कुछ शब्द
जो छिटके हुए थे अर्थ से
भाव भी था लापता
लेखक की लिखावट
में नुमांया थे शब्द
नही थी व्याख्या।
मनोरम था
कथावाचक का
कथा बांचना
पर उसमें सार नहीं
इतिवृत्त था खुद का।
शब्द को ब्रह्म मान
पूजते रहे उसे
ईश्वर को
तलाशा नहीं गया
अर्थ में।
देखें-अकविता/ शब्दार्थ –1 अकविता/ शब्दार्थ –2 अकविता/ शब्दार्थ –3
4 कमेंट्स:
मनोरम था
कथावाचक का
कथा बांचना
पर उसमें सार नहीं
इतिवृत्त था खुद का
बहुत सुन्दर, निरर्थक को परिभाषित करती एक सार्थक कविता. बधाई.
शब्द को ब्रह्म मान
पूजते रहे उसे
ईश्वर को
तलाशा नहीं गया
अर्थ में।
बहुत सही कहा आपने!
यही तो.!
शब्द का अर्थ मिला शब्दों में,
और अर्थो की तलाशी में है फिर सरगर्दां*
शब्द तस्वीर बने, फिर तो कोई बात बने,
धुंध हट जाए ज़रा फिर तो कोई ख़्वाब बुने.
इस सफ़र की कोई मंज़िल तो नज़र आ जाये,
Earth पर आना ये अपना न निरर्थक जाये.
*सरगर्दां= हैरान-ओ-परेशान
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