ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
Friday, January 11, 2013
देहात की बात
ग्रा मीण अंचल के लिए गाँव-देहात शब्दयुग्म का हिन्दी में खूब प्रयोग होता है । “वे दूर देहात से आए हैं,” “देहात में रहने के अपने फ़ायदे हैं,” जैसे वाक्यों में देहात का अर्थ गाँव ही है । गँवई या ग्रामीण के लिए देहात से देहाती विशेषण बनता है । देहात हमें भारतीय परिवेश से जुड़ा शब्द लगता है तो इसलिए क्योंकि यह भारत-ईरानी भाषा समूह का शब्द है और फ़ारसी मूल के ‘देह’ से हिन्दी की बोलियों में आया । फ़ारसी में देह के दीह, दिह जैसे रूप भी मिलते हैं । देह यानी गाँव और देह का बहुवचन देहात यानी ग्रामीण क्षेत्र । हिन्दी में देह, देहात जैसे शब्दों का प्रयोग ग्यारहवीं सदी से ही शुरू हो चुका था । यूल-बर्नेल के एंग्लो-इंडियन कोश हॉब्सन-जॉब्सन के अनुसार पंद्रहवीं सदी के कम्पनी राज के दस्तावेज़ों में कोलकाता को ‘दे कलकत्ता’ लिखा गया है । यह ‘दे’ दरअसल फ़ारसी का ‘देह’ है जिसका अर्थ है ग्राम । ‘दे कलकत्ता’ का अर्थ हुआ गाँव कलकत्ता जो तब हुगली के मुहाने पर स्थित एक मामूली बसाहट थी । करीब साढ़े तीन सौ साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी की कासिम बाजार कोठी का फर्स्ट आफिसर था जाब चार्नक जो बाद में कंपनी एजेंट बना और उसी की देख-रेख में सूतानटी और ‘दे कलकत्ता’ का विकसित रूप आज की कोलकाता महानगरी है ।
ख्यात भाषाविद जूलियस पकोर्नी द्वारा खोजी गई प्रोटो भारोपीय धातुओं में dheigh (-धिघ, मोनियर विलियम्स ) से बना है अवेस्ता का ‘देगा’ जिसका अर्थ है निर्माण, बनाना, मिट्टी, ढाँचा अथवा लेपन । ईरानी परिवार की भाषाओं में इसके अन्य रूप हैं दिज़, देज़, दाएज़ा, दाएजायति जिनका अर्थ है दीवार, परकोटा या क़िला । अवेस्ता में पइरीदाएज़ा शब्द है जिसका अर्थ है जन्नत, वैकुण्ठ, स्वर्गवाटिका या परकोटा । अंग्रेजी का पेराडाइस इसका ही रूपान्तर है । यूनिवर्सिटी ऑफ़ टैक्सास के लिंग्विस्टिक रिसर्च सेंटर के मुताबिक पुरानी फ़ारसी में ‘दिदा’ का अर्थ कोट या क़िलेबंदी होता है । हिन्दी का ‘दीवार’ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की इंडो-ईरानी शाखा का शब्द है और भारतीय भाषाओं में इसकी आमद फ़ारसी से हुई है । यह अवेस्ता के एक सामासिक पद ‘देगावरा’ [dega-vara] से बना है । संस्कृत की ‘दिह्’ धातु का रिश्ता dheigh से जुड़ता है । इसका अर्थ परकोटा, आश्रय, कोट, हदबंदी, किलेबंदी करना, बचाव करना, लीपना, पोतना आदि । ध्यान रहे घास-फूस के ढाँचे को मिट्टी से सान-पोत कर उसे मज़बूती दी जाती थी ।
फ़ारसी के ‘दहलीज’ शब्द में यही ‘देह’ है । इन सभी में बनाने या निर्माण की क्रिया शामिल है । ‘दहलीज’ का अर्थ होता है पौड़ी, सीढ़ी, द्वार या चौखट । इसी मूल से बने हैं देहरी, देहरा, देहरी जैसे शब्द जो चौखट या द्वार की अर्थवत्ता रखते हैं । गौर तलब है कि उत्तराखंड के कई स्थानों के साथ कोट, पौड़ी या द्वार शब्द जुड़े नज़र आते हैं जैसे कोटद्वार, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल आदि । जहाँ तक ‘देहरादून’ के देहरा की व्युत्पत्ति का प्रश्न है , तमाम विकल्पों के साथ फ़ारसी के देह, दिह से भी देहरा की व्युत्पत्ति सम्भावित है जिसमें गाँव, दीवार, परकोटा जैसे भाव हैं । इस तरह ‘देहरादून’ का अर्थ हुआ वादी का गाँव । ग्वालियर के पास एक घाटीगाँव भी है । देहरादून का एक अर्थ दर ऐ वादी अर्थात घाटी का दरवाज़ा भी हो सकता है । वह बस्ती जहाँ से द्रोणिका अर्थात दून घाटी शुरू होती है । वैसे देहरादून का रिश्ता देवघर या डेरा से भी जोड़ा जाता है । इसी कड़ी में ‘टिहरी गढ़वाल’ भी आता है । संदर्भों के अनुसार टिहरी / टेहरी शब्द ‘त्रिहरी’ यानी तीन विषयों ( मनसा, वाचा, कर्मणा ) का शमन करने वाला स्थान । यह व्युत्पत्ति काल्पनिक है । ‘टिहरी’ शब्द भी ‘देहरी’ का रूपान्तर है, ऐसा मुझे लगता है ।
संस्कृत की दिह् धातु से बना है ‘देह’ शब्द जिसका अर्थ काया, शरीर होता है मगर इसका मूलार्थ है ढाँचा, आवरण, कवच या बचाव । गौर करें दिह् में निहित लेपन के अर्थ पर । किसी वस्तु पर लेपन उसे सुरक्षित बनाने के लिए ही किया जाता है । देह एक तरह से शरीर के भीतरी अंगों का सुरक्षा कवच है । मोनियर विलियम्स के कोश के अनुसार ‘देह’ का अर्थ है आवरण, लेपन, मिट्टी, ढाँचा, साँचा, गूँथना, ढालना आदि। दार्शनिक अर्थों में देह को मिट्टी से निर्मित भी कहा जाता है और इसे किले की उपमा भी दी जाती है। गौरतलब है कि अंग्रेजी के ‘डो’ dough का अर्थ होता है सानना, गूँथना आदि । डो का रिश्ता भी प्रोटो भारोपीय धिघ् dheigh से जुड़ता । कबीर ने मनुष्य को माटी का पुतला यूँ ही नहीं कहा । देह, दिह्, दिज़् शब्दों के भावार्थों पर जाएँ तो माटी के पुतले के निर्माण की सारी क्रियाएँ स्पष्ट होती है यानी मिट्टी को पीटना, सानना, राँधना, गूँथना, साँचा बनाना और फिर पुतला बनाना । स्पष्ट है कि संस्कृत के दिह् और फ़ारसी के दीह या देह परस्पर समानार्थी हैं और एक ही मूल से निकले हैं ।
गौर करें, फ़ारसी के दीह / दिह या देह शब्द में मूलतः क़िलेबंदी, हदबंदी या परकोटा बनाने का भाव ही है । प्राचीनकाल में आबादियाँ इसी तरह रहती थीं । ‘वास’ करने की वजह से ही राजस्थानी में ‘बासा’ शब्द है । बस्ती के मूल में भी ‘वास’ ही है । सर रॉल्फ़ लिली टर्नर के कम्पैरिटिव डिक्शनरी ऑफ़ इंडो-आर्यन लैंग्वेजेज़ के अनुसार संस्कृत के देही में ढूह, क़िला, परिधि, चाहरदीवारी, परकोटा की अर्थवत्ता का समावेश हैं । सिन्धी में यह दिहु है जिसका अर्थ पलस्तर लगाना, परत चढ़ाना, मज़बूत करना, ढूह बनाना आदि । फ़ारसी में इसका एकवचन रूप दिह या देह होता है और बहुवचन रूप देहात है जिसका अर्थ ग्रामीण क्षेत्र है । डीएन मैकेंजी के पहलवी कोश में ‘देह’, ‘दिह’ में देश, इलाक़ा, ग्राम या क्षेत्र, भूमि जैसे भाव हैं और इससे बने पहलवी के ‘दहिगन’ में ग्रामीण या कृषक का भाव है । दहिगन का फ़ारसी रूप देहक़ान होता है । हिन्दी में इसे दहकान भी लिखा जाता है । देहक़ानी या देहक़ानियत का अर्थ होता है गँवारू, गँवई या उजड्डपन । यह ठीक वैसे ही है जैसे ग्राम से गाँव और फिर गँवई । किसी व्यक्ति को असभ्य के अर्थ में गँवार इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वह उजड्ड होता है । मगर इसका आशय यह है कि ग्रामीण व्यक्ति शहरी संस्कार से अपरिचित होता है सो वह गँवार हुआ । बाद में गँवार का रूढ़ार्थ ही असभ्य हो गया ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 कमेंट्स:
रहता शहर में 'इण्डिया', 'भारत' है गाँव में,
दोनों ही नाव में रखे हमने तो पाँव है।
'संस्कारों' का 'देहांत' तो दोनों जगह हुआ,
हैवानियत रची-बसी है अपने 'भाव' में।
http://aatm-manthan.com
देह, दस द्वारों का नगर..
देह,शरीर, या नगर जिसमें शरीरी, देही या आत्मा निवास करती है । किसी जमाने में पूरा भारत ही देहात होता होगा । क्या देश की व्यत्पत्ती भी देह से है । देग में खाना मिट्टी का लेप देकर विशिष्ट तरीके से पकाया जाता है शायद इस लेपन की वजह से यह देग कहलाया हो । बहुत जानकारी देने वाला लेख ।
शब्दों का सफर भाग दो भी आ गया मेरे पास । मैने तीन और लोगों को भेंट भी दिया । अनेक धन्यवाद ।
रुचिकर आलेख, वैसे मुझे देहात वाले देह का संबंध डीह की अपेक्षा देश से अधिक लगता है
देहरा, देहरी जैसा ही शब्द है, डेहरी या डिहरी आन सोन.
शिवपूजन सहाय जी ने एक किताब लिखी है - देहाती दुनिया। :)
Post a Comment