नाम में छिपा एक बसाहट का वास्तुशास्त्र शब्दकौतुक
प्रवेशद्वार की जाँच-पड़ताल
◾भाषा का संसार बड़ा ही रोचक है, जहाँ ध्वनि की समानता अक्सर अर्थ के कई आयाम खोल देती है। 'डेहरी' एक ऐसा ही शब्द है, जो हमारे मानस में दरवाज़े की चौखट, यानी 'दहलीज' के रूप में स्थापित है। लेकिन जब यही शब्द बिहार में सोन नदी के किनारे बसे एक शहर 'डेहरी ऑन सोन' के नाम के रूप में सामने आता है, तो यह हमें इसकी व्युत्पत्ति पर गहराई से सोचने के लिए विवश कर देता है। क्या इस शहर का नाम केवल एक 'प्रवेश द्वार' होने की ओर सङ्केत करता है, या इसके पीछे कोई भू-संरचनात्मक कारण हैं? डेहरी के पीछे संस्कृत का देहली है या उठाव, टीले का आशय प्रकट करने वाले डीह, डीहा जैसे शब्द हैं?
किस तर्क में अधिक
बल?
अब प्रश्न यह उठता है कि इन दोनों तर्कों में से कौन अधिक प्रामाणिक है। 'देहली' (प्रवेश द्वार) वाली सङ्कल्पना पहली बार में ही आकर्षक लगती है, किंतु गहराई से विचार करने पर यह थोड़ी अमूर्त और लाक्षणिक नज़र आती है। वहीं, 'डीह' (ऊँचा टीला) वाली सङ्कल्पना सीधे तौर पर बोली, भूगोल और इतिहास से मेल खाती लगती है। सोन नदी के कछारी इलाके में, जहाँ भूमि समतल और बाढ़ की चपेट में आने वाली हो, एक ऊँचा और सुरक्षित पठारी क्षेत्र उस बस्ती की सबसे बड़ी पहचान बन सकता है।
डीह का मज़बूत आधार
◾यह भी ध्यान देने योग्य है कि स्थान-नामों की व्युत्पत्ति अक्सर सामान्य संज्ञाओं से भिन्न मार्ग अपनाती है। वे स्थानीय भूगोल, वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं या किसी ऐतिहासिक घटना से गहरे जुड़े होते हैं। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की बोलियों, विशेषकर भोजपुरी में, 'डीह' शब्द का प्रयोग अत्यन्त सहज और व्यापक है। अतः यह अधिक सम्भाव्य है कि एक स्थानीय और जीवन्त भौगोलिक शब्द ही इस स्थान के नाम का आधार बना हो, न कि एक सामान्य साहित्यिक शब्द 'देहली'।
कोशगत आशय और
प्रवेश स्थान
'डेहरी' की व्युत्पत्ति का सबसे प्रबल और प्रलेखित आधार संस्कृत का 'देहली' शब्द है, जिसका अर्थ है दहलीज या प्रवेश द्वार के निकट का स्थान। हिन्दी के सर्वाधिक प्रतिष्ठित कोशों में से एक, हिन्दी शब्दसागर, स्पष्ट रूप से 'डेहरी' को 'संस्कृत देहली' से व्युत्पन्न मानता है। इसी तरह, ऑक्सफ़ोर्ड हिन्दी-अङ्ग्रेज़ी शब्दकोश भी इसके 'threshold' (दहलीज) वाले अर्थ को प्रमुखता देता है। यह अकादमिक साक्ष्य इस बात को पुष्ट करता है कि 'डेहरी' (देहली, देहरी) नाम की कोई महत्त्वपूर्ण बस्ती यहाँ थी जिसका रणनीतिक या व्यापारिक महत्त्व रहा होगा जहाँ वह किसी बड़े क्षेत्र, घाटी या नदी-मार्ग के लिए सीमापुरी या सरहदीकोट का कार्य करता था।
'डीह' से 'डेहरी': बसावट और भूगोल
◾दूसरा तर्क हमें शब्दकोश से बाहर उस क्षेत्र के भूगोल और लोक-जीवन की ओर ले जाता है। यह तर्क 'डेहरी' शब्द का सम्बन्ध 'डीह' से जोड़ता है। 'डीह', और इसके अन्य रूप जैसे 'ढूह', डीहा उस ऊँचे क्षेत्र को कहते हैं जो किसी पुराने, वीरान हो चुके गाँव का अवशेष हो। पूर्वी भारत के हलके ढालू मैदानी क्षेत्र सदा से बाढ़ग्रस्त रहे हैं। यहाँ जीवन रक्षा का एक ही उपाय था—ऊँचाई पर बसना। अतः, नई बस्तियाँ अक्सर पुराने गाँवों के ऊँचे टीलों या 'डीह' पर ही बसाई जाती थीं। इस परिप्रेक्ष्य में, 'डीह' से 'डिहरी' (डीह पर स्थित) और फिर 'डेहरी' बनना एक अत्यन्त स्वाभाविक भाषाई विकास प्रतीत होता है।
दहलीज और डीह का
समन्वय
घर और नगर की मूलभूत समानता यह है कि दोनों का निर्माण मनुष्यों की सुविधा और सुरक्षा का ध्यान रखकर किया जाता है। नमी और बाहरी अव्यवस्था से बचाने के लिए एक ऊँची दहलीज (देहली) बनाई जाती है, जिस तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ होती हैं, ठीक उसी प्रकार एक नदी-तटीय शहर को बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए नदी की सतह से ऊँचे भूभाग या टीले (डीह/उभार) पर बसाया जाता था। इस सादृश्य में, नदी का घाट और उसकी सीढ़ियाँ चढ़कर जिस ऊँचे प्रवेश-द्वार (द्वारमण्डप) से शहर में प्रवेश किया जाता था, वह पूरा उठा हुआ संरचनात्मक परिसर ही उस शहर की सामूहिक 'देहरी' कहलाया।
◾उदाहरण के लिए, जिस तरह हरिद्वार (हरद्वार) को उसकी संरचनागत विशेषता की वजह से उत्तराखण्ड, बद्रीनाथ या केदारनाथ जाने का द्वार या देहरी कहा जाता है। इस प्रकार, किसी भवन या नगर प्रवेश का भौगोलिक 'उभार' (डीह) ही उसकी वास्तुशिल्पीय 'दहलीज' (देहली) का भौतिक स्वरूप है। डीह में भी दिह् (लेपन से लेकर उभार तक) की छाया दिखाई देती है।
एक शब्द, दो यात्राएँ, एक मंज़िल
◾'डेहरी' शब्द की मूल
व्युत्पत्ति कोशों के अनुसार संस्कृत 'देहली' से ही है। किंतु, 'डेहरी ऑन सोन' जैसे स्थान के नाम
के रूप में इसका प्रयोग केवल लाक्षणिक 'प्रवेश द्वार' के लिए नहीं हुआ, बल्कि यह उस शहर की भौतिक संरचना को सीधे-सीधे परिभाषित
करता है। यह नाम सोन नदी के किनारे उस ऊँचे टीले या उभार पर बसी मानव-बस्ती की
कहानी कहता है, जो बतौर देहरी वहाँ की 'दहलीज' थी। इस प्रकार 'डेहरी' शब्द में भाषा, भूगोल और मानव-निर्मित संरचनाएँ एक-दूसरे में विलीन हो जाती
हैं।
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