सभ्यताओं की जंग
शब्दों को
तलवार की तरह
भांजते रहे सब
बच पाए
वही
जो पड़े रहे दम साधे
खोजते रहे
युद्ध के भावी अर्थ
-सात अप्रैल, 2010 भोपाल
सभ्यताओं की जंग
शब्दों को
तलवार की तरह
भांजते रहे सब
बच पाए
वही
जो पड़े रहे दम साधे
खोजते रहे
युद्ध के भावी अर्थ
-सात अप्रैल, 2010 भोपाल
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
9 कमेंट्स:
सोच रहा हूं कि क्या इन शब्दों का कोई निहितार्थ भी है?
सात अप्रैल, 2010 भोपाल?
अजित भाई
बेहद फिलोसोफिकल ...अकविता में वे भी हैं जिनकी मुर्गियां डेढ़ टांग की नहीं होती ...यक़ीनन वे ही सभ्यताओं के अमरत्व के सच्चे और एकमात्र ध्वजवाहक हैं !
कविता में बहुत दम है।। गाँठ बांध ली है।
#जिसको खबर नहीं उसे जोश-ओ-खरोश है,
जो पा गया है राज़, वह चुप है, खमोश है.
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# 'अ' सभ्य बन गए है नए युद्ध-सारथी,
खो कर सहिष्णुता भी लगे परमार्थी,
हिदू भी,सिख-ईसाई भी ,मुस्लिम भी मिलेंगे,
ढूँढे से भी मिलता नहीं अब 'गणेश विद्यार्थी' *
* गणेश शंकर विद्यार्थी
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
सदियों का दर्द है कविता में पर उससे भी ज्यादा समाया हुआ है --
सात अप्रैल २०१० में !!!!!!!
वो कब पढने को मिलेगा ????
अरे, गये नहीं हरिद्वार?
गहरे तक मार करने वाली व्यंग्य कविता है ।
अच्छा चयन । बधाई ।
अरे भाऊ ! नया प्रारम्भ !!
हिन्दी कविता में 'अकविता' एक तकनीकी टर्म है। अकविता युग के विद्रूपों को नैराश्य और ध्वंस की भावभूमि में अभिव्यक्त करती है जिसके बिंब और शिल्प तक से निषेध टपकता है।
यह तो कविता है , इसे 'अकविता' क्यों कह रहे हैं?
युद्ध का अनर्थ ही भुगत रहे हैं हम सब ।
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