद लगता है और गुरुपद पर पहुँचे हिन्दू कलावंतों के आगे पण्डित लगाया जाता है । गाँव-देहात का आदमी मदारी और जमूरे के खेल की मार्फ़त उस्ताद शब्द से परिचित है । गौरतलब है कि मदारी या जादूगर को उसका जमूरा उस्ताद कहता है । उसका उच्चार भी ओस्ताद की तरह होता है । मदारी जो बाजीगरी दिखाता है, लोग उससे चमत्कृत होते हैं । उस्ताद की उस्तादी यहाँ उभरती है और उस्तादी दिखाना चमत्कृत करने से जुड़ जाता है । बाद में हाथ की सफ़ाई दिखाने, दूसरों को बेवकूफ़ बनाने या ठगने जैसे कामों को भी उस्तादी कहा जाने लगा । यही हश्र कलाकार और कलाकारी शब्द का भी हुआ जैसे- “उससे बच कर रहना, बहुत बड़ा कलाकार है!!!”
राठी में उस्ताद के वस्ताद रूप को तवज्जो दी जाती है । दरअसल वस्ताद शब्द भी मराठी के साँचे में नहीं ढला बल्कि स्थानीय प्रभाव के साथ दक्कनी तुर्कों द्वारा अपनाया रूपान्तर है । यूँ मराठी में भी उस्ताद चलता है । उस्ताद, उस्तादगिरी, उस्तादी जैसे शब्द यहाँ प्रचलित हैं । इसी तर्ज़ पर वस्तादी, वस्तादगिरी भी प्रचलित हैं । उस्तादाना का अर्थ होता है उस्तादों की तरह । जिस तरह पाखंड सम्प्रदाय के साधु पाखंडी कहलाते थे पर ढकोसलों के चलते इस शब्द की अवनति हो गई और पाखंडी बदले हुए माहौल में ढोंगी और फ़र्ज़ी व्यक्ति के दर्ज़े पर पहुँच गया । यही उस्ताद के साथ भी हुआ । हिन्दी का उस्ताद धूर्त भी है और चालाक भी । वह गुरुघंटाल है और महाचालबाज है । कभी उस्ताद के पास जाने की नसीहतें देने वाला समाज ही आज कहता है कि “फलाँ से बच कर रहना, उस्ताद है !!” “उस्तादी दिखाना” आज हुनर या होशियारी से अलहदा छल या ठगी का प्रदर्शन हो गया है ।

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5 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

फन में माहिर व्यक्ति और दूसरों को उसी फ़न की शिक्षा देने वाले व्यक्ति को उस्ताद कहा जाता है। फ़न में सभी तरह के गुण शामिल हैं। वकालत के उस्ताद का अर्थ है वह मुवक्किल का काम करा दे, चाहे उस के लिए उसे कुछ भी क्यों न करना पड़े।

Asha Joglekar said...

उस्तादों के उस्ताद हैं आप तो, पण्डित वाले अर्थ में ।

संगीता पुरी said...

बहुत सटीक जानकारी ..

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्दों में गोता लगाकर हम भी आ गये।

Mansoor ali Hashmi said...

शिक्षक कभी था आज वो 'उस्ताद' हो गया,
चेला बना जो उसका, वो बर्बाद हो गया,
'चोला बदलते' शब्दों के अर्थो का ये अनर्थ,
'रिश्वत' का अर्थ आजकल 'प्रसाद' हो गया !

http://aatm-manthan.com

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