Thursday, January 1, 2009

दो कौड़ी का छदम्मी !!! [सिक्का-6]

कौड़ी मुद्रा दुनिया में तब तक कायम रही जब तक संसार भर में उपनिवेशकाल का अंत नहीं हो गया।
मु द्रा का चलन शुरू होने से भी पहले मनुश्य ने व्यापार-व्यवसाय की शुरूआत कर दी थी । पहले वस्तु विनिमय प्रणाली के जरिये लेन-देन की प्रक्रिया सम्पन्न होती थी। पशुओं के साथ सहजीवन ने इन्सान में वह अनोखी सूझ पैदा कर दी जो मुद्रा का आधार बनी। प्राचीन मानव पशुपालक समाज का अंग था। पशु ही मानव जीवन का प्रमुख आधार थे लिहाजा लेन-देन का काम पशुओं के बदले सम्पन्न होने लगा। इसी लिए पशुओं को पशुधन भी कहा जाता है। इसी क्रम में आती है कौड़ी ।

तौर मुद्रा कौड़ी का सबसे पहले चीन ने प्रयोग शुरु किया । ईसा से करीब डेढ़ हजार वर्ष पूर्व चीन के हिन्द महासागरीय क्षेत्रो में कौड़ी का मुद्रा के तौर पर चलन शुरू होने के प्रमाण मिले हैं। कौड़ी शब्द बना है संस्कृत के कपर्दिका से जिसका क्रम कुछ यूं रहा -कपर्दिका>कअडिका>कअडिआ>कौडिआ>कौड़ी । कौड़ी मुद्रा चीन के बाद भारत से होते हुए लगभग समूची दुनिया में प्रचलित हो गई और तब तक कायम रही जब तक संसार भर में उपनिवेशकाल का अंत नहीं हो गया। कपर्दिका शब्द यूं संस्कृत का है मगर इसे द्रविड़ मूल का माना जाता है। आप्टे कोश मे इसकी व्युत्पत्ति संस्कृत धातु पर्व् से बताई गई है जिसका अर्थ होता है पहाड़,गांठ,जोड़ आदि। अंग्रेजी का काउरी cowrie शब्द भी इसी मूल से निकला है। कौड़ी मुख्यत घोंघा, शंख प्रजाति का जलीय जीव होता है । यह पेट के बल रेंगता है और इसका पृष्ठभाग बेहद कठोर आवरण से मढ़ा रहता है। जलीय जीवों की मौत के के बाद ये कठोर आवरण लहरों के साथ बह कर समुद्र तट पर आ जाते हैं। प्राचीनकाल से ही इनका प्रयोग आभुषणों और मुद्रा के तौर पर होता रहा है। मुद्रा के तौर पर एक खास आकार वाली कौड़ियों का ही प्रयोग होता रहा है । एक अन्य जलीय जंतु के आवरण को सीप कहते हैं। यह भी सजावटी वस्तुओं और आभुषणों के काम आता है। गौरतलब है कि सीप से ही बेशकीमती मोती बनते हैं। हिन्दी उर्दू का सीप शब्द बना है संस्कृत के शुक्ति से।

मुहावरो- कहावतों के संसार में भी मुद्रा यानी रूपए का बोलबाला है। बाजार में प्रचलित हर तरह की मुद्रा ने हर दौर के सामाजिक जीवन में भी वहीं महत्व अर्जित किया जितना उसका मौद्रिक मूल्य था। कौड़ी प्राचीन मौद्रिक व्यवस्था की सबसे
... दाम के छठे हिस्से को छदाम कहा गया जो छः+द्रम्म के मेल से बना। दो दमड़ी मिलाकर एक छदाम बनता था। अर्थात एक छदाम यानी बीस कौड़ी...
छोटी इकाई थी । हालांकि इसकी यह स्थिति तभी बनी जब मुद्रा के रूप में धातु के सिक्के प्रचलित हो गए। पूरी दुनिया में इसकी क्रय शक्ति अलग अलग थी । प्राचीन उल्लेखों के अनुसार दस कौड़ी मिलाकर एक दमड़ी बनती थी। एक गाय खरीदने के लिए पच्चीस हजार कौड़ियों की ज़रूरत पड़ती थी। कौड़ी की अल्प क्रय शक्ति को देखते हुए ही मुहावरों की दुनिया में कौड़ी तुच्छता के भाव को उजागर करने वाला शब्द बन गया। दो कौड़ी का कह कर किसी भी मनुश्य अथवा पदार्थ को समाज खारिज कर देता है।

कौड़ी की ही तरह छदाम शब्द भी सुनने को मिलता है। छदाम भी प्राचीनकालीन मुद्रा का ही नाम है। मौर्यकाल में यूनानी मुद्रा द्रख्म का भारत में भी चलन था। संस्कृत में इसे ही द्रम्मम् कहा गया है जिसका अपभ्रंश हुआ दम्म, दाम , दमड़ी आदि। मुग़लकाल में एक रूपए का मूल्य चालीस दाम के बराबर होता था। गौरतलब है कि रूपया चांदी की मुद्रा थी जबकि दाम, दमड़ी आदि तांबे के सिक्के थे। दाम के छठे हिस्से को छदाम कहा गया । दो दमड़ी मिलाकर एक छदाम बनता था। अर्थात एक छदाम यानी बीस कौड़ी। इसी छदाम से ही व्यक्ति नाम भी चल पड़े जैसे छदामीलाल या छदम्मीलाल। छदाम चाहे आज प्रचलन में नहीं है मगर विपन्नता, तुच्छता, अभाव आदि के अर्थ में मुहावरे की तरह भाषा को समृद्ध करती है जैसे छदाम भी खर्च न होना या छदाम भी पास न होना। यही नहीं बीस कौड़ी की कीमत वाले छदम्मी को भी तुच्छता के भाव से दो कौड़ी का कहा जा सकता है और खानदानी करोड़पति भी दो कौड़ी का आदमी हो सकता है।

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12 कमेंट्स:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

वस्तु विनमय के बाद मुद्रा की उत्पति और मुद्रा के विभिन्न रूप व कौडी की कहानी शब्दों के सफर को रोचक बना रही है . मैं भी दो छदम्मी लाल को जनता हूँ उनका अर्थ आज पता लगा . लाख टके की बात पता चलती है आपके साथ मिल कर .

Anonymous said...

बहुत रोचक श्रृखला चल रही है.. हर अंक पढ़ने में मजा़ आ रहा है और मुद्रा के बारे मैं जानकारी भी बढ़ रही है!

क्या आप भी सिक्का संग्रह का शौक रखते है?

Unknown said...

वाह,खानदानी करोडपति को भी 2 कौडी का कह सकते हैं ये आज ही पता चला :-)

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ said...

वाह,करोड़पति भी दो कौड़ी का आदमी हो सकता है,क्या बात है।अजित भाई अधिकतर करोड़पति ऎसे ही होते हैं। वैसे जब कौड़ी मुद्रा के तौर पर प्रचलन में रही होगी तो राज्य इस का नियमन कैस्र करते रहे होंगे?कोई भी समुद्र से जाकर बीन ला सकता होगा या इस के ले कुछ नियम रहे होंगे? नव वर्ष मंगलमय हो।

दिवाकर प्रताप सिंह said...

अपने पुरोहित जी से एक कहावत बचपन में सुनते थे आपनें पुनः याद दिला दिया -
राजा प्रसन्नं गज भूमि दानं, बनियाँ प्रसन्नं दमड़ी छदामं !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत अच्छा रहा यह पड़ाव भी ..
आप को नववर्ष २००९ की हार्दिक शुभकामनाएं ।
वर्ष २००९ आपके लिए शुभ हो , मंगलमय हो ।

Anonymous said...

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