Tuesday, August 12, 2008

जोखिम उठाएं या न उठाएं !

जिंदगी में आए दिन तरह तरह की आशंकाएं बनी रहती हैं। आर्थिक नुकसान से लेकर शारीरिक हानि यहां तक की मौत तक इनमें शामिल है। इससे निजात मिलनी असंभव है। जीवन है , तो जोखिम है। मगर इसे कम किया जा सकता है, इससे उत्पन्न स्थितियों के नुकसान की भरपाई की जा सकती है। आर्थिक हानि अथवा अन्य नुकसान की आशंका, खतरा, अनिष्ट के लिए हिन्दी में एक शब्द है जोखिम। जान का जोखिम जैसा मुहावरा भी इससे ही बना है। जोखिम में प्रयुक्त ध्वनियों की प्रकृति से इस शब्द के उर्दू होने का आभास होता है। वैसे पूर्वी शैलियों में इसके जोखम या जोखिऊं जैसे रूप भी मिलते है।
योगक्षेमं वहाम्यहम् -

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कैसी विडम्बना है कि प्राचीनकाल मे योगक्षेम की बात करने वाला समाज आज किसी भी तरह का जोखिम न उठाने की सलाह देता है।

जोखिम भी संस्कृत मूल का ही शब्द है जो बना है योगक्षेमं से । भारतीय जीवन बीमा का स्लोगन योगक्षेमं वहाम्यहम् सबने विज्ञापनों में देखा है। योगक्षेमं शब्द बना है योग+क्षेम से । इसका पहला हिस्सा योग संस्कृत धातु यु से ही बना है यह शब्द भी जिसमें मिलना, जुड़ना, संप्रक्त होना अथवा युक्त होना जैसा भाव शामिल हैं। इसमें ही एक अर्थ और जुड़ जाता है प्राप्ति का। कुछ प्राप्त होने में मिलने, जुड़ने , युक्त होने का भाव ही निहित है। दूसरे हिस्से क्षेम का अर्थ है प्रसन्नता, शुभ, सुखी, आराम आदि।
हिन्दी में प्रचलित कुशलक्षेम में इसका आए दिन प्रयोग होता है। क्षेम में शामिल शुभ, कल्याण, प्रसन्नता आदि भावों का ही विस्तार है सुरक्षा, बचाव, संरक्षण आदि सो ये तमाम अर्थ भी क्षेम में शामिल हैं। एलआईसी ने अपने स्लोगन में योगक्षेमं शब्द का प्रयोग यूं ही नहीं किया है। इस शब्द का प्राचीनकाल से ही अर्थशास्त्र से रिश्ता रहा है। योग शब्द में शामिल प्राप्ति के भाव का अर्थ हुआ अप्राप्त की प्राप्ति ही योग है और जो प्राप्त हो गया है उसकी रक्षा करना क्षेम कहलाता है- अलभ्यलाभो योगः स्यात् क्षेमो लब्धस्य पालनम् । इस तरह योगक्षेमं यानी प्राप्ति और उसकी रक्षा की मंगलकामना। भारतीय जीवन बीमा निगम ने अपना स्लोगन गीता के नवें अध्याय में आए इस श्लोक से उठाया है-
अनन्‍याश्चिन्‍तयन्‍तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्‍याभियुक्‍तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।
सका अर्थ हुआ कि ‘जो निरंतर मेरा चिंतन करते हैं, मुझमे आस्था रखते हैं उनके योगक्षेम मैं वहन करूंगा।’ यानी ईश्वर भी आस्था के निवेश के साथ सुरक्षा और समृद्धि की गारंटी दे रहे हैं। इससे बेहतर स्लोगन तो जीवन बीमा निगम के लिए हो ही नहीं सकता था। सो इस तरह योगक्षेम का अर्थ हुआ सामान की सुरक्षा, संपत्ति की देखभाल,कल्याण, बीमा आदि। मगर योग बना जोग और योगक्षेम हुआ जोखम या जोखिम और इसका अर्थ सिर्फ नुकसान या हानि तक सीमित हो गया । योगक्षेमं वहाम्यहम् में कुशलता-सुरक्षा का दायित्व वहन करने अर्थात उठाने की बात कही गई है। इसी तरह जोखिम शब्द के साथ भी उठाना शब्द ही प्रयोग किया जाता है। बीमा करने वाले जोखिम उठाते हैं । कैसी विडम्बना है कि प्राचीनकाल मे योगक्षेम की बात करने वाला समाज आज किसी भी तरह का जोखिम न उठाने की सलाह देता है।

18 कमेंट्स:

डॉ .अनुराग said...

बिना जोखिम के सफलता संद्घिध है...आपका प्रयास असफल ही हो सकता है ..पर यदि प्रयास नही करेंगे तो सफलता भी नही मिलेगी.....बस आपका शीर्षक देख कर कह उठा.....वैसे शब्द आपने सटीक चुना है....

रंजू भाटिया said...

ज़िन्दगी है तो जोखिम है ..रोचक जानकरी हमेशा की तरह

राज भाटिय़ा said...

नमस्कार, हम तो डा० अनुराग जी की टिपण्णी से सहमत हे, कि बिना जोखिम या प्रयास के कुछ नही होगा, धन्यवाद

कुश said...

ye badhiya hai ki tippani karne mein koi jokhim nahi..

Anonymous said...

Aadarniy dada bahut sundar post bas itna kahana chahungi ki yog yu dhatu se nahi yuj dhatu se bana hain.Sundar post ke liye dhanywad

Anonymous said...

दादा "नो रिस्क, नो रिवार्ड" तो मूल मंत्र है कारपोरेट जगत का. सफल होना है तो जोखिम उठाना ही पड़ेगा फर्क सिर्फ़ इतना है की जोखिम उठाते हुए "बीमा" के अतिरिक्त आपके पास उस जोखिम से निपटने की योजना भी होनी चाहिए. सेबी के उठाए कदमों की वजह से ही इन दिनों "रिस्क मैनेजमेंट" कारपोरेट जगत में खासा प्रचलित है. जोखिम के दो पहलु हैं एक तो उसके होने की संभावना और दूसरा होने के पश्चात उससे हुए नुक्सान की भरपाई. बीमा योजना दूसरे पहलु को तो संभाल सकती है पर पहला पहलु आपकी जोखिम से भिड जाने की तयारी पर निर्भर करता है.
अनुराग जी का कहना सर्वथा उचित है कि बिना जोखिम के सफलता संद्घिध है....

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अनन्‍याश्चिन्‍तयन्‍तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्‍याभियुक्‍तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।
इसका अर्थ हुआ कि ‘जो निरंतर मेरा चिंतन करते हैं,
मुझमे आस्था रखते हैं उनके योगक्षेम मैं वहन करूंगा।’

अजित जी,
हम तो आपका और शब्दों के सफ़र का
प्रतिदिन चिंतन ही नहीं, पठन व मनन भी करते है.
शब्द पर आस्था तो है ही.
==================
चन्द्रकुमार

Shiv said...

योगक्षेमं के बारे में जानकारी मिली. जीवन बीमा निगम द्बारा के इस स्लोगन को चुनने की जानकारी भी खूब रही. सीखने को मिल रहा है. और क्या चाहिए?

Anonymous said...

योगक्षेमं और जीवन बीमा निगम के बारे में नई जानकारी देने का आभार... हमें लगता है अगर ज़िन्दगी मे ज़ोखिम न हो तो जीने का मज़ा नहीं...जैसे बिना नमक का खाना बेस्वाद...

Udan Tashtari said...

रोचक जानकरी हमेशा की तरह.बहुत आभार.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मैं विशुद्ध हिन्दी की आवश्यकता वाले आलेखों में जोखिम शब्द का प्रयोग करने से बचता रहा हूँ। यह सोच कर कि यह थोड़ा विजातीय हो जाएगा। आपने मेरी समस्या दूर कर दी। वस्तुतः मुझे इसका कोई विकल्प भी नहीं मिल पाया था। अशुभ,अनिष्ट,संकट,आतप... इत्यादि। किन्तु जोखिम की तो बात ही कुछ और है। इसमें कोई ‘रिस्क’ नहीं है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

फिलहाल यहाँ टिप्पणी करने में कोई जोखिम नहीं है।

अभय तिवारी said...

जोखिम का कोई ताल्लुक क्या जोख, जोखा, जोखना आदि से हो सकता है क्या? जोखना यानी मापना-तौलना। रसाल जी का कोष कहता है कि जोख शब्द संस्कृत के जुष से बना है.. पर जोखिम को देशज शब्द और झोंका को इस हिन्दी पर्याय बताते हैं..।
मुझे जुष से जोख और फिर जोखिम बन जाना अधिक उचित मालूम देता है.. वैसे भी ष तो ख आम तौर पर बनता ही है.. जोखिम के अर्थ में बदलाव ये ज़रूर है कि माप-तौल के बजाय माप-तौल को किनारे रख दिये जाने का भाव है..

Smart Indian said...

बहुत खूब अजित जी. दोनों ही शब्द बचपन से सुनता आया था, मगर कभी यह दिमाग में ही नहीं आया कि इनमें कोई सम्बन्ध हो सकता है. आपके इस छोटे से लेख को पढ़ते ही आँखें एकदम खुल गयीं. आभार!

ravindra vyas said...

मैं पहले भी कह चुका हूं अजितभाई कि आपके शब्दों के सफर का पुराना आशिक हूं। जोखिम पर जानकारी मिलने से इसे उठाने की इच्छा हो रही है। और आप जोखिम उठाकर हमारे लिए ये जो मगजमारी कर रहे हैं उसके लिए आभार।

Asha Joglekar said...

वाह अजित भाई कहाँ जोखिम का प्रचलित अर्थ और कहाँ योगक्षेम पर आप भी बडे दूर की कौडी लाते हैं। इस स्पष्टीकरण के लिये आप को धन्यवाद भी और बधाई भी .

Abhishek Ojha said...

योगक्षेमं और जोखिम... मान गए. हमारा दिमाग लगता है सोया ही रहता है. शब्दों का सफर इतना रोचक... आपका ब्लॉग न होता तो कभी नहीं समझ पाते.

shyam gupta said...
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