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Friday, May 1, 2009
बगुलाभगत कैंडिडेट पर सैंडल [लोकतंत्र-4]
अ कसर नेताओं के कपड़े काफी उजले होते हैं। चुनावी माहौल में नेता कैंडिडेट कहलाते हैं। अंग्रेजी का कैंडीडेट शब्द भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है और मूल धातु kand से इसकी व्युत्पत्ति हुई है जिसमें चमक, प्रकाश का भाव है। खास बात यह कि प्रखरता, चमक में अगर ताप का गुण है तो शीतलता का भी। सूर्य और चंद्र इसकी चमकीली मिसाल हैं। मानवीय गुणों के संदर्भ में उज्जवलता, चमक, कांति आदि गुण नैसर्गिक होते हैं इनके निहितार्थ उच्च चारित्रिक विशेषताओं, अच्छी आदतों के जरिये समाज में प्रभावपूर्ण उपस्थिति है। मगर उज्जवलता, चमक जैसे गुणों की एक अन्य विशेषता भी है। वह यह कि प्रखर आभामंडल की वजह से कई बार चकाचौंध इतनी हो जाती है कि बहुत सी खामियां दृष्टिपटल और मानस में दर्ज होने से रह जाती हैं जबकि उज्जवलता का उद्धेश्य दाग को उजागर करना है।
सफेदी और उजलापन पवित्रता का आदिप्रतीक रहा है। सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति का साफ सुथरा चरित्र और अनुशासन ही महत्वपूर्ण होता है। सफेद रंग में ये दोनों तत्व मौजूद हैं। इसीलिए दुनियाभर में भद्र पोशाक या गणवेश के तौर पर श्वेत वस्त्रों को ही चुना जाता है। किसी भी चुनाव में प्रत्याशी को कैंडीडेट कहा जाता है इस शब्द की रिश्तेदारी उजलेपन से ही है। अंग्रेजी का कैंडीडेट शब्द भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है और मूल धातु kand से इसकी व्युत्पत्ति हुई है। ध्यान दें कि इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की भाषाओं में रोमन ध्वनियां c और k के उच्चारण में बहुत समानता है और अक्सर ये एक दूसरे में बदलती भी हैं। अंग्रेजी का कैमरा हिन्दी का कमरा और चैम्बर एक ही मूल के हैं मगर मूल c सी वर्ण की ध्वनि यहां अलग अलग है। यही हाल कैंडीडेट में भी हुआ है। भारोपीय धातु कंद kand का एक रूप cand चंद् भी होता है। इससे बने चंद्रः का मतलब भी श्वेत, उज्जवल, कांति, प्रकाशमान आदि है। चंद्रमा, चांद, चांदनी जैसे शब्द इससे ही बने हैं। चन्द्रः के अन्य अर्थ भी हैं मसलन पानी, सोना, कपूर और मोरपंख में स्थित आंख जैसा विशिष्ट चिह्न। दरअसल इन सारे पदार्थों में चमक और शीतलता का गुण प्रमुख है। दिन में सूर्य की रोशनी के साथ उसके ताप का एहसास भी रहता हैं। चन्द्रमा रात में उदित होता है। इसलिए इसकी रोशनी के साथ शीतलता का भाव भी जुड़ गया। चंदन के साथ यही शीतलता जुड़ी है।
आजकल राजनेताओं यानी चुनावी कैंडिडेटों पर जो जूते सैंडल चल रहे हैं वे यूं ही नहीं हैं, बल्कि उनमें रिश्तेदारी है और दोनों शब्द एक ही मूल के हैं। संस्कृत चंद् से ही एक विशिष्ट आयुर्वैदिक ओषधि को चंदन नाम मिला जो अपनी शीतलता के लिए मशहूर है। संस्कृत चंदन का फारसी रूप है संदल। गौरतलब है कि यही संदल अंग्रेजी के सैंडल में महक रहा है। प्राचीनकाल की लगभग सभी सभ्यताओं में चरणपादुकाएं चमड़े के साथ साथ वृक्षों का छाल से भी बनती थीं। अपने विशिष्ट गुणों की वजह से चंदन की लकड़ी से बनी चरणपादुकाएं यूरोप में भी प्रसिद्ध थी जहां इन्हें सैंडल कहा गया अर्थात संदल की लकड़ी से निर्मित। अंग्रेजी में चंदन को सैंडल कहते हैं। बाद में सैंडल सिर्फ चरणपादुका रह गई। अब अगर चुनावी गर्मी से तपे-तपाए, चौंधियाए कैंडिडेट्स (नेताओं) पर सैंडल बरस रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि उनका तन-मन पवित्र हो जाए।
कैंडिडेट बना है लैटिन के कैंडिड से जिसमें सच्चाई, सरलता और निष्ठा जैसे भाव निहित हैं। इसका प्राचीन रूप था कैंडेयर candere जिसका अर्थ है श्वेत, चमकदार, निष्ठावान। गौर करें कि सद्गुणों का एक आभामंडल होता है जबकि दुर्गुणों का प्रभाव मलिन होता है। आज जिस अर्थ में कैंडिडेट शब्द का प्रयोग होता है उसके मूल में प्राचीन रोमन परम्परा है। लैटिन मूल से उपजे इस शब्द का रोमन में
तब के नेताः गांधार शैली में बुद्ध की एक प्रतिमा। गौरतलब है कि गांधार शैली पर ग्रीकोरोमन कला का बहुत प्रभाव पड़ा था इसीलिए रोमन टोगा और बुद्ध के उत्तरीय में काफी समानता है।
अर्थ होता है श्वेत वस्त्रधारी अर्थात सफेदपोश। रोमन परम्परा मे केंडिडेट candidate उन तमाम सरकारी प्रतिनिधियों को कहा जाता था जो राजनीतिक व्यवस्था के तहत शासन के विभिन्न दफ्तरों को संचालित करते थे और वहां बैठकर लोगों से रूबरू होते थे। एक तरह से वे जनप्रतिनिधि ही होते थे जिनके लिए गणवेश के रूप में सफेद वस्त्र धारण करना ज़रूरी था। उद्धेश्य शायद यही रहा होगा कि सफेद वस्त्रों में जनप्रतिनिधि का सौम्य व्यक्तित्व उभरे। यह श्वेत परिधान टोगा toga हलाता था जो प्राचीन भारतीय परम्परा के उत्तरीय जैसा ही होता था। अर्थात एक सफेद सूती चादर जिसे शरीर के इर्दगिर्द लपेटा जाता था। आज भी पश्चिमी सभ्यता में प्रचलित टोगा पार्टियों में इस व्यवस्था के अवशेष नजर आते हैं। टोगा पार्टियां एक तरह का फैंसी ड्रेस आयोजन होता है।कैंडेयर से ही बना है मशाल, ज्योति के अर्थ मे अंग्रेजी का कैंडल शब्द जिसके हिन्दी अनुवाद के तौर पर मोमबत्ती शब्द सामने आता है। त्योहारों पर छत से रोशनी के दीपक लटकाए जाते हैं जिन्हें कंदील कहते हैं। यह शब्द अरबी से फारसी उर्दू होते हुए हिन्दी में दाखिल हुआ। अरबी में यह लैटिन के कैंडिला और Candela ग्रीक के कंदारोस kandaros से क़दील में तब्दील हुआ। जिन लोगों पर समाज को रोशनी दिखाने की जिम्मेदारी है, वे अब कैंडिडेट बनकर रोशनी में आते है और सिर्फ अपने घर के उजाले की फिक्र करते हैं। गौरतलब है कि नेता का सफेदपोश होना भारतीय परिवेश में ही नहीं है बल्कि इसके अतीत का विस्तार पूर्व से पश्चिम तक रहा है। मात्र भारत में प्राचीन ऋषिमुनि चादरनुमा श्वेतवसन ही धारण करते थे। बौद्ध-जैन परम्पराओं में भी इसी उत्तरीय का प्रयोग हुआ जिसे चीवर भी कहा गया। समाज को राह दिखानेवाले, गुरूपद के योग्य, महात्माओं, धर्मोपदेशकों और संतों के लिए आचार-व्यवहार से लेकर पहनावे तक पर सादगी-सरलता की छाप छोड़नी जरूरी थी, तभी समाज उनके पीछे चलता था और वे प्रतिष्ठा पाते थे। सूफियों को भी सूफी इसी लिए कहा जाता रहा क्योंकि वे सूफ् अर्थात शरीर पर सफेद सूती चादर ही धारण करते थे।
भारत में सफेद सूती कपड़े कि एक किस्म खादी के नाम से मशहूर है। संभव है इस खादी शब्द का मूल भी भारोपीय कंद से ही हो। नेताओं को हमारे यहां खद्दरपोश भी कहा जाता है। गांधी जी ताउम्र खादी की चादर ओढ़ कर बिना कैंडिडेट बने दुनिया को शांति, समता, चरित्र की पवित्रता जैसे गुणों का उजाला पहुंचाने में सफल रहे मगर उनके अनुयायी (देश के कर्णधार न कि सिर्फ कांग्रेसी) बगुला भगत बन गए। धूर्त, मक्कार, पाखंडी के चरित्र को उजागर करनेवाले इस मुहावरे में भी सफेद रंग की महिमा नज़र आ रही है। बगुला शुभ्र धवल होता है। वह सरोवर के छिछले पानी में एक टांग पर ध्यानस्थ संत की मुद्रा में खड़ा रहता है और मौका देखते ही चोंच में मछली को दबोच लेता है।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:01 AM लेबल: business money, government
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19 कमेंट्स:
जानकारियों से भरपूर यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी.
गुलमोहर का फूल
चलो दुआ करेंगे की नेताओं का तन मन पवित्र हो जाये :)
आज का शब्द सफ़र बहुत अच्छा रहा
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
उन्हें पुकारें किन नामों से जो डूबे रंग-रलियों में।
मोटे अजगर छिपे हुए हैं,खादी की केंचुलियों में।।
चन्द्रमा के राज में, राजा बने सारे सितारे,
कर रहे हैं आज तो,बगुला भगत भद्दे इशारे।
ज्ञान से भरपूर सफर अच्छा रहा।
आज की डाक ने तो सब को धो पोंछ कर चमका दिया है। काश सब कंदील हो जाते।
कैन्डीडेट को कैँडल दीखाई जाये ताकि आगे का रास्ता साफ देख सकेँ कि हम कहाँ जा रहे हैँ :)
स स्नेह,
- लावण्या
आज तो और भी ज्यादा लाजवाब है.
रामराम.
काले मन उजले वस्त्र वाले ही कंडीडेट रह गए है अब .
अद्भुत पोस्ट है.
बगुला भगत को सैंडल मिलना ही चाहिए. एक ही चिंता है. कई तो सैंडल प्राप्त करके महकने लगते हैं. (क्षमा वगैरह देकर...)
रोचक जानकारी कैंडिडेट व सैंडल के बारे में ,साथ ही व्यंग्य का आनंद बोनस में ..... अब अगर चुनावी गर्मी से तपे-तपाए, चौंधियाए कैंडिडेट्स (नेताओं) पर सैंडल बरस रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि उनका तन-मन पवित्र हो जाए.
शब्दों का सफर बहुत महत्त्वपूर्ण है। मेरी बधाई स्वीकार करें ।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
अजित भाई ,अद्भुत आनंद देती है आपकी शब्द चर्चा ,नेता जी पर इतनी गवेषणा पूर्ण टिपण्णी आपके ही बस में है ,हार्दिक धन्यवाद
सादर भूपेन्द्र
किसी कैंडीडेट ने तो कैंडीडेट का अर्थ सार्थक नहीं किया. लेकिन सैंडल ने अपनी रिश्तेदारी खूब निभाई :-)
यह सफ़र तो बहुत बढ़िया व उजला रहा।
घुघूती बासूती
बहुत बढ़िया--कैंडिल का ही सही--तम तो हटे...कैन्डिडॆट कुछ देख पायें..वरना तो बगुला भक्तों की क्या कमी.
जानकारी पूर्ण पोस्ट का आभार हमेशा की तरह.
चमक, शीतलता, उज्जवलता से चकाचौंध करते हुए आखिर में आपने दबोच ही लिया, बहुत खूब.
-मंसूर अली हाश्मी
अच्छा तो ये वजह है जो नेताजी लोगों पर आजकल चलाए जा रहे हैं!
जूता-चप्पल एपिसोड का
मर्म बताकर आपने हमें
संदेह-मुक्त कर दिया..धन्य हैं
वे लोग जो पवित्रता का ऐसा
उपहार बाँट रहे हैं !
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
सर जी , बहुत अच्छी जानकारी , कृपया कर अपनी पोस्ट में भारोपीय धातु, या अन्य धातुओं को भी समझाएं ,पिछली पोस्ट मैं समझाया हो तो कृपया लिंक करें , बहुत मदद होगी
धन्यवाद
sachmuch bahut badhiya post.jankariyo or rstedariyo ka bhandar.
labe samay se sadal ka arth khoj rahi thi.andaj aisa hi kuch tha par spast aaj hua .kavitao or filmi(1942 love story-sanal ki aag jaise) gano me milta hai.Sandali Sinha heroien bhi hai.
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