Wednesday, June 17, 2015

//छाजन, बिस्तर और बिछौना//


हि न्दी में व्युत्पत्ति के नज़रिये सेबहुत भ्रम की स्थिति है। शब्दकोशों से बहुत ज़्यादा मदद नहीं मिलती। इस दृष्टि से बने हिन्दी के पहले कोश हिन्दी शब्दसागर को महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है। मगर जैसा कि हिन्दी में शब्दकोशों को अद्यतन और संशोधित करने की परिपाटी नहीं के बराबर है इसलिए अनेक शब्दों की भ्रामक व्युत्पत्तियाँ भी मिलती हैं। शब्दों का सफर में प्रसंगवश उनका उल्लेख होता रहा है। ऐसा ही एक शब्द है बिछौना। हिन्दी शब्दसागर इसका रिश्ता बिछाना क्रिया से मानता है। बिछाना की व्युत्पत्ति विस्तरण बताई गई है। हिन्दी में बिछौना का अर्थ सीधे सीधे सोने का गद्दा है। जबकि इसी कड़ी में आने वाले बिछावन या बिछायत में बिस्तर, चांदनी, दरी, फर्श सब आ जाता है।

गौरतलब है हिन्दी में गद्दे के लिए बिस्तर शब्द भी आमफ़हम है और जिसकी आमद फ़ारसी से हुई है। फ़ारसी के बिस्तर का विकास पहलवी के विस्तर (संस्कृत विस्तरण) से माना जाता है जिसका अर्थ है बिछौना। समझा जा सकता है कि वैदिक विस्तर जिसमें फैलाव, खिंचाव, व्याप्ति, प्रसार जैसे भाव हैं, अवेस्ता और फिर पहलवी में भी उसका रूप यथावत रहा। पहलवी में एक क्रिया बनती है विस्तरदन जिसमें फैलाव या प्रसार का भाव है। फ़ारसी में इसका ही एक रूप गुस्तरदन हो जाता है। ध्यान रहे हिन्दी में संस्कृत शब्दों के रूपान्तर क्रम में ‘च्च’ या ‘च्छ’ जैसे रूप त्स से बनते हैं जैसे वत्स का वच्च या बच्छ हो जाता है। विस्तरम में त्स नहीं स्त है। स्त का रूपान्तर त्त या त्थ और फिर थ बनेगा। जैसे हस्त से हत्थ > हत्था > हाथ या हस्ती > हत्थी > हाथी। ज़ाहिर है विस्तरण से बिछौना बनने की बात भ्रामक है। विस्तरण से बिथरन/ बिथरना तो बन सकता है जिसका अर्थ है छितराना, अलग-अलग करना या होना, तितर-बितर होना, विच्छिन्न होना, बिखर जाना आदि। आम तौर पर बिजों के परागण या बुआई के सन्दर्भ में बिथराना ज्यादा प्रयुक्त होता है।

बिछौना चाहे बिस्तर का प्रतिरूप हो मगर शब्द निर्माण प्रक्रिया वह नहीं है जो विस्तर से बिस्तर में नज़र आती है। कालीन, फर्श, गलीचा आदि बिछाने की प्रक्रिया पर गौर करें तो विस्तर / विस्तरण का भाव समझ में आता है। इन सभी को आमतौर पर गोल लपेट कर रखा जाता है। बिछाते समय गोला खुलता जाता है और बिछावन का विस्तार होता जाता है। मगर बिछाने में विस्तरण के साथ-साथ आच्छादन का भाव भी है। भारतीय भाषाओं में ‘द’ का रूपान्तर ‘ज’ में आमतौर पर होता है। मिसाल के तौर पर वाद्य, वादन से ही बाजा, बजाना बनता है। छादन से ही बना है छाजन जिसका अर्थ है सायबान या छप्पर। छाने, छुपाने, छाया करने की क्रिया भी छाजन है। छाजन का एक अर्थ वस्त्र भी है। आच्छादन बना है ‘छद्’ क्रिया से जिसमें छा जाने या छिपाने का बोध होता। छत, छत्र, छत्री आदि की इसी ‘छद्’ से रिश्तेदारी है। ‘छद्’ में ‘आ’ उपसर्ग लगने से बनता है आच्छद अर्थात ढकना, छाना या छिपाना। विकास की शुरुआती प्रक्रिया में फर्श पर बिछाने वाला बिस्तर बाद में आता है। वह स्थिति तब आई जब मनुष्य ने अपने रहने का सुरक्षित स्थान बना लिया। इससे पहले तो ऊँची चट्टान, पेड़ों की डाल आदी पर छाजन तान कर ही शायिका बनाई जाती रही। यानी चट्टान या खुरदुरी सतह पर नर्म घास-फूस, पत्ती का आवरण जिस पर लेटा जा सके।

हिन्दी के ‘वि’ उपसर्ग में दूर, पास, खिंचाव, अलगाव, दूर करने जैसे भाव भी हैं। ‘आच्छद’ अगर छप्पर है तो ‘विच्छद’ में भी ढकने, फैलाने, दूर करने जैसे भाव हैं। आशय बिछाने का ही है। हिन्दी में ‘व’ का रूपान्तर ‘ब’ में होता है। विच्छादन से बिच्छअन > बिछऊन > बिछौन होते हुए बिछौना बनने की प्रक्रिया तार्किक लगती है। रॉल्फ़ लिली टर्नर भी बिछौना कि व्युत्पत्ति विच्छादन से मानते हैं। इसी तरह मराठी में बिछौना / बिछाना दोनों शब्द गद्दे के अर्थ में हैं। मराठी व्युत्पत्ति कोश में कृ.पा. कुलकर्णी भी विच्छादन से ही बिछाना की व्युत्पत्ति मानते हैं। भारतीय भाषाओं में बिछाउन, बिछउना, बिछाना, बिछोन, बिछाउनू, बिसाना, बिछाउना, बिछावन जैसे शब्दरूप गद्दे, बिस्तर के अर्थ में प्रचलित हैं।
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