सबसे पहले बात बाजे की। बाजा दरअसल संस्कृत के वाद्यम् शब्द का तद्भव रूप है जिसका मतलब हुआ बाजा, बाजे की ध्वनि आदि। यह लफ्ज संस्कृत की मूल धातु वद् से बना है जिसका अर्थ है कहना , बोलना, उच्चारण करना । संगीतिक संदर्भों के तहत इसमें स्वरों को ऊंचा उठाना, गायन करना, प्रवीणता दिखाना आदि भाव भी शामिल है। इस तरह वाद्यम् शब्द का अर्थ हुआ मधुर ध्वनि करने वाले संगीत यंत्र अथवा साज। इसी का एक और क्रियारूप बना वादन या वादनम जिसका मतलब हुआ बजाना, ध्वनि करना। वादक शब्द भी इसी से बना जिसका देसी रूप बजैया ,बजनियां या बजवैया भी बोला जाता है। मराठी में वाद्यवृंद के लिए वाजंत्री शब्द भी है। हिन्दी में बजाना शब्द का एक अर्थ मारपीट या लाठी चलाना वगैरह भी है।
अब आते हैं बैंड पर। अंग्रेजी मे इसका अर्थ है म्यूजिशियंस का ग्रुप । दुनियाभर के संगीत समूह अपने नाम के साथ बैंड शब्द का प्रयोग करते हैं जैसे रॉकबैंड। मूलत: इस शब्द का मतलब किसी खास काम को करने वाले व्यक्तियो का समूह है । कोई समूह बैंड तभी कहलाएगा जब उसकी ड्रेस के साथ एक फीता भी पहचान के तौर पर जोड़ा जाए। मसलन पुलिस या फौज। जाहिर सी बात है कि बैंड बजानेवालो की पहचान भी उनकी टोपी या बांह पर बंधे एक फीते से होती है।
खास बात ये कि बैंड शब्द मूलत: भारतीय यूरोपीय भाषा परिवार का ही है और इसकी उत्पत्ति का आधार संस्कृत शब्द बंध् में छुपा है जिसका अर्थ है बांधना, कसना , जकड़ना आदि। वैसे वाद्ययंत्रो या वादकों के समूह को बैंड कहने का चलन इंग्लैंड में भी सोलहवीं-सत्रहवी सदी के आसपास ही शुरू हुआ। इस तरह भारत में वाद्यम् से बने बाजे के साथ बैंड के जुड़ जाने से बन गया बैंडबाजा।
अब यूं तो बैडबाजे का बजना या बजाना मांगलिक शगुन होता है मगर मुहावरे के तौर पर अब बैंडबाजा बजना वाक्य का अर्थ शादी के लक्षण के साथ ही किसी हानि या नुकसान होने के संदर्भ में भी समझा जाता है। [पुनर्प्रस्तुति]
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6 कमेंट्स:
बैंड अंग्रेजो के साथ आया था उस से पहले सामान्य जनता शादी-विवाह में ढोल और उच्च वर्ग शहनाई बजवाते थे. अब तो बैंड का स्वरूप बहुत बिगड़ गया है. उसमे ढेर से loud speakers का प्रयोग बैंड को बेसुरा बना देते है.
घर में हम दो और हमारे दो हुआ करते थे। हमारे दो तो नौकरी के चक्कर में बाहर चले गए, बचे हम दो। पर आज हम फिर चार हैं। श्रीमती शोभाराय जी के पूज्य माताजी पिताजी आज हमारे मेहमान हैं। ऐसे में अपना बैंड बजना तो स्वाभाविक था ही। बज रहा है बिना आवाज के।
बहुत बेहतरीन अंक है
बहुत मजा आया
अजित जी बहुत बहुत शुक्रिया
बजा दक्षिण* में दिल्ली* में भी बाजा,
मिलन का एक जुदाई का था दूजा.
*सानिया-शोएब, * विदेश राज्य मंत्रीजी का
आपके ब्लाग को पढ़ कर कई बार यह महसूस हुआ कि प्रायः प्रयोग में आने वाले शब्दों का सही ग्यान नहीं था।
अजित भाई इस महत्वपूर्ण पोस्ट पर अपनी एक कविता याद आ गई सादर प्रस्तुत है ...
बैण्ड बाजे वाले
बहारों फूल बरसाओ मेरा मेहबूब आया है
लगभग आखरी धुन होती है
दुलहन के द्वार पर जिसे बजाते है बैण्डवाले
वे खामोश उदासी में प्राण फूंकते हैं
हवा उनके संगीत पर नृत्य करती है
उनके चेहरे पर इकठ्ठा रक्त
शर्माती दुलहन के चेहरे को मात देता है
तानसेन की आलाप से ऊंचे स्वरों में
उनका क्लेरेनेट अलापता है राग दीपक
तभी हर शाम उनके घर चराग जलते हैं
पृथ्वी की छाती में धड़कता है उनका बैण्ड
मरे हुए चमडे़ से निकलती है आवाज़
जीवन का स्पन्दन बन जाती है
पांवों में थिरकन पैदा करती है
उनके पसीने की महक से सराबोर धुनें
सभ्यता की खोल से बाहर आते हैं आदिम राग
पीढियों का अंतर खत्म हो जाता है
उनकी परम्परा में शामिल है
सबकी भूख
उनके पेशे में उनकी अपनी जाति
जन्म से लेकर मृत्यु तक
हर उत्सव में
पीटा जाता है उनकी अहमियत का ढिन्डोरा
उनके संगीत से देवता जागते हैं
उनके संगीत से देवता प्रसन्न होते है
अपनी कला मे सिध्द हस्त होने के बावजूद
कलाकार के उतरे हुए विशेषण में वे बाजेवाले कहलाते हैं
सदियों से मिली उपेक्षा और अपमान
फटे ढोल की तरह गले में लटकाये
प्लेट और पेट के तयशुदा
अनुपात वाली दावतो में
जूठन की तरह बचे रहते हैं वे
एक सुरीली तूती की तरह बजते हैं बैण्ड्वाले
इस बेसुरी दुनिया के नक्कारखाने में
शरद कोकास
स्ट्रीट 7 ज़ोन 3 न्यू आदर्श नगर दुर्ग छ.ग.
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