वह शब्द जो अपना ही अर्थ भूल गया...
टैरिफ़ का दोहरा चरित्र
आधुनिक
आर्थिक जगत में 'टैरिफ़' एक ऐसा शब्द है जो सैकड़ों बरस पहले भूमध्यसागर
क्षेत्र के जहाजियों की लिंगुआ फ्रैंका से निकला और आगे चलकर दुनिया की लिंगुआ
फ़्रांका (सम्पर्क भाषा) इंग्लिश का बन गया। यह जानना दिलचस्प होगा कि टैरिफ़ का
जन्म अरबी ज़बान में हुआ। यह
आयातित वस्तुओं पर लगने वाला एक कर है, जिसका उद्देश्य सरकारी राजस्व बढ़ाना और घरेलू उद्योगों
को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना होता है । एक ऐसा शब्द; जो सभ्यताओं के बीच खुले संचार, पारदर्शिता और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य को आसान बनाने की
ज़रूरत से पैदा हुआ था, आज उसका इस्तेमाल राष्ट्रों के बीच आर्थिक दीवारें खड़ी
करने और व्यापार को मुश्किल बनाने के लिए किया जाता है । 'ज्ञान' और 'सूचना' (तारीफ़) के विचार से जन्मा यह शब्द आज आर्थिक 'अज्ञान' और संरक्षणवाद का हथियार बन गया है।
भूमध्यसागर के प्राचीन सौदागर
'टैरिफ़' शब्द की अरबी जड़ों को समझने से पहले अरबों के सौदागर चरित्र को पहचानना ज़रूरी है। उनका यह चरित्र इस्लाम के आगमन से हज़ारों साल पुराना है। प्राचीन काल से ही अरब प्रायद्वीप के निवासी, जैसे नबाती जन; यूरोप व एशिया में मसालों, लोबान और सुगन्धित पदार्थों के व्यापार पर एकाधिकार रखते थे। भूमध्यसागर अरब सौदागरों के लिए वैसा ही एक आँगन था जैसा किसी इतालवी, यूनानी या स्पेनी के लिए। उनकी नौकाएँ सदियों से इस सागर में तैर रही थीं। जहाँ विचारों और शब्दों का आदान-प्रदान पानी की लहरों उतना ही स्वाभाविक था जितना जिन्सों का लेन-देन। इसी पृष्ठभूमि ने एक ऐसी साझा शब्दावली को जन्म दिया जिसमें 'टैरिफ़' जैसे शब्दों के पनपने के लिए उपजाऊ ज़मीन तैयार की।
'ज्ञान' से 'कर' तक का सफ़र
'टैरिफ़' शब्द का स्रोत अरबी भाषा का शब्द 'तारीफ़' है । यह शब्द सामी भाषा-परिवार के तीन अक्षरों वाले मूल अराफ़ा ऐन रा फ़ा से निकला है, जिसका केंद्रीय भाव 'जानना', 'पहचानना' या 'परिचित होना' है । इस लिहाज़ से 'तारीफ़' का शाब्दिक अर्थ है- सूचना, अधिसूचना या परिभाषा । अब सवाल उठता है कि 'सूचना' जैसा अमूर्त विचार 'टैक्स' जैसे ठोस आर्थिक साधन में कैसे बदल गया? इसका जवाब मध्ययुगीन भूमध्यसागरीय व्यापार की व्यावहारिक ज़रूरतों में छिपा है । तब बन्दरगाहों पर विभिन्न वस्तुओं पर मनमाने शुल्क चुकाने होते थे। इस हेतु शासन ने वस्तुओं पर शुल्कों की एक अधिकृत सूची बनाकर उसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना शुरू कर दिया । चूँकि यह सूची टैक्स दर से सूचित कराने अवगत कराने का ज़रिया थी इसलिए धीरे-धीरे, प्रक्रिया का नाम उस दस्तावेज़ को भी मिल गया जो करों की दर बताता था। और इस तरह अरबी 'तारीफ़' यानी सूचना, का आशय 'शुल्क की सूची' हो गया ।
इतालवी मंडियों से यूरोप तक
अरबी शब्द 'तारीफ़' का यूरोप में प्रवेश भूमध्यसागर में व्यापार करने वाले इतालवी समुद्री गणराज्यों, जैसे वेनिस और जेनोआ, के ज़रिए हुआ । इन गणराज्यों के अरब जगत से गहरे कारोबारी रिश्ते थे। इतालवी भाषा ने इस अरबी शब्द को 'tariffa' (टैरिफ़ा) के रूप में अपनाया, जिसका अर्थ 'मूल्य-सूची' या 'मूल्याङ्कन' था । यहाँ से यह शब्द फ्रांसीसी में 'tarif' (टैरिफ) बना और अंततः 1590 के दशक में 'tariff' के रूप में अंग्रेजी भाषा में पहुँचा । दिलचस्प बात यह है कि उस समय इसका मतलब सिर्फ़ "गणना में सहायक सूची" या रेडी रेकनर जैसा था। सतरहवीं सदी तक इसका अर्थ बदलकर "आयात-निर्यात पर लगने वाले शुल्कों की आधिकारिक सूची" हो गया। स्पष्ट रूप में शुल्क दर का आशय ग्रहण करने में इसे अभी करीब डेढ़ सदी का वक्त लगना बाकी था। 18वीं-19वीं शताब्दी में, विशेषकर अमेरिकी अंग्रेजी में यह आज के अर्थ में दाखिल हुआ।
तारीफ़ा बन्दरगाह का दिलचस्प मिथक
'टैरिफ़' शब्द की उत्पत्ति की एक कहानी स्पेन के दक्षिणी तट पर स्थित बंदरगाह 'तारीफ़ा' (Tarifa) से भी जुड़ती है। जो बताती है कि इस शहर का नाम 710 ईस्वी में आए बर्बर सेनापति तारिफ़ इब्न मलिक के नाम पर पड़ा था । इस सिद्धान्त के अनुसार, इसी बन्दरगाह पर शुल्क वसूलने की प्रथा को शहर का नाम 'टैरिफ़ा' मिल गया, जो बाद में पूरे यूरोप में फैल गया । यह कहानी सुनने में आकर्षक लगती है, लेकिन ज़्यादातर भाषाविद् इसे 'लोक मान्यता’ ही समझते हैं और स्पष्ट रूप से अरबी शब्द 'तारीफ़' (सूचना) को ही इसका मूल बताते हैं । यह सम्भव है कि तारीफ़ा बंदरगाह का नाम और 'टैरिफ़' शब्द, दोनों की जड़ें एक ही अरबी मूल 'ع-ر-ف' में हों।
क्या स्पेन के रास्ते आया 'टैरिफ़'?
इटली के व्यापारिक मार्ग के अलावा, स्पेन पर लगभग सात शताब्दियों तक रहे इस्लामी शासन (अल-अंदलुस) की भूमिका को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। यह भी एक प्रबल संभावना है अल-अंदलुस ज्ञान, विज्ञान और संस्कृति के आदान-प्रदान का एक विशाल केंद्र था, जहाँ अरबी, लैटिन और स्थानीय भाषाएँ एक-दूसरे के गहरे सम्पर्क में थीं। इस दौरान प्रशासन, कृषि और व्यापार से जुड़े सैकड़ों अरबी शब्द स्पेनिश और पुर्तगाली भाषाओं का हिस्सा बने। चूँकि अधिकृत शुल्क-सूचियों की अवधारणा इस्लामी प्रशासनिक व्यवस्था का एक हिस्सा थी, यह बहुत सम्भव है कि 'तारीफ़' शब्द और इससे जुड़ी प्रथा इबेरियन प्रायद्वीप (स्पेन और पुर्तगाल) में भी गहराई से प्रचलित हुई हो और वहाँ से यूरोप के अन्य हिस्सों में फैली हो।
शब्दों का अलिखित सफ़र
किसी भाषा में एक शब्द का पहला लिखित प्रमाण यह बताता है कि वह शब्द उस समय तक उस भाषा में स्थापित हो चुका था, लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि उसका प्रयोग तभी शुरू हुआ हो। अंग्रेज़ी में 'टैरिफ़' का पहला दस्तावेजी प्रमाण 1591 का मिलता है । लेकिन यह निष्कर्ष निकालना ग़लत होगा कि भूमध्यसागरीय क्षेत्र में यह शब्द या अवधारणा इससे पहले प्रचलित नहीं थी। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, अरबों का भूमध्यसागर से रिश्ता बहुत पुराना और गहरा है। सदियों के व्यापारिक लेन-देन के दौरान निश्चित रूप से एक साझा शब्दावली विकसित हुई होगी, जिसे 'लिंगुआ फ़्रैंका' कहा जाता था । यह व्यापारियों और नाविकों द्वारा बोली जाने वाली एक मिश्रित भाषा थी । 'तारीफ़ा' जैसे शब्द इस अनौपचारिक व्यापारिक भाषा का हिस्सा रहे होंगे और लिखित दस्तावेज़ों में दर्ज होने से बहुत पहले से ही बोलचाल में प्रचलित रहे अरबों और यूरोपीयों के सम्बन्ध ईसा से भी पूर्व से चले आ रहे हैं।
'मारफ़त' और 'अराफ़ात' का रिश्ता
दिलचस्प यह भी है कि 'टैरिफ़' शब्द का मूल 'ع-ر-ف'
यानी
अराफ़ा उसी
शब्द-शृंखला से जुड़ा है जिससे अरबी की साहित्यिक और दार्शनिक शब्दावली के लोकप्रिय शब्द
भी निकले जैसे 'मारफ़त' व 'अराफ़ात' । यह मूल 'ज्ञान' और 'पहचान' की अवधारणा से सम्बन्धित शब्दशृङ्खला का हिस्सा है । कुछ अन्य शब्द हैं जैसे मारूफ यानी "जो ज्ञात है" । तआरुफ़ यानी "एक-दूसरे
को जानना" या आपसी परिचय । आरिफ़ का अर्थ है "जानने वाला" या ज्ञाता । अराफ़ात
के बारे
में विस्तार से वक़्फ़ शृङ्खला में बताया जा चुका है। यह
मक्का के पास स्थित मैदान का नाम है। इसी तरह तारीफ़ इस शृङ्खला का सबसे प्रसिद्ध शब्द है जो हिन्दी, उर्दू में
'प्रशंसा' के लिए इस्तेमाल होता आया है। इसका मूल अर्थ 'पहचान कराना' था, जिसके लिए अब हिन्दी उर्दू में तआर्रुफ प्रचलित है। यही ‘पहचान,’ करों की दर से अवगत कराने वाले तारीफ़ा
यानी टैरिफ़ से जुड़ गई।
टैरिफ की विकास यात्रा क्या कहती है?
यही कि वैश्वीकरण कोई नई घटना नहीं है । सदियों से संस्कृतियाँ एक-दूसरे से व्यापार करती रही हैं और विचार एवं शब्दों का आदान-प्रदान करती रही हैं। जब आज के राष्ट्र अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए 'टैरिफ़' लगाते हैं, तो वे जिस शब्द का उपयोग करते हैं, वह स्वयं उनके साझा और परस्पर जुड़े अतीत की सबसे बड़ी गवाही देता है । कैसे एक विचार अपनी उत्पत्ति के ठीक विपरीत अर्थ धारण कर सकता है, और कैसे भाषाएँ इतिहास की सबसे जटिल परतों को भी अपने भीतर सहेजकर रखती है।
....और चलते चलते
आमतौर पर टैरिफ और कस्टम को लेकर पिछले कुछ महिनों से आम व्यक्ति भ्रमित है। हमारे
यहाँ विदेशी वस्तुओं पर लगने वाले कर के लिए सामान्यतः कस्टम ड्यूटी शब्द ही प्रचलित
है। वस्तुतः 'कस्टम' वह सरकारी विभाग या प्रशासनिक प्रणाली है, जो 'टैरिफ़' नामक कर-सूची के अनुसार शुल्कों की वसूली करता है।
हालाँकि, जब
'कस्टम
ड्यूटी' (सीमा
शुल्क) कहा जाता है, तो
इसका आशय उसी 'टैरिफ़' द्वारा निर्धारित कर से ही होता है। इस प्रकार, 'कस्टम' (विभाग) और 'टैरिफ़' (कर) में स्पष्ट अंतर है, लेकिन 'कस्टम ड्यूटी' (कर) और 'टैरिफ़' (कर) व्यावहारिक रूप से एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
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