Wednesday, August 20, 2008

ज़रूरी है नापजोख और मापतौल...

किसी वस्तु की मात्रा, परिमाण आदि के निर्धारण के लिए नापजोख या नापतौल जैसे शब्द हिन्दी में प्रयोग किए जाते हैं। इन दोनों ही शब्द युग्मों में नाप शब्द समान है। इसी तरह मापजोख और मापतौल शब्द भी इन्हीं अर्थों-संदर्भों में प्रयुक्त होते रहे हैं।
TapeMeasure2 संस्कृत की तुल् धातु का मतलब होता है मापना, तौलना, ऊपर करना, उठाना, जांच-परीक्षण करना आदि। किन्हीं घटनाओं, वस्तुओं, परिस्थितियों और चिंतन में समानता का आधार ढूंढने को तुलना करना कहा जाता है जो इसी मूल से बना है
बसे पहले बात नापजोख की। यह शब्द बना है नाप+जोख के मेल से । नाप शब्द पैमाइश से जुड़ा है और किसी वस्तु , स्थान या ढांचे के निर्माण या रचना की प्रक्रिया से के तहत प्रयोग होता है। इसमें वस्तु की लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई, मात्रा अथवा परिमाण का निर्धारण आ जाता है। नापना दरअसल इसी क्रिया का नाम है। गौर करें नापने की क्रिया से प्राप्त निष्कर्षों पर। ये आंकड़े दरअसल उस वस्तु के बारे में विशिष्ट ज्ञान कराते हैं। वस्तु के सभी आयामों का परीक्षण करना ही नापजोख है। संस्कृत धातु ज्ञा में जानना, समझना, परिचित होना, परीक्षण करना आता है। संस्कृत के ज्ञ वर्ण में अधिकांश लोगों को ग+य अर्थात् ग्य ध्वनि सुनाई पड़ती है। मगर शुद्ध रूप में यह है ज+ञ है मगर इसके कुछ अन्य रूप भी हैं मसलन गुजराती में ग्+न्+य अर्थात् ग्न्य की ध्वनि। ज्ञा से बने ज्ञाप् में भी यही सारे भाव हैं। इसमें से ग् ध्वनि का लोप होने से बना नाप। जॉन प्लैट्स के मुताबिक क्रम कुछ यूं रहा ज्ञाप्य = नप्प = नाप । गौर करें ज्ञान, ज्ञापन और विज्ञापन जैसे शब्द भी इसी कड़ी से जुड़े और सूचना व जानकारी का माध्यम हैं। 
जोख भी एक क्रिया है जिसका मतलब भी पैमाइश और तौल ही होता है इसमें वस्तु का वज़न, लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई आदि का हिसाब शामिल है। इससे ही जोखना शब्द भी बना है। यह बना है जुष् धातु से जिसमें परीक्षण, चिंतन-मनन, जांच-पड़ताल के अलावा सुखी और प्रसन्न होना जैसे भाव भी शामिल है।
नापतौल भी नाप+तौल इन दो शब्दों से मिलकर बना है। तौल यानी तराजू के एक पलड़े पर बाट या बटखरा व दूसरे पलड़े पर कोई पदार्थ रख कर उसका भार अथवा परिमाण मापना। यह बना है संस्कृत की तुल् धातु से जिसका मतलब होता है मापना, तौलना, ऊपर करना, उठाना, जांच-परीक्षण करना आदि। किन्हीं घटनाओं, वस्तुओं, परिस्थितियों और चिंतन में समानता का आधार ढूंढने को तुलना करना कहा जाता है जो इसी मूल से बना है। इसके अलावा तराजू के लिए तुला, योग्य, समरूप, बराबर के अर्थ में तुल्य, समतुल्य, तुलनीय या तुलना जैसे शब्द या बेमिसाल, अनुपम अथवा बेशुमार के अर्थ में अतुल शब्द भी इसी मूल से निकले हैं।
सी तरह मापतौल और मापजोख शब्द भी है। इन दोनों में माप शब्द समान रूप से मौजूद है। संस्कृत में एक धातु है मा जिसमें सीमांकन, नापतौल, तुलना करना आदि भाव हैं। इससे ही बना है माप शब्द। किसी वस्तु के समतुल्य या उसका मान बढ़ाने के लिए प्रायः उपमा शब्द का प्रयोग किया जाता हैं। यह इसी कड़ी का शब्द है। इसी तरह प्रति उपसर्ग लगने से मूर्ति के अर्थ वाला प्रतिमा शब्द बना। प्रतिमा का मतलब ही सादृश्य, तुलनीय, समरूप होता है। दिलचस्प बात यह कि फारसी का पैमाँ, पैमाना या पैमाइश शब्द भी इसी मूल से जन्मा है। बस, वर्ण विपर्यय के चलते माप का पैमाँ हो गया ।
आपकी चिट्ठियां
बीते करीब एक हफ्ते से हरिद्वार यात्रा पर था इसलिए शब्दों सफर पर अल्प विराम था। पिछली पोस्ट जोखिम उठाएं या न उठाएं ! पर कई साथियों की प्रतिक्रियाएं मिलीं।
@अभय तिवारी
अभयजी, माप - तौल के लिए जोख शब्द की रिश्तेदारी जोखिम से जोड़ना सही नहीं लग रहा है। जुष् के मापने-नापने संबंधी अर्थों से इसका साम्य नहीं बन रहा , व्याख्या करना दूर की बात है। अलबत्ता योगक्षेम में सन्निहित  प्राप्ति और उसकी सुरक्षा यानी कल्याण संबंधी भावों से जोखिम शब्द सीधे-सीधे जुड़ता है।  जॉन प्लैट्स की डिक्शनरी में भी इसका यही मूल बताया गया है । यही नहीं, धर्मकोश में भी योगक्षेम को प्राचीन आर्थिक व्यवस्था का शब्द भी बताया है। आधुनिक अर्थशास्त्र में भी जोखिम शब्द का महत्व है। जोखिम शब्द में प्राप्ति की सुरक्षा के प्रति आशंका का भाव वक्त के साथ जुड़ गया।हिन्दी में संस्कृत ष् यदि में बदलता है तो क्ष ध्वनि भी में ही बदलती है।
जोखिम वाली पोस्ट पर अनुराग रंजना [रंजू भाटिया] राज भाटिय़ा कुश एक खूबसूरत ख्याल radhika budhkar अभिराम Dr. Chandra Kumar Jain Shiv Kumar Mishra मीनाक्षी Udan Tashtari siddharth दिनेशराय द्विवेदी अभय तिवारी Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ravindra vyas Mrs. Asha Joglekar अभिषेक ओझा. आप सबका आभारी हूं ।    

18 कमेंट्स:

Ramashankar said...

ऐसी ज्ञानचर्चा में हम तो सिर्फ ज्ञान ले सकते हैं सो ले रहे हैं. इसी को हमारी प्रतिक्रिया माने

Anonymous said...

keep it,

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अजित भाई
आपका बहोत सा शुक्रिया
कितने शब्द आपस मेँ गुँथे हुए हैँ !
जिनके बारे मेँ जानकर अच्छा लगता है -
यात्रा कैसी रही ?
- लावण्या

Udan Tashtari said...

जय हो और ज्ञान गंगा बहती रहे ऐसे ही अविरल..यही कामना है महानुभाव!!

कुश said...

बड़ी नाप तौल के लिखी गयी पोस्ट है.. मैं वही सोच रहा था की आप इधर नज़र नही आए इन दिनो..

दिनेशराय द्विवेदी said...

अभय भाई की टिप्पणी से ही आज के आलेख की गंगा प्रसवित हुई प्रतीत होती है।

रंजू भाटिया said...

नपी तुली शब्दों की सुंदर पोस्ट ..आपके द्वारा मिले इस ज्ञान से अब मैं हर शब्द को विस्तार से समझाने लगी हूँ ...:) शुक्रिया ..कभी कभी नाम जो रखे जाते हैं वो बहुत ही सुंदर और अनेक अर्थ देते हैं जैसे लावण्या , बेजी .उस तरह के नामों पर भी चर्चा करे ..

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अजित जी,
आपके पास शब्द संसार के
नाप-जोख-माप-मान के
गहन ज्ञान का
अनोखा ख़जाना है.
यहाँ आना यानी हर बार
बहुत कुछ पाना है.
=================
आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन

डॉ .अनुराग said...

नाप तौल कर लिख गये......

Abhishek Ojha said...

तो पैमाना शब्द भी यहीं से आया. और फिर अतुलनीय भी जैसा आपका ब्लॉग है !

अभय तिवारी said...

१)ज्ञ में ज और ञ का मेल है.. वह भ्रष्ट होकर ग्य पुकारा जाता है.. वो भी सब जगह नहीं.. आप के महाराष्ट्र में ग्यान को न्यान बोलते हैं.. इस ग्यान से नाप कैसे निकला होगा.. मैं चकित हूँ..
२) व्यवहार में अक्सर म की ध्वनि न में बदलती है.. और न की म में.. मापन का नापन हो जाना एक सरल प्रक्रिया में सम्भव है.. और रसाल जी इसे ही सही मानते हैं..

Radhika Budhkar said...

बढ़िया हैं दादा,मैंने यह दोनों शब्द पहली बार ही सुने,अच्छा लगा नवीन शब्दों के बारे में जानकर

अजित वडनेरकर said...

@अभय भाई,
आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए हमेशा की तरह मेरे लिए बहुत उपयोगी है।
ज्ञ में ज और ञ का मेल है , सही है। इस ञ के उच्चारण में आपको हल्की सी भी अनुनासिकता का आभास होता है या नहीं ? आर्यसमाजी शुद्धता के चक्कर में ज्ञान का जो उच्चार करते हैं वह जांन सुऩाई पड़ता है। इसे आप यज्ञ के यजन या यज्न उच्चारण से भी समझ सकते हैं। महाराष्ट्र में इसे यद्न्य कहा जाएगा। मराठीभाषी न्यान नहीं द्न्यान उच्चारते हैं अर्थात द+न+य की मिश्रित ध्वनि। वे प्रज्ञा को प्रद्न्या उच्चारते हैं। ज्ञान से नाप की पैरवी नहीं कर रहा हूं बल्कि ज्ञापन वाले ज्ञाप् से ग् या ज , जो भी समझें , की ध्वनिलोप से जो न ध्वनि शेष बच रही है उससे नाप बनने को सही मान रहा हूं। मराठी में भी तो अनुनासिकता शेष है । मेरे गुरुवर और भाषा विज्ञान के विद्वान डॉ सुरेश वर्मा अक्सर कहते हैं कि व्युत्पत्ति में अंतिम कुछ नहीं होता। नयी व्युत्पत्ति सामने न आ जाए , तब तक पहले वाली को सही माना जाए। कई बार दो दो व्युत्पत्तियां भी सामने रहती हैं। अब प्लैट्स महोदय और रसाल जी दोनों को ही चुनौती देने की क्षमता मुझमें नहीं है। मुझे किसी एक के साथ तो जाना ही है।
वैसे रसालजी का कोश मेरे पास नहीं है। अर्से से उसे पाने का प्रयास कर रहा हूं। रसाल जी ने म ध्वनि के न में बदलने के कुछ उदाहरण दिए हों तो मुझे ज़रूर बताएं, समझने में और आसानी होगी।
हां, महाराष्ट्र मेरा नहीं , सबका है। अलबत्ता सूचनार्थ, मेरा महाराष्ट्र से कोई जीवंत संपर्क नहीं है और आयु के चालीसवें वर्ष में पहली बार महाराषट्र एक शूटिंग के लिए जाना हुआ।

Smart Indian said...

बहुत खूब जानकारी मिल रही है - जारी रखें.
आपकी दोनों ही व्युत्पत्तियाँ सटीक हैं:
१. क्ष से ख तो हिन्दी में हर तरफ़ हुआ है विशेषकर उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल में. गन्ने को ईख और पल को खन कहना इसके दो बहुत आम उदाहरण हैं.
२. ज्ञाप में ध्वनिलोप के बाद नाप का बचना समझ में आता है चाहे ज् की ध्वनि किसी अंचल में ग् या द् भी हुई हो
३. मैं महाराष्ट्र के बिल्कुल देहाती इलाके में रहा हूँ और यह सही है कि वहाँ ज्ञ को द्+न्+य जैसा पुकारा जाता है. मैंने अपने ब्लॉग की दूसरी पोस्ट अ से ज्ञ तक में इसी विषय में लिखा था.

अभय तिवारी said...

अजित भाई,

प्लैट्स जी के कोश के बारे में आप विस्तार से लिखें.. हो सके तो मैं भी हासिल करता हूँ.. और रसाल जी का कोश मैं आप को लिए जुगाड़ने का प्रयत्न करता हूँ..
अगर आप को महाराष्ट्र का नहीं मानूँगा तो लोग मुझे यू पी का नहीं मानेंगे जब कि अभी मैं अपनी जड़े वहाँ तक देखता हूँ.. जो जहाँ रहे सिर्फ़ वहीं का हो कर रहे और पीछे का सांस्कृतिक इतिहास मिटा दे.. ये तो फिर राज ठाकरे के चिन्तन को समर्थन में खड़े हो जाना हो जाएगा.. इसलिए वो बात सिर्फ़ जडो के सन्दर्भ में थी.. नहीं तो भौतिक अर्थ में तो सचमुच महाराष्ट्र आप से अधिक माझा आहे..
म और न की ध्वनियों के बारे में मैंने शायद कुछ अधिक ही कैज़ुअल तरीक़े से लिख दिया.. और आप जानते हैं कि मैं आप की तरह भाषा में डूबा हुआ भी नहीं हूँ.. आप के समर्पण और लगन के लिए मेरे पास ढेर सारी प्रशंसा है और काफ़ी सारी ईर्ष्या भी..।
म के न में बदलने के कुछ सहज उदाहरण स्वामी के साईं में(स्वामी-सामी-साईं.. आखिर में न की ध्वनि है).. संयुक्त( सम+ युक्त) के सन्युक्त में.. संरक्षण (सम+रक्षण) के सनरक्षण में.. संशय (सम+शय) के सन्शय में मिलते हैं.. और ठोस उदाहरण न तो कोई रसाल जी देते हैं न ही किसी दूसरे स्रोत के सरसरी दर्शन पर मैं पा सका.. बाकी आगे कुछ मिलेगा तो निश्चित आप से चर्चा करूँगा..
आप को कई कच्ची चुनौतियाँ देना मैं ऊपरी वाहवाही करने से बेहतर मानता हूँ.. ऐसी मेरी सोच है.. अपने चिट्ठे पर भी मुझे ऐसी ही प्रतिक्रिया अच्छी लगती हैं जो वास्तव में प्रति+क्रिया हों..

आपका ही

अभय तिवारी

Anonymous said...

शब्द-काल के साथ यात्रा करते हुए अपनें अर्थ बदलते हैं,यह रुपान्तारण कभी सार्थक होता है तो कभी-कभी अनर्थकारी भी। जहाँ तक माप या नाप शब्द का समबन्ध है, माप शब्द जहाँ " माङ्‌ " धातु से उत्पन्न है वहीं नाप,माप का भ्रष्ट रुपान्तरित हुआ रुढ़ शब्द है। वेद एवं वैदिक दर्शन में-प्रमा(जिसे मापा जाये),प्रमाण(जिससे मापा जाए),प्रमाता(जो मापे) और प्रमिति( मापनें का ज्ञान), यह चार शब्द मिलते हैं। इन सभी शब्दों में ’प्र’ उपसर्ग है जिसका अर्थ होता है प्रकृष्ट या जो पहले से है,जैसे प्र+कृति=प्रकृति-अर्थात पहले से जो था अर्थात ब्रह्म,उसकी कृति है यह प्रकृति अर्थात जगत। सांख्य में इसे पुरुष और प्रकृति कहते हैं। ‘ज्ञ’ से माप का अर्थ कुछ खींच तान भरा लगता है। ज्ञापक अर्थ में,ज्ञापनएवं विज्ञापन शब्द में जो पन है वह प्रकाशन के,ज्योतित,द्योतित,निवेदित,विवेचित करनें के अर्थ मे है न कि मापन या नापन के। जोख का अर्थ पैमाइश या तौल नहीं हो सकता क्योंकि आप स्वयं बता रहे हैं कि जुष्‌ का अर्थ चिंतन,मनन,परीक्षण आदि। आप दर्जी को पैन्ट बनानें के लिए कपड़ा देते हैं और कहते हैं कि भाई ठीक से माप ले लो,कपड़ा महँगा है खराब न कर देना अर्थात ठीक से माप लो और सोंच समझ कर काटना जिससे फिटिंग सही बैठे और कपड़ा व्यर्थ न जाये। प्रतिमा शब्द की व्याख्या में एक अन्य शब्द मूर्ति का भी सादृश्य दिखाया गया है।शिव की प्रतिमा, राम की प्रतिमा या कृष्ण की प्रतिमा (प्रति+मा) में सादृश्य कहाँ? प्रति तो उपसर्ग हुआ किन्तु मा का क्या अर्थ हुआ? प्रति+मूर्ति=प्रतिमूर्ति में तो फिर भी सादृश्य है। यज्ञ के ज्ञ में वस्तुतः ज़+ञ की ही सन्धि हुयी हुई है एवं इसका उच्चारण ज्याँ की भांति ही होगा।यही शुद्ध भी है। यह आर्य समाज की शुद्धतावसात्‌ नहीं वरन्‌ ऋगवेद की माध्यन्दिन शाखा की ऋषिगम्य परम्परा है। वास्तव में यज्ञ का अर्थ होता यज़न करना अर्थात टु क्रिऎट। पुरुष सूक्त की ऋचा है ‘यज्ञेन यज्ञम्‌ यजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌’-देवताओं नें यत्न से यत्नपूर्वक यज्ञ किया जिससे सबसे पहले धर्म(शाश्वत नियम) प्रकट हुआ। दो अथवा दो से अधिक यज्ञों के द्वारा जो यज्ञ पदार्थ बनता है वह वैदिक विज्ञान में विराट कहा जाता है,इसे ही सूक्ष्म ब्रह्माण्ड भी कहा गया है,यह सूक्ष्म विराट आधुनिक विज्ञान की भाषा में ‘माइक्रोकाँस्म’ कहा जा सकता है। ऎसे अनेकानेक यज्ञों की बृहद्‌ से बृहद्तर होती क्रम-क्रमशःश्रंखला की यह यज्ञ प्रक्रिया जब अपनें चरम पर पहुँच कर पर्यवसित होती है तो यही अन्तिम सीमा ‘ईश्वर’ के नाम से संज्ञायित होती है और वैदिकी में वह महाविराट और आधुनिक विज्ञान की भाषा में मैक्रोकाँस्म’ कहा जाएगा। यजुषं-के जुषं और ग (ग+या+न) के गम्‌ धातु दोनों में गत्यात्मकता है,अतः ज्ञान (ज़+ञ) की ऊहापोह में जहाँ मानसिक गत्यात्मकता है वहीं यज्ञं (य+ज+ञ+ँ) में भूत भौतिक गत्यात्मकता तो प्रत्यक्ष ही है। स्वामी का साईं होना समुचित प्रतीत नहीं होता हाँ स्वामिन का साईं हुआ हो सकता है। संयुक्त,संरक्षण,संशय में यदि ध्यान दें तो यह स्पष्ट है कि यहाँ (सम) म का उच्चारण मूर्धन्य है न कि दन्तव्य।यहाँ सम शब्द का प्रयोग सम्यक के अर्थ में है। एक अन्य शब्द है संभ्रान्त अब यदि अर्थ करेंगे-सम+भ्रान्त=सम्यक रुपेण भ्रान्तः इति सम्भ्रान्तः। उक्त सभी शब्दों में सम्यक (बैलेन्सड्‌) अर्थ ही बनता है। कुछ भी हो उक्त उदाहरणों से म का न में परिवर्तित होना सम्यक प्रतीत नहीं होता। क्षमा करें,विद्वानों के मध्य कतिपय अनाधिकार चेष्टा कर रहा हूँ।

अजित वडनेरकर said...

कात्यायनजी,
हमेशा की तरह हमारी सोच, व्याख्या और जानकारी को और समृद्ध करती आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा कर ही रहा था।
-मैं ज्ञा में समाहित परीक्षण जैसे भावों समेत जानने, समझने की सम्यक प्रक्रिया को मैं पैमाइश से जोड़ कर देख रहा हूं और इसी लिए यही व्युत्पत्ति मुझे तार्किक लग रही है, समझ में आने वाली भी। माप से नाप अर्थ साम्य की दृष्टि से भी समझने में आसान है मगर म के न में बदलने की वजह ? भाषा के मामले में भी जीभ ने कठिन से सरल रास्ता अपनाया मगर माप में तो कुछ क्लिष्टता नहीं है सो जीभ ने उसे नाप क्यों बनाया ? वह भी आदि अक्षर में ही बदलाव ?
-प्रतिमा शब्द में सादृश्यता तो उसी से तौली जाएगी जिसके सादृश्य उसे बनाया गया है।

शब्दों के सफर में आप जैसे प्रबुद्ध, भाषा-संस्कृति के जानकारों को हमराही के रूप में पाकर हमें बहत खुशी है। यूं ही बने रहिये, साझा करते चलिये। हम सब लाभान्वित होगें। यकीन मानिये, मैं स्वयं को विद्वानों की पांत में नहीं रखता । सचमुच, कच्चेपन को भरने-पूरने में ही जीवन बीत जाएगा।

Smart Indian said...

मेरी नज़र में संस्कृत शब्द ही अपमे आप में म से न में बदलने का एक आम उदाहरण है. संस्कार, संस्कृति आदि अनेक ऐसे उदाहरण मौजूद हैं हिन्दी में.: samskrt -> sanskrt

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