Tuesday, April 13, 2010

फुटपाथ का प्यादा और पदवी…

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ढ़ती व्यावसायिक होड़ में महत्वाकांक्षी व्यक्ति पद की दौड़धूप में जानमारी कर रहे हैं। इसमें हर वर्ग का आदमी शामिल है। नौकरीपेशा से लेकर आत्मनिर्भर तक, समाजसेवी से राजनेता तक सब। आखिर ये पद, उपाधि या पदवी है क्या? संस्कृत के पद शब्द की अर्थछायाएं भारोपीय भाषा परिवार की कई भाषाओं में नज़र आती है। पद के मूल में पत् या पद धातुएं हैं जिनमें गतिवाचक भाव हैं। पद्धति, राह, मार्ग के अर्थ वाले पथ की रिश्तेदारी भी इससे ही है। यात्री के लिए पथिक शब्द भी इसी शृंखला से बंधा है। पद में निहित गतिवाचक भावों की रिश्तेदारी चलने की क्रिया से है और शरीर के जिस अंग से चलने की क्रिया सम्पन्न होती है उसे भी पद कहा जाता है।
द में निहित पैर, क़दम या पांव का भाव भारोपीय भाषा परिवार की कई भाषाओं में है। संस्कृत की पत् या पद् धातुओं की तरह भाषाविदों ने प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार में pod- ped- जैसी धातुओं की कल्पना की है। अंग्रेजी का फुट (foot) प्राचीन जर्मनिक की fot का रूपांतर है जो गोथिक शब्द फॉटस fotus से बना है। फुटपाथ शब्द में फुट की पाथ यानी पथ से रिश्तेदारी साफ नुमांया है। अंग्रेजी का पाथ path और संस्कृत का पथ patha एक ही मूल के हैं। जर्मन की कुछ शैलियों में ध्वनि की जगह ध्वनि बनती है जैसे वॉट। अवेस्ता में भी इसका रूप padha है, संस्कृत में पदम् का अर्थ पैर होता है। ग्रीक में यह पॉस है तो लैटिन में पेस और लिथुआनी में पदास। इससे जुड़े कुछ और शब्द देखिए-पैडल अर्थात गतिमान करने वाला आधार, पॉडियम यानी मंच, पीठिका, प्यून या पॉन आदि। इन शब्दों के लिए बने हिन्दी-फारसी पर्याय हैं अर्थात पदातिक, पायक, पैदल, प्यादा आदि शब्दों के मूल में भी यही पद है।
द में चिह्न का भाव भी है और चरण का भी। पदचिह्न में यह स्पष्ट है। किसी श्लोक की एक पंक्ति को भी पद
clip पद में निहित स्थायित्व, स्थिरता का भाव पीठिका में भी निहित है। कालांतर में पद शब्द में सम्मान से जुड़ी विशिष्ट स्थिति का भाव रूढ़ हुआ और इसमें आसन का भाव भी समा गया।
कहते हैं। जाहिर है पद में निहित पंक्ति का भाव ही यहां उभर रहा है। जाहिर है किसी लिखित अंश की एक पंक्ति के लिए ही पद का भाव उभर रहा है। लिखी हुई पंक्ति दरअसल सिलसिलेवार शब्दों की कतार ही तो होती है। प्राचीनकाल में साहित्य का काव्यरूप प्रमुख था जो श्लोकों में निबद्ध होता था। श्लोक की पंक्ति को पद कहने का चलन इतना बढ़ा कि काव्य के लिए ही पद्य शब्द रूढ़ हो गया। हिन्दी में पद का अर्थ भी छंद से ही है। हालांकि पद शब्द गद्य और पद्य का फर्क नहीं करता।
दवी शब्द का इस्तेमाल हिन्दी में आमतौर पर पद यानी श्रेणी, रैंक, उपाधि के अर्थ में होता है। शासन और समाज की ओर से लोगों को सम्मानित करने के लिए कई तरह की पदवियां दी जाती हैं। मूल रूप में पदवी का अर्थ भी राह, रास्ता, मार्ग आदि। संस्कृत उक्तियों में पदवी का इन्हीं अर्थों में प्रयोग मिलता है। वाशि आपटे के कोश के अनुसार अनुयाहि साधुपदवीम् अर्थात भले आदमियों के पदचिह्नों पर चलना चाहिए। दरअसल पदवी वह मार्ग है जिस पर चलकर अनुयायी या साधक को ज्ञान दीक्षा मिलती है, पद अर्थात प्रतिष्ठा मिलती है। पद में निहित स्थायित्व, स्थिरता का भाव पीठिका में भी निहित है। कालांतर में पद शब्द में सम्मान से जुड़ी विशिष्ट स्थिति का भाव रूढ़ हुआ और इसमें आसन का भाव भी समा गया। पदवी का अर्थ हुआ शासन-समाज द्वारा प्रदत्त उपाधि, सम्मान आदि।
कि सी कार्य को करने की शैली, ढंग या तरीके को हिन्दी में पद्धति कहा जाता है जिसके मूल में पद शब्द ही है। पद्धति का सही अर्थ भी राह, पथ, मार्ग, सड़क, पंक्ति, कतार होता है। मोनियर विलियम्स के कोश के अनुसार पद्धति बना है पद + हतिः के मेल से। आपटे कोश कहता है-कविप्रथम पद्धतिम् अर्थात कवियों को दिखाया गया पहला मार्ग। कार्यपद्धति का अर्थ हुआ काम करने का तरीका, मगर इसमें जो भाव है वह है जिस मार्ग पर चल कर कार्य किया जाए। जाहिर है मार्ग शब्द में बाद में तरीका, शैली, तरकीब, युक्ति आदि की अर्थस्थापना हो गई। पद्धति में रेखा, पंक्ति, शृंखला का भाव भी है। आज पद्धति का अर्थ विधिविधान, शैली, रस्मोरिवाज, चाल, परिपाटी, कार्यप्रणाली, तरीका, प्रणाली, ढंग आदि है। संस्कृत में उपनाम अर्थात सरनेम का भाव भी पद्धति में समाया है, मगर इस अर्थ में इसका प्रयोग नहीं होता।
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9 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

धन्यवाद ज्ञानवर्धन करते चलने का.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

हैरान हो जाता हू जब पढ्ने को मिलता है सभी भाषाओ मे समान शब्द लगभग एक ही अक्षर से शुरु होते है

संजय भास्‍कर said...

कि सी कार्य को करने की शैली, ढंग या तरीके को हिन्दी में पद्धति कहा जाता है जिसके मूल में पद शब्द ही है। पद्धति का सही अर्थ भी राह, पथ, मार्ग, सड़क, पंक्ति, कतार होता है। मोनियर विलियम्स के कोश के अनुसार पद्धति बना है पद + हतिः के मेल से।

दिनेशराय द्विवेदी said...

गद्य में पद का स्थान पैरा लिए जा रहा है।

ghughutibasuti said...

बहुत रोचक जानकारी दी है।
घुघूतीबासूती

उम्मतें said...

पद्धति... मार्ग / कार्य की शैली / तरीके के रूप में स्थापित है ! संभवतः इसमें...( कार्य की शैली / मार्ग / कतार का ) व्यवस्थित होना अथवा सुसंयोजन का भाव भी निहित है !

Baljit Basi said...

मुझे लगता है आप इतने आम शब्द 'पैर' की व्युत्पति देना भूल गए.

सुज्ञ said...

किसी श्लोक की एक पंक्ति को भी पद कहते हैं। लेकिन मैंने पद को शब्द के अर्थ में भी प्रयुक्त होते देखा है.

अजित वडनेरकर said...

@Sugya

प्राचीनकाल में साहित्य का काव्यरूप प्रमुख था जो श्लोकों में निबद्ध होता था। श्लोक की पंक्ति को पद कहने का चलन इतना बढ़ा कि काव्य के लिए ही पद्य शब्द रूढ़ हो गया। हिन्दी में पद का अर्थ भी छंद से ही है। हालांकि पद शब्द गद्य और पद्य का फर्क नहीं करता।

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