अरबी में दुर्र या दुर का मतलब होता है मोती। दुर्र का बहुवचन हुआ दुर्रान इस तरह दुर्र ऐ दुर्रान का मतलब हुआ मोतियों में सबसे बेशकीमती
फोटो साभार-www.afghanland.com/
अरबी में दुर्र या दुर का मतलब होता है मोती। दुर्र का बहुवचन हुआ दुर्रान इस तरह दुर्र ऐ दुर्रान का मतलब हुआ मोतियों में सबसे बेशकीमती
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:58 AM
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
20 कमेंट्स:
वाह!!!
रोचक और जबरदस्त जानकारी है.
आभार.
धन्यवाद अजित भाई,
आप तो अगली ही कड़ी में तातार और दुर्रानी वगैरह ले आए।
ईरान नाम पड़ने के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि भारतीयों की ही तरह ईरानी भी अपने को आर्य कहते थे और अवेस्ता में आर्य को अइर्य कहा जाता था जो बहुवचन में अइर्यन से होता हुआ एरान हुआ और वहां से ईरान हो गया। इसके लिये संस्कृत में आर्याणाम् शब्द प्रयुक्त होता है।
वाह !
अब तो सफ़र में शब्दों के जीवन
के साथ इतिहास-बोध का समर्थ
अध्याय भी जुड़ता जा रहा है.
अजित जी,
आपके ध्येय-निष्ठ श्रम और
भारती-विभूति के प्रति
सतत उत्तरदायी अवदान का आलोक
न जाने कितने कोणों से प्रकीर्ण होकर
सूचना व ज्ञान का पथ प्रशस्त कर रहा है.
===============================
मंगल कामनाओं सहित
डा.चन्द्रकुमार जैन
देखिये जी हमतो इरान तुरान के बारे मे इतना ही जानते है.
कि इरान मे मम्मिया पाई जाती है मतलब वहा पापा तूरानी होते होगे :)
रेफ का कमाल... साहिबान, कद्रदान, मेहरबान ये शानदार रेफ के पकवान तो पेट भरने के बाद भी ललचाए जाते हैं...
हैरत है और यह एक बडी हैरत है काफी दिनों बाद आया और पेट भर पढकर मन भर देखकर जा रहा हूं... मैं औराक-ए-हैरानी में....
बहुत जानकारी भरा सफर -मेरे आदि पुरखों के वंशधर आज भी इरान में है -यह मुझे जीनोग्रैफी जांच से पता चला
तातार बहुत पंसदीदा शब्द है, क्यों तो इस के लिए गोगोल की लम्बी कहानी 'तातार' पढनी होगी। तातार कैसे किसी से युद्ध रत होते ही अपने तमाम उत्पादन के साधन घर आदि नष्ट कर देते थे, सारे लोहे को हथियारों में तब्दील कर देते थे। ताकि पीछे कोई संपत्ति ही शेष न रहे जिस का लड़ते वक्त मोह बना रहे। पूरा कबीला स्त्रियों बच्चों समेत फौज बन जाता था। जीते तो फिर बना लेंगे। हारे तो सब कुछ वैसे ही छिनना है, दुश्मन के हाथ क्यों लगे?
अजितजी, बहुत बढिया और रोचक जानकारी जिसे पढ़कर हमें अपना ईरानी परिवार याद आ गया जो उत्तरी ईरान के रश्त शहर मे रहते हैं. अगली बार जब भी गए आपको ज़रूर याद करेंगे और ज़िक्र तो लाज़िमी होगा ही.
अजीत जी मन तो चाह्ता है कि आप से कहूँ आप कहां पत्रकारिता में लगे हुए हैं आप तो जन्मजात जैसे टीचर ही हैं जी लेकिन फ़िर ये सोच रही हूँ कि नहीं आप का पत्रकार होना ही ज्यादा ठीक है, टीचर होते तो सिर्फ़ उनको ज्ञान मिलता जो आप के संपर्क में आते और आप की कक्षा में बैठते, अब तो हम सब लाभ उठा रहे है। भगवान करे आप इसी तरह हमें पढ़ाते रहें। आप से सीखने को इतना है कि मुझे लगता है कि अगर आप एक दिन में दो पोस्ट भी ठेलें तो हम पढ़ने को बेकरार रहेगें। वैसे मैने दुर्रानी शब्द के बारे में पूछा था पाकिस्तान की मशहूर लेखिका ताहमिमा दुर्रानी के नाम की वजह से।
धन्यवाद, अगले लेख का इंतजार
आज की कक्षा में आने में कुछ देरी हो गई :) जानकारी बहुत जबर्दस्त पढने को मिली आज ..शुक्रिया
आअह!! क्या जानकारी देते हैं, महाराज!! मोहित होते जाते हैं.
hamari hazziri guruvar....
सलीम दुर्रानी भारत के बल्लेबाज नादिरशाही वँश के रहे होगेँ
( तभी सीक्सर / SIXER ,लगाया करते थे :)
ये कडी भी इतिहास की
लँबी यात्रा करवा गयी और बहुत भा गयी
- लावण्या
Bahut hi jandar lekh. toory, aary aur air aur tatar sabka arth samza diya. Dhanyawad.
ईरान का उत्तरी क्षेत्र प्राचीन काल में तूरान के नाम से जाना जाता था
iske alawa saarijaankari ekdam nayi thi....really thanx.
वाह दादा वाकई रोचक जानकारी है. शब्दों के सफर के माध्यम से इतिहास के पन्नों मैं छिपे कई रोचक व्यक्तित्व भी सामने आते हैं. यूँ ही ज्ञान बढाते रहें.
अभिराम
आप के माध्यम से,शब्दों के अर्थ जाननें के प्रयास में न केवल हमें अपनें पड़ोसियों के विषय में जाननें का अवसर मिल रहा है,वरन उनसे हमारे खानदानी समबन्धों का ही नहीं,रक्त समबन्ध तक का पता चल पा रहा है। अनिल मिश्र जी का यह रक्त समबन्ध ईरान से नहीं वरन कश्यप सागर के उस क्षेत्र से है जहाँ से सभ्य(आर्य) कही जानें वाली जाति और सम्भवतः समस्त मानव सभ्यता का उदभव और विकास हुआ था। वहीं से कतिपय छुद्र कारणों से हुए पारिवारिक विभाजन के परिणामस्वरुप दोनों सहोदर जातियाँ,हिमयुग के आसन्न संकट के कारण नीचे उतरी और दो भिन्न रास्तों पर चल पड़ीं थी।दक्षिण पश्चिम की ओर पलायित शाखा कालान्तर में अपनीं प्राचीन धरोहरों को ही न केवल विसमृत कर बैठी वरन भाषा और लिपि तक से हाथ धो बैठी। (हम कब तक बचाए रख पाऎगे यह भी देखनें की बात है)जरुथुस्त्र धर्म को माननें वाले पारसियों की भाषा पहले संस्कृत ही रही होगी,ऎसा ज़न्दावस्ता (छन्दोभ्यस्ता) के अवलोकन से ही स्पष्ट होता है। अनेकानेक शाब्दिक साम्यों के अतिरिक्त एक शब्द ऎसा अभी भी पूरी गरिमा एवं महत्व के साथ उपस्थित है, वह है "ॠत" जो इण्डो-यूरोपियन परिवार की अन्य किसी भी भाषा में नहीं मिलता है। अनिल जी, पारसियों या आवेस्ता(ज़न्दावस्त) की पर्शियन के पहले पहलवी लिपि सासानी काल तक मिलती थी, भाषा क्या थी यह अभी भी रह्स्य ही है। पौराणिक ग्रन्थों में तातार के लिए तार्तार शब्द मिलता है। सुन्दर एवं ञान वर्धक लेख के लिए बधाई।
इस पोस्ट में तो सब कुछ नया ही नया मिला... अनमोल पोस्ट ! बहुत जानकारी पूर्ण !
अब पता चला तहमिना दुर्रानी के नाम का मतलब । इतिहास की सही जानकारी होना आज कितना ज़्यादा ज़रूरी है । हमें इस दिशा में जानकारी देने और सोचने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया सर ।
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