हिन्दी में किस्त का सर्वाधिक लोकप्रिय प्रयोग कई हिस्सों में भुगतान के लिए होता है । आजकल इसके लिए इन्स्टॉलमेंट या इएमआई शब्द भी प्रचलित हैं मगर किस्त कहीं ज्यादा व्यापक है । भुगतान-संदर्भ के अलावा मोहम्मद मुस्तफ़ा खाँ मद्दाह के उर्दू-हिन्दी कोश के अनुसार किस्त में सामान्य तौर पर किसी भी चीज़ का अंश, हिस्सा, टुकड़ा, portion या भाग का आशय है । अरबी कोशों में अंश, हिस्सा, पैमाना, पानी का जार या न्याय जैसे अर्थ मिलते हैं । न्याय में निहित समता और माप में निहित तौल का भाव किस्त में है और इसीलिए कहीं कहीं किस्त का अर्थ न्यायदण्ड या तुलादण्ड भी मिलता है ।
सबसे पहले क़िस्त के मूल की बात । अरबी कोशों में क़िस्त को अरबी का बताया जाता है जिसकी धातु क़ाफ़-सीन-ता (ق س ط) है । हालाँकि अधिकांश भाषाविद् अरबी क़िस्त का मूल ग्रीक ज़बान के ख़ेस्तेस से मानते हैं जिसका अर्थ है माप या पैमाना । लैटिन ( प्राचीन रोम ) में यह सेक्सटैरियस (Sextarius) है । ग्रीक ज़बान का ख़ेस्तेस, लैटिन के सेक्सटैरियस का बिगड़ा रूप है । यूँ ग्रीक भाषा लैटिन से ज्यादा पुरानी मानी जाती है मगर भाषाविदों का कहना है कि सेक्सटैरियस रोमन माप प्रणाली से जुड़ा शब्द है । यह माप पदार्थ के द्रव तथा ठोस दोनों रूपों की है । सेक्सटेरियस दरअसल माप की वह ईकाई है जिसमें किसी भी वस्तु के 1/6 भाग का आशय है । समूचे मेडिटरेनियन क्षेत्र में मोरक्को से लेकर मिस्र तक और एशियाई क्षेत्र में तुर्की से लेकर पूर्व के तुर्कमेनिस्तान तक ग्रीकोरोमन सभ्यता का प्रभाव पड़ा । खुद ग्रीक और रोमन सभ्यताओं ने एक दूसरे को प्रभावित किया इसीलिए यह नाम मिला ।
सेक्सटैरियस में निहित ‘छठा भाग’ महत्वपूर्ण है जिसमें हिस्सा या अंश का भाव तो है ही साथ ही इसका छह भी खास है । दिलचस्प है कि सेक्सटैरियस में जो छह का भाव है वह दरअसल भारोपीय धातु सेक्स (seks ) से आ रहा है । भाषाविदों का मानना है कि संस्कृत के षष् रूप से छह और षष्ट रूप से छट जैसे शब्द बने । अवेस्ता में इसका रूप क्षवश हुआ और फिर फ़ारसी में यह शेश हो गया । ग्रीक में यह हेक्स हुआ तो लैटिन में सेक्स, स्लोवानी में सेस्टी और लिथुआनी में सेसी हुआ । आइरिश में यह छे की तरह ‘से’ है । अंग्रेजी के सिक्स का विकास जर्मनिक के सेच्स sechs से हुआ है । सेक्सटैरियस का बिगड़ा रूप ही ग्रीक में खेस्तेस हुआ । खेस्तेस की आमद सबसे पहले मिस्र मे हुई।
समझा जा सकता है कि इसका अरब भूमि पर प्रवेश इस्लाम के जन्म से सदियों पहले हो चुका था क्योंकि अरब सभ्यता में माप की इकाई को रूप में क़िस्त का विविधआयामी प्रयोग होता है । यह किसी भी तरह की मात्रा के लिए इस्तेमाल होता है चाहे स्थान व समय की पैमाईश हो या ठोस अथवा तरल पदार्थ । हाँ, प्राचीनकाल से आज तक क़िस्त शब्द में निहित मान इतने भिन्न हैं कि सबका उल्लेख करना ग़ैरज़रूरी है । खास यही कि मूलतः इसमें भी किसी पदार्थ के 1/6 का भाव है जैसा कि पुराने संदर्भ कहते हैं । आज के अर्थ वही हैं जो हिन्दी-उर्दू में प्रचलित हैं जैसे फ्रान्सिस जोसेफ़ स्टैंगस के कोश के अनुसार इसमें न्याय, सही भार और माप, परिमाप, हिस्सा, अंश, भाग, वेतन, किराया, पेंशन, दर, अन्तर, संलन, संतुलन, समता जैसे अर्थ भी समाए हैं । क़िस्त में न्याय का आशय भी अंश या भाग का अर्थ विस्तार है । कोई भी बँटवारा समान होना चाहिए । यहाँ समान का अर्थ 50:50 नहीं है बल्कि ऐसा तौल जो दोनों पक्षों को ‘सम’ यानी उचित लगे । यह जो बँटवारा है , वही न्याय है । इसे ही संतुलन कहते हैं और इसीलिए न्याय का प्रतीक तराजू है ।
जहाँ तक क़िस्त के किश्त उच्चार का सवाल है यह अशुद्ध वर्तनी और मुखसुख का मामला है । वैसे मद्दाह के उर्दू-हिन्दी कोश में किश्त का अलग से इन्द्राज़ है । किश्त मूलतः काश्त का ही एक अन्य रूप है जिसका अर्थ है कृषि भूमि, जोती गई ज़मीन आदि । काश्तकार की तरह किश्तकार का अर्थ है किसान और किश्तकारी का अर्थ है खेती-किसानी । किश्तः या किश्ता का अर्थ होता है वे फल जिनसे बीज निकालने के बाद उन्हें सुखा लिया गया हो । सभी मेवे इसके अन्तर्गत आते हैं । किश्त और काश्त इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है । फ़ारसी के कश से इसका रिश्ता है जिसमें आकर्षण, खिंचाव जैसे भाव हैं । काश्त या किश्त में यही कश है । गौर करें ज़मीन को जोतना दरअसल हल खींचने की क्रिया है । कर्षण यानी खींचना । आकर्षण यानी खिंचाव । फ़ारसी में कश से ही कशिश बनता है जिसका अर्थ आकर्षण ही है ।
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11 कमेंट्स:
bahut achchi jankari mili......thank you.
साहूकार अपने कर्ज की किस्तों को हुक्के के कश की तरह पीता है। लगता है यहीँ से किश्त कहने और लिखने का मुखसुख उत्पन्न हुआ है। ????????
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♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥
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तेरे हिस्से का जितना हूं
पड़ा हूं मैं कहीं गिरवी…
ठहरना तुम
चुकानी चंद क़िस्तें और बाकी हैं !
ऐ मेरी हमनफ़स ! ऐ हमक़िरां !
मायूस मत होना
मेरी तक़्दीर में शायद शिकस्तें और बाकी हैं !!
आपकी इस पोस्ट से मुझे अपनी एक नज़्म की पंक्तियां याद हो आईं ...
:)
आदरणीय अजित वडनेरकर जी
नव वर्ष की शुभकामनाओं के बहाने ब्लॉग पर आया हूं...
मेल बॉक्स में आपके तमाम लेख पढ़ लेता हूं , इस कारण ब्लॉग पर आकर आपके प्रति आभार , बधाई , साधुवाद ज्ञापित करने की बहुत सारी क़िस्तें मुझमें बकाया हैं
:)
आपके समस्त्त लेखों की प्रशंसा में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा ही होगा ...
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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बेहद खोजपरक, व्यापक और ज्ञानवर्द्धक आलेख है।
अजित भाई को साधुवाद। यह सफ़र सदा यूँ ही जारी रहे।
"सेक्स की हर किस्त"* को 'लटका' ही देना चाहिए,*[छह के छहों को]
'दामिनी' को इस तरह 'इन्साफ' देना चाहिए.
साथ अगर कानून न दे तो बदल डालो उसे,
जुर्म के हथियार को भी काट देना चाहिए!
http://aatm-manthan.com
@राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत उम्दा पंक्तियाँ हैं । शुक्रिया । ये सफ़र आप सभी साथियों को साथ लेकर चलता रहेगा इसी तरह ।
फिर आभार
अजित
क्या आहिस्ता भी इससे संबद्ध है?
किश्त या किस्त से लेकर किसान और आकर्षण तक सब कुछ । क्या कश्ती का उगम इससे जुडा है और शिकस्त ......।
नये वर्ष में सब कुछ अच्छा हो ।
अरबी मूल धातु क़ाफ़-साद-ता नहीं है, परंतु क़ाफ़-सीन-ता (q-s-6) है।
@shakeb
आप ठीक कहते हैं। मैने अरबी हिज्जे तो ठीक लिखे पर उच्चारण में चूक कर गया।
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