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Thursday, August 27, 2009
एलान और घोषणा
संबंधित कड़िया-1.भौंपू, ढिंढोरची और ढोल 1.सूई चुभोनेवाली सूचनाएं 3.दरिया तो संगीत है.
कि सी तथ्य को सार्वजनिक रूप से सबके सामने लाने के लिए हिन्दी में सूचना, घोषणा, मुनादी, एलान जैसे शब्द प्रचलित हैं। इनमें से सूचना और घोषणा शब्द संस्कृत मूल के है जबकि एलान और मुनादी सेमिटिक मूल के हैं और हिब्रू-अरबी जैसी भाषाओं से होते हुए हिन्दी में भी आमतौर पर इस्तेमाल हो रहे हैं। प्राचीनकाल में सार्वजनिक सूचना का जरिया ऊंची आवाज़ में किसी तथ्य की घोषणा करना था। इसके तहत नगाड़ा, ढिंढोरा, ढोल जैसे वाद्यों के साथ एक व्यक्ति जोर जोर से सूचना का पाठ करता चलता था। संचार के आधुनिक साधनों के तहत अब सूचनाएं बिना किसी ध्वनिविस्तार के पत्र-पत्रिकाओं और नोटिस-बोर्ड पर चस्पा पुर्जे के जरिये लोगों तक पहुंचती हैं।
एलान शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित है। यह सेमिटिक मूल का है। एलान की धातु-व्युत्पत्ति के बारे में ठोस सामग्री उपलब्ध नहीं है। अरबी ज़बान के इलान/अलाना से बना है यह शब्द जिसके एशिया की कई भाषाओं में विभिन्न रूप हैं मसलन अजरबैजानी में एलान, फारसी में एलान, स्वाहिली में इलानी, तातारी में इग्लान, तुर्की में इलान आदि। अरबी इलान का मतलब होता है विवरण देना, जतलाना, बतलाना, कहना, आदि। जाहिर है ये सभी भाव घोषणा या मुनादी में शामिल हैं। एलान के ये सभी रूप जुड़ते हैं सुमेरियाई भाषा की उल, इल और इलु (ul,Il ,Ilu) जैसी धातुओं से जिनमें ऊंचाई, उच्चता, उठाना, बढ़ाना, आगे, तेज, तीव्रता जैसे भाव हैं। एलान मे बतलाना या जतलाना जैसे भाव हैं जिसका अर्थ होता है किसी किस्म का बोध कराना। गौर करें कि घोषणा के लिए तेज़ और ऊंचे सुर में बोलना पड़ता है। प्राचीनकाल में किसी भी राजकीय सूचना के साथ नगाड़ा या ढिंढोरा इसीलिए बजाया जाता था ताकि उसकी ऊंची आवाज़ सुनकर लोग सचेत सावधान हो जाएं और उन्हें सरकारी निर्देश पढ़कर सुनाया जा सके। मुनादी करनेवाला व्यक्ति भी प्रायः चबूतरे या चौकी पर खड़े होकर ही सूचना पढ़ता था। यहां भी ऊंचाई का भाव उजागर हो रहा है। लिखित सूचनाएं भी पेड़, स्तंम्भ या दीवार के ऊंचे हिस्सों पर चिपकाई जाती रही हैं। नोटिस बोर्ड, होर्डिंग, श्यापपट्ट, तख्त, चौकी आदि सूचनाओं को सार्वजनिक करने का माध्यम ही हैं और इनमें ऊंचाई का तत्व शामिल है। बोध से जुड़ा एक प्रसिद्ध अरबी शब्द है इल्म जिसे ul,Il ,Ilu धातुओं के साथ जोड़ कर देखा जा सकता है। पश्चिम एशिया में एलाम एक प्राचीन सभ्यता रही है। एलान की तरह ही उर्दू, फारसी अरबी में एलाम शब्द भी है जिसमें ज्ञान कराना, बतलाना, जतलाना जैसे भाव निहित हैं। आज के दक्षिण-पश्चिमी ईरान में इराक की सीमा से सटे एक राज्य का भी यह नाम है। यह एक पर्वतीय प्रदेश है। जाहिर है उक्त धातुओं में निहित उच्चता, ऊंचाई के भावों के चलते ही इस भूक्षेत्र का नाम एलाम पड़ा होगा। बाईबल के मुताबिक हज़रत नूह के पुत्र शेम के बड़े बेटे का नाम भी एलाम ही था। ज्येष्ठ पुत्र में उच्चता का भाव उजागर है।
मुनादी के लिए संस्कृत हिन्दी में घोषणा शब्द प्रचलित है जो बना है संस्कृत के घोषः से। घोषः का जन्म संस्कृत की घुष् धातु से हुआ है जिसके मायने कोलाहल करना, चिल्लाना, सार्वजनिक रूप से कुछ कहना आदि होते हैं। घोषः या घोष का मतलब गोशाला तो होता ही है, इसके अलावा ग्वालों की बस्ती, गांव या ठिकाने को भी घोष ही कहते हैं। अहीरों के टोले और बस्तियां भी प्राचीनकाल में घोष ही कहलाती थीं। गौरतलब है कि मवेशियों को लगातार हांकने और देखभाल करने के लिए इन बस्तियों में लगातार होने वाले कोलाहल की वजह से यह नाम मिला होगा। उत्तरप्रदेश के एक जिले का नाम घोसी है। प्राचीनरूप में यह घोष ही है जिसमें ग्वालों की बस्तियों का भाव है। यह समूचा क्षेत्र आज भी काऊबेल्ट, गौपट्टी या यादव-बहुल माना जाता है। सूचना शब्द का जन्म हुआ है संस्कृत की सूच् धातु से जिसमें चुभोना, बींधना जैसे भावों के साथ तो हैं ही निर्देशित करना, बतलाना, प्रकट करना जैसे अर्थ भी इसमें निहित हैं। दरअसल इसमें सम्प्रेषण का तत्व प्रमुख है इसीलिए संकेत करना, जतलाना, हाव-भाव से व्यक्त करना, अभिनय करना भी इसमें शामिल है। इन तमाम भावों का विस्तार है पता लगाना, भेद खोलना और भांडाफोड़ करना आदि। इस तरह सूचना का अर्थ हुआ समाचार, खबर, जानकारी, संकेत, निर्देशन, इंगित, वर्णन, वाणी, उदघोष, रहस्य, बींधना, इशारा करना आदि। पत्रकारिता विभिन्न सूचनाओं के जरिये यह काम बखूबी कर रही है। रास्तों में हमें कई जगह तीर के निशान लगे मिलते हैं जो हमें किसी निर्दिष्ट स्थान आदि का पता बतलाते हैं। इसे सूचक कहते हैं। सूच् धातु से बने सूचक में उपरोक्त तमाम भाव एक साथ नज़र आ रहे हैं। यही नहीं, बींधना, चुभोना जैसे तत्व भी इसमें मौजूद हैं।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:22 AM
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15 कमेंट्स:
"अहीरों के टोले और बस्तियां भी प्राचीनकाल में घोष ही कहलाती थीं। "
नवीनतम जानकारी । घोसी के नामकरण से इस तथ्य का संयुक्त होना हमें और भी कई स्थानों के नामकरण के संबंध में सोचने को प्रवृत्त करता है । आभार ।
बहुत उम्दा जानकारी मिली, आभार!!
शब्दों के सफर से लगता है, शब्दों के भी इंसानों की तरह कुनबे हुआ करते हैं, और रिश्तेदारियाँ भी।
उम्दा जानकारी, आभार!!
ऐलान और मुनादी में जो दम होती है वह घोषणा में नहीं दिखती
शब्दों की यह अद्भुत anatomy प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
8400 टिप्पणियाँ पूरी हो गई हैं। लख चौरासी तो मिथक ही है लेकिन चौरासी सैकड़े बताते हैं कि शब्दों की सारी योनियों की परख आप को है और सुधी जन इसके साक्षी हैं।
मै आपको अन्यत्र पड़ती आ रही थी..इस ब्लॉग पे पहली बार आयी हूँ..कुछ शब्द मुझे नोट कर लेने चाहियें..बेहतरीन जानकारी दी है आपने!
@गिरिजेशराव
प्रियवर, एकदम सही कहा आपने। हमेशा कहते रह सकते हैं, बिना झिझक। आपके कहे अनुसार हमने शीर्षक बदल दिया है। (वैसे लगाते वक्त भी झिझके थे, पर नींद आ रही थी, सो आलस कर गए:))
@गिरिजेशराव
इस 8400 के आंकड़े पर खूब ध्यान दिलाया आपने। लगता है सड़क पर भी इधर-उधर ताक-झांक करते चलते हैं:) अच्छी शैली है यह। मनमौजी।
शुक्रिया आपका। सफर में आप सबके होने से हमेशा मंगल रहता है।
मुनादी,घोषणा, एलान या सूचना सभी शब्दों की ही तो मोहताज रहती है, जब 'शब्दों' के महत्त्व की बात करे तो इसके 'सफ़र' को भी चिन्हित करना ही पड़ेगा.सार गर्भित विश्लेषण के लिए साधुवाद.
# इक मुनादी और भी हो जाए आज,
घोषणाओं से नही चलते है राज.
सूचना ज़ाहिर करो अखबार में,
सिर्फ एलानो से न बनते है काज.
सदैव की भांति रोचक ज्ञानवर्धक गहन विवेचना ....
बहुत बहुत आभार...
बहुत ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक रचना ...
धन्यवाद..
Wah, bahut hee wistrut jankari. Ghosh, Ghoshal Bengal me surname hote hain jo UP Bihar ke yadawon ke samkaksh hain. nad aur nadee ka nadmay hona, wah bahut badiya.
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