अरबी में दुर्र या दुर का मतलब होता है मोती। दुर्र का बहुवचन हुआ दुर्रान इस तरह दुर्र ऐ दुर्रान का मतलब हुआ मोतियों में सबसे बेशकीमती
फोटो साभार-www.afghanland.com/
अरबी में दुर्र या दुर का मतलब होता है मोती। दुर्र का बहुवचन हुआ दुर्रान इस तरह दुर्र ऐ दुर्रान का मतलब हुआ मोतियों में सबसे बेशकीमती
फोटो साभार-www.afghanland.com/
प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
3:58 AM
बहुत शोधपरक, उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारियां। हिंदी में इतनी संलग्नता के साथ ऐसा परिश्रम करने वाले विरले ही होंगे।
'शब्दों का सफर' मुझे व्यक्तिगत रूप से हिन्दी का सबसे समृद्ध और श्रमसाध्य ब्लॉग लगता रहा है।
आप के समर्पण और लगन के लिए मेरे पास ढेर सारी प्रशंसा है और काफ़ी सारी ईर्ष्या भी।
सच कहूँ ,ब्लॉग-जगत का सूर और ससी ही है शब्दों का सफ़र . बधाई.... अंतर्मन से
लिखते रहें. यह मेरे इष्ट चिट्ठों मे से एक है क्योंकि आप काफी उपयोगी जानकारी दे रहे हैं.
थोड़े में कितना कुछ कह जाते हैं आप. आपके ब्लाँग का नियमित पारायण कर रहा हूं और शब्दों की दुनिया से नया राब्ता बन रहा है.
आपकी मेहनत कमाल की है। आपका ये ब्लॉग प्रकाशित होने वाली सामग्री से अटा पड़ा है - आप इसे छपाइये !
बेहतरीन उपलब्धि है आपका ब्लाग! मैं आपकी इस बात की तारीफ़ करता हूं और जबरदस्त जलन भी रखता हूं कि आप अपनी पोस्ट इतने अच्छे से मय समुचित फोटो ,कैसे लिख लेते हैं.
सोमाद्रि
इस सफर में आकर सब कुछ सरल और सहज लगने लगता है। बस, ऐसे ही बनाये रखिये. आपको शायद अंदाजा न हो कि आप कितने कितने साधुवाद के पात्र हैं.
शब्दों का सफर मेरी सर्वोच्च बुकमार्क पसंद है -मैं इसे नियमित पढ़ता हूँ और आनंद विभोर होता हूँ !आपकी ये पहल हिन्दी चिट्ठाजगत मे सदैव याद रखी जायेगी.
भाषिक विकास के साथ-साथ आप शब्दों के सामाजिक योगदान और समाज में उनके स्थान का वर्णन भी बडी सुन्दरता से कर रहे हैं।आपको पढना सुखद लगता है।
आपकी मेहनत को कैसे सराहूं। बस, लोगों के बीच आपके ब्लाग की चर्चा करता रहता हूं। आपका ढिंढोरची बन गया हूं। व्यक्तिगत रूप से तो मैं रोजाना ऋणी होता ही हूं.
आपकी पोस्ट पढ़ने में थोड़ा धैर्य दिखाना पड़ता है. पर पढ़ने पर जो ज्ञानवर्धन होताहै,वह बहुत आनन्ददायक होता है.
किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं ब्लागजगत में अगर हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा-शब्दों का सफर.
निश्चित ही हिन्दी ब्लागिंग में आपका ब्लाग महत्वपूर्ण है. जहां भाषा विज्ञान पर मह्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध रह्ती है. 
good,innovative explanation of well known words look easy but it is an experts job.My heartly best wishes.
चयन करते हैं, जिनके अर्थ को लेकर लोकमानस में जिज्ञासा हो सकती हो। फिर वे उस शब्द की धातु, उस धातु के अर्थ और अर्थ की विविध भंगिमाओं तक पहुँचते हैं। फिर वे समानार्थी शब्दों की तलाश करते हुए विविध कोनों से उनका परीक्षण करते हैं. फिर उनकी तलाश शब्द के तद्भव रूपों तक पहुंचती है और उन तद्बवों की अर्थ-छायाओं में परिभ्रमण करती है। फिर अजित अपने भाषा-परिवार से बाहर निकलकर इतर भाषाओँ और भाषा-परिवारों में जा पहुँचते हैं। वहां उन देशों की सांस्कृतिक पृष्टभूमि में सम्बंधित शब्द का परीक्षणकर, पुनः समष्टिमूलक वैश्विक परिदृश्य का निर्माण कर देते हैं। यह सब रचनाकार की प्रतिभा और उसके अध्यवसाय के मणिकांचन योग से ही संभव हो सका है। व्युत्पत्तिविज्ञान की एक नयी और अनूठी समग्र शैली सामने आई है।
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
शब्दों के प्रति लापरवाही से भरे इस दौर में हर शब्द को अर्थविहीन बनाने का चलन आम हो गया है। इस्तेमाल किए जाने भर के लिए ही शब्दों का वाक्यों के बाच में आना जाना हो रहा है, खासकर पत्रारिता ने सरल शब्दों के चुनाव क क्रम में कई सारे शब्दों को हमेशा के लिए स्मृति से बाहर कर दिया। जो बोला जाता है वही तो लिखा जाएगा। तभी तो सर्वजन से संवाद होगा। लेकिन क्या जो बोला जा रहा है, वही अर्थसहित समझ लिया जा रहा है ? उर्दू का एक शब्द है खुलासा । इसका असली अर्थ और इस्तेमाल के संदर्भ की दूरी को कोई नहीं पाट सका। इसीलिए बीस साल से पत्रकारिता में लगा एक शख्स शब्दों का साथी बन गया है। वो शब्दों के साथ सफर पर निकला है। अजित वडनेरकर। ब्लॉग का पता है http://shabdavali.blogspot.com दो साल से चल रहे इस ब्लॉग पर जाते ही तमाम तरह के शब्द अपने पूरे खानदान और अड़ोसी-पड़ोसी के साथ मौजूद होते हैं। मसलन संस्कृत से आया ऊन अकेला नहीं है। वह ऊर्ण से तो बना है, लेकिन उसके खानदान में उरा (भेड़), उरन (भेड़) ऊर्णायु (भेड़), ऊर्णु (छिपाना)आदि भी हैं । इन तमाम शब्दों का अर्थ है ढांकना या छिपाना। एक भेड़ जिस तरह से अपने बालों से छिपी रहती है, उसी तरह अपने शरीर को छुपाना या ढांकना। और जिन बालों को आप दिन भर संवारते हैं वह तो संस्कृत-हिंदी का नहीं बल्कि हिब्रू से आया है। जिनके बाल नहीं होते, उन्हें समझना चाहिए कि बाल मेसोपोटामिया की सभ्यता के धूलकणों में लौट गया है। गंजे लोगों को गर्व करना चाहिए। इससे पहले कि आप इस जानकारी पर हैरान हों अजित वडनेरकर बताते हैं कि जिस नी धातु से नैन शब्द शब्द का उद्गम हुआ है, उसी से न्याय का भी हुआ है। संस्कृत में अरबी जबां और वहां से हिंदी-उर्दू में आए रकम शब्द का मतलब सिर्फ नगद नहीं बल्कि लोहा भी है। रुक्कम से बना रकम जसका मतलब होता है सोना या लोहा । कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का नाम भी इस रुक्म से बना है जिससे आप रकम का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे तमाम शब्दों का यह संग्रहालय कमाल का लगता है। इस ब्लॉग के पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी अजब -गजब हैं। रवि रतलामी लिखते हैं कि किसी हिंदी चिट्ठे को हमेशा के लिए जिंदा देखना चाहेंगे तो वह है शब्दों का सफर । अजित वडनेरकर अपने बारे में बताते हुए लिखते हैं कि शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग अलग होता है। मैं भाषाविज्ञानी नहीं हूं, लेकिन जज्बा उत्पति की तलाश में निकलें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नजर आता है। अजित की विनम्रता जायज़ भी है और ज़रूरी भी है क्योंकि शब्दों को बटोरने का काम आप दंभ के साथ तो नहीं कर सकते। इसीलिए वे इनके साथ घूमते-फिरते हैं। घूमना-फिरना भी तो यही है कि जो आपका नहीं है, आप उसे देखने- जानने की कोशिश करते हैं। वरना कम लोगों को याद होगा कि मुहावरा अरबी शब्द हौर से आया है, जिसका अर्थ होता है परस्पर वार्तालाप, संवाद । शब्दों को लेकर जब बहस होती है तो यह ब्लॉग और दिलचस्प होने लगता है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के नोएडा का एक लोकप्रिय लैंडमार्क है- अट्टा बाजार। इसके बारे में एक ब्लॉगर साथी अजित वडनेरकर को बताता है कि इसका नाम अट्टापीर के कारण अट्टा बाजार है, लेकिन अजित बताते हैं कि अट्ट से ही बना अड्डा । अट्ट में ऊंचाई, जमना, अटना जैसे भाव हैं, लेकिन अट्टा का मतलब तो बाजार होता है। अट्टा बाजार । तो पहले से बाजार है उसके पीछे एक और बाजार । बाजार के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द हाट भी अट्टा से ही आया है। इसलिए हो सकता है कि अट्टापीर का नामकरण भी अट्ट या अड्डे से हुआ हो। बात कहां से कहा पहुंच जाती है। बल्कि शब्दों के पीछे-पीछे अजित पहुंचने लगते हैं। वो शब्दों को भारी-भरकम बताकर उन्हें ओबेसिटी के मरीज की तरह खारिज नहीं करते। उनका वज़न कम कर दिमाग में घुसने लायक बना देते हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की विविधता से नेटयुग में कमाल की बौद्धिक संपदा बनती जा रही है। टीवी पत्रकारिता में इन दिनों अनुप्रास और युग्म शब्दों की भरमार है। जो सुनने में ठीक लगे और दिखने में आक्रामक। रही बात अर्थ की तो इस दौर में सभी अर्थ ही तो ढूंढ़ रहे हैं। इस पत्रकारिता का अर्थ क्या है? अजित ने अपनी गाड़ी सबसे पहले स्टार्ट कर दी और अर्थ ढूंढ़ने निकल पड़े हैं। --रवीशकुमार [लेखक का ब्लाग है http://naisadak.blogspot.com/ ]
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
20 कमेंट्स:
वाह!!!
रोचक और जबरदस्त जानकारी है.
आभार.
धन्यवाद अजित भाई,
आप तो अगली ही कड़ी में तातार और दुर्रानी वगैरह ले आए।
ईरान नाम पड़ने के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि भारतीयों की ही तरह ईरानी भी अपने को आर्य कहते थे और अवेस्ता में आर्य को अइर्य कहा जाता था जो बहुवचन में अइर्यन से होता हुआ एरान हुआ और वहां से ईरान हो गया। इसके लिये संस्कृत में आर्याणाम् शब्द प्रयुक्त होता है।
वाह !
अब तो सफ़र में शब्दों के जीवन
के साथ इतिहास-बोध का समर्थ
अध्याय भी जुड़ता जा रहा है.
अजित जी,
आपके ध्येय-निष्ठ श्रम और
भारती-विभूति के प्रति
सतत उत्तरदायी अवदान का आलोक
न जाने कितने कोणों से प्रकीर्ण होकर
सूचना व ज्ञान का पथ प्रशस्त कर रहा है.
===============================
मंगल कामनाओं सहित
डा.चन्द्रकुमार जैन
देखिये जी हमतो इरान तुरान के बारे मे इतना ही जानते है.
कि इरान मे मम्मिया पाई जाती है मतलब वहा पापा तूरानी होते होगे :)
रेफ का कमाल... साहिबान, कद्रदान, मेहरबान ये शानदार रेफ के पकवान तो पेट भरने के बाद भी ललचाए जाते हैं...
हैरत है और यह एक बडी हैरत है काफी दिनों बाद आया और पेट भर पढकर मन भर देखकर जा रहा हूं... मैं औराक-ए-हैरानी में....
बहुत जानकारी भरा सफर -मेरे आदि पुरखों के वंशधर आज भी इरान में है -यह मुझे जीनोग्रैफी जांच से पता चला
तातार बहुत पंसदीदा शब्द है, क्यों तो इस के लिए गोगोल की लम्बी कहानी 'तातार' पढनी होगी। तातार कैसे किसी से युद्ध रत होते ही अपने तमाम उत्पादन के साधन घर आदि नष्ट कर देते थे, सारे लोहे को हथियारों में तब्दील कर देते थे। ताकि पीछे कोई संपत्ति ही शेष न रहे जिस का लड़ते वक्त मोह बना रहे। पूरा कबीला स्त्रियों बच्चों समेत फौज बन जाता था। जीते तो फिर बना लेंगे। हारे तो सब कुछ वैसे ही छिनना है, दुश्मन के हाथ क्यों लगे?
अजितजी, बहुत बढिया और रोचक जानकारी जिसे पढ़कर हमें अपना ईरानी परिवार याद आ गया जो उत्तरी ईरान के रश्त शहर मे रहते हैं. अगली बार जब भी गए आपको ज़रूर याद करेंगे और ज़िक्र तो लाज़िमी होगा ही.
अजीत जी मन तो चाह्ता है कि आप से कहूँ आप कहां पत्रकारिता में लगे हुए हैं आप तो जन्मजात जैसे टीचर ही हैं जी लेकिन फ़िर ये सोच रही हूँ कि नहीं आप का पत्रकार होना ही ज्यादा ठीक है, टीचर होते तो सिर्फ़ उनको ज्ञान मिलता जो आप के संपर्क में आते और आप की कक्षा में बैठते, अब तो हम सब लाभ उठा रहे है। भगवान करे आप इसी तरह हमें पढ़ाते रहें। आप से सीखने को इतना है कि मुझे लगता है कि अगर आप एक दिन में दो पोस्ट भी ठेलें तो हम पढ़ने को बेकरार रहेगें। वैसे मैने दुर्रानी शब्द के बारे में पूछा था पाकिस्तान की मशहूर लेखिका ताहमिमा दुर्रानी के नाम की वजह से।
धन्यवाद, अगले लेख का इंतजार
आज की कक्षा में आने में कुछ देरी हो गई :) जानकारी बहुत जबर्दस्त पढने को मिली आज ..शुक्रिया
आअह!! क्या जानकारी देते हैं, महाराज!! मोहित होते जाते हैं.
hamari hazziri guruvar....
सलीम दुर्रानी भारत के बल्लेबाज नादिरशाही वँश के रहे होगेँ
( तभी सीक्सर / SIXER ,लगाया करते थे :)
ये कडी भी इतिहास की
लँबी यात्रा करवा गयी और बहुत भा गयी
- लावण्या
Bahut hi jandar lekh. toory, aary aur air aur tatar sabka arth samza diya. Dhanyawad.
ईरान का उत्तरी क्षेत्र प्राचीन काल में तूरान के नाम से जाना जाता था
iske alawa saarijaankari ekdam nayi thi....really thanx.
वाह दादा वाकई रोचक जानकारी है. शब्दों के सफर के माध्यम से इतिहास के पन्नों मैं छिपे कई रोचक व्यक्तित्व भी सामने आते हैं. यूँ ही ज्ञान बढाते रहें.
अभिराम
आप के माध्यम से,शब्दों के अर्थ जाननें के प्रयास में न केवल हमें अपनें पड़ोसियों के विषय में जाननें का अवसर मिल रहा है,वरन उनसे हमारे खानदानी समबन्धों का ही नहीं,रक्त समबन्ध तक का पता चल पा रहा है। अनिल मिश्र जी का यह रक्त समबन्ध ईरान से नहीं वरन कश्यप सागर के उस क्षेत्र से है जहाँ से सभ्य(आर्य) कही जानें वाली जाति और सम्भवतः समस्त मानव सभ्यता का उदभव और विकास हुआ था। वहीं से कतिपय छुद्र कारणों से हुए पारिवारिक विभाजन के परिणामस्वरुप दोनों सहोदर जातियाँ,हिमयुग के आसन्न संकट के कारण नीचे उतरी और दो भिन्न रास्तों पर चल पड़ीं थी।दक्षिण पश्चिम की ओर पलायित शाखा कालान्तर में अपनीं प्राचीन धरोहरों को ही न केवल विसमृत कर बैठी वरन भाषा और लिपि तक से हाथ धो बैठी। (हम कब तक बचाए रख पाऎगे यह भी देखनें की बात है)जरुथुस्त्र धर्म को माननें वाले पारसियों की भाषा पहले संस्कृत ही रही होगी,ऎसा ज़न्दावस्ता (छन्दोभ्यस्ता) के अवलोकन से ही स्पष्ट होता है। अनेकानेक शाब्दिक साम्यों के अतिरिक्त एक शब्द ऎसा अभी भी पूरी गरिमा एवं महत्व के साथ उपस्थित है, वह है "ॠत" जो इण्डो-यूरोपियन परिवार की अन्य किसी भी भाषा में नहीं मिलता है। अनिल जी, पारसियों या आवेस्ता(ज़न्दावस्त) की पर्शियन के पहले पहलवी लिपि सासानी काल तक मिलती थी, भाषा क्या थी यह अभी भी रह्स्य ही है। पौराणिक ग्रन्थों में तातार के लिए तार्तार शब्द मिलता है। सुन्दर एवं ञान वर्धक लेख के लिए बधाई।
इस पोस्ट में तो सब कुछ नया ही नया मिला... अनमोल पोस्ट ! बहुत जानकारी पूर्ण !
अब पता चला तहमिना दुर्रानी के नाम का मतलब । इतिहास की सही जानकारी होना आज कितना ज़्यादा ज़रूरी है । हमें इस दिशा में जानकारी देने और सोचने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया सर ।
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