Sunday, October 14, 2012

फिकिर का फाका

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चि न्ता या फ़िक्र जैसे शब्द बोलचाल की भाषा में सर्वाधिक इस्तेमाल होते हैं जिनके बिना अभिव्यक्ति अधूरी सी लगती है । इसमें चिन्ता हिन्दी की तत्सम शब्दावली का हिस्सा है जबकि फ़िक्र हिन्दी शब्द-सम्पदा के उस विदेशज भण्डार का मोती है जिसके फिकर, फिकिर जैसे रूप बोलचाल में प्रचलित हैं मगर परिनिष्ठित भाषा में फ़िक्र का ही प्रयोग ज्यादा होता है । आमतौर पर चिन्ता के अर्थ में फ़िक्र और फ़िक्र के अर्थ में चिन्ता शब्द का प्रयोग किया जाता है । जिस तरह चिन्ता को चिता समान कहा जाता है । वहीं कबीर कहते हैं कि फिकर आपको खा जाए, उससे पहले आप बेफ़िक्र हो जाइये- फिकिर सबको खा फिकिर सबका पीर । फिकिर का फाका करे, वाको नाम कबीर ।।
ममतौर पर फिक्र को चिन्ता का पर्याय समझा जाता है । किसी बात को लेकर मन की उत्कंठा, व्यग्रता, व्याकुलता, शोक या सोच-विचार की स्थिति को आमतौर पर फ़िक्र से अभिव्यक्त किया जाता है । फिक्र के हिन्दी रूप फिकर में आमतौर पर चिन्ता, व्यग्रता और आकुलता का भाव है । फिक्र मूलतः सामी धातु p-k-r (पे-काफ़-रा) से बना है । गौरतलब है कि सेमिटिक परिवार से जन्मी अरबी में ‘प’ ध्वनि नहीं है इसलिए अरबी की त्रिअक्षरी धातु में सेमिटिक ‘पे’ के स्थान पर अरेबिक का ‘फा’ है । सेमिटिक p-k-r या अरेबिक f-k-r में चिन्तन, विचार, ज्ञान, ध्यान, खयाल जैसे भाव हैं । इससे बने फ़क्कारा में चिन्तन-मनन का भाव है । फ़िक्र में उक्त तमाम आशय समाविष्ट हैं ।
वैसे चिन्ता के अतिरिक्त फ़िक्र की अर्थवत्ता काफ़ी व्यापक है । फिक्र में परवरिश का भाव है जैसे “उसे इन बेसहारा बच्चों की भी फ़िक्र करनी थी”, फ़िक्र यानी परवाह जैसे “सबकी देनदारी चुक जाए तो किसी चीज़ की फ़िक्र नहीं” आदि । फ़िक्र से कुछ अन्य शब्द भी बने हैं जैसे फ़ारसी का बे उपसर्ग जिसमें रहित का भाव है, लगने से बेफ़िक्र बनता है जिसका अर्थ है निश्चिन्त, स्थिर, शांत । बेफ़िक्र उस व्यक्ति को भी कहते हैं जिसे किसी किस्म की चिन्ता न हो या जो लापरवाह हो । बेफ़िक्री यानी निश्चिन्तता या बेपरवाही । इसका एक रूप बेफिकर भी है । चलती भाषा में में लापरवाह व्यक्ति को बेफिकरा भी कहा जाता है ।
फ़िक्र करना एक मुहावरा है जिसका अर्थ है ध्यान रखना, परवरिश करना, पालना, समाधान निकालना या ज़िम्मेदारी निभाना आदि । फ़ारसी का मन्द प्रत्यय लगने से फ़िक्रमन्द शब्द बनता है जिसका सामान्य अर्थ तो चिन्तित व्यक्ति से है मगर इसमें भी मुहावरेदार अर्थवत्ता है । फ़िक्रमन्द इन्सान वह भी है जिसे अपने दायित्वों का एहसास है, जो विचारशील है । इसके अलावा फ़िक्र में रहना यानी सोच-विचार में रहना । इसका रूढ़ अर्थ चिन्ता करना है । फ़िक्र में पड़ना का रूढ़ अर्थ भी चिन्तित हो जाना है, जिसमें अनिष्ट की आशंका या खटका होता है । फ़्रिक्र में पड़ना में उलझन में पड़ना, सोच-विचार में पड़ जाना भी है जिसमें किसी अनिष्ट की आशंका नहीं, मगर उलझाव ज़रूर है ।

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3 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बेफिकरा कौन समझ गए। अच्छी पोस्ट।

प्रवीण पाण्डेय said...

बैठूँ निश्चिन्त...

Madan Mohan Saxena said...

बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...

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