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Wednesday, April 14, 2010
सैलून तेरे कितने रूप?
अ नादिकाल से नाइयों की दुकानें टाईमपास करने की जगह रही हैं। अक्सर देखा जाता है कि हेयर कटिंग सैलून saloon में कुछ लोग ऐसे बैठे ही रहते हैं जो बाल कटवाने नहीं आते बल्कि वहां बैठकर गप्पे लड़ाने आते हैं। सैलून में बजते हिट फिल्मी गीतों का मुजाहिरा किया जाता है। किसी ज़माने में तो बिनाका गीतमाला की हिटलिस्ट इन्हीं सैलूनों पर तय होती थी। जिन घरों में रेडियो नहीं होता था तो फिल्मी नग्मों को सुनने के लिए सैलूनों के बाहर मजमा लगता था। इन्हीं गीतों को सुनकर इश्को-आशिकी की नींवें मजबूत होती थीं। राजनीति से लेकर मोहल्ले-पड़ोस की परेशानियों पर तब्सरा होता है। मगर यह सब हुआ है अंग्रेजों के आने के बाद। इससे पहले तो गली के नुक्कड़ पर बने किसी चबूतरे पर धोतीधारी नाई निहायत फूहड़ तरीके से बालों पर कतरनी चला दिया करता था। अंग्रेजों के आने के बाद फैशनेबल ढंग से बालों की जमावट शुरू हुई। अंग्रेजी बसाहटों में बाल काटने की दुकानें खुलीं जिन्हें हेयर कटिंग सैलून कहा जाने लगा। नाई की दुकान की बजाय बाल कटवाने की जगह को सैलून कहना सभी को भाया। बाद में शहरों-कस्बों की कई गुमटियों में भी सैलून के बोर्ड टंग गए। अब ब्यूटी सैलून की जगह ब्यूटी क्लिनिक खुल रहे हैं और उसमें बाल भी काटे जाते हैं। इसी तरह सत्रहवीं सदी में जब देश में रेल चलनी शुरू हुई तब कई बदलाव आए। यातायात के इस सर्वप्रिय साधन के विस्तार का जिम्मा रजवाड़ों ने लिया। रेल के डिब्बों कतार में एक भव्य डिब्बा अलग से लगना शुरू हुआ जिसे शाही सैलून कहा जाता था। इसकी सजधज राजाओं की शान के अनुरूप होती थी।
सैलून भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है। आश्रय के अर्थ वाली शब्दावली जैसे सेल, शाला, चाल, हॉल, साल जैसे शब्दों की कतार में ही सैलून भी आता है। अंग्रेजी का सैलून दरअसल salon का रूपांतर है जो भारोपीय धातु sel-से आ रहा है। sel- का अर्थ बस्ती या बसाहट है जिसमें अंततः आश्रय का भाव ही है। salon का अर्थ है किसी विशाल प्रासाद में बना एक विशाल कक्ष या घिरा हुआ भव्य हिस्सा। फ्रैंच संदर्भों में इसे स्वागत कक्ष कहा गया है। sel-से बने लिथुआनी भाषा के साला शब्द पर गौर करें जिसका अर्थ है छोटा गांव। क्या यह धर्मशाला या शाला जो कई कमरों का संकुल होता है, का ही अर्थविस्तार नहीं लगता? छोटे गांव की छोड़िए, हिमाचल प्रदेश में तो धर्मशाला नाम का एक शहर ही है जो कई दशकों से तिब्बत के सर्वोच्च बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की निर्वासित सरकार का अघोषित मुख्यालय है।
…हरदिलअज़ीज़ ब्लागर ज्ञानदा रेलवे के अपने शानदार सैलून में इसकी शान का मुजाहिरा करते हुए… सभी तस्वीरें साभार-http://halchal.gyandutt.com
सैलून शब्द का प्रयोग रेलवे के सर्वसुविधायुक्त फर्निश्ड कोच के रूप में भी होता है। किसी जमाने में राजे-महाराजे इसमें बैठने का लुत्फ उठाते थे, अब या तो लखटकिया पर्यटक इसमें बैठते हैं या ज्ञानदत्त पाण्डे जैसे रेलवे के आला अफसर। सैलून के ही नजदीकी रिश्तेदार भारोपीय भाषा परिवार के कुछ अन्य शब्द भी है। विशाल प्रकोष्ठ के अर्थ में अंग्रेजी का हॉल शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित है। बल्कि यह हिन्दी का ही हो गया है। अंग्रेजी का हॉल hall, सेल cell, होल hole और हॉलो hollow जैसे शब्द शाल् की कड़ी में आते हैं। इन सभी शब्दों के मूल में प्राचीन भारोपीय धातुएं केल kel- या sel- हैं जिसमें आश्रय, घिरा हुआ और निर्माण के ही भाव हैं। शाल शब्द के देसी रूप जैसे राजस्थानी का साल अर्थात टकसाल, घुड़साल से सेल cell की रिश्तेदारी पर गौर करें। शाल में जो आश्रय का भाव है वही अंग्रेजी के सेल में भी है। शाल का देशी रूप साल अंग्रेजी के सेल को और करीब ले आता है। हॉल के मूल में भी सेल ही है। सेल बना है पोस्ट जर्मनिक धातु khallo से जिसका अर्थ होता है घिरा हुआ, ढका हुआ, विस्तारित, बड़ा प्रकोष्ठ, खाली स्थान आदि। भारोपीय परिवार की भाषा पोस्ट जर्मनिक के khallo और सेमिटिक परिवार की अरबी के ख़ल्क़ khalq या ख़ला khala की समानता पर गौर करें। ख़ल्क का अर्थ भी निर्माण, सृजन, घेरा हुआ, विशाल, विस्तारित, अंतरिक्ष आदि ही होता है। हालांकि ख़ल्क़ शब्द का दायरा काफी व्यापक है जो सृष्टिरचना से संबंधित है। मगर अंततः सृष्टि है तो आश्रय ही।
अंग्रेजी के सेल cell का मतलब होता है कमरा, प्रकोष्ठ। यहां कमरे के अर्थ में भी सेल शब्द का प्रयोग होता है और किसी संगठन के विभाग की तरह भी। जेल के कतारबद्ध कमरों को भी सेल कहा जाता है। अंदमान की सेल्युलर जेल का नामकरण इसी सेल की वजह से हुआ है। खास बात यह कि संस्कृत के शाला और अंग्रेजी के हॉल में जहां विशाल प्रकोष्ठ का भाव है वहीं अंग्रेजी के ही सेल शब्द में छोटे कक्ष या कोठरी का भाव है। सेल कितना छोटा हो सकता है इसका अंदाज़ा मनुष्य के शरीर की सबसे छोटी इकाई कोशिका के लिए प्रचलित सेल शब्द से होता है। गौर करें कि सेल का हिन्दी अनुवाद कोशिका के मूल में कष् धातु है जिससे जिसमें कुरेदने, घिसने, तराशने का भाव है जिससे आश्रय अर्थात कोष्ठ का निर्माण होता है। कोष एक घिरा हुआ स्थान है। इससे ही कोशिका शब्द बनाया गया। हिन्दी में बैटरी के लिए सेल शब्द ज्यादा प्रचलित है। विद्युत सेल भी एक छोटा सा कक्ष ही होता है। हॉलो का अर्थ है खाली, खोखला। इसी तरह अंग्रेजी का होल शब्द भी हिन्दी में बहुधा प्रयोग होता है जिसका अर्थ है छिद्र, विवर, छेद आदि। सुऱाख के अर्थ में होल शब्द का इस्तेमाल हिन्दी में आम है।
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15 कमेंट्स:
मतलब यह कि सैलून में बैठने का मजा लेने के लिए रेलवे के बड़े अफसर बनो ...! वरना हेयर कटिंग सैलून तो है ही... अपने राम इसी वाले सैलून में ही बैठ कर खुश हो लेते हैं।
... मजेदार!!!
अंग्रेजी में हेयर कटिंग सलान (Hair Cutting Salon) होता है, भारतीय अंग्रेजी में शायद 'हैयर कटिंग सैलून'(Hair Cutting Saloon) ही होता होगा. रेल का विशेष डिब्बा तो सैलून ही है. अंग्रेजी में salon और saloon में अब फर्क होता है.
ज्ञान जी का सैलून देखकर ललचा गया -इत्तेफाक है वे भी इन दिनों सैलून पर ही लिख रहे हैं!
एक ये सैलून ज्ञान जी वाला और एक वो सैलून भैरों प्रसाद का...
और अजित जी, भोपाली सैलूनों में मैंने एक और चीज़ हमेशा पाई है - मायापुरी पत्रिका. पुराने जमाने में मैं बाल कटवाने के बाद भी बैठकर ब्लैक एंड व्हाईट मायापुरी बांचता रहता था. उनमें बहुत नफासत और शिष्टतापूर्ण फ़िल्मी गॉसिप भी छपते थे. एक और चीज़ उनमें मजेदार थी कि वे फ़िल्मी पार्टियों या दृश्यों के फोटो में अपने चुटीले डायलोग भर देते थे.
खैर, यह तो विषयांतर था. पोस्ट हमेशा की तरह मस्त है!
हम छोटे थे तो अखबार घर पर नहीं आया करता था। लेकिन सैलून पर दो अखबार नियमित आते थे। दस बजे ट्रेन से बंडल उतरता फिर हॉकर बांटता बांटता साढ़ेग्यारह तक पहुंचता। दोपहर में सैलून पर ग्राहक भी कम होते थे। तब वह वाचनालय का कार्य करता था।
बहुत ही कमाल की जानकारी मिली अजित जी फ़िर से आज । सच में ही सैलून का इतिहास वो भी भारतीय परिप्रेक्ष्य में तो और भी दिलचस्प है । आज भी गांव में हमारे राजिन्दर हज्जाम की मोबाईल सैलून सिर्फ़ एक पीढी पर लग जाती है
हमेशा की तरह शब्दों का सफ़र रोचक और उपयोगी रहा..
आभार...
बहुत सुन्दर सैलून कथा है जी! बधाई!
आदरणीय ज्ञानदत्त जी तो रेलवे सैलून से लेकर नाउ के सैलून तक सब कुछ कवर कर लिये हैं अपने ब्लॉग में ।
नाइन्साफी! वो जमीन से जुड़ा बेहतर सैलून नहीं चिपकाया - गंगा किनारे वाला या भैरो प्रसाद वाला! :-)
अजित भाई
बालपन के दिनों में यजमानी प्रथा के तहत धोबी... नाई और अन्य सेवाओं के विनिमय की स्मृतियां शेष हैं रविवार या अन्य छुट्टी के दिन पारिवारिक नाई कुट्टी महाराज अपनी पेटी लेकर घर आते और हम बच्चे घर से बाहर खिसक लेते / छुप जाते ! परिजन जिन बच्चों को ढूंढ पाते वे कुट्टी जी के दरबार में हाज़िर कर दिये जाते और उनका केश कर्तन कार्यक्रम निपटा दिया जाता जो बच्चे बच जाते वे अपने को सौभाग्यशाली समझते कि अब उन्हें कुट्टी जी के बजाये सैलून में जाने का मौका मिलेगा ! दरअसल कुट्टी जी बालों को छोटा करने में उस्ताद और कटोरा कट हेयर स्टाईलिस्ट थे ! कटिंग के बाद ऐसा लगता कि खोपड़ी पर उल्टा कटोरा रख कर केश कर्तन किया गया हो यानि कटोरे के नीचे वाला हिस्सा उस्तरे से साफ और ऊपर छोटे छोटे बाल ...पर सैलून में विकल्प थे ... दीवारों पर चस्पा 'फोटुओं' के अनुरूप कटिंग करवाने के ! साल में एक बार फसल कटाई के बाद कुट्टी जी का पारिश्रमिक गेंहूं की शक्ल में देय होता और बच्चों को फैशनेबल कटिंग से दूर रखने की निपुणता के चलते भी वे परिजनों की पहली पसंद थे ! स्मरण नहीं कि मिडिल स्कूल के बाद हम कभी उनके हत्थे चढ़े हों ...पर परंपरा वर्षो तक जारी रही ...सोचता हूं वो मोबाइल सैलून था !
आपके विचारपूर्ण आलेख से स्मृतियां ताज़ा हुईं ! आभार !
अली भाई, आपने यादों को सही खंगाला है।
बाकी तो सब ठीक है,
लेकिन सैलून की तस्वीर में दो बेड क्यों नज़र आ रहे हैं...
जय हिंद...
ACHA TOPIC LIYA AAP NE
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
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